कक्षा 6 इतिहास अध्याय 10 एनसीईआरटी समाधान – इमारतें, चित्र तथा किताबें
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 इतिहास अध्याय 10 इमारतें, चित्र तथा किताबें के प्रश्न उत्तर, पाठ की समीक्षा और अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। छात्र पाठ को समझने के लिए विडियो की मदद ले सकते हैं जिसमें पाठ्यपुस्तक के एक एक बिंदु अच्छी तरह से विस्तार से समझाया गया है। विडियो में पाठ के वर्णन के साथ साथ अभ्यास के प्रश्नोत्तर भी बताए गए हैं।
कक्षा 6 इतिहास अध्याय 10 के लिए एनसीईआरटी समाधान
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लोह स्तंभ
दिल्ली के मेहरौली में कुतुब मीनार के परिसर में पाया जाने वाला यह लोहे का स्तंभ भारतीय कारीगरों के कौशल का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी ऊंचाई 7.2 मीटर और वजन 3 टन से अधिक है। इसका निर्माण लगभग 1500 वर्ष पहले हुआ था। इसके बनने के समय की जानकारी हमारे पास इसपर खुदे हुए अभिलेख मिलती हैं। इसमें ‘चन्द्र’ नाम के एक शासक का उल्लेख मिलता है, जो संभवत: गुप्त राजवंश था। कमाल की बात तो यह है कि इतने सालों बाद इसमें जंग भी नहीं लगी है।
स्तूप क्या थे और इनको क्यों बनाया जाता था?
स्तूप का शाब्दिक अर्थ टीला होता है हालांकि स्तूप विभिन्न आकार के थे – कभी गोल या लंबे तो कभी बड़े या छोटे। उन सब में एक समानता है। प्राय: सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा रखा रहता है। इन डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष (जैसे दाँत, हड्डी या राख) या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज़ या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते हैं। इसे धातु-मंजूषा कहते हैं। प्रारंभिक स्तूप, धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद में टीले को ईटों से ढक दिया गया और बाद के काल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया।
इन स्तूपों को बौद्ध धर्म की स्मृतियों के रूप में देखा जा सकता है। प्राय: स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृत्ताकार पथ बना होता था, जिसे प्रदक्षिणा पथ कहते हैं। इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था जिसे वेदिका कहते हैं। वेदिका में प्रवेशद्वार बने होते थे। रेलिंग तथा तोरण प्राय: मूर्तिकला की सुंदर कलाकृतियों से सजे होते थे।
चित्रकला
इस काल में चित्रकला उन्नत दशा में थी। इसका प्रमाण अजंता की गुफाएं हैं। यह वह जगह है, जहाँ के पहाड़ों में सैकड़ों सालों के दौरान कई गुफाएँ खोदी गर्इं। इनमें से ज़्यादातर बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए गए विहार थे। इनमें से कुछ को चित्रों द्वारा सजाया गया था। यहाँ इनके कुछ उदाहरण दिए गए हैं। गुफाओं के अंदर अंधेरा होने की वजह से, अधिकांश चित्र मशालों की रोशनी में बनाए गए थे। इन चित्रों के रंग 1500 साल बाद भी चमकदार हैं। ये रंग पौधों तथा खनिजों से बनाए गए थे। इन महान कृतियों को बनाने वाले कलाकार अज्ञात हैं।
इस कालखंड में कौन सी पुस्तकों की रचना की गई?
इस युग में कई प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना की गई। इन उत्कृष्ट कृतियों में पुरुषों और महिलाओं के बारे में वीर कहानियां और देवताओं से संबंधित कहानियां हैं। लगभग 1800 साल पहले एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य सिलप्पादिकारम की रचना एलंगो नामक कवि ने की थी। एक और तमिल महाकाव्य, मणिमेखलाई लगभग 1400 वर्ष पहले सत्तानार द्वारा लिखा गया था। ये रचनाएँ कई सदियों पहले खो गई थीं। उनकी पांडुलिपियां पुनः लगभग सौ साल पहले फिर से मिलीं।
कालिदास जैसे अन्य लेखकों ने संस्कृत में लिखा। हिंदू धर्म से संबंधित कई कहानियां, जो बहुत पहले व्यापक थीं, इस अवधि के दौरान लिखी गई थीं। इनमें पुराण भी शामिल हैं। दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत, रामायण लंबे समय से लोकप्रिय हैं। आप में से कुछ बच्चे भी इन कहानियों से परिचित होंगे। यह लगभग 1500 साल पहले लिखा गया था। ऐसा माना जाता है कि पुराण और महाभारत दोनों का संकलन व्यास नामक एक ऋषि ने किया था। भगवद गीता भी महाभारत का हिस्सा है, संस्कृत रामायण के रचयिता वाल्मीकि माने जाते हैं।
आर्यभट्ट कौन थे और उन्होंने क्या खोज की थी?
इसी समय गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम नामक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने लिखा कि दिन और रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते हैं, जबकि लगता है कि रोज़ सूर्य निकलता है और डूबता है। उन्होंने ग्रहण के बारे में भी एक वैज्ञानिक तर्क दिया। उन्होंने वृत्त की परिधि को मापने की भी विधि ढूँढ़ निकाली, जो लगभग उतनी ही सही है, जितनी कि आज प्रयुक्त होने वाली विधि। वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य कुछ अन्य गणितज्ञ और खगोलवेत्ता थे जिन्होंने कई खोजें कीं।