एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 5 कण्टकेनैव कण्टकम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 5 पञ्चम: पाठ: कण्टकेनैव कण्टकम् के प्रश्न उत्तर, रिक्त स्थान और अन्य प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। आठवीं कक्षा संस्कृत का यह पाठ पंचतंत्र की शैली पर आधारित एक लोककथा है जिसका सार यह है कि चतुराई से संकट को भी टाला जा सकता है। पाठ का संस्कृत से हिंदी अनुवाद भी दिया गया है ताकि छात्र कहानी को अच्छी तरह से समझ सके और सभी प्रश्न उत्तर स्वयं कर सकें।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के उत्तर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत पञ्चम: पाठ: कण्टकेनैव कण्टकम्
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 5 कण्टकेनैव कण्टकम् का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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आसीत् कश्चित् चञ्चलो नाम व्याध:। | चञ्चल नामक कोई शिकारी था। |
पक्षिमृगादीनां ग्रहणेन स: स्वीयां जीविकां निर्वाहयति स्म॥ | वह पक्षियों और पशुओं आदि को पकड़ कर अपनी जीविका का निर्वाह करता था। |
एकदा स: वने जालं विस्तीर्य गृहम् आगतवान्। | एक बार वह जंगल में जाल फैलाकर घर आ गया। |
अन्यस्मिन् दिवसे प्रात:काले यदा चञ्चल: वनं गतवान् तदा स: दृष्टवान् यत् तेन विस्तारिते जाले दौर्भाग्याद् एक: व्याघ्र: बद्ध: आसीत्। | दूसरे दिन प्रातःकाल जब चञ्चल वन में गया, तब उसने देखा कि उसके द्वारा फैलाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ बँधा हुआ था। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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सोऽचिन्तयत्, ‘व्याघ्र: मां खादिष्यति अतएव पलायनं करणीयम्।’ | उसने सोचा-‘बाघ मुझे खा जाएगा। अत: भाग जाना चाहिए’। |
व्याघ्र: न्यवेदयत्-‘भो मानव! कल्याणं भवतु ते। | बाघ ने निवेदन किया- अरे मानव! तुम्हारा कल्याण होवे। |
यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि।’ | यदि तुम मुझे छुड़ा दोगे तो मैं तुम्हें नहीं मारूँगा।’ |
तदा स: व्याध: व्याघ्रं जालात् बहि: निरसारयत्। | तब उस शिकारी ने बाघ को जाल से बाहर निकाल दिया। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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व्याघ्र: क्लान्त: आसीत्। | बाघ थका हुआ था। |
सोऽवदत्, ‘भो मानव! पिपासु: अहम्। | उसने कहा-‘हे मानव! मैं प्यासा हूँ। |
नद्या: जलमानीय मम पिपासां शमय। | नदी से जल लाकर मेरी प्यास बुझाओ।’ |
व्याघ्र: जलं पीत्वा पुन: व्याधमवदत्, ‘शान्ता मे पिपासा। | बाघ ने जल पीकर पुनः शिकारी से कहा-‘मेरी प्यास बुझ गई है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। | इस समय मैं भूखा हूँ। |
इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि।’ | अब मैं तुम्हें खाऊँगा।’ |
चञ्चल: उक्तवान्, ‘अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान्। | चञ्चल ने कहा-‘मैंने तुम्हारे लिए धर्म का आचरण (व्यवहार) किया है। |
त्वया मिथ्या भणितम्। | तुमने झूठ बोला है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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त्वं मां खादितुम् इच्छसि? | तुम मुझे खाना चाहते हो।’ |
व्याघ्र: अवदत्, ‘अरे मूर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति। | बाघ ने कहा-‘अरे मूर्ख! भूखे (प्राणी) के लिए कुछ भी अनुचित नहीं होता है। |
सर्व: स्वार्थं समीहते।’ | सभी स्वार्थ चाहते हैं। |
चञ्चल: नदीजलम् अपृच्छत्। | चञ्चल ने नदी के जल से पूछा। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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नदीजलम् अवदत्, ‘एवमेव भवति, | नदी के जल ने कहा-‘ऐसा ही होता है। |
जना: मयि स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मल-मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुत: सर्व: स्वार्थं समीहते। | लोग मेरे जल में स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मलमूत्र आदि का त्याग करके वापस लौट जाते हैं। वस्तुतः सभी स्वार्थ चाहते हैं। |
चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्। | चञ्चल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। |
वृक्ष: अवदत्, ‘मानवा: अस्माकं छायायां विरमन्ति। | वृक्ष कहने लगा-‘मनुष्य हमारी छाया में आराम करते हैं, |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अस्माकं फलानि खादन्ति, पुन: कुठारै: प्रहृत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्टं ददति। | हमारे फल खाते हैं। फिर कुल्हाड़ों से प्रहार करके हमें सदा कष्ट देते हैं। |
यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति। | जहाँ कहीं भी काट डालते हैं। |
सर्व: स्वार्थं समीहते।’ | सभी स्वार्थ चाहते हैं। |
समीपे एका लोमशिका बदरी-गुल्मानां पृष्ठे निलीना एतां वार्तां शृणोति स्म। | पास में बेर की झाड़ियों के पीछे छिपी हुई एक लोमड़ी इस बात को सुन रही थी। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति-“का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय।” | वह अचानक चञ्चल के पास जाकर कहने लगी-“क्या बातचीत है? मुझे भी बताइए।” |
स: अवदत्-“अहह मातृस्वस:! अवसरे त्वं समागतवती। | वह कहने लगा-“अरे, मौसी! तुम ठीक समय पर आई हो। |
मया अस्य व्याघ्रस्य प्राणा: रक्षिता:, परम् एष: मामेव खादितुम् इच्छति।” | मैंने इस बाघ के प्राणों की रक्षा की है, परन्तु यह मुझे ही खाना चाहता है।” |
तदनन्तरं स: लोमशिकायै निखिलां कथां न्यवेदयत्। | इसके बाद उसने लोमड़ी को सम्पूर्ण कथा बता दी। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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लोमशिका चञ्चलम् अकथयत्-बाढम्, त्वं जालं प्रसारय। | लोमड़ी ने चञ्चल से कहा-अच्छा। तुम जाल फैलाओ। |
पुन: सा व्याघ्रम् अवदत्-केन प्रकारेण त्वम् एतस्मिन् जाले बद्ध: इति अहं प्रत्यक्षं द्रष्टुमिच्छामि। | फिर उसने बाघ से कहा-तुम किस प्रकार इस जाल में बँधे थे-यह मैं अपने सामने देखना चाहती हैं। |
व्याघ्र: तद् वृत्तान्तं प्रदर्शयितुं तस्मिन् जाले प्राविशत्। | बाघ उस घटना को दिखाने के लिए उस जाल में घुस गया। |
लोमशिका पुन: अकथयत्-सम्प्रति पुन: पुन: कूर्दनं कृत्वा दर्शय। | लोमडी ने फिर कहा-अब बार-बार उछलकूद करके दिखाओ। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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स: तथैव समाचरत्। | उसने वैसा ही आचरण किया। |
अनारतं कूर्दनेन स: श्रान्त: अभवत्। | लगातार उछलकूद से वह थक गया। |
जाले बद्ध: स: व्याघ्र: क्लान्त: सन् नि:सहायो भूत्वा तत्र अपतत् प्राणभिक्षामिव च अयाचत। | जाल में बँधा हुआ वह बाघ निढाल होता हुआ असहाय होकर वहाँ गिर पड़ा तथा प्राणों की भीख माँगने लगा। |
लोमशिका व्याघ्रम् अवदत् सत्यं त्वया भणितम् ‘सर्व: स्वार्थं समीहते।’ | लोमड़ी ने बाघ से कहा-‘तुमने सच कहा था। सभी स्वार्थ चाहते हैं। |