एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 10 नीतिनवनीतम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 10 दशम: पाठ: नीतिनवनीतम् के प्रश्न उत्तर तथा रिक्त स्थान व मिलान आदि पर आधारित प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त करें। कक्षा 8 संस्कृत का पाठ 10 मनुस्मृति के श्लोकों पर आधारित है जिसमें हमें सदाचार और शिष्टाचार से होने वाले लाभ के बारे में बताया गया है। प्रत्येक श्लोक अच्छी तरह से समझाने के लिए, श्लोकों का हिंदी अनुवाद भी साथ साथ दिया गया है। श्लोकों को अच्छी तरह से समझकर सभी प्रश्नों को विद्यार्थी स्वयं भी कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत दशम: पाठ: नीतिनवनीतम् के उत्तर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 10 नीतिनवनीतम्
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 10 नीतिनवनीतम् का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥1॥ | प्रणाम करने वाले तथा नित्य वृद्ध लोगों की सेवा करने वाले (व्यक्ति) की आयु, विद्या, यश तथा बल-ये चार वस्तुएँ वृद्धि को प्राप्त होती हैं। |
यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्। न तस्य निष्कृति: शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि ॥2॥ | मनुष्यों के जन्म के अवसर पर माता-पिता जिस कष्ट को सहन करते हैं, उसका बदला सैकड़ों वर्षों में भी नहीं चुकाया जा सकता। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यादाचार्यस्य च सर्वदा। तेष्वेव त्रिषु तुष्टेषु तप: सर्वं समाप्यते ॥3॥ | उन दोनों का (अर्थात् माता व पिता का) तथा गुरु का सदा और नित्य ही प्रिय करना चाहिए। उन तीनों के प्रसन्न हो जाने पर सभी तप सम्पन्न हो जाते हैं। |
सर्वं परवशं दु:खं सर्वमात्मवशं सुखम्। एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदु:खयो: ॥4॥ | दूसरे के वश में होना ही दुःख है तथा अपने वश में होना ही सुख है। यह सुख-दुःख की परिभाषा संक्षेप में जानना चाहिए। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मन:। तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत् ॥5॥ | जिस कार्य को करते हुए अन्तरात्मा को संतोष होता है, उसे प्रयत्न पूर्वक करना चाहिए, विपरीत का त्याग करना चाहिए। |
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्। सत्यपूतां वदेद्वाचं मन: पूतं समाचरेत् ॥6॥ | दृष्टि के द्वारा पवित्र कदम को रखे, वस्त्र से पवित्र जल पीना चाहिए, सत्य से पवित्र वाणी को कहना चाहिए। मन से पवित्र आचरण करना चाहिए। |