एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 1 सुभाषितानि
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 1 प्रथम: पाठ: सुभाषितानि के प्रश्न उत्तर, अभ्यास के सभी प्रश्नों के विस्तार से उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। विद्यार्थियों किए लिए प्रश्न उत्तर के साथ-साथ पूरे पाठ का हिंदी अनुवाद भी दिया गया है ताकि पाठ को समझने में कोई परेशानी न हो। अभ्यास के प्रश्नों को सरलता से हल किया गया है ताकि सभी छात्रों को ये समाधान आसानी से समझ में आ सकें।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत प्रथम: पाठ: सुभाषितानि के उत्तर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत प्रथम: पाठ: सुभाषितानि
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 1 सुभाषितानि का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषा:। | गुणवान व्यक्तियों में गुण , गुण ही होते है। वे (गुण) गुणहीन व्यक्तियों को प्राप्त करके दोष बन जाते है। |
सुस्वादुतोया: प्रभवन्ति नद्य:, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेया: ॥1॥ | जिस प्रकार नदियाँ स्वादिष्ट जल से युक्त निकलती है , परन्तु समुद्र में पहुंचकर वे पीने योग्य नहीं होती है। |
साहित्यसङ्गीतकलाविहीन:, साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीन:। | साहित्य , संगीत तथा कला से रहित मनुष्य वास्तव में बिना पूँछ व सींग के पशु है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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तृणं न खादन्नपि जीवमान:, तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥2॥ | जो घास न खाता हुआ भी पशु के समान जीवित है। इससे ज्यादा भाग्यशाली पशु हैं। |
लुब्धस्य नश्यति यश: पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्म:। | लालची (व्यक्ति) का यश , चुगलखोर की मित्रता, जिसके कर्म नष्ट हो चुके है उसका कुल , धन को अधिक महत्त्व देने वाले व्यक्ति का धर्म। |
विद्याफलं व्यसनिन: कृपणस्य सौख्यं, राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ॥3॥ | बुरी लत वाले का विद्या का फल , कंजूस का सुख तथा जिसके मंत्री प्रमाद (आलस्य) से पूर्ण है (ऐसे) राजा का राज्य नष्ट हो जाता है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं, माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ। | जिस प्रकार मधुमक्खी कड़वे अथवा मधुर रस को समान रूप से पीकर मीठा रस ही उत्पन्न करती है। |
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां, श्रुत्वा वच: मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥4॥ | उसी प्रकार सन्त (साधु) लोग, सज्जन और दुष्ट लोगों के वचन को एक समान रूप में सुनकर मधुर (मीठा) सूक्ति रूप रस का निर्माण करते है। |
विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते। | जो मेहनत को छोड़कर सिर्फ भाग्य का सहारा लेते है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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प्रासादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसा: ॥5॥ | वह महल में बने हुए शेर की तरह , उसके सिर पर कौवे बैठते है। |
पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभि:। धन्या महीरुहा: येषां विमुखं यान्ति नार्थिन: ॥6॥ | फूल, पत्ते, फल, परछाई, जड़, छाल, लकड़ी से युक्त सागवान के पेड़ धन्य है। जिनके याचक विरुद्ध नहीं होते है। |
चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रिया:। न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे ॥7॥ | विपदा आने से पहले ही समाधान सोच लेना चाहिए। घर में आग लगने पर कुआँ खोदना उचित नहीं है। |