कक्षा 8 हिंदी व्याकरण अध्याय 29 निबंध लेखन
कक्षा 8 हिंदी व्याकरण अध्याय 29 निबंध लेखन तथा अभ्यास के लिए पठन सामग्री और कई निबंध विद्यार्थी शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। हिंदी ग्रामर के लिए यहाँ दी गई अध्ययन सामग्री तथा विडियो छात्रों को निबंध को चरण-दर-चरण समझकर लिखने में मदद करता है।
निबंध-लेखन
निबंध लेखन एक रचनात्मक कला है। निबंध का अर्थ है- अच्छे प्रकार से बँधा हुआ। निबंध अपने विचार, भाव तथा अभिव्यक्ति को प्रकट करने का सबसे उत्तम साधन है। जब हम किसी विषय पर अपने विचार क्रमबद्धता से लिखते हैं तो ऐसे लेखन को निबंध कहते हैं।
निबंध के अंग
मुख्य रूप से निबंध के तीन अंग होते हैं:
1. भूमिका या प्रस्तावना- यह निबंध के आरंभ में एक अनुच्छेद में लिखी जाता है जिसमे मुख्यतः विषय का परिचय दिया जाता है।
2. विस्तार- यह निबंध का मुख्य अंग है जिसमें विषय का विस्तृत वर्णन किया जाता है।
3. उपसंहार- यह निबंध के अंत में निबंध के सार के रूप में लिखा जाता है।
अच्छे निबंध की विशेषताएं
1. निबंध की भाषा विषय के अनुकूल होनी चाहिए।
2. विषय की जानकारी को श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।
3. निबंध का आरंभ रोचक होना चाहिए।
4. निबंध विषय के दायरे में होना चाहिए।
5. शुद्ध वर्तनी तथा विराम चिह्नों का ध्यान रखा जाता है।
स्वामी दयानंद सरस्वती – निबंध
जिस समय संसार में अनीति और अत्याचार अपनी सीमा को लाँघ जाते हैं, चारों तरफ़ स्वार्थ-ही-स्वार्थ का बोलबाला होता है, बड़े छोटों को, बली निर्बलों को और धनी निर्धानों को सताने लग जाते हैं, तब समय का दिव्य झूला पृथ्वी की ओर झुक जाता है और किसी महान् विभूति को पृथ्वी पर छोड़ जाता है। वह विभूति बाद में अपनी असाधारण प्रतिभा द्वारा विश्व को चमत्कृत कर देती है। स्वामी दयानंद जी का जन्म भी ऐसे समय में हुआ जब समाज में नाना प्रकार की कुरीतियाँ जोर पकड़ रही थीं। पराजय का अंधकार छाया हुआ था। ऐसे समय में आपने जो समाज-सुधार के कार्य किए, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए थोड़ी है।
स्वामी दयानंद जी का जन्म 1824 में गुजरात प्रांत में टंकारा नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम अंबाशंकर था। वे शिवजी के उपासक थे। उन्होंने आपका नाम मूल शंकर रखा। बचपन से ही प्रतिभाशाली और चिंतनशील बालक थे।
महान् व्यक्तियों के जीवन में साधारण घटनाएँ ही क्रांतिकारी परिवर्तन ला देती हैं। वे अभी 18 वर्ष के ही थे कि उनके पिताजी ने शिव-रात्रि का व्रत रखने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा का पालन करके बालक शिव मंदिर में जागता रहा। सभी भक्त सो गए तभी आधाी रात को उसने देखा कि चूहे आकर मूर्ति के ऊपर दौड़-धूप कर रहे हैं, वे वस्तुओं को खाकर चले जाते हैं। बालक चिंतनशील होने के कारण सोचने लगा- जो भगवान चूहों से अपनी रक्षा नहीं कर सकता वह दूसरों का उद्धार कैसे कर सकता है? उन्होंने तब से सच्चे शिव को खोजने की मन में ठान ली।
जब किसी महान् आत्मा को ज्ञान की ज्योति मिलती है तब उसके लिए अधिक-से-अधिक पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। इन्हीं दिनों बहिन और चाचा की मृत्यु हो जाने पर उनके मन में प्रश्न उठ खड़ा हुआ- मृत्यु क्या है? इसका रहस्य क्या है? इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए बालक विचलित हो उठा। घर को त्याग कर ब्रह्मचारी रहने की ठान ली और हरिद्वार जा पहुँचे। स्वामी पूर्णानंद जी से संन्यास लिया। उनकी आज्ञा पाकर वे मथुरा में स्वामी बिरजानंद जी के पास चले गए। गुरु बिरजानंद जी लौकिक चक्षुओं से हीन थे लेकिन उनके पास ज्ञान का विशाल सागर था। स्वामी दयानंद जी उनसे वेदों का ज्ञान प्राप्त करके मूलशंकर से दयानंद बन गए।
ज्ञान प्राप्त करने पर गुरु जी ने उस ज्ञान को संसार में फ़ैलाने की आज्ञा दी। उन्होंने देश भर में भ्रमण किया। अपने विचारों को स्थायी रूप देने के लिए आर्य समाज की स्थापना की। सबसे पहले आर्य समाज की नींव मुंबई में डाली। राजस्थान में उपदेश दिए। देश के कई राजा आपके शिष्य बन गए। उन्होंने देशवासियों को स्वतंत्रता के लिए भी जगाया। उनका कहना था कि बुरे-से-बुरे शासन भी अच्छे-से-अच्छे परकीय राज्य से श्रेष्ठ होते हैं। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ आपका प्रसिद्ध ग्रंथ है।
आप गौ-माता को भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानते थे। अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे गौ-वध के विरोध में सारे देश में गौ-रक्षा का एक मत तैयार किया। अंग्रेजों को इस मत के आगे झुकना पड़ा।
स्वामी दयानंद जी एक महान् समाज-सुधारक थे। उन्होंने उस समय फ़ैली कुरीतियों, अंध-विश्वासों, मूर्ति-पूजा का विरोध किया। बाल-विवाह, छुआछूत को बुरा बताया। स्त्री शिक्षा, विधवा-विवाह को उचित ठहाराया। वेदों का प्रचार किया। राष्ट्र-भाषा हिंदी को माना। हिंदी का प्रचार किया। इन सभी कार्यों से देश धन्य हो गया।