एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत पाठ 8 सूक्तिस्तबकः
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 8 सूक्तिस्तबकः पाठ्यपुस्तक रुचिरा भाग 1 के प्रश्न उत्तर तथा अन्य प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 6 संस्कृत के सभी प्रश्न उत्तर आसान भाषा का प्रयोग करके विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं ताकि किसी भी विद्यार्थी को इसे समझने में कोई परेशानी न हो। कक्षा 6 संस्कृत पाठ 8 की सभी सूक्तियों का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है जो पाठ को समझने में बहुत सहायक सिद्ध होता है।
कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 8 सूक्तिस्तबकः
कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 8 सूक्तिस्तबकः का हिंदी अनुवाद
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:। | परिश्रम से ही काम सफल होते हैं केवल इच्छाएँ करने से नहीं। |
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:। | सोए हुए शेर के मुँह में हिरण खुद ही प्रवेश नहीं करते हैं। |
सूक्ति का भाव:
मनुष्य हो या जानवर अर्थात सभी जीव-जन्तुओं को अपने कार्य में सफलता पाने के लिए प्रयत्न भी स्वयं ही करना पड़ता है।
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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पुस्तके पठित: पाठ: जीवने नैव साधित:। | यदि पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन उपयोग में नहीं लाया जाए |
किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थक:। | तो ऐसे पाठ का क्या लाभ जो जीवन के काम न आए। |
सूक्ति का भाव:
पुस्तक पढ़ी बातों को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए अन्यथा उसे पढने का कोई लाभ नहीं है।
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:। | मनुष्य प्रिय वचन सुनने पर प्रसन्न हो जाते हैं। |
तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता। | तो इन प्रिय वचनों का उपयोग कंजूसी से क्यों करें। |
सूक्ति का भाव:
मीठे बोल सबको प्रसन्न रखने का एकमात्र सरल साधन है। अर्थात् वाणी में उदार भाव और प्रेम अधिक से अधिक होना चाहिए।
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि। | चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन की दूरी लाँघ जाती है |
अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति। | किंतु न चलता हुआ गरुड भी, एक कदम भी नहीं जाता। |
सूक्ति का भाव:
जीवन में प्रयास करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं बिना प्रयास के कुछ भी प्राप्त नहीं होता हैं।
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: को भेद: पिककाकयो:। | कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है, कौए और कोयल में क्या अंतर है? |
वसन्तसमये प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:। | वसंतकाल आने पर कौवा कौवा है और कोयल कोयल है। |
सूक्ति का भाव:
केवल रूप के आधार पर किसी के गुणों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, किंतु समय आने पर कार्य शैली से जीव की उपयोगिता प्रकट हो ही जाती है।