एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत पाठ 7 बकस्य प्रतिकारः
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 7 बकस्य प्रतिकारः पाठ्यपुस्तक रुचिरा भाग 1 के अभ्यास के प्रश्नों के हल, रिक्त स्थान, शब्द अर्थ, मिलान आदि के उत्तर यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। कक्षा 6 संस्कृत पाठ 7 के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के अनुसार सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के अनुसार संशोधिक किए गए हैं। प्रश्नों के उत्तर सरल तरीके से दिए गए हैं ताकि प्रत्येक विद्यार्थी को आसानी से समझ आ सके।
कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 7 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 7 बकस्य प्रतिकारः
कक्षा 6 संस्कृत अध्याय 7 बकस्य प्रतिकारः का हिंदी अनुवाद
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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एकस्मिन् वने शृगाल: बक: च निवसत: स्म। | किसी वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। |
तयो: मित्रता आसीत्। | उन दोनों में मित्रता (दोस्ती) थी। |
एकदा प्रात: शृगाल: बकम् अवदत्- “मित्र! श्व: त्वं मया सह भोजनं कुरु।” | एक दिन सुबह सियार ने बगुले को कहा- “मित्र! कल तुम मेरे साथ खाना खाओ।” |
शृगालस्य निमन्त्रणेन बक: प्रसन्न: अभवत्। | सियार के निमंत्रण से बगुला बहुत खुश हुआ। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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अग्रिमे दिने स: भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्। | अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास स्थान पर गया। |
कुटिलस्वभाव: शृगाल: स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्। | कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में खीर डाल दी। |
बकम् अवदत् च-“मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादाव:।” | बगुले ने कहा-“मित्र, इस बर्तन में साथ खाते हैं। |
भोजनकाले बकस्य चञ्चु: स्थालीत: भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। | बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में असमर्थ थी। |
अत: बक: केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्। | इसप्रकार, बगुला केवल खीर देखता रहा। |
शृगाल: तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्। | सियार ने सारी खीर ली। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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शृगालेन वञ्चित: बक: अचिन्तयत्-“यथा अनेन मया सह व्यवहार: कृत: तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि”। | सियार द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा, “जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है, मैं भी उसके साथ यह बर्ताव करूँ।” |
एवं चिन्तयित्वा स: शृगालम् अवदत्-“मित्र! त्वम् अपि श्व: सायं मया सह भोजनं करिष्यसि”। | ऐसा सोचकर उसने सियार से कहा- “दोस्त। तुम भी न मेरे साथ शाम को भोजन करोगे।” |
बकस्य निमन्त्रणेन शृगाल: प्रसन्न: अभवत्। | बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया। |
यदा शृगाल: सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बक: सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, | जब सियार शाम को बगुले के निवास स्थान पर भोजन के लिए आया, तब बगुले ने छोटे सुख कलश (सुराही) में खीर डाल दी। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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शृगालं च अवदत्-“मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्व:”। | और सियार से कहा- “दोस्त! हम दोनों इसी बर्तन में साथ भोजन करते हैं।” |
बक: कलशात् चञ्च्वा क्षीरोदनम् अखादत्। | बगुले ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई। |
परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्। | परंतु सियार का मुंह कलश में न जा सका। |
अत: बक: सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्। | इसलिए बगुला सारी खीर खा गया। |
शृगाल: च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्। | सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा। |
शृगाल: बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बक: अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्। | सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदला लिया। |
- आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दु:खदम्।
तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥ - अपने बुरे व्यवहार का परिणाम दुखद ही होता है।
इस कारण सुख चाहने वाले मानव को सभी से सदा अच्छा व्यवहार करना चाहिए।