एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 हिंदी वसंत अध्याय 2 बचपन

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लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थीं?

बचपन में लेखिका को अपने मोजे खुद धोने पड़ते थे। वह नौकर या नौकरानी को नहीं दिए जा सकते थे। इसकी सख्त मनाही थी। बच्चे इतवार की सुबह इसी में लगाते थे। धो लेने के बाद अपने-अपने जूते पॉलिश करके चमकाते थे। जब जूते कपड़े या ब्रश से रगड़ते तो पॉलिश की चमक उभरने लगती थी।

‘तुम्हें बताउँगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है।’ इस बात के लिए लेखिका क्या-क्या उदाहरण देती हैं?
लेखिका के अनुसार बचपन की दिलचस्पियाँ भी बदल गई हैं। उन दिनों कुछ घरों में ग्रामोफोन थे, रेडियो और टेलीविजन नहीं थे। बचपन की कुल्फी अब आइसक्रीम हो गई है। कचौड़ी-समोसा अब पैटीज में बदल गया है। शहतूत और फाल्से और खसखस का शरबत आज के समय में कोक-पेप्सी में बदल गया है। उन दिनों कोक, पेप्सी नहीं थी लेकिन उस समय भी विमटो नामक कोल्ड ड्रिंक का चलन था।

लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थी?

लेखिका बचपन में इतवार की सुबह अपनी मोज़े खुद धोती थी। घर के नौकर या नौकरानी को यह काम करने की सख्त मनाही थी, इसलिए घर के सभी बच्चें इसी काम में लग जाते थे। इसके बाद लेखिका अपने जूते पोलिस करके चमकाती थी।

लेखिका ने अपने समय और आज के समय की दूरी को देखते हुए क्या-क्या उदाहरण दिए हैं?
लेखिका के समय में कुछ घरों में ही ग्रामोफ़ोन थे, रेडियो और टेलीविजन भी कम थे। जो आजकल हर घरों में मिल जाते हैं। आजकल की आइसक्रीम बचपन में कुल्फी थी। कचौड़ी और समोसा पैटीज़ और बर्गर में बादल गए हैं। शहतूत और फाल्से और खसखस के शरबत कोक-पेप्सी में बदल गई हैं। पहले समय में ड्रिंक में लेमनेड और विमटो ही मिलती थी।

लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा था? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई लेखिका को क्या कहकर चिढ़ाते थे?

लेखिका अपना अधिकांश काम दिन की रोशनी में ना करके रात में टेबल लैंप के सामने करती थी। जिस कारण लेखिका को चश्मा पहना पड़ा, चश्मा चढ़ जाने की ज़िम्मेदार लेखिका खुद अपने आप को मानती है। चश्मा लगाने पर लेखिका के चचेरे भाई एक शेर के माध्यम उसे चिढ़ाते थे। वे कहते है, “आँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की, यह नहीं लड़की को मालूम सुरत बनी लंगूर की”! यह सुनकर लेखिका चिढ़ जाती थी।

लेखिका अपने समय में कौन-कौन-सी चीज़े और फल खाती थी?
लेखिका चाँकलेट, टाफी, चने ज़ोर गर्म और अनारदाने का चूर्ण बहुत खाती थी। उसे शिमला का काफ़ल अधिक पसंद था। एक-दम लाल और खट्टे-मीठे लगने वाला यह फल लेखिका को आज भी याद है। जिसे गुलाबी, रसभरी, कसमल आदि नामों से भी जाना जाता हैं।

शिमला रिज में लेखिका को क्या मौक़ा मिला था?
शिमला रिज पर लेखिका को घुमने और घुड़ सवारी करने का मौक़ा मिला था।

लेखिका शिमला के घोड़ों को क्यों कमतर समझती थी?

लेखिका जब भी शिमला के घोंड़ो को देखती तो उसे अपने ननिहाल के हस्त-पुष्ट और खूबसूरत घोड़े ध्यान आ जाते थे। जो शिमला के घोंड़ो से बेहतर दिखाई देते थे।

पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे?
दिन की रोशनी को छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण लेखिका को चश्मा लगाना पड़ा। जब पहली बार लेखिका ने चश्मा लगाया तो उसके चचेरे भाई ने उसे छेड़ते हुए कहा कि, देखो! कैसी लग रही है! आँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की पर नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की!

लेखिका को अपने बचपन में शनिवार का दिन क्यों याद रहा?

लेखिका अपने बचपन में कौन-कौन-सी चीजें मजे ले-लेकर खाती थी? उनमें से प्रमुख फलों के नाम लिखो।
लेखिका को अपने बचपन में कन्फेक्शनरी काउंटर से हफ्ते़ में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। उसके पास सबसे ज्यादा चॉकलेट-टॉफी का स्टॉक रहता था। वह चॉकलेट लेकर खड़े-खड़े कभी नहीं खाती थी। घर लौटकर साइडबोर्ड पर रख देती और रात के खाने के बाद बिस्तर में लेटकर मजे ले-ले खाती थी। इसके अलावा काफल खट्टे-मीठे, कुछ एकदम लाल, कुछ गुलाबी, रसभरी, चेस्टनट – एक और गजब की चीज। आग पर भूने जाते और फिर छिलके उतारकर मुँह में चना जोर गरम और अनारदाने का चूर्ण।

लेखिका को बचपन में हर शनिवार को आलिव आँयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था। जो लेखिका के लिए ये बहुत मुश्किल काम था। शनिवार को सुबह से ही इसकी गंध लेखिका को परेशान रखती थी। जिसे भुलाना लेखिका के लिए आसान नहीं था।

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