एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 7 डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की जुबानी

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 7 डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की जुबानी के अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर विस्तार से सीबीएसई सत्र 2023-24 के शैक्षणिक सत्र के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 5 हिंदी विषय की पुस्तक रिमझिम के पाठ 7 में हम काँवरसिंह की बहादुरी तथा मेहनत के बारे में पढेंगे।

कँवरसिंह के जीवन की महत्वपूर्ण घटना क्या थी?

कँवरसिंह बताता है कि उसका तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। वहाँ उसे रात के समय रेस्ट हाउस और डाकघर की चौकीदारी का काम दिया गया था। यह 1998 की बात है, 29 जनवरी को रात लगभग साढ़े दस बजे का समय था। बाहर से किसी ने पोस्ट ऑफिस का दरवाजा खटखटाया। मैंने पूच्छा “कौन है”? जबाव आया, “दरवाजा खोलो, तुमसे बात करनी है”। मैंने दरवाजा खोला तो पाँच लोग अंदर घुस आए और मेरे साथ मारपीट करने लगे। उनमें से एक ने किसी बारी चीज से मेरे सिर पर प्रहार किया और मैं बेहोश हो गया।

दूसरे दिन जब होश आया तो मैं शिमला के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती था। मेरे सर में कई टाँके लगे थे जिसकी वजह से आज भी मुझे एक आँख से दिखाई नहीं देता है। सरकार ने मुझे जान पर खेल कर डाक की चीजें बचाने के लिए बेस्ट पोस्टमैन का पुरस्कार दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस ईनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। मैं और मेरा परिवार बहुत खुश हुए। आज भी मैं गर्व से कहता हूँ: “मैं बेस्ट पोस्टमैन हूँ”।

कँवरसिंह कौन है? वह कहाँ रहता है?

कँवरसिंह एक डाकिया है, जो हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव का निवासी है।

कँवरसिंह के परिवार में कौन-कौन हैं?
कँवरसिंह के परिवार में तीन लड़कियाँ और एक लड़का है। इसमें दो लड़कियों की शादी हो चुकी है।

कँवरसिंह के एक लड़के की मृत्यु कैसे हुई थी?
कँवरसिंह का लड़का गाँव की पहाड़ी से लकड़ियाँ लाते हुए गिर गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी।

डाक सेवक के रूप में कँवरसिंह का क्या काम है?

कँवरसिंह चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने, एक गाँव से दूसरे गाँव तक जाते हैं।

कँवरसिंह ने भारत की डाक सेवा को दुनिया में सबसे बड़ी डाक सेवा क्यों कहा?
कँवरसिंह ने अपने देश की डाक सेवा को आज भी दुनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा बताया क्योंकि इसका बड़ा होने का कारण इसका सस्ता होना है। केवल पाँच रूपए में देश के किसी भी कोने में हम चिट्टी भेज सकते हैं। पोस्टकार्ड तो केवल पचास पैसे का ही है। पचास पैसे में हम देश के हर कोने में अपना संदेश भेज सकते हैं।

कँवरसिंह को डाकिए की नौकरी में क्या सुकून और मज़ा मिलता है?

कँवरसिंह को अपनी डाकिए की नौकरी बहुत अच्छी लगती है। जब वह दूर नौकरी करने वाले सिपाही का मनीआर्डर लेकर उसके घर पहुँचाते हैं तो उसके बूढ़े माँ-बाप की ख़ुशी देखकर उन्हें बड़ा सुकून मिलता है। ऐसे ही जब किसी का रजिस्टरी पत्र पहुंचाते हैं, जिसमें कभी रिजल्ट, कभी नियुक्ति पत्र होता है जिसे पाने वाले लोगो की ख़ुशी देखकर कँवरसिंह को बड़ा आनंद आता है। हिमाचल में बूढ़े लोगो को छः महीनों की पेंशन इकट्टी मिलती है, जिसके इंतजार की ख़ुशी उन्हें देखते ही बनती है।

कँवरसिंह को ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम कब और क्यों दिया गया था?
कँवरसिंह को ‘बैस्ट पोस्टमैन’ का इनाम 2004 में मिला था। सरकार ने यह इनाम जान पर खेलकर डाक की चीज़े बचाने के लिए दिया था।

डाकिये की कहानी कौन से शहर से सम्बंधित है?

डाकिये की कहानी शिमला शहर से सम्बंधित है। शिमला के माल रोड पर जनरल पोस्ट आफिस है।

कँवरसिंह कौन है? और उसके चरित्र को किस तरह से वर्णित कर सकते हैं?
कँवरसिंह एक डाकिया है, जिसकी उम्र पैंतालिस साल है तथा वह शिमला जिले के नेरवा गाँव का निवासी है। उसको सरकार द्वारा उसके अच्छे काम के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है।

पहाड़ी इलाके में डाक पहुँचाने की कठनाई के बारे में कँवरसिंह ने क्या बताया?
पहाड़ी इलाके में डाक पहुँचाने के बारे में कँवरसिंह ने बताया कि ये इलाके ऊँचे होने के साथ ठंडे भी होते हैं। जिन पर चलना खतरे से खाली नहीं होता है। एक गाँव से दूसरे गाँव की दूरी चार से आठ किलोमीटर तक की होती है। बर्फ के कारण पैरों में स्नोबाईट होने का डर बना रहता है। ठंड से पैर नीले पड़ जाते हैं और इसमें गैंगरीन हो जाती है। इससे उँगलियाँ झड़ सकती है।

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