एनसीईआरटी समाधान कक्षा 2 हिंदी सारंगी अध्याय 5 थाथू और मैं
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 2 हिंदी सारंगी अध्याय 5 थाथू और मैं के प्रश्न उत्तर अभ्यास के हल सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए सत्र 2024-25 के लिए संशोधित रूप में यहाँ पर उपलब्ध हैं। कक्षा 2 के इस पाठ में छात्र पढेंगे कि किस प्रकार एक छोटी सी बच्ची अपने दादा जी के साथ हर समय व्यस्त रहती थी और उन्हें प्यार करती थी।
एनसीईआरटी कक्षा 2 हिंदी सारंगी अध्याय 5 थाथू और मैं
कक्षा 2 हिंदी सारंगी अध्याय 5 थाथू और मैं के प्रश्न उत्तर
थाथू और मैं
मैं अपने दादाजी के साथ रहती हूँ। उन्हें मैं ‘थाथा’ कहती हूँ। लेकिन जब उन पर बहुत प्यार आता है, तो मैं उन्हें ‘थाथू’ बुलाती हूँ। कभी-कभी थाथू मुझे सिनेमा दिखाने बाहर ले जाते हैं। मैं उनकी गोदी में बैठकर हॉर्न बजाती हूँ – पॉम! पॉम! रास्ते की सब बकरियाँ और गायें दूर हट जाती हैं। “थाथू क्यों न हम चाँद पर चलें?” मैं पूछती हूँ। वे सिर हिलाकर हँस देते हैं। थाथा के दाँत नहीं हैं। जब वे हँसते हैं तो एक गुलाबी-सी दीवार दिखाई देती है…और फिर… एक गुलाबी-सी गुफा। जब बारिश होती है, तो थाथा खिड़की के बाहर इशारा करते हैं और कहते हैं, “देखो! बरसात हो रही है। चलो! बाहर चलें।” थाथू और मैं हमेशा कुछ अलग करते हैं। हम समुद्र तट पर जाते हैं।
ऊँची-नीची लहरें मेरे चारों तरफ़ उठती-गिरती हैं। चाँद हमारे साथ-साथ चलता है और हवाएँ सीटी बजाती हैं। मछलियाँ थाथू और मुझे ढूँढ़ती हुई आती हैं। मेरी उँगलियाँ कुतरती हैं और मुझे खेलने को बुलाती हैं। हम दौड़ लगाते हैं और कलाबाज़ियाँ खाते हैं। जब अँधेरा हो जाता है, तो मैं थाथू का हाथ पकड़ लेती हूँ। उनके साथ मैं कूदती-फाँदती घर आ जाती हूँ। और फिर थाथू अपनी मनपसंद किताब पढ़ने बैठ जाते हैं। “थाथू, यह कोई जादुई कि ताब है?” मैं पूछती हूँ। थाथू मुस्कुराते हैं। “क्या मैं भी जादगूर बनँगूी?” मैं फिर पूछती हूँ, “आपकी तरह?” वे कहते हैं, “अब सो जाओ।” उनकी गोद में सिर रखकर, मैं सो जाती हूँ। मुझे अपने थाथू से बेहद प्यार है। मैं प्रार्थना करती हूँ… कि एक दिन, मैं भी उनके जैसी बनँ।
थाथू के साथ बिताए खुशनुमा पल
मैं अपने प्यारे दादाजी, जिन्हें मैं प्यार से ‘थाथा’ कहती हूँ, के साथ रहती हूँ। वे मेरे लिए सिर्फ एक परिवार का हिस्सा नहीं, बल्कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी हैं। जब भी मेरे दिल में उनके लिए अतिरिक्त प्यार उमड़ता है, मैं उन्हें ‘थाथू’ कहकर बुलाती हूँ। उनके साथ बिताया हर पल मेरे लिए अनमोल होता है, चाहे वह सिनेमा देखने का हो या फिर कुछ और।
सिनेमा की सैर और बचपन की शरारतें
कभी-कभी, थाथू मुझे सिनेमा दिखाने बाहर ले जाते हैं। मैं उनकी गोदी में बैठकर हॉर्न बजाने का खेल खेलती हूँ – ‘पॉम! पॉम!’। मेरे इस खेल से रास्ते की बकरियां और गायें भी दूर हट जाती हैं। उनके साथ हर छोटा पल भी खास बन जाता है।
चाँद पर सैर की कल्पना
एक दिन मैंने थाथू से पूछा, “थाथू, क्यों न हम चाँद पर चलें?” इस पर वे सिर्फ मुस्कुरा देते हैं। उनके बिना दाँतों की हंसी मुझे एक गुलाबी-सी दीवार और गुफा की याद दिलाती है। थाथा के साथ बिताए हर पल में एक अलग ही जादू होता है।
बारिश और समुद्र तट की सैर
जब बारिश होती है, थाथा खिड़की के बाहर इशारा करते हुए कहते हैं, “देखो, बरसात हो रही है। चलो, बाहर चलें।” हम समुद्र तट पर जाते हैं, जहाँ ऊँची-नीची लहरें मेरे चारों तरफ उठती-गिरती हैं। वहाँ की हवाएँ सीटी बजाती हैं और मछलियाँ हमें खोजती हुई आती हैं।
जादुई किताब और कल्पना की उड़ान
रात के समय, जब अँधेरा छा जाता है, मैं थाथू का हाथ पकड़कर घर लौटती हूँ। घर पहुँचकर, थाथू अपनी मनपसंद किताब पढ़ते हैं। मैं उनसे पूछती हूँ, “थाथू, यह कोई जादुई किताब है क्या?” और फिर सवाल करती हूँ, “क्या मैं भी जादूगरनी बन सकती हूँ, आपकी तरह?” वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, “अब सो जाओ।”
थाथू से बेहद प्यार और प्रार्थना
उनकी गोद में सिर रखकर मैं सो जाती हूँ। मेरे दिल में उनके लिए बहुत प्यार है। मैं प्रार्थना करती हूँ कि एक दिन, मैं भी उनके जैसी बनूँ। मेरे थाथू मेरे लिए एक प्रेरणा हैं, और मैं उनकी तरह बनने की आशा रखती हूँ।