एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 अर्थशास्त्र अध्याय 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 अर्थशास्त्र अध्याय 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रश्न उत्तर सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। 12वीं कक्षा में अर्थव्यवस्था के पाठ 1 के अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए हैं ताकि विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी आसानी से कर सकें।

भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केन्‍द्र बिंदु क्‍या था? उन नीतियों के क्‍या प्रभाव हुए?

औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों का मुख्य फोकस भारत को ब्रिटेन के अपने फलते-फूलते औद्योगिक आधार का मात्र आपूर्तिकर्ता बनाना था। भारतीय अर्थव्यवस्था के हितों की पूरी तरह से अनदेखी की गई। इन नीतियों के निम्न प्रभाव थे:
ब्रिटेन का एकाधिकार: एक ओर, भारत से होने वाले निर्यात ने ब्रिटिश उद्योगों को सस्ता कच्चा माल उपलब्ध कराया और दूसरी ओर, ब्रिटेन से भारत के आयात ने ब्रिटेन के उत्पादों के लिए एक विशाल और तैयार बाजार प्रदान किया।
विदेशी व्यापार से उत्पन्न अधिशेष का भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं किया गया; इसके बजाय इसका उपयोग ब्रिटेन द्वारा अपनी औपनिवेशिक शक्ति को फैलाने के लिए प्रशासनिक और युद्ध उद्देश्यों के लिए किया गया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था का विऔद्योगीकरण: एक ओर, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात पर भारी शुल्क लगाया और दूसरी ओर, भारत में ब्रिटिश उत्पादों के मुक्त आयात पर। भारतीय निर्यात महंगा हो गया जिसके कारण वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके। यहां तक कि हस्तकला के सामान की मांग भी कम थी क्योंकि वे ब्रिटिश उद्योगों के बेहतर गुणवत्ता, मशीन से बने सामान के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे।
भारतीय कृषि का पिछड़ापन: औपनिवेशिक शासन के तहत, कृषि क्षेत्र की वृद्धि अल्प थी। यह भूमि बंदोबस्त की विभिन्न प्रणालियों, विशेष रूप से ज़मींदारी प्रणाली के प्रचलन के कारण था। जमींदारों ने किसानों से उच्च राजस्व वसूला लेकिन भूमि की उत्पादकता में सुधार के लिए कभी कोई कदम नहीं उठाया।
सस्ते कच्चे माल से ब्रिटिश उद्योगों को खिलाने के लिए, भारतीय किसानों को खाद्य फसलों (जैसे- चावल और गेहूं) के बजाय नकदी फसलें (जैसे कपास, आदि) उगाने के लिए मजबूर किया गया। इससे अच्छी कीमत नहीं मिली और इसलिए, गरीब किसानों पर उच्च राजस्व का बोझ बढ़ गया, लेकिन भारत को अच्छे अनाज की कमी का भी सामना करना पड़ा।
निम्न आर्थिक विकास: औपनिवेशिक शासन ने भारत के कृषि क्षेत्र को ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल के मात्र आपूर्तिकर्ता के रूप में बदल दिया। इसने न केवल कृषि क्षेत्र के उत्पादन को प्रभावित किया बल्कि हस्तशिल्प और कपास उद्योगों जैसी छोटी विनिर्माण इकाइयों को भी बर्बाद कर दिया, जिन्हें ब्रिटिश मशीन से बने वस्त्र और हथकरघा से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्‍य कारण क्‍या थे?
औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्‍य कारण इस प्रकार थे:

    1. पट्टेदारी प्रणाली भारत में अंग्रेजों ने एक भू-राजस्‍व प्रणाली शुरू की जिसे जमींदारी प्रथा कहा गया। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनंसख्‍या, जो गांवों में बसती थी कृषि पर निर्भर थी।
    2. यही नहीं अनेक अवसरों पर उसमें अप्रत्‍याशित ह्रास या गिरावट, भी अनुभव की गई। भले ही कृषि अधीन क्षेत्र के प्रसार के कारण कुल कृ‍षि उत्‍पादन में वृद्धि हुई हो, किंतु कृषि उत्‍पादकता में कमी आती रही।
    3. औपनिवेशिक शासकों ने कृषि क्षेत्रक की दशा को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया। जमींदारों की रूचि तो किसानों की आर्थिक दुर्दशा की अनदेखी कर, उनसे अधिक से अधिक लगान संग्रह करने तक सीमीत रहती थी। इसी कारण, कृषक वर्ग को नितांत दुर्दशा और सामाजिक तनावों को झेलने को बाध्‍य होना पड़ा। राजस्‍व व्‍यवस्‍था की शर्त का भी जमींदारों के इस व्‍यवहार के विकास में बहुत योगदान रहा था।
    4. भारत के विभाजन ने भी भारतीय कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। कलकत्‍ता की जूट मिलों तथा बम्बई और अहमदाबाद के कपड़ा मिलों में कच्‍चे माल की कमी हो गई। पंजाब और सिंध जैसे अमीर खाघान्‍न क्षेत्र भी पाकिस्‍तान में चलें जाने से खाघान्‍न संकट उत्‍पन्‍न हो गया।
    5. सिचांई व्‍यवस्‍था में कुछ और सुधार के बावजूद भारत बाढ़ नियंत्रण एवं भूमि की उपजाऊ शक्ति के मामले में पिछड़ा हुआ था। जबकि किसानों के एक छोटें से वर्ग ने अपने फसल पैटर्न को परिवर्तित कर खाघान्‍न फसलों की जगह वाणिज्यिक फसलें उगाना आंरभ किया। काश्‍तकारो के एक बड़े वर्ग तथा छोटे किसानों के पास न तो पर्याप्त भूमि थी और न ही कृषि क्षेत्र में निवेश करने के लिए संसाधन, तकनीक और कोई प्रेरणा।

स्‍वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत के व्‍यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरे ध्‍येय क्‍या थे?
भारत के व्‍यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्‍येय इस प्रकार था।
भारत को इंग्‍लैण्‍ड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्‍चें माल का निर्यातक बनाना।
उन उद्योगों के उत्‍पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनाना।
एक तो वे इंग्‍लैण्‍ड में विकसित हो रहें आधुनिक उद्योगों के लिए कच्‍चे माल का निर्यातक बनाना चाहते हैं दूसरे वे उन उद्योगों के उत्‍पादन के लिए भारत को ही एक विशाल बाजार भी बनाना चाहते थे। इस प्रकार, उन उद्योगों के प्रसार के सहारे वे अपने देश के लिए आर्थिक परिदृ‍श्‍य में भारतीय शिल्‍पकलाओं के पतन से जहां एक ओर भारी स्‍तर पर बेरोजगारी फैल रही थी, वहीं दूसरी ओर मांग को इंग्‍लैण्‍ड से सस्‍तें निर्मित उत्‍पादों के लाभपूर्ण आयात द्वारा पूरा किया गया।

अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परंपरागत हस्‍तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्‍या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्‍तर के पक्ष में कारण बताइए।

ब्रिटिश नीतियाँ सदा से स्‍वहितों से निर्देशित रही। ब्रिटेन ने कभी भी यह कष्‍ट नही उठाया कि वे इस तरफ ध्‍यान दें कि उनकी नीतियों का भारत के लोगों पर बेरोजगार के रूप में, मानवीय कष्‍टों या कृषि क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्‍होनें भारतीय हस्‍तकला उद्योगों पर भारी दर से कर लगाए, ताकि भारतीय वस्‍त्र ब्रिटेन में बने ऊनी व रेशमी वस्‍त्रों से अधिक महँगे हो जाए। उन्‍होने कच्चे माल के निर्यात को तथा ब्रिटेन से उत्‍पादित माल के आयात को कर मुक्‍त रखा। परंतु भारतीय लघु उद्योगों को मशीनों से बने सामान से भी प्रतिस्‍पर्धा का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश शासन भारत के किए लाभकारी ही था। इस धारणा के बारे में जानकारियों पर आधारित चर्चा की आवश्यकता है।

भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज अपने क्‍या उद्देश्‍य पूरा करना चा‍हते थे?
भारत में आधारिक संरचना की नीतियों से अंग्रेज अपने उद्देश्यों को पूरा करने की सोचते व समझते थे किंतु औपनिवेशि‍क शासकों की आर्थिक नीतियां शासित देश और वहां के लोगों के आर्थिक विकास से प्रेरित नहीं थी। उनका ध्‍येय तो इंग्‍लैण्‍ड के आर्थिक हिंतो का संरक्षण और संवर्धन था। औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत देश में रेलों, पत्‍तनों, जल परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ। इसका ध्‍येय जनसामान्‍य को अधिक सुविधाएं प्रदान करना नहीं था। ये कार्य तो औपनिवेशिक हित साधन के ध्‍येय से किए गए थे। अंग्रेजी शासन से पहले बनी सड़कें आधुनिक यातायात साधनों के लिए उपयुक्‍त नहीं थी। स्‍वाभाविक ही था कि स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में बसे देशवासियों का जीवन कठिनाईयों के कारण दूभर हो जाता था।

ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औपनिवेशिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्‍मक विवेचना करें।
भारत औपनिवेशिक शासनकाल में एक शक्तिशाली औद्योगिक ढांचे का विकास नहीं कर पाया। यह निम्‍न तथ्‍यों के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है:

    • समान गुणवत्‍ता के किसी भी विकल्‍प के बिना हस्‍तकला उद्योग में गिरावट ब्रिटेन का एकमात्र उद्देश्‍य सस्‍ती से सस्‍ती कीमतों पर भारत से कच्‍चा माल प्राप्‍त करना तथा भारत में ब्रिटेन से आया उत्‍पादित माल बेचना था। भारतीय हस्‍तशिल्‍प वस्‍तुओं की ब्रिटेन की मशीनों द्वारा बनाई गई वस्‍तुओं की तुलना में विेदेशों में एक बेहतर प्रतिष्‍ठा थी। इसलिए उन्‍होने नीतिगत रीति से आयात को शुल्‍क मुक्‍त किया था।
    • आधुनिक उद्योग का अभाव: भारत में आधुनिक उद्योग उन्‍नीसवी सदी के दूसरे तिमाही के दौरान विकसित होना शुरू हुए। परंतु इसकी दर बहुत धीमी और अवरूद्ध पूर्ण थी। औपनिवेशिक हितों से प्रेंरित होकर विदेशी शासको ने आधारित सरंचना सुविधा को सुधारने के प्रयास किए थे, परंतु इन प्रयासों में उनका निहित स्‍वार्थ था।
    • पूजींगत उद्योग का अभाव: भारत में मुश्किल से ही कोई और पूंजी उद्योग थे जो आधुनिकीकरण को आगे बढ़ावा दे सकें। 70 प्रतिशत संयत्रों तथा मशीनरी का आयात किया जा रहा था। जो आधुनिकीकरण लिए पूंजीगत वस्‍तुओं की आवश्‍यकता के लिए आयात पर निर्भर था।
    • औपनिवेशिक शासकों द्वारा रची गई आर्थिक नीतियों का ध्‍येय भारत का आर्थिक विकास नहीं बल्कि अपने मूल देश के आर्थिक विकास, हितों का सरंक्षण और सबंर्धन ही था। इन नीतियों ने भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के स्‍वरूप को मूल रूप को बदल डाला।

औपनिवेशिक काल में भारतीय संपति के निष्‍कासन से आप क्‍या समझते हैं?

औपनिवेशिक शासन का मुख्‍य उद्देश्‍य इंग्‍लैण्‍ड में तेजी से विकसित हो रहे विदेशी शासन के अंतर्गत भारतीय आयात निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता निर्यात अधिशेष का बड़ा आकार रहा। किंतु इस अधिशेष का देश के सोने और चांदी के प्रवाह पर कोई प्रभाव नही पड़ा।
वास्‍तव में इसका उपयोग तों निम्‍नलिखित उद्देश्‍यों के लिए किया गया:
अंग्रेजों की भारत पर शासन करने के लिए गढी गई व्‍यवस्‍था का खर्च उठाना
अंग्रेजी सरकार के युद्धों पर व्‍यय तथा अदृश्‍य मदों के आयात पर व्‍यय।
उस शासन की अधीनता के शोषक स्‍वरूप को समझे बिना ही आर्थिक नीतियों का ध्‍येय भारत का आर्थिक विकास नहीं बल्कि अपने मूल देश के आर्थिक हितों का सरंक्षण और संवर्धन ही था।

औपनिवेशिक काल में भारत की जंनाकिकीय स्थिति का एक संख्‍यात्‍मक चित्रण प्रस्‍तुत करें।
ब्रिटिश भारत की जंनसख्‍या के विस्‍तृ‍त ब्‍यौरे सबसे पहले 1881 की जनगणना के तहत एकत्रित किए गए। यद्यपि इसकी कुछ सीमाएं थीं फिर भी इसमें भारत की जनसंख्‍या संवृद्धि की विषमता बहुत स्‍पष्‍ट थी। बाद में, प्रत्‍येक दस वर्ष बाद जनगणना होती रही। सामजिक विकास के विभिन्‍न सूचक भी बहुत उत्‍साहबर्धक नहीं थे। कुल मिलाकर साक्षरता दर तो 16 प्रतिशत से भी कम थी। इसमें महिला साक्षरता दर नगण्‍य, केवल 7 प्रतिशत आंकी गई थी। जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं तो अधिकांश को सुलभ ही नहीं थी। जहां ये सुविधाएं उपलब्‍ध थी वहां भी नितांत ही अपर्याप्‍त थी। परिणामस्‍वरूप जल और वायु के सहारे फैलने वाले सक्रंमण रोगों का प्रकोप था। उनसे व्‍यापक जनहानि होना एक आम बात थी। औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में अत्‍यधिक गरीबी व्‍याप्‍त थी, परिणामस्‍वरूप भारत की जनंसख्‍या की दशा और भी बदतर हो गई।

स्‍वंतत्रता पूर्व भारत की जनसंख्‍या की व्‍यावसायिक सरंचना की प्रमुख विशेषताएं समझाइए।

व्यावसायिक संरचना विभिन्न व्यवसायों में लगी जनसंख्या के वितरण को संदर्भित करती है, जिसने पूरे ब्रिटिश शासन में कोई भिन्नता नहीं दिखाई। भारत की स्वतंत्रता-पूर्व व्यावसायिक संरचना की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
कृषि: औपनिवेशिक शासन के तहत, भारत मूल रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था थी, जिसमें इसकी लगभग 85% आबादी कार्यरत थी। लेकिन ज़मींदारी व्यवस्था के प्रचलन के कारण, कृषि क्षेत्र में निवेश की कमी थी और इस तरह इसकी वृद्धि अत्यधिक बाधित थी।
उद्योग: कुल कार्यबल का लगभग 10% विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्र में लगा हुआ था। यह कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण था कि भारतीय उद्योगों को ब्रिटेन से सस्ते माल बनाने वाली मशीन से सामना करना पड़ा। इस प्रकार, भारतीय औद्योगिक क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देने में विफल रहा।
असंतुलित विकास: भारतीय अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्र अपेक्षाकृत विकसित था, जबकि अन्य दो क्षेत्र अपने शिशु अवस्था में थे। इसके अलावा, भारत की व्यावसायिक संरचना में क्षेत्रीय भिन्नता थी। जहाँ एक ओर, तमिलनाडु और बॉम्बे जैसे राज्यों ने कृषि कार्यबल में गिरावट का अनुभव किया, वहीं दूसरी ओर राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों ने कृषि कार्यबल में वृद्धि का अनुभव किया।

स्‍वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखाकिंत करें।

भारतीय अर्थव्यवस्था द्वारा सामना की जाने वाली कुछ आर्थिक चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
कृषि उत्पादकता का निम्न स्तर: औपनिवेशिक शासन के दौरान, भारतीय कृषि क्षेत्र का उपयोग अंग्रेजों द्वारा अपने हित के लिए किया जाता था। नतीजतन, भारतीय कृषि क्षेत्र ने उत्पादकता के निम्न स्तर, निवेश की कमी, भूमिहीन किसानों और मजदूरों की खराब स्थिति का अनुभव किया। स्वतंत्रता के समय आवश्यक कुछ तात्कालिक सुधारों में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, भूमि सुधार और किसानों का उत्थान शामिल था।
शिशु औद्योगिक क्षेत्र: औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने के लिए, भारत को भारी निवेश, बुनियादी ढांचे और आधुनिक तकनीक की आवश्यकता थी। इसके अलावा, ब्रिटिश उद्योगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, भारत के घरेलू उद्योग टिकने में विफल रहे। इस प्रकार, लघु और बड़े पैमाने के उद्योगों का एक साथ विकास करना भारत के लिए मुख्य चिंता का विषय था।
अवसंरचना की कमी: कृषि और उद्योगों के प्रदर्शन में सुधार के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे को उन्नत करने और इसकी दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता थी।
गरीबी और असमानताएं: भारत गरीबी और असमानता के दुष्चक्र में फंसा हुआ था। औपनिवेशिक शासन ने भारत की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन को भेज दिया। नतीजतन, भारत की अधिकांश आबादी गरीबी से ग्रस्त थी। इसने देश भर में आर्थिक असमानताओं को और बढ़ा दिया।

क्‍या अंग्रेजो ने भारत में कुछ सकारात्‍मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।

हां, भारत में अंग्रेजों द्वारा किए गए विभिन्न सकारात्मक योगदान थे। योगदान जानबूझकर नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से अंग्रेजों के औपनिवेशिक शोषण के प्रभाव थे। अंग्रेजों द्वारा किए गए सकारात्मक योगदान निम्नलिखित हैं:

    • बुनियादी ढांचे का विकास: अंग्रेजों द्वारा भारत में विकसित बुनियादी ढांचा अकाल के फैलाव को रोकने के लिए उपयोगी उपकरण साबित हुआ। टेलीग्राम और डाक सेवाओं ने भारतीय जनता के साथ-साथ रेलवे, बंदरगाहों और सड़कों की भी सेवा की।
    • रेलवे से परिचय: 1850 में अंग्रेजों द्वारा रेलवे की शुरुआत भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास प्रक्रिया में एक सफलता थी। इसने सांस्कृतिक और भौगोलिक बाधाओं को दूर किया और भारतीय कृषि के व्यावसायीकरण की सुविधा प्रदान की।
    • कृषि का व्यावसायीकरण: अंग्रेजों के आगमन से पहले, भारतीय कृषि निर्वाह प्रकृति की थी। लेकिन कृषि के व्यावसायीकरण के साथ, बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार कृषि उत्पादन किया गया।
    • भारत में मुक्त व्यापार की शुरुआत: अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत को मुक्त व्यापार पैटर्न का पालन करने के लिए मजबूर किया। यह आज वैश्वीकरण की प्रमुख अवधारणा है। मुक्त व्यापार ने घरेलू उद्योग को ब्रिटिश उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक मंच प्रदान किया। मुक्त व्यापार की शुरुआत से भारत के निर्यात की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई।
    • प्रचारित अंग्रेजी भाषा: एक भाषा के रूप में अंग्रेजी शिक्षा के पश्चिमी रूप को बढ़ावा देती है। इसने भारत को शेष विश्व के साथ जोड़ा है।
    • रोल मॉडल: भारत का संविधान और कई अन्य कानून ब्रिटिश, फ्रेंच और रूसी मॉडल पर आधारित हैं।
स्‍वंतत्रता के समय भारत के विदेशी व्‍यापार के परिणाम और दिशा की जानकारी दें।

स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार की मात्रा और दिशा एक अविकसित और आश्रित अर्थव्यवस्था को दर्शाती है। औपनिवेशिक शासन के दौरान, अंग्रेजों ने एक भेदभावपूर्ण टैरिफ नीति का पालन किया, जिसके तहत उन्होंने भारत के हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात पर भारी शुल्क (निर्यात शुल्क) लगाया, जबकि ब्रिटेन को भारत के कच्चे माल के मुक्त निर्यात और भारत में ब्रिटिश उत्पादों के मुफ्त आयात की अनुमति दी। इससे भारतीय निर्यात महंगा हो गया और इसकी अंतरराष्ट्रीय मांग में भारी गिरावट आई।

औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत की निर्यात टोकरी में मुख्य रूप से चीनी, जूट, रेशम, टेक जैसे प्राथमिक उत्पाद शामिल थे; और आयात में ब्रिटेन से तैयार उपभोक्ता सामान जैसे सूती, ऊनी कपड़े आदि शामिल थे। चूंकि भारत के निर्यात और आयात की एकाधिकार शक्ति ब्रिटेन के पास थी, इसलिए भारत का आधे से अधिक व्यापार ब्रिटेन तक ही सीमित था और शेष व्यापार चीन, फारस और श्रीलंका की ओर निर्देशित था।
स्वेज नहर के खुलने से भारत के विदेशी व्यापार पर अंग्रेजों की एकाधिकार शक्ति और तेज हो गई। इसने भारत से ब्रिटेन और इसके विपरीत माल को लाने और ले जाने का काम किया। भारत के विदेशी व्यापार से उत्पन्न अधिशेष का भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं किया गया था; बल्कि इसका उपयोग प्रशासनिक और युद्ध उद्देश्यों के लिए किया गया था। इससे भारतीयों का धन ब्रिटेन की ओर जाने लगा।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 अर्थशास्त्र अध्याय 1
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