एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 12 पारितंत्र
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 12 पारितंत्र के सवाल जवाब अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के लिए सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 12 जीव विज्ञान के पाठ 12 के सभी प्रश्नों को चित्रों के माध्यम से सरल भाषा में समझाया गया है।
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 12 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 12 पारितंत्र के प्रश्न उत्तर
पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या करें।
स्थलमंडल, जलमंडल तथा वायुमंडल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैं जैवमंडल कहलाता है। जैवमंडल में पाए जाने वाले जैवीय तथा अजैवीय घटकों के पारस्परिक संबंधो का अध्ययन पारितंत्र कहलाता है। पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टैन्सले (Tansley, 1935) ने किया था। यदि जीवमंडल में जैविक, अजैविक अंश तथा भूगर्भीय, रासायनिक व भौतिक लक्षणों को शामिल करें तो यह पारिस्थितिक तंत्र बनता है।
पारिस्थितिक तंत्र सीमित व निश्चित भौतिक वातावरण का प्राकृतिक तंत्र है जिसमें जीवीय तथा अजीवीय अंशों की संरचना और कार्यों का पारस्परिक आर्थिक संबंध संतुलन में रहता है। इसमें पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता है।
पारिस्थितिक तंत्र के घटक
पारिस्थितिक तंत्र के मुख्यतया दो घटक होते हैं- जैविक तथा अजैविक घटक।
1. जैविक घटक: पारिस्थितिक तंत्र में तीन प्रकार के जैविक घटक होते हैं – स्वपोषी , परपोषी तथा अपघटक।
(अ) स्वपोषी घटक: हरे पादप पारितंत्र के स्वपोषी घटक होते हैं। ये सौर ऊर्जा तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO2 तथा जल से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। हरे पादप उत्पादक भी कहलाते हैं। हरे पौधों में संचित खाद्य पदार्थ दूसरे जीवों का भोजन है।
(ब) परपोषी घटक: ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, ये भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें उपभोक्ता कहते हैं। उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं:
प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता अथवा शाकाहारी: ये उपभोक्ता अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) से प्राप्त करते हैं। इन्हें शाकाहारी कहते हैं। जैसे-गाय, बकरी, भैंस, चूहा, हिरन, खरगोश आदि।
द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता अथवा मांसाहारी: द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के लिए शाकाहारी जंतुओं का भक्षण करते हैं, इन्हें मांसाहारी कहते हैं जैसे- मेढक, साँप आदि।
तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता: तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे- शेर, चीता, बाज आदि।
कुछ जन्तु सर्वाहारी होते हैं, ये पौधों अथवा जन्तुओं से भोजन प्राप्त कर सकते हैं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य आदि।
(स) अपघटक: ये जीव कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़ देते हैं। ये मुख्यत: उत्पादक व उपभोक्ता के मृत शरीर का अपघटन करते हैं। इन्हें मृतजीवी भी कहते हैं। सामान्यतः ये जीवाणु व कवक होते हैं। इसके फलस्वरूप प्रकृति में खनिज पदार्थों का चक्रण होता रहता है। उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक सभी मिलकर बायोमास बनाते हैं।
2. अजैविक घटक: किसी भी पारितंत्र के अजैविक घटक तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं:
1. जलवायवीय घटक: जल, ताप, प्रकाश आदि।
2. अकार्बनिक पदार्थ: C, O, N, CO2 आदि। ये विभिन्न चक्रों के माध्यम से जैव-जगत् में प्रवेश करते हैं।
3. कार्बनिक पदार्थ: प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि। ये अपघटित होकर पुनः सरल अवयवों में बदल जाते हैं।
कार्यात्मक दृष्टि से अजैविक घटक दो भागों में विभाजित किए जाते हैं –
पदार्थ: मृदा, वायुमंडल के पदार्थ जैसे- वायु, गैस, जल, CO2, O2, N2, लवण जैसे- Ca, S, P कार्बनिक अम्ल आदि।
ऊर्जा: विभिन्न प्रकार की ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि।
पारिस्थितिकी पिरैमिड को परिभाषित करें तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या करें।
पारिस्थितिक पिरैमिड: पारितंत्र में खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषक स्तरों में जीवधारियों के संबंधो का रेखीय चित्रण पारिस्थितिक पिरैमिड कहलाता है। पिरैमिड पारितंत्र में जीव की संख्या, जीवभार तथा जैव ऊर्जा को प्रदर्शित करते हैं। इनका सर्वप्रथम प्रदर्शन एल्टन (Elton, 1927) ने किया था। इनमें सबसे नीचे का पोषी स्तर उत्पादक का होता है तथा सबसे ऊपर का पोषी स्तर सर्वोच्च उपभोक्ता का होता है।
(i) जीवभार का पिरैमिड: जीव के ताजे अथवा शुष्क भार के रूप में प्रत्येक पोषी स्तर को मापा जाता है। स्थलीय पारितंत्र में उत्पादक का जीवभार सर्वाधिक होता है। अतः पिरैमिड सीधा रहता है। तालाबीय पारितंत्र में उत्पादक का भार सबसे कम होता है। अतः पिरैमिड उल्टा बनता है। जीवभार को g/m2 में मापा जाता है।
(ii) संख्या का पिरैमिड: इस पिरैमिड में विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या को प्रदर्शित करते हैं। घास तथा तालाब पारितंत्र में संख्या का पिरैमिड सीधा होता है। वृक्ष पारितंत्र में उत्पादकों की संख्या सबसे कम (एक वृक्ष) तथा अंतिम उपभोक्ता की संख्या सर्वाधिक होती है अतः यह पिरैमिड उल्टा होता है।
प्राथमिक उत्पादकता क्या है? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा करें जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
प्राथमिक उत्पादकता: हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करके कार्बनिक पदार्थों में संचित कर देते हैं। यह क्रिया पर्णहरित तथा सौर प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा जल के उपयोग द्वारा होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप जैव जगत में सौर ऊर्जा का निरंतर निवेश होता रहता है।
प्रकाश संश्लेषण द्वारा संचित ऊर्जा को प्राथमिक उत्पादन कहते हैं। एक निश्चित अवधि में प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादित जीवभार या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को भार (g/m2) या ऊर्जा (kcal/m2) के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। ऊर्जा की संचय दर को प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं। इसे kcal/m2/yr या g/m2/r में अभिव्यक्त करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में हरे पौधों द्वारा कार्बनिक पदार्थों में स्थिर सौर ऊर्जा की कुल मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादन कहते हैं।
प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक: प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। यह विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय कारकों (प्रकाश, ताप, वर्षा, आर्द्रता, वायु, वायुगति, मृदा का संघटन, स्थलाकृतिक कारक तथा सूक्ष्मजैवीय कारक आदि), पोषकों की उपलब्धता (मृदा कारक) तथा पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता पर निर्भर करती है। इस कारण विभिन्न पारितंत्रों की प्राथमिक उत्पादकता भिन्न-भिन्न होती है। मरुस्थल में प्रकाश तीव्र होता है, ताप की अधिकता और जल की कमी होती है। अत: इन क्षेत्रों में जल की कमी के कारण पोषकों की उपलब्धता कम रहती है। इस प्रकार प्राथमिक उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके विपरीत उपयुक्त प्रकाश एवं ताप की उपलब्धता के कारण शीतोष्ण प्रदेशों में उत्पादन अधिक होता है।
अपघटन की परिभाषा दें तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या करें।
अपघटन: अपघटकों जैसे: जीवाणु, कवक आदि द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं पोषक तत्त्वों में विघटित करने की प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं।
पादपों के मृत अवशेष जैसे: पत्तियाँ, छाल, फूल आदि तथा जंतुओं के मृत अवशेष, मलमूत्र आदि को अपरद (डेट्राइटस) कहते हैं। अपघंटन की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरण खंडन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस निर्माण तथा पोषक तत्त्वों का मुक्त होना है। केंचुए आदि को अपरदाहारी कहते हैं। ये अपरदे को छोटे-छोटे कणों में खंडित करते हैं। इस प्रक्रिया को खंडन कहते हैं।
निक्षालन: निक्षालन प्रक्रिया में जल में घुलनशील अकार्बनिक पोषक मृदा में प्रवेश कर जाते हैं। शेष पदार्थ का अपचय जीवाणु तथा कवक द्वारा होता है। ह्यूमस निर्माण के फलस्वरूप गहरे भूरे-काले रंग का भुरभुरा पदार्थ ह्युमस बनता है। खनिजीकरण के फलस्वरूप ह्युमस से पोषक तत्त्व मुक्त हो जाते हैं। गर्म तथा आर्द्र वातावरण में अपघटन प्रक्रिया तीव्र होती है।
एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन करें।
पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह: पारितंत्र को ऊर्जा मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। सौर ऊर्जा का उपयोग हरे पादप (उत्पादक) ही कर सकते हैं। उत्पादक (हरे पौधे) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। खाद्य पदार्थ के रूप में ऊर्जा उत्पादक से विभिन्न स्तर के उपभोक्ताओं को प्राप्त होती है। ऊर्जा को प्रवाह एकदिशीय होता है।