कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 एनसीईआरटी समाधान – आनुवंशिकता
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान पाठ 8 आनुवंशिकता अभ्यास के प्रश्न उत्तर तथा पाठ के अंतर्गत पेजों में दिए गए प्रश्नों के जवाब हिन्दी और इंग्लिश मीडियम में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। 10वीं विज्ञान अध्याय 8 के समाधान सीबीएसई सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित किए गए हैं। सभी प्रश्नों को पुनः आसान भाषा में चरण दर चरण समझाया गया है ताकि प्रत्येक विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सके। छात्र मोबाइल पर सलूशन प्राप्त करने के लिए कक्षा 10 विज्ञान ऐप डाउनलोड कर सकते हैं।
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान नीचे दिए गए हैं:
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) उत्तर
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है
गलत कथन चुनिए
सब्ज़ी की एक टोकरी में गाजर, आलू, मूली और टमाटर रखे हैं। बताइए कि इनमें से कौन-सी सब्जियाँ सही समजात संरचनाओं का प्रतिनिधित्व करती है?
विविधता के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
बच्चे के लिंग का निर्धारण
किसी भी व्यक्ति के लिंग का निर्धारण जीनीय आधार पर होता है, अर्थात् जनकों से वंशागत किए गए जीनों से यह निर्धारित होता है कि जन्म लेने वाला बच्चा लड़का होगा अथवा लड़की। नवजात बच्चा जो पिता से X गुणसूत्र प्राप्त करता है, लड़की होगी, जबकि
Y गुणसूत्र प्राप्त करने वाला बच्चा लड़का होगा।
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के अतिरिक्त प्रश्न उत्तर
मानवों से तुलना करने पर जीवाणु के शरीर की योजना सरलतर होती है। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि जीवाणुओं की तुलना में मानव अधिक विकसित होते हैं? उपयुक्त व्याख्या कीजिए।
यह एक विचारणीय विषय है। यदि विकास के साथ-साथ जटिलता दिखाई देती है, तब मनुष्य निश्चय ही जीवाणु की तुलना में अधिक विकसित है। लेकिन यदि हम जीवन लक्षणों की संपूर्णता पर विचार करें तब हमें इनमें से किसी भी जीव को अधिक विकसित बताना कठिन होगा।
अपेक्षाकृत बड़ी समष्टि की अपेक्षा, बहुत छोटी समष्टि के विलुप्त हो जाने के खतरे अधिक होते हैं। इसकी उपयुक्त आनुवंशिक व्याख्या कीजिए।
एक स्पीशीज़ की केवल कुछेक व्यस्टियों में व्यापक अंत:प्रजनन की संभावना होती है। इसलिए विविधताएँ सीमित हो जाती हैं और पर्यावरण में परिवर्तन होने की स्थिति में स्पीशीज़ को हानिकारक होता है। चूँकि व्यष्टियाँ पर्यावरणपरक परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ होती हैं, अत: वे विलुप्त हो सकती हैं।
जीवाश्मों की उन तीन महत्वपूर्ण लक्षणों की चर्चा कीजिए जो विकास का अध्ययन करने में मदद करते हैं।
जीवाश्म प्राचीन स्पीशीज़ के परिरक्षण की विधियों का निरूपण करते हैं। जीवाश्मों से जीवों और उनके पूर्वजों के बीच विकासीय विशेषकों को स्थापित करने में सहायता मिलती है। जीवाश्मों से उस समय-काल का पता लगाने में सहायता मिलती है जिसमें वे जीव पाए जाते थे।
क्या स्पीशीज की व्यष्टियों के भौगोलिक विलगन से नई स्पीशीज बन सकती है? उपयुक्त व्याख्या कीजिए।
हाँ, भौगोलिक विलगन से धीरे-धीरे आनुवंशिक विचलन हो जाता है। इससे विलग हो गर्इं समष्टि में लैंगिक जनन की सीमाएँ लागू हो सकती हैं। धीरे-धीरे विलगित व्यष्टियाँ परस्पर जनन करने लगेंगी और उनमें नयी-नयी विविधताएँ उत्पन्न आने लगेंगी। इन विविधताओं के लगातार कई पीढ़ियों में एकत्रित होने के कारण अंतत: नयी स्पीशीज़ बन सकती है।
जंतुओं की विविधता
हालाँकि प्राणियों की संरचनाओं में अत्यधिक विविधता पायी जाती है, फिर भी संभवत: उनकी वंश-पंरपरा सामान्य ही रही होगी, क्योंकि सामान्य वंश-परंपरा से विविधता की व्यापकता काफी हद तक सीमित हो जाती है। क्योंकि ये विविध प्राणी एक ही पर्यावरण में रह रहे होते हैं। अत: भौगोलिक विलगन और स्पीशीज़ीभवन द्वारा उनका विकास भी संभव नहीं है। इसीलिए सभी प्राणियों की एक सामान्य वंश-परंपरा को सिद्धांत: नहीं माना जा सकता है।
कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
जैव – विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार संबंधित है।
विभिन्न जीवों के मध्य समानताएँ हमें उन जीवों को एक समूह में रखने और फिर उनके अध्ययन का अवसर प्रदान करती हैं। क्योंकि दो स्पीशीजों के मध्य जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध उतना ही निकट का होगा। उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।
कुछ अभिलक्षण जीवों के मध्य आधारभूत विभिन्नताओं का निर्णय करते हैं। जैसे – बाह्य आकृति तथा व्यवहार का विवरण अर्थात विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य।
इस प्रकार स्पीशीज जीवों का वर्गीकरण उनके, विकास के श्रृंखलाबद्ध परिवर्तनों के संबंधों का प्रतिबिंब है।
विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
जीवाश्म द्वारा हम जान पाते हैं कि अंगों की रचना केवल वर्तमान स्पीशीज पर ही आधारित नहीं है बल्कि उन स्पीशीज पर भी आधारित है जो अब जीवित नहीं हैं परन्तु कभी अस्तित्व में थे। खुदाई में मिले जीवाश्म की गहराई तथा फ़ॉसिल डेटिंग के आधार पर हम यह भी जान सकते हैं कि इन जीवों का अस्तित्व कब था।
इस प्रकार पुरातन जीवों के समय – निर्धारण तथा अंगों की संरचना के आधार पर आज के जीवों के विकास क्रम को समझा जा सकता है।
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
वैज्ञानिकों स्टेनले एल. मिलर तथा हेराल्ड सी. उरे द्वारा 1953 में किए गए प्रयोगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीव रासायनिक संश्लेषण द्वारा उत्पन्न हुए होंगे। उन्होंने कृत्रिम रूप से ऐसे वातावरण का निर्माण किया जो संभवतः प्राचीन वातावरण के समान था (इसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु थे परन्तु ऑक्सीजन के नहीं), जिसमें जल भी था। इसे 100° सेल्सियस से कुछ कम ताप पर रखा गया। आकाश में उत्पन्न्त होने वाली बिजली कि भांति, गैसों के मिश्रण में चिंगारियां उत्पन्न की गई। एक सप्ताह बाद, 15 प्रतिशत कार्बन (मीथेन से) सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हो गए। इनमें एमिनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं।
उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
अलैंगिक जनन में, एकल जीव जनन करता है तथा इससे उत्पन्न जीवों में बहुत अधिक समानताएँ होती हैं। जबकि लैंगिक जनन में दो जीवों (नर और मादा) का योगदान होता है जिससे अधिक विभिन्नताएँ अधिक होती हैं। ये विविधताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी बढती जाती हैं और इनमें से कुछ परिवर्तन स्थाई (वातावरण के अनुसार) होते रहते हैं और जीवों को विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सहायता करते हैं।
इस प्रकार, लैंगिक जनन करने वाले जीवों में विविधता, उन्हें भिन्न – भिन्न परिस्थितियों में रहने के अनुकूल बनती है जिससे इन जीवों में विकास क्रम, अलैंगिक जीवों की अपेक्षा, बेहतर होता है।
संतति में नर एवम् मादा जनकों द्वारा अनुवांशिक योगदान में बराबरी की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
दोनों जनक (नर और मादा) DNA की समान मात्रा लैंगिक प्रजनन के दौरान संतति को प्रेषित करते हैं। संतति में एक जीन सैट केवल एक DNA श्रंखला के रूप में न होकर, DNA के अलग – अलग स्वतंत्र अणु के रूप में होता है, प्रत्येक अणु एक गुणसूत्र का निर्माण करता है। प्रत्येक कोशिका में, प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतिकृति होती हैं जिनमें से एक उन्हें नर जनक से तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होती हैं। प्रत्येक जनन कोशिका से गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनन कोशिका (युग्मक) में जाता है। जब दो युग्मकों का संलयन होता है, तो बने युग्मनज में गुणसूत्रों कि संख्या पुनः सामान्य हो जाती है तथा संतति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है जो कि स्पीशीज के DNA के स्थायित्व को सुनिश्चित करती है।
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती है, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवम् क्यों नहीं?
हाँ, क्योंकि जो विभिन्नताएँ जीव के लिए पर्यावरण में जीवित रहने के लिए उपयोगी होती हैं, उनकी वंशागति होती है। इन विभिन्नताओं से ही जीव वातावरण के अनुसार अपने आप को ढाल सकता है और न केवल अधिक समय तक जीवित रह सकता है बल्कि समष्टि में अपना अस्तित्व भी बनाए रखता है।
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतयः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतयः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं क्योंकि एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण कायिक कोशिकाओं द्वारा उपार्जित होते हैं। कायिक उत्तकों में होने वाले परिवर्तन, लैंगिक कोशिकाओं के DNA में नहीं जा सकते हैं। इस प्रकार किसी व्यक्ति के जीवन काल में अर्जित अनुभव उसकी जनन कोशिकाओं के DNA में कोई अंतर नहीं लाता है, इसलिए ये लक्षण वंशानुगत नहीं होते हैं।
उदहारण के लिए, यदि चूहों कि पूंछ काटकर जनन कराया जाए तो भी कई पीढ़ियों के बाद भी कोई बिना पूँछ वाला चूहा उत्पन्न नहीं होगा। इससे सिद्ध होता है कि उपार्जित लक्षण वंशानुगत नहीं होते हैं।
बाघों की संख्या में कमी अनुवांशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है?
बाघों की संख्या में कमी का अर्थ है उनके गुणसूत्रों में कम विविधताएँ हैं अर्थात इन बाघों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होने वाले परिवर्तन, जो उन्हें पर्यावरण की विषम परिस्थितिओं में भी जिन्दा रखने में सहायक होता है, बहुत कम हैं। इसलिए, बाघों की संख्या में कमी अनुवांशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।