एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 6 गृहं शून्यं सुतां विना
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 6 षष्ठ: पाठ: गृहं शून्यं सुतां विना के अभ्यास के प्रश्न उत्तर और हिंदी अनुवाद सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं। इस पाठ में लड़के और लड़कियों के पालन पोषण में होने वाले भेद भाव के बारे में चर्चा की गई है। पूरा पाठ संवाद के रूप में है। संस्कृत से हिंदी में अनुवाद पाठ को समझने में विद्यार्थियों की मदद करेगा। इसके द्वारा मदद लेकर छात्र प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखने की कोशिश खुद भी कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत षष्ठ: पाठ: गृहं शून्यं सुतां विना के उत्तर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत षष्ठ: पाठ: गृहं शून्यं सुतां विना
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 6 गृहं शून्यं सुतां विना का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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“शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम् आगच्छति। | शालिनी गर्मी की छुट्टियों में पिता के घर आती है। |
सर्वे प्रसन्नमनसा तस्या: स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्या: भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते” | सभी प्रसन्नमन होकर उसका स्वागत करते हैं, परन्तु उसकी भाभी उदासीन-सी दिखाई पड़ती है। |
शालिनी- भ्रातृजाये! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्वं कुशलं खलु? | शालिनी – भाभी, (तुम) चिन्तित-सी प्रतीत होती हो। सभी कुशल तो हैं? |
माला – आम् शालिनि! कुशलिनी अहम्। त्वदर्थं किम् आनयानि, शीतलपेयं चायं वा? | माला – मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ? चाय या ठण्डा? |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शालिनी- अधुना तु किमपि न वाञ्छामि। रात्रौ सर्वै: सह भोजनमेव करिष्यामि। | शालिनी – इस समय मैं कुछ नहीं चाहती। रात में सभी के साथ भोजन ही कर लूंगी। |
(भोजनकालेऽपि मालाया: मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते स्म, परं सा मुखेन किमपि नोक्तवती) | (भोजन के समय भी माला की मनोदशा स्वस्थ प्रतीत नहीं होती थी, परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा।) |
राकेश:- भगिनि शालिनि! दिष्ट्या त्वं समागता। | राकेश – बहन शालिनी, भाग्य से तुम आ गई हो। |
अद्य मम कार्यालये एका महत्त्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। | आज मेरे कार्यालय में अचानक एक बैठक निश्चित की गई है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अद्यैव मालाया: चिकित्सिकया सह मेलनस्य समय: निर्धारित: त्वं मालया सह चिकित्सिकां प्रति गच्छ, तस्या: परामर्शानुसारं यद्विधेयं तद् सम्पादय। | आज ही माला का डॉक्टर के साथ मिलने का समय निर्धारित है। तुम माला के साथ डॉक्टर के पास जाओ। उसकी सलाह के अनुसार जो करने योग्य है, वह करो। |
शालिनी- किमभवत्? भ्रातृजायाया: स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? | शालिनी – क्या हुआ? (क्या) भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है? |
अहं तु ह्य: प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते स्म। | मैं तो कल से ही देख रही हूँ कि वह स्वस्थ नहीं लगती है, ऐसा प्रतीत होता था। |
राकेश- चिन्ताया: विषय: नास्ति। त्वं मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्वं ज्ञापयिष्यति। (माला शालिनी च चिकित्सिकां प्रति गच्छन्त्यौ वार्तां कुरुत:) | राकेश – चिन्ता का विषय नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब बता देगी। (माला और शालिनी डॉक्टर के पास जाती हुई वार्तालाप करती हैं) |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शालिनी- किमभवत्? भ्रातृजाये! का समस्याऽस्ति? | शालिनी – क्या हुआ? भाभी। क्या समस्या है? |
माला- शालिनि! अहं मासत्रयस्य गर्भं स्वकुक्षौ धारयामि। | माला – शालिनी! मेरे कोख में तीन महीने का गर्भ है। |
तव भ्रातु: आग्रह: अस्ति यत् अहं लिड्गपरीक्षणं कारयेयं कुक्षौ कन्याऽस्ति चेत् गर्भं पातयेयम्। | तुम्हारे भाई का आग्रह है कि मैं लिङ्ग परीक्षण करवाऊँ और यदि कोख में कन्या है तो गर्भ को गिरवा दूँ। |
अहम् अतीव उद्विग्नाऽस्मि परं तव भ्राता वार्तामेव नशृणोति। | मैं अत्यधिक दुःखी हूँ तथा तेरा भाई सुनता ही नहीं है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शालिनी- भ्राता एवं चिन्तयितुमपि कथं प्रभवति? | शालिनी – भाई अकेला कैसे विचार कर सकता है? |
शिशु: कन्याऽस्ति चेत् वधार्हा? | यदि कन्या है तो हत्या करनी है। |
जघन्यं कृत्यमिदम्। त्वम् विरोधं न कृतवती? | यह तो पापपूर्ण कार्य है। क्या तुमने विरोध नहीं किया? |
स: तव शरीरे स्थितस्य शिशो: वधार्थं चिन्तयति त्वम् तूष्णीम् तिष्ठसि? | वह तुम्हारी कोख में स्थित बच्चे की हत्या के विषय में सोचता है और तुम चुप खड़ी हो। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिङ्गपरीक्षणस्य। | अभी घर चलो, लिंगपरीक्षण की आवश्यकता नहीं है। |
भ्राता यदा गृहम् आगमिष्यति अहम् वार्तां करिष्ये। | भाई जब घर आएगा, मैं बात कर लूँगी। |
(सन्ध्याकाले भ्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीपं प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम् सर्वेऽपि एकत्रिता:) | (सायंकाल भाई आता है, हाथ-पैर आदि धोकर तथा कपड़े बदलकर पूजाघर में जाकर, दीपक जलाकर दुर्गा की पूजा करता है। तत्पश्चात् चायपान के लिए सभी एकत्रित होते हैं।) |
राकेश:- माले! त्वं चिकित्सिकां प्रति गतवती आसी:, किम् अकथयत् सा? | राकेश – माला! तुम डॉक्टर के पास गई थीं। उसने क्या कहा? |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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(माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रीडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितु: क्रोडे उपविशति तस्मात् चाकलेहं च याचते। राकेश: अम्बिकां लालयति, चाकलेहं प्रदाय तां क्रोडात् अवतारयति। पुन: मालां प्रति प्रश्नवाचिकां दृष्टिं क्षिपति। शालिनी एतत् सर्वं दृष्ट्वा उत्तरं ददाति) | (माला चुप रहती हैं। तब तीन साल की खेलती हुई बेटी ‘अम्बिका’ पिता की गोद में बैठ जाती है, उससे चॉकलेट माँगती है। राकेश अम्बिका का लाड (प्यार) करता है और उसे चॉकलेट देकर गोद से उतार देता है। पुनः माला की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डालता है।) |
शालिनी- भ्रात:! त्वं किं ज्ञातुमिच्छसि? तस्या: कुक्षि पुत्र: अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्? | शालिनी – (यह सब देखकर उत्तर देती है।) शालिनी – भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसकी कोख में पुत्र है या पुत्री? किसलिए? |
षण्मासानन्तरं सर्वं स्पष्टं भविष्यति, समयात् पूर्वं किमर्थम् अयम् आयास:? | छह महीने के पश्चात् सब स्पष्ट हो जाएगा। समय से पूर्व यह प्रयास कैसा? |
राकेश:- भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि……. | राकेश – बहन! तुम जानती तो हो कि पहले ही हमारे घर में पुत्री के रूप में ‘अम्बिका’ है ही। अब एक पुत्र की आवश्यकता है। अवश्य ही |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शालिनी- तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्याया: पापं कर्तुं प्रवृत्तोऽसि त्वम्। | शालिनी – अवश्य ही, यदि कोख में कन्या होगी तो मार देना चाहिए। (तेज आवाज में) तुम हत्या के पाप में प्रवृत्त हो। |
राकेश:- न, हत्या तु न……… | राकेश – नहीं, हत्या नहीं। |
शालिनी- तर्हि किमस्ति निर्घृणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनक: कदापि पुत्रीपुत्रयो: विभेदं न कृतवान्? | क्या तुम सर्वथा भूल गए हो कि हमारे पिता ने बेटा-बेटी में भेद कभी नहीं किया। |
स: सर्वदैव मनुस्मृते: पंक्तिमिमाम् उद्धरति स्म “आत्मा वै जायते पुत्र: पुत्रेण दुहिता समा”। | वे सदा मनुस्मृति के इस वाक्य को उद्धृत करते थे- आत्मा ही पुत्र के रूप में उत्पन्न होती है, पुत्री पुत्र के समान होती है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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त्वमपि सायं प्रात: देवीस्तुतिं करोषि? | तुम भी प्रातः सायं देवी की स्तुति करते हो। |
किमर्थं सृष्टे: उत्पादिन्या: शक्त्या: तिरस्कारं करोषि? | जगत् को उत्पन्न करने वाली शक्ति का तिरस्कार किसलिए करते हो? |
तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्ति: आगता, इदं चिन्तयित्वैव अहं कुण्ठिताऽस्मि। तव शिक्षा वृथा…… | तुम्हारे मन में इतनी गन्दी विचारधारा आ गई है- यह सोचकर ही मैं कुण्ठित हूँ। तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ………..। |
राकेश:- भगिनि! विरम विरम। अहं स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। | राकेश – बहन। रुक जाओ, रुक जाओ। मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूँ और लज्जित हूँ। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अद्यप्रभृति कदापि गर्हितमिदं कार्यं स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। | आज से लेकर कभी इस निन्दनीय कार्य का चिन्तन नहीं करूँगा। |
यथैव अम्बिका मम हृदयस्य सम्पूर्णस्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशु: अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्र: भवतु पुत्री वा। | जिस प्रकार ‘अम्बिका’ मेरे हृदय की तथा सम्पूर्ण स्नेह की अधिकारी है, उसी प्रकार आने वाला बच्चा भी स्नेह का अधिकारी होगा। पुत्र होवे अथवा पुत्री। |
अहं स्वगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्न: अस्मि, अहं कथं विस्मृतवान् | मैं अपने निन्दनीय विचार के प्रति पश्चाताप में डूबा हुआ हूँ। मैं किस प्रकार भूल गया हूँ- |
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: | जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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यत्रैता: न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।” | जहाँ इनकी पूजा नहीं होती है, वहाँ सभी क्रियाएँ व्यर्थ होती हैं। |
अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” | अथवा ‘पिता से दश गुणा माता सम्माननीय है।’ |
त्वया सन्मार्ग: प्रदर्शित: भगिनि। | तुमने सन्मार्ग दिखला दिया है। |
कनिष्ठाऽपि त्वं मम गुरुरसि। | बहन, (आयु में) छोटी होते हुए भी तुम मेरी गुरु हो। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शालिनी- अलं पश्चात्तापेन। तव मनस: अन्धकार: अपगत: प्रसन्नताया: विषयोऽयम्। | शालिनी – पश्चात्ताप मत करो। तुम्हारे मन का अज्ञान नष्ट हो गया है। |
भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वां चिन्तां त्यज आगन्तु: शिशो: स्वागताय च सन्नद्धा भव। | प्रसन्नता का विषय है भाभी चिन्ता को छोड़ दो। आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। |
भ्रात: त्वमपि प्रतिज्ञां कुरु – कन्याया: रक्षणे, तस्या: पाठने दत्तचित्त: स्थास्यसि “पुत्रीं रक्ष, पुत्रीं पाठय” | भाई, तुम भी प्रतिज्ञा करो- कन्या की रक्षा करने में उसके पालन में सावधान रहँगा। ‘बेटी की रक्षा करो, बेटी का पालन करो। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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इतिसर्वकारस्य घोषणेयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं यथार्थरूपं करिष्याम:- | यह सरकार की घोषणा तभी सार्थक होगी, जब हम सभी मिलकर इस विचार को सत्य करेंगे- |
या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे, लक्ष्मी: शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाङ्गणे कल्पना। | वेदशास्त्रों के चिन्तन में जो गार्गी तथा राजनीति में, पराक्रम में द्रौपदी, शत्रु का विनाश करने में लक्ष्मीबाई, विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना। |
इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति ख्याताभित: साइना,सेयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला सर्वै: सदोत्साह्यताम्॥ | इंद्रा – उद्योग के पथ पर तथा खेल जगत् में साइना- ये चारों ओर प्रसिद्ध (स्त्रियाँ) हैं। यह स्त्री सभी दिशाओं में सबला है। सभी इसे सदा प्रोत्साहित करें। |