एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 2 बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 2 द्वितीय: पाठ: बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता के अभ्यास के प्रश्न उत्तर तथा अन्य प्रश्न सीबीएसई सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 8 संस्कृत का पाठ 2, पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित है और यह एक मजेदार कहानी है, जो बच्चों को बहुत पसंद आती है। इस कहानी का संस्कृत से हिंदी मीडियम अनुवाद भी दिया गया है, जो छात्रों को पूरे पाठ को समझने में मदद करता है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत द्वितीय: पाठ: बिलस्य वाणी न कदापि
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत द्वितीय: पाठ: बिलस्य वाणी न कदापि
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 2 बिलस्य वाणी न कदापि का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कस्मश्चित् वने खरनखर: नाम सिंह: प्रतिवसति स्म। | किसी वन में खरनखर नामक सिंह रहता था। |
स: कदाचित् इतस्तत: परिभ्रमन् क्षुधार्त: न किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्। | किसी समय भूख से व्याकुल होकर इधर-उधर घूमते हुए उसे कुछ भी भोजन प्राप्त न हुआ। |
तत: सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा स: अचिन्तयत्-“नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीव: आगच्छति। | तब सूर्य के अस्त होने के समय एक विशाल गुफा को देखकर वह सोचने लगा-“निश्चित रूप से इस गुफा में रात में कोई प्राणी आता है। |
अत: अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि” इति। | अतः यहाँ पर ही छिप कर बैठता हूँ।” |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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एतस्मिन् अन्तरे गुहाया: स्वामी दधिपुच्छ: नामक: शृगाल: समागच्छत्। | इसी बीच गुफा का मालिक दधिपुच्छ नामक गीदड़ आ गया। |
स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धति: गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। | जैसे ही वह देखता है, वैसे ही शेर के पंजों के निशान गुफा में प्रविष्ट होते हुए (जाते हुए) दिखाई पड़े तथा (वे निशान) बाहर नहीं आए। |
शृगाल: अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। | गीदड़ सोचने लगा- “अरे, मैं मर गया। |
नूनम् अस्मिन् बिले सिंह: अस्तीति तर्कयामि। | अवश्य ही, इस बिल में शेर है-ऐसा मैं मानता हूँ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तत् किं करवाणि?” | तो क्या करूँ?” |
एवं विचिन्त्य दूरस्थ: रवं कर्तुमारब्ध:-“भो बिल! भो बिल! किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समय: कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यत: प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? | ऐसा विचार कर दूर खड़े होकर आवाज करना शुरू किया- “अरे बिल! अरे बिल! क्या तुम्हें याद नहीं है, कि मैंने तुम्हारे साथ समझौता किया है कि जब मैं बाहर से लौटूंगा तब तुम मुझे बुलाओगे? |
यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि इति।” | यदि तुम मुझे नहीं बुलाते हो तो मैं दूसरे बिल में चला जाऊँगा।” |
अथ एतच्छु्रत्वा सिंह: अचिन्तयत्-“नूनमेषा गुहा स्वामिन: सदा समाह्वानं करोति; परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।” | इसके बाद यह सुनकर सिंह सोचने लगा-“अवश्य ही यह गुफा अपने स्वामी को सदा बुलाती होगी; परन्तु मेरे डर से (आज) कुछ नहीं बोल रही है।” |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अथवा साध्विदम् उच्यते- भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिका: क्रिया:। प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्॥ तदहम् अस्य आह्वानं करोमि। | अथवा यह उचित ही कहा है – भय से डरे हुए मन वाले (लोगों) के हाथ व पैरों से सम्बन्धित क्रियाएँ तथा वाणी ठीक से प्रवृत्त नहीं हुआ करती हैं तथा कम्पन अधिक होता है। |
एवं स: बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। | तो मैं इसे बुलाता हूँ। इस प्रकार वह बिल में घुस कर मेरा भोजन बन जाएगा। |
इत्थं विचार्य सिंह: सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। | इस प्रकार विचार करके सिंह ने एकाएक गीदड़ को बुलाया। |
सिंहस्य उच्चगर्जन- प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चै: शृगालम् आह्वयत्। | सिंह की ऊँची गर्जना (दहाड़) की गूंज से उस गुफा ने जोर से गीदड़ को बुलाया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अनेन अन्येऽपि पशव: भयभीता: अभवन्। | इससे अन्य पशु भी भयभीत हो गए। |
शृगालोऽपि तत: दूरं पलायमान: इममपठत्- अनागतं य: कुरुते स शोभते स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्। | गीदड़ भी उससे दूर भागता हुआ इस (श्लोक) को पढ़ने लगा जो (व्यक्ति) न आए हुए (दुःख) का (प्रतीकार) करता है, वह शोभा पाता है। जो न आए हुए (दुःख) का (प्रतीकार) नहीं करता है, वह चिन्तनीय होता है। |
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता॥ | यहाँ वन में रहते हुए मैं बूढ़ा हो गया हूँ, (परन्तु) कभी भी मैंने बिल की आवाज नहीं सुनी। |