कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 8 एनसीईआरटी समाधान – बाज़ार में एक कमीज़
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 8 बाज़ार में एक कमीज़ के सभी प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई और राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए संशोधित रूप में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। सातवीं कक्षा नागरिक जीवन के पाठ 8 का विवरण सरल भाषा में विस्तार से विडियो के रूप में दिया है जो विद्यार्थियों को पाठ समझने में मदद करता है। विद्यार्थी पीडीएफ तथा विडियो समाधान की मदद से पूरे पाठ को आसानी से याद कर सकते हैं।
कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 8 बाज़ार में एक कमीज़
बाज़ार में एक कमीज़
कमीज कैसे बनती है? और यह बाजार तक कैसे पहुँचती है? इसका विवरण इस अध्याय में विस्तार पूर्वक दिया गया है यह कहानी कपास के उत्पादन से प्रारंभ होती है और कमीज़ के बिकने पर खत्म हो जाती है।
क्या स्वप्ना को रूई का उचित मूल्य प्राप्त हुआ?
स्वप्ना, जो कुरनूल (आंध्र प्रदेश) की एक छोटी किसान है, अपने छोटे-से खेत में कपास उगाती है। रूई एकत्र हो जाने के बाद स्वप्ना उसे अपने पति के साथ कुरनूल के कपास बाज़ार में न ले जाकर एक स्थानीय व्यापारी के पास ले जाती है। फ़सल की बोनी शुरू करने के समय स्वप्ना ने व्यापारी से खेती करने के लिए बीज, खाद, कीटनाशक आदि खरीदने के लिए बहुत ऊँची ब्याज दर पर ₹ 2,500 कर्ज़ पर लिए थे। उस समय स्थानीय व्यापारी ने स्वप्ना को एक शर्त मानने के लिए सहमत कर लिया था। उसने स्वप्ना से वादा करवा लिया था कि वह अपनी सारी रूई उसे ही बेचेगी। स्वप्ना व्यापारी से वायदा करके फंस चुकी थी इसलिए व्यापारी ने मनमाने मूल्य पर उसकी कपास खरीदी। स्वप्ना को बाजार से कम मूल्य मिला।
कपास की खेती में लागत किस तरह की है?
कपास की खेती में बहुत अधिक निवेश करने की ज़रूरत पडती है, जैसे – उर्वरक, कीटनाशक आदि। इन पर किसानों को काफ़ी व्यय करना पड़ता है। प्रायः छोटे किसानों को इन खर्चों की पूर्ति करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है।
इरोड का कपड़ा बाज़ार
तमिलनाडु में सप्ताह में दो बार लगने वाला इरोड का कपड़ा बाज़ार संसार के विशाल बाजारों में से एक है। इस बाज़ार में कई प्रकार का कपड़ा बेचा जाता है। आसपास के गाँवों में बुनकरों द्वारा बनाया गया कपड़ा भी इस बाज़ार में बिकने के लिए आता है। बाज़ार के पास कपड़ा व्यापारियों के कार्यालय हैं, जो इस कपड़े को खरीदते हैं। दक्षिणी भारत के शहरों के अन्य व्यापारी भी इस बाज़ार में कपड़ा खरीदने आते हैं। बाज़ार के दिनों में आपको वे बुनकर भी मिलेंगे, जो व्यापारियों के ऑर्डर के अनुसार कपड़ा बनाकर यहाँ लाते हैं। ये व्यापारी देश व विदेश के वस्त्र निर्माताओं और निर्यातकों को उनके ऑर्डर के अनुसार कपड़ा उपलब्ध कराते हैं। ये सूत खरीदते हैं और बुनकरों को निर्देश देते हैं कि किस प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाना है।
बुनकर सहकारी संस्थाएँ
हमने देखा कि दादन व्यवस्था में व्यापारी, बुनकरों को बहुत कम पैसा देते हैं। व्यापारियों के ऊपर निर्भरता को कम करने और बुनकरों की आमदनी बढ़ाने के लिए सहकारी व्यवस्था एक साधन है। एक सहकारी संस्था में वे लोग, जिनके हित समान हैं, इकट्ठे होकर परस्पर लाभ के लिए काम करते हैं। बुनकरों की सहकारी संस्था में बुनकर एक समूह बना कर कुछ गतिविधियाँ सामूहिक रूप से करते हैं। वे सूत व्यापारी से सूत प्राप्त करते हैं और उसे बुनकरों में बाँट देते हैं। सहकारी संस्था विक्रय का कार्य भी, करती है। इस तरह व्यापारी की भूमिका समाप्त हो जाती है और बुनकरों को कपड़ों का उचित मूल्य प्राप्त होता है।
बाज़ार और समानता
विदेशी व्यवसायी ने बाज़ार में अधिक मुनाफा कमाया। उसकी तुलना में वस्त्र- निर्यातक का लाभ मध्यम श्रेणी का रहा। दूसरी ओर वस्त्र निर्यातक फैक्टरी के कामगार मुश्किल से केवल अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों की पूर्ति लायक ही कमा सके। इसी प्रकार हमने देखा कि कपास उगाने वाली छोटी किसान और इरोड के बुनकरों ने कड़ी मेहनत की, लेकिन बाज़ार में उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिला। व्यवसायी या व्यापारियों की स्थिति बीच की है। बुनकरों की तुलना में उनकी कमाई अधिक हुई है, लेकिन निर्यातक की कमाई से बहुत कम है। इस तरह बाज़ार में सब बराबर नहीं कमाते हैं।
‘दादन व्यवस्था’ क्या है?
व्यापारी और बुनकरों के बीच की यह व्यवस्था ‘दादन व्यवस्था’ का एक उदाहरण है, जहाँ व्यापारी कच्चा माल देता है और उसे तैयार माल प्राप्त होता है। भारत के अनेक क्षेत्रों में कपड़ा बुनाई के उद्योग में यह व्यवस्था प्रचलित है।