कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 5 एनसीईआरटी समाधान – औरतों ने बदली दुनिया

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 5 औरतों ने बदली दुनिया के प्रश्न उत्तर पीडीएफ तथा विडियो के रूप में सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए मुफ़्त डाउनलोड करें। सामाजिक विज्ञान में कक्षा 7 नागरिक जीवन के पाठ 5 के समाधान के साथ साथ अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर भी विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं ताकि परीक्षा की तैयारी में उन्हें कोई दिक्कत न हो। तिवारी अकादमी पर सभी समाधान उपयोग के लिए मुफ़्त हैं।

कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 5 के लिए एनसीईआरटी समाधान

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कम अवसर और कठोर अपेक्षाएँ

समाज का तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है कि कार्यक्षेत्र के अनुसार महिलाओं और पुरुषों की प्राथमिकता किस प्रकार है: एक कक्षा के अधिकांश बच्चों ने नर्स के लिए महिलाओं के और पायलट के रूप में पुरुषों के चित्र बनाए। ऐसा उन्होंने इस कारण किया कि उन्हें लगता है कि घर के बाहर भी महिलाएँ कुछ खास तरह के काम ही अच्छी तरह कर सकती हैं। उदाहरण के लिए बहुत-से लोग मानते हैं कि महिलाएँ अच्छी नर्सें हो सकती हैं। नीचे एक तालिका दी गई है जिससे 30 लोगों में महिलाओं और पुरुषों की संख्यां व्यवसायों के प्रति उनकी रूचि के अनुसार दी गई है।

व्यवसायपुरुषमहिला
शिक्षक0525
किसान300
मिल मजदूर2505
नर्स030
वैज्ञानिक2505
पायलट2703

उपरोक्त सारणी के आधार पर सभी नर्सें महिलाएं हैं इसका कारण क्या है?

क्योंकि वे अधिक सहनशील और विनम्र होती हैं। इसे परिवार में स्त्रियों की भूमिका के साथ मिला कर देखा जाता है। महिलाएं नर्सिंग कार्य को पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा अच्छे से कर सकती है इसलिए इस कार्य हेतु महिलाओं को वरीयता दी जाती है।

क्या आप ऊपर दी गई सारणी से सहमत हैं? करण सहित बताइए।

उपरोक्त सारणी का अध्ययन करने हम पाते हैं कि इसमें कुछ पूर्वाग्रह हैं जो कि आज के समय में सत्य नहीं है जैसे कि कृषक परिवारों में महिलाएं खेतों में कार्य करती हैं फिर भी किसानों के नाम पर उनका कहीं नाम नहीं है। दूसरा आजकल महिलाएं फाइटर पायलट तक हैं और वैज्ञानिक शोधों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। बहुत सारे समाजों में आज भी लड़कियों को पढाई के मामलों में लड़कों से कम वरीयता दी जाती है।

भारतीय महिला द्वारा लिखित पहली आत्मकथा होने का गौरव किसे हासिल है?

आमार जीबोन किसी भारतीय महिला द्वारा लिखित पहली आत्मकथा है। राससुंदरी देवी एक धनवान जमींदार परिवार की गृहिणी थीं। उस समय लोगों का विश्वास था कि यदि लड़की लिखती-पढ़ती है, तो वह पति के लिए दुर्भाग्य लाती है और विधवा हो जाती है। इसके बावज़ूद उन्होंने अपनी शादी के बहुत समय बाद स्वयं ही छुप-छुपकर लिखना-पढ़ना सीखा।

वर्तमान समय में शिक्षा और विद्यालय

आज के युग में लड़के और लड़कियाँ विशाल संख्या में विद्यालय जा रहे हैं, लेकिन फिर भी हम देखते हैं कि लड़कों और लड़कियों की शिक्षा में अंतर है। भारत में हर दस वर्ष में जनगणना होती है, जिसमें पूरे देश की जनसंख्या की गणना की जाती है। 1961 की जनगणना के अनुसार सब लड़कों और पुरुषों (7 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के) का 40 प्रतिशत शिक्षित था (अर्थात्‌ वे कम-से-कम अपना नाम लिख सकते थे)। इसकी तुलना में लड़कियों तथा स्त्रियों का केवल 15 प्रतिशत भाग शिक्षित था। 2001 की जनगणना के अनुसार लड़कों व पुरुषों की यह संख्या बढ़कर 76 प्रतिशत हो गई है और शिक्षित लड़कियों तथा स्त्रियों की संख्या 54 प्रतिशत। इसका आशय यह हुआ कि पुरुषों और स्त्रियों, दोनों के बीच ऐसे लोगों का अनुपात बढ़ गया है, जो पढ़-लिख सकते हैं और जिन्हें कुछ हद तक शिक्षा मिल चुकी है। लेकिन जैसा कि आप देख सकते हैं, अब भी स्त्रियों की तुलना में पुरुषों का प्रतिशत अधिक है। इनके बीच का अंतर अभी समाप्त नहीं हुआ है।

अपेक्षाकृत दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग के बच्चों के अधिक संख्या में स्कूल छोड़ने के क्या कारण हैं?

दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग के बच्चों के स्कूल छोड़ देने के अनेक कारण हैं। देश के अनेक भागों में विशेषकर ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में नियमित रूप से पढ़ाने के लिए न उचित स्कूल हैं, न ही शिक्षक। यदि विद्यालय घर के पास न हो और लाने-ले जाने के लिए किसी साधन जैसे बस या वैन आदि की व्यवस्था न हो तो अभिभावक लड़कियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते। कुछ परिवार अत्यंत निर्धन होते हैं और अपने सब बच्चों को पढ़ाने का खर्चा नहीं उठा पाते हैं। ऐसी स्थिति में लड़कों को प्राथमिकता मिल सकती है। बहुत-से बच्चे इसलिए भी स्कूल छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके साथ उनके शिक्षक और सहपाठी भेदभाव करते हैं।

महिला आंदोलन

अब महिलाओं और लड़कियों को पढ़ने का और स्कूल जाने का अधिकार है। अन्य क्षेत्र भी हैं- जैसे कानूनी सुधार, हिंसा और स्वास्थ्य, जहाँ लड़कियों और महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है। ये परिवर्तन अपने-आप नहीं आए हैं। औरतों ने व्यक्तिगत स्तर पर और आपस में मिल कर इन परिवर्तनों के लिए संघर्ष किए हैं। इन संघर्षों को महिला आंदोलन कहा जाता है। देश के विभिन्न भागों से कई औरतें और कई महिला संगठन इस आंदोलन के हिस्से हैं। कई पुरुष भी महिला आंदोलन का समर्थन करते हैं। इस आंदोलन में जुटे लोगों की मेहनत, निष्ठा और उनकी विशेषताएँ इसे एक बहुत ही जीवंत आंदोलन बनाती हैं। इसमें चेतना जागृत करने, भेदभावों का मुकाबला करने और न्याय हासिल करने के लिए भिन्न-भिन्न रणनीतियों का उपयोग किया गया है।

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