कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 4 एनसीईआरटी समाधान – लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

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लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

लड़का या लड़की होना किसी की भी एक महत्त्वपूर्ण पहचान है, उसकी अस्मिता है। जिस समाज के बीच हम बड़े होते हैं, वह हमें सिखाता है कि लड़के और लड़कियों का कैसा व्यवहार स्वीकार करने योग्य है। उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। हम प्राय: यही सोचते हुए बड़े होते हैं कि ये बातें सब जगह बिलकुल एक-सी हैं।

समाज किस प्रकार लड़का और लड़की में भेदभाव को जन्म देता है?

समाज, लड़के और लड़कियों में स्पष्ट अंतर करता है। यह बहुत कम आयु से ही शुरू हो जाता है। उदाहरण के लिए: उन्हें खेलने के लिए भिन्न खिलौने दिए जाते हैं। लड़कों को प्राय: खेलने के लिए कारें दी जाती हैं और लड़कियों को गुड़ियाँ। दोनों ही खिलौने, खेलने में बड़े आनंददायक हो सकते हैं, फिर लड़कियों को गुड़ियाँ और लड़कों को कारें ही क्यों दी जाती हैं? खिलौने बच्चों को यह बताने का माध्यम बन जाते हैं कि जब वे बड़े होकर स्त्री और पुरुष बनेंगे, तो उनका भविष्य अलग-अलग होगा। लड़कियों को कैसे कपड़े पहनने चाहिए, लड़के पार्क में कौन-से खेल खेलें, लड़कियों को धीमी आवाज़ में बात करनी चाहिए और लड़कों को रौब से- ये सब बच्चों को यह बताने के तरीके हैं कि जब वे बड़े होकर स्त्री और पुरुष बनेंगे, तो उनकी विशिष्ट भूमिकाएँ होंगी। बाद के जीवन में इसका प्रभाव हमारे अध्ययन के विषयों या व्यवसाय के चुनाव पर भी पड़ता है।

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ किस प्रकार का भेदभाव किया जाता है?

अधिकांश समाजों में, जिनमें हमारा समाज भी सम्मिलित है, पुरुषों और स्त्रियों की भूमिकाओं और उनके काम के महत्त्व को समान नहीं समझा जाता है। पुरुषों और स्त्रियों की हैसियत एक जैसी नहीं होती है। ज्यादातर महिलाएं गृहणी के रूप में कार्य करती हैं जिसका कोई भी मूल्य नहीं समझा जाता। एक ही काम के लिए महिलाओं को कम मेहनताना मिलता है।

महिलाओं का काम और समानता

जैसा कि हमने देखा, महिलाओं के घरेलू और देखभाल के कामों को कम महत्त्व देना एक व्यक्ति या परिवार का मामला नहीं है। यह स्त्रियों और पुरुषों के बीच असमानता की एक बड़ी सामाजिक व्यवस्था का ही भाग है। इसीलिए इसके समाधान हेतु, जो कार्य किए जाने हैं, वे केवल व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर पर नहीं, वरन्‌ शासकीय स्तर पर भी होने चाहिए। हम जानते हैं कि समानता हमारे संविधान का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। संविधान कहता है कि स्त्री या पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। परंतु वास्तविकता में लिंगभेद किया जाता है।

सरकार महिला एवं पुरुष के भेदभाव की समस्या का निदान किस प्रकार कर सकती है?

सरकार इसके कारणों को समझने के लिए और इस स्थिति का सकारात्मक निदान ढूँढ़ने के लिए वचनबद्ध है। उदाहरण के लिए सरकार जानती है कि बच्चों की देखभाल और घर के काम का बोझ महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है। स्वाभाविक रूप से इसका असर लड़कियों के स्कूल जाने पर भी पड़ता है। इससे ही निश्चित होता है कि क्या महिलाएँ घर के बाहर काम कर सकेंगी और यदि करेंगी, तो किस प्रकार का काम या कार्यक्षेत्र चुनेंगी।

पूरे देश के कई गाँवों में शासन ने आंगनवाड़िया और बालवाड़ियाँ खोली हैं। शासन ने एक कानून बनाया है, जिसके तहत यदि किसी संस्था में महिला कर्मचारियों की संख्या 30 से अधिक है, तो उसे वैधानिक रूप से बालवाड़ी (क्रेश) की सुविधा देनी होगी। बालवाड़ी की व्यवस्था होने से बहुत-सी महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने में सुविधा होगी। इससे बहुत-सी लड़कियों का स्कूल जाना भी संभव हो सकेगा।

कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 4 एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 7 नागरिक शास्त्र अध्याय 4