कक्षा 6 नागरिक शास्त्र अध्याय 2 एनसीईआरटी समाधान – विविधता एवं भेदभाव
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 नागरिक शास्त्र अध्याय 2 विविधता एवं भेदभाव के प्रश्न उत्तर पीडीएफ तथा विडियो में सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 6 नागरिक जीवन का पाठ दो अध्याय एक की निरंतरता है, जहाँ छात्र विविधता और असमानता में अंतर्दृष्टि प्राप्त करेंगे। हम यहाँ ये अध्ययन करते हैं कि संविधान हमें विविधता का सम्मान करने के लिए कैसे आवश्यक है। कक्षा 6 नागरिक जीवन के इस अध्याय के बाद, छात्र विविधता और असमानता के बीच अंतर करने में सक्षम होंगे। अध्याय में रूढ़िवादिता, असमानता और भेदभाव के हानिकारक परिणामों का भी वर्णन किया गया है।
कक्षा 6 नागरिक शास्त्र अध्याय 2 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 नागरिक शास्त्र अध्याय 2 विविधता एवं भेदभाव
विविधता एवं भेदभाव
विविधता के जहाँ कुछ लाभ हैं वहीं कभी-कभी यह भेदभाव का कारण भी बनती है। हम उन लोगों के साथ सुरक्षित एवं आश्वस्त महसूस करते हैं जो हमारी तरह दिखते हैं, बात करते हैं, कपड़े पहनते हैं और हमारी तरह सोचते हैं। कभी-कभी जब हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो हमसे बहुत भिन्न होते हैं, तो हमें वे बहुत अजीब और अपरिचित लग सकते हैं। कई बार हम समझ ही नहीं पाते या जान ही नहीं पाते कि वे हमसे अलग क्यों हैं। लोग अपने से अलग दिखने वालों के बारे में खास तरह की राय बना लेते हैं। जो भेदभाव का कारण बनता है।
पूर्वाग्रह से क्या तात्पर्य है?
किसी व्यक्ति स्थान वस्तु या विषय के बारे में बिना वास्तविक ज्ञान के इनके बारे में एक तरह की सोच बना लेने को पूर्वाग्रह कहते हैं। जैसे: कुछ लोग ग्रामीण लोगों को अज्ञानी की तरह देखते हैं जबकि शहर में रहने वाले लोगों को आलसी एवं सिर्फ पैसे से सरोकार रखने वालों की तरह देखते हैं। जब हम किसी के बारे में पहले से कोई राय बना लेते हैं और उसे हम अपने दिमाग में बिठा लेते हैं तो वह पूर्वाग्रह का रूप ले लेती है। ज़्यादातर यह राय नकारात्मक होती है। जैसा कि कथनों में दिया गया है – लोगों को आलसी या कंजूस मानना भी पूर्वाग्रह है।
लड़के और लड़की में भेदभाव
समाज में लड़के और लड़कियों में कई तरह से भेदभाव किया जाता है। हम सभी इस भेदभाव से परिचित हैं। एक लड़का या लड़की होने का अर्थ क्या होता है? आपमें से कई लोग कहेंगे, “हम लड़के या लड़की की तरह जन्म लेते हैं। यह तो ऐसे ही होता है। इसमें सोचने वाली क्या बात है?” आइए, देखें कि क्या सच्चाई यही है? हमारे समाज में लैंगिक भेदभाव प्राचीन समय से ही प्रचलित है। कुछ क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध तक किये जाते हैं। इस भेदभाव को प्रलक्षित करने के लिए नीचे एक तालिका दी गई है:
लड़का | लड़की |
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लडके के जन्म पर खुशी मनाई जाती है। | लड़की के जन्म पर उदासी का भाव रहता है। |
घर में लड़कों को वरीयता दी जाती है। | लड़कियों को हतोत्साहित किया जाता है। |
पढ़ने के लिए लड़कों को अच्छी सुविधा दी जाती है। | लड़कियों के पढ़ने लिखने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। |
लड़कों को नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। | लड़कियों को घर के काम पर ध्यान देने को कहा जाता है। |
सम्पति पर लड़कों का अधिकार अधिक माना जाता है। | लड़कियों को शादी करके दूसरे घर विदा कर दिया जाता है। |
लड़कों पर पाबंदियां अपेक्षाकृत कम होती है। | लड़कियों पर बहुत सारी पाबंदियां होती है। |
रूढ़िवाद क्या है? इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
जब हम सभी लोगों को एक ही छवि में बाँध देते हैं या उनके बारे में पक्की धारणा बना लेते हैं, तो उसे रूढ़िबद्ध धारणा कहते हैं। कई बार हम किसी खास देश, धर्म, लिंग के होने के कारण किसी को ‘कंजूस’, ‘अपराधी’ या ‘बेवकूफ ’ ठहराते हैं। ऐसा दरअसल उनके बारे में मन में एक पक्की धारणा बना लेने के कारण होता है। हर देश, धर्म आदि में हमें कंजूस, अपराधी और बेवकूफ लोग मिल ही जाते हैं।
सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग उस समूह में वैसे हैं, पूरे समूह के बारे में ऐसी राय बनाना वाजिब नहीं है। रूढ़िबद्ध धारणाएँ बड़ी संख्या में लोगों को एक ही प्रकार के खाँचे में जड़ देती हैं। जैसे माना जाता था कि हवाई जहाज़ उड़ाने का काम लड़कियाँ नहीं कर सकतीं। इस प्रकार की धारणाओं से समाज में भेदभाव पैदा होता है। जो कि समाज के लिए हानिकारक है।
समाज में फ़ैली असमानता को कैसे दूर किया जा सकता है?
समाज में असमानता कई स्तर पर है तथा इसके बहुत सारे स्वरूप हैं। जिनमें छुआछूत, महिला-पुरुष के बीच भेद, गरीब-अमीर के अधिकारों का भेद आदि बहुत सारे कुरीतियाँ हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों ने पहले भी संघर्ष किया तथा आज भी जागरूकता बढ़ने की जरुरत है। इसके कुछ उदाहरण भी हैं। जैसा कि पहले भी बात हुई, बहुत सारे दलितों ने संगठित होकर मंदिर में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष किया। महिलाओं ने माँग की कि जैसे पुरुषों के पास शिक्षा का अधिकार है वैसे उन्हें भी अधिकार मिले। किसानों और दलितों ने अपने आपको ज़मींदारों और उनकी ऊँची ब्याज़ की दर से छुटकारा दिलाने के लिए संघर्ष किया।