एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 9 डायरी कमर सीधी, ऊपर चढ़ो

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 9 डायरी कमर सीधी, ऊपर चढ़ो पर्यावरण अध्ययन के प्रश्न उत्तर सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 5 पर्यावरण पाठ 9 के लिए विद्यार्थी यहाँ दिए गए विडियो तथा पीडीएफ की मदद से इसे आसानी से समझ सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 9

संगीता अरोड़ा का माउन्टेनियरिंग कैंप का अनुभव

प्रस्तुत पाठ में संगीता अरोड़ा के पहाड़ पर चढ़ने के अपने अनुभव के बारे में बताया गया है। उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट आँफ माउन्टेनियरिंग के कैंप में केन्द्रीय विद्यालयों से करीब बीस टीचर थी। उनमें से संगीता अरोड़ा एक थी। बाकी महिलाऐं बैंक और दूसरी संस्थाओं से थी। कैंप के दूसरे दिन जब संगीता ने बिस्तर से नीचे कदम रखा तो उसकी चीख निकल गई। क्योंकि पहले दिन 26 किलोमीटर पहाड़ी, सँकरे , उबड़-खाबड़ रास्तों पर चली थी, वह भी कमर पर सामान से भरा पिट्ठू बैग लेकर।

लेकिन आज उसकी जाने की हिम्मत बिल्कुल नहीं हो रही थी। यह बात बताने के लिए वह एडवेंचर कोर्स के डायरेक्टर, ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह के कमरे में जा पहुँची। तभी पीछे से उसे ब्रिगेडियर साहब की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने पूछा मैडम नाश्ते के समय आप यहाँ क्या कर रही हैं, हरी अप वरना भूखे ही ट्रेकिंग पर जाना होगा। संगीता के शब्द उसके मुँह में ही रह गए, ब्रिगेडियर साहब ने कहा पैरों में छाले पड़े हैं, चल नहीं सकती, यही कहना चाहती हैं आप, ब्रिगेडियर साहब ने फिर कहा “यह कोई नई बात नहीं है, जल्दी तैयार हो जाओ।

संगीता ग्रुप लीडर

संगीता मुँह लटकाए तैयार होने के लिए चल दी अभी वह मुड़ भी न पाई थी कि ब्रिगेडियर साहब ने कहा “आज आप ग्रुप नंबर सात की लीडर रहेंगी। किसी भी सदस्य को पहाड़ पर चढ़ने में परेशानी होने पर आपको उनकी मदद करनी होगी। पहाड़ों पर लीडर की क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, यह सबको बताया जा चुका है।” संगीता के लिए यह एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी। संगीता समझ गई कि यहाँ का अनुशासन अपने आप में अलग ही है, वह समझ नहीं पा रही थी कि यह सज़ा है या मज़ा है।

उसके ग्रुप नंबर सात में असम, मणिपुर, मेघालय और नागालैंड राज्यों की लड़कियाँ थी। किसी भी लड़की को ठीक से हिंदी बोलनी नहीं आती थी। संगीता को आज भी इस बात का दुख है कि वह मिज़ोरम की खोनदोनबी से एक बार भी बात नहीं कर पाई। उसे केवल मिज़ो भाषा ही आती थी, लेकिन फिर भी हमारे दिल एक-दूसरे से जुड़े रहे।

दूसरे दिन की ट्रैकिंग

रोज़ की तरह सभी को नाश्ते में सुबह विटामिन ‘सी’ और आयरन की गोलियों के साथ गर्म चाँकलेट वाला दूध मिला। सुबह सभी का मेडिकल चेकअप हुआ, पट्टियाँ बाँधते और दर्द की मरहम मलते हुए रोज़ एक-एक दिन गिनते। करीब 8 किलोमीटर की ट्रैकिंग चढ़ने के बाद वे नदी के पास पहुँच गए थे। नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक एक मोटा, मजबूत रस्सा बँधा था। इसे दोनों किनारों पर बड़े-बड़े खूँटों से बाँधा गया था। सब के मन में अजीब-सी बेचैनी और डर बना हुआ था। संगीता मन-ही-मन में नदी की चौड़ाई आँक रही थी। उनके प्रशिक्षक ने कमर पर रस्सी बाँधी, उसमें एक हुक डाला और उस हुक को नदी पर बँधे मोटे रस्से में डाला। बर्फीले पानी में छप-छप करते हुए वह नदी के पार पहुँच गया।

नदी पार करने का अनुभव

उस तेज़ बहाव वाले पानी में उतरने को कोई तैयार नहीं था। सभी एक-दूसरे को पहले जाने को कह रहे थे। तभी प्रशिक्षक हुक और रस्सी लेकर संगीता के पास आ गया अब संगीता समझ गई कि बचाव का कोई रास्ता न था, सर संगीता के मन की हालत को समझ रहे थे, इसलिए वे ज़ोर से बोले “थ्री चियर्स फाँर संगीता मैडम” इसके साथ ही किसी ने हल्के से संगीता को पानी में धकेल दिया था। थोड़ी ही देर में पैर सुन्न हो गए और संगीता के दाँत किट-किटाने लगे थे। नदी के बीचोंबीच, ज़मीन पर उसके पैर टिक नहीं रहे थे। फ़िसल रहे थे। डर, घबराहट और ठंड के मारे संगीता के हाथ से रस्सा छुट गया, वह ज़ोर-ज़ोर से मदद के लिए चिल्लाने लगी। उसे लगा अब तो बह जाऊँगी।

पर वह तो हुक के सहारे रस्से से बँधी हुई पानी पर पड़ी हुई थी। फ़िर संगीता को रस्सा पकड़ों की आवाज़े सुनाई पड़ी, फिर रस्सा पकड़ के संगीता ने आगे बढ़ना शुरू किया। धीरे-धीरे हिम्मत बटोरती हुई आखिरकार वह किनारे पर पहुँच गई थी। नदी से बाहर निकलते ही संगीता को एक खास ख़ुशी का एहसास हुआ। ख़ुशी एक जोखिम भरे काम को कर पाने की थी। अब संगीता बाकी लोगों को चिल्ला-चिल्लाकर रस्सा कसकर पकड़ने की सलाह दे रही थी। जोखिम से जूझने के बाद जो विशवास और साहस उसे मिला था यह उसी का परिणाम था।

सपाट चट्टान पर चढ़ना और उतरना

अब उसके ग्रुप को 15 किलोमीटर चढ़कर टेकला गाँव पहुँचना था। यह गाँव लगभग 1600 मीटर की ऊँचाई पर था। खाने का डिब्बा, पानी की बोतल, रस्सी, हुक प्लास्टिक शीट डायरी, टार्च, तौलिया, साबुन, जैकेट, सीटी, ग्लूकोस, गुड़, चना और खाने-पीने का समान पिट्टू बैग लिए पूरा ग्रुप टेकला गाँव पहुँचा। यहाँ सीढ़ीदार खेतों में मौसम के अनुसार फल और सब्जियां उगी थी। सामने एक बड़ी बिल्कुल सपाट, 90 मीटर ऊँची चट्टान के ऊपर कर्नल राम सिंह खूँटे गाड़कर रस्सों के साथ खड़े थे। संगीता के ग्रुप को बताया गया था कि चट्टान पर पहले पैर और हाथ जमाने की मज़बूत जगह को पहचान लेना। उस दिन संगीता का मन पीछे हटने को नहीं था इसलिए संगीता लाइन में सबसे आगे खड़ी थी। तभी ग्रुप के प्रशिक्षक ने कमर पर रस्सी बाँधी और हुक लगया और नीचे लटकते हुए मोटे रस्से को पकड़कर चट्टान पर चढ़ना शुरू किया। संगीता को ऐसा लगा मानों वे उस चट्टान पर दौड़ रहे थे। संगीता ने भी रस्से पर हुक डाला और चट्टान पर पैर बढ़ाया लेकिन पैर बढ़ाते ही वह फ़िसल गई और रस्से से झूलने लगी। तभी आवाज़ आई 90 डिग्री का कोण बनाते हुए चलों कमर सीधी रखो और आगे मत झुको। संगीता अब चट्टान को ज़मीन मानकर उस पर सीधी चढ़ने लगी। अभी वापिस उतरना भी बाकी था। जिसे पर्वतारोहण की भाषा में रैप्लिंग कहते है।संगीता एक बार फिर बेझिझक होकर निडरता से चट्टान से नीचे उतरने को खड़ी थी।

ग्रुप से बिछुड़ना
अब शाम हो चली थी, खोनदोनबी को भूख लगी और खाने का सारा सामान भी खत्म हो गया था। संगीता के देखते-देखते खोनदोनबी कँटीले तार पार करके एक बगीचें में घुस गई। वहाँ से वह दो पहाड़ी खीरे तोड़ लाई, तभी पीछे से एक पहाड़ी महिला ने उसका बैग पकड़ लिया। अपनी भाषा में वह खोनदोनबी को कुछ कह रही थी। उसकी पहाड़ी भाषा संगीता की समझ से बाहर थी। खोनदोनबी बीच-बीच में मिजों भाषा में जवाब दे रही थी। आखिर में संगीता ने हावभाव से उस महिला को समझाया और गलती की माफ़ी माँगी। इतनी देर में सारा ग्रुप बहुत आगे निकल चूका था। अँधेरा भी हो चुका था और संगीता को लगा कि वे गलत रास्ते पर बढ़ रहे थे। वे दोनों बहुत घबरा गई टार्च से भी कुछ नज़र नहीं आ रहा था। ठंड में भी दोनों के पसीने छूट रहे थे। संगीता ने ज़ोर से आवाज़ लगाई “कहाँ हो तुम सब” पहाड़ों पर उसकी आवाज़ गूँजने लगी थी। फ़िर उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से सीटियाँ बजानी शुरू की और टार्च से रोशनी की। तब ग्रुप को पता चल चुका था, क्योंकि जवाबी सीटियाँ बजने लगी थी। खोनदोनबी को लगा कि हमें कुछ-न-कुछ बोलते रहना चाहिए। उसने अपनी मिजों भाषा में ज़ोर-ज़ोर से कोई गीत गाना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उन्हें ग्रुप मिल गया था।

बछेंद्री पाल से मुलाक़ात

रात को खाने के बाद उसने एक खास मेहमान से मिलवाया गया। वे थीं बछेंद्री पाल उन्हें माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए चुना गया था। वे ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह से आशीर्वाद लेने आई थी। उस ख़ुशी के माहौल में सभी गा-बजा रहे थे। बछेंद्री पाल भी एक पहाड़ी गीत गाते हुए नाचने लगी थी। संगीता सोच भी नहीं सकती थी कि यही बछेंद्री पाल एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनने का इतिहास रचेंगी।

तीसरे दिन 2134 मीटर की ऊँचाई पर कैम्प

संगीता का कैंप अब लगभग 2134 मीटर की ऊँचाई पर था। कैंप को रात में यहीं रुकना था। सभी अपना-अपना टेंट लगाने की कोशिश में लगे थे। टेंट लगाने के लिए और बिछाने के लिए उनके पास प्लास्टिक की दो तह वाली शीट थी, जिसमें हवा रुकी रहती है और ठंड नहीं आती है। उन्होंने खूँटे गाड़े और टेंट बाँधने शुरू किए। पर एक तरफ़ से बाँधते तो दूसरी तरफ़ से उड़ जाता बड़ी मुश्किल से टेंट लगे। फ़िर उन्होंने टेंट के चारों तरफ़ नाली खोदी ताकी सोते हुए कोई पहाड़ से नीचे न लुढक जाए। अब सभी भूख से बेहाल थे। सबने लकड़ियाँ इकट्ठी कर खाना पकाया और खाया। अब सोने के लिए सब स्लीपिंग बैग में घुस गए, स्लीपिंग बैग की तहों में पंख भरे हुए थे, जिनसे गर्मी बनी रहती थी। संगीता सोच रही थी कि वह इनमें सों पाएँगी। लेकिन पूरे दिन की थकावट के चलते स्लीपिंग बैग में घुसते ही नींद आ गई।

बर्फ से सामना

सुबह जागे तो बर्फ़ गिर रही थी। बर्फ़ सफ़ेद-सफ़ेद रुई के कतरो की तरह थी। बर्फ़ को देख सभी को बड़ा मज़ा आ गया वहाँ से पेड़-पौधे, घास, पहाड़, और सभी कुछ सफ़ेद दिख रहे थे। आज संगीता के कैंप को बर्फ़ पर और ऊपर लगभग 2700 मीटर की ऊँचाई पर चढ़ना था। ऊपर चढ़ने के लिए उन्हें छड़ियाँ दी गई। वे सब छड़ी के सहारे पैर जमा-जमाकर बढ़ रहे थे। बार-बार उनका पैर फ़िसल रहा था। दोपहर होते-होते सब बर्फ़ से ढँके पहाड़ों पर थे। वहाँ सब ने मिलकर स्नोमैन बनाया और बर्फ़ के गोलों से भी खेलने लगे। कैंप के आख़िरी दिन सब आग जलाने की तैयारियों में लगे हुए थे, सभी ग्रुप अपना-अपना प्रोग्राम तैयार करके आए थे।

आख़िरी दिन का रोमांच

खाने के बाद आग के चारों तरफ़ नाच गाने, चुटकले, हँसी-मज़ाक में कब रात के बारह बज गए, पता ही नहीं चला। तभी ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह उठे और उन्होंने संगीता को बुलाया। संगीता ने मन में सोचा लगता है, आज आख़िरी दिन भी कोई गड़बड़ हो गई है। पर जब ब्रिगेडियर सर ने “बेस्ट परफार्मेंस अवार्ड” के लिए संगीता अरोड़ा के नाम की घोषणा की तो वह अवाक् होकर उन्हें देखती रह गई। ब्रिगेडियर साहब का आशीर्वाद भरा हाथ उसके सिर पर था, और संगीता की आँखों से ख़ुशी के आँसू टपक रहे थे।

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