एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 6 बूँद बूँद दरिया दरिया

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 6 बूँद-बूँद, दरिया-दरिया पर्यावरण अध्ययन के प्रश्न उत्तर किताब के बीच में दिए गए सभी सवाल जवाब सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। कक्षा 5 पर्यावरण पाठ 6 के सभी प्रश्नों के हल पीडीएफ तथा विडियो के माध्यम में यहाँ दिए गए हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 6

कक्षा 5 ईवीएस पाठ 6 का परिचय बूँद-बूँद, दरिया-दरिया

प्रस्तुत पाठ में पानी की बूँद और पानी से जुड़े तालाब, नहर, कुँए, बावड़ी और नल की ज़रूरत के बारे में बताया गया है। पाठ में यह भी बताया गया है कि पुराने समय में कैसे पानी को सहेजा जाता था और कैसे उसका रख-रखाव किया जाता था।

जैसलमेर का घड़सीसर (तालाब)

जैसलमेर के राजा घड़सी ने लोगों के साथ मिलकर 650 साल पहले इस सर (तालाब) का निर्माण किया था। इसके दोनों तरफ़ पक्के घाट, सजे हुए बरामदे, कमरे, बड़े हाल और न जाने क्या क्या बनवाया था। यहाँ लोग मिलते-जुलते थे, जलसे होते थे, और गाने-बजाने का प्रोग्राम भी होता था। इसके घाट पर बनाए गए स्कूल में आस-पास के बच्चे पढ़ने आते थे। सभी इस बात का ध्यान रखते थे कि तालाब गंदा न हो और सफ़ाई में भी हाथ बाँटते थे।

तालाब में पानी की व्यवस्था

मीलों तक फैले इस तालाब में बारिश का पानी इकट्ठा होता था। तालाब इस तरह बनाया गया था कि जब वह पानी से भर जाता, तब बाकी का पानी बहकर नीचे बने हुए तालाब में चला जाता जब वह भी लबालब भर जाता तो पानी तीसरे तालाब में चला जाता। इस तरह नौ तालाब एक दूसरे से आपस में जुड़े थे। पूरे साल पानी की कोई कमी नहीं होती थी।

घड़सीसर की वर्तमान अवस्था
आज घड़सीसर उजड़-सा गया है, नौ तालाबों के रास्ते में मकान और कालोनियां बन गई हैं। यहाँ इकट्ठा होने वाला पानी अब तालाब की तरफ़ न जाकर बेकार बह जाता है। लोगों के स्वार्थ और लालच ने एक धरोहर को विकृत कर दिया और उसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है।

अल-बिरूनी द्वारा इस कारीगरी का वर्णन

उज्बेकिस्तान के यात्री अल-बिरूनी ने भी भारत के लोगों द्वारा बनाए तालाबों की तारीफ़ करते हुए उन्हें माहिर कारीगिरी का ख़िताब दिया था। अपनी किताब में उसने लिखा कि अगर हमारे देश के लोग इस कारीगिरी को देखेगें, तो हैरान ही रह जाएँगे। यहाँ पर बहुत बड़े-बड़े भारी पत्थरों को लोहे के कुण्डों और सरियों से जोड़कर तालाब के चारों तरफ़ चबूतरे बनाए जाते हैं। इन चबूतरों के बीच में ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों की लंबी कतारें होती हैं। लोगों के उतरने चढ़ने के रास्ते अलग-अलग होते हैं। यहाँ कभी भीड़ लगने से भी परेशानी नहीं हो सकती।

राजस्थान में तालाबों की उपयोगिता

राजस्थान में जैसलमेर के अलावा बहुत-से इलाके ऐसे हैं, जहाँ साल में बहुत ही कम दिन बारिश होती है। यहाँ की नदियों में भी साल में कई महीने पानी नहीं रहता। इसलिए यहाँ के ज़्यादातर लोग बारिश की हर बूँद की कीमत को जानते थे। लोगो ने पानी की कमी को पूरा करने के लिए तालाब, जोहड़ बनवाएँ। पानी एक साँझी ज़रूरत थी, इसलिए पानी के इंतज़ाम में सभी जुड़ते चले गए। इसमें व्यपारी से लेकर मज़दूर सभी थे। तालाब में से कुछ पानी ज़मीन सोख लेती और इस तरह ज़मीन से आस-पास के कुँओं और बावडियों में भी पानी पहुँच जाता था। आस-पास की ज़मीन भी नम और उपजाऊ हो जाती थी। घर-घर में भी बारिश का पानी इकट्ठा करने का इंतज़ाम होता था। आज भी छत पर बरसने वाला पानी पाईप द्वारा ज़मीन के नीचे बने टैंक में पहुँचाया जाता है।

राजस्थान की बावड़ियां

राजस्थान में आज भी बहुत सुंदर बावड़ी बनी है, जिनमें नीचे जाने के लिए बनी सीढियाँ कई मंज़िले बनी हुई हैं, यहाँ लोग पानी खींचने के बजाय ख़ुद पानी तक पहुँच सकते हैं। इसलिए कुछ लोग इसे सीढ़ीदार कुआँ भी कहते हैं। कई जगह पर यात्रियों के लिए भी इन सुंदर बावड़ियों का निर्माण किया गया था।

पानी के श्रोत तथा उनसे जुड़ी परम्पराएं
आज भी कहीं-कहीं सौ साल पुराने पानी के स्रोत्र हैं, जैसे- बावड़ी, तालाब, नौला, धारा आदि- जिनसे लोगों की पानी की ज़रूरत पूरी होती है। आज भी भारत के उतराखंड में पानी से जुड़े कई रिवाज और परम्पराएं हैं, कई जगह पर आज भी बारिश के पानी से तालाब भरने की ख़ुशी में आस-पास मेले का माहौल हो जाता है।

वर्तमान में पानी की व्यवस्था

आज लोगो को टैकरों के द्वारा पानी घरों तक पहुँचाया जाता है। कुछ लोग आज भी ज़मीनी बोरिंग का पानी इस्तेमाल करते हैं। कुछ गाँव में आज भी नहर से पानी लाया जाता है। आज कई संस्थाएँ पानी के इंतज़ाम में लगी हैं। वे लोग गाँव वालों से मिलकर यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके जमाने में पानी का इंतजाम किस तरह किया जाता था।

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