एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 15 उसी से ठंडा उसी से गर्म
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 15 उसी से ठंडा उसी से गर्म पर्यावरण अध्ययन के अभ्यास के सवाल जवाब सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 5 पर्यावरण पाठ 15 के प्रश्न उत्तर तथा अध्याय का पूरा विविरण हिंदी में यहाँ से निशुल्क प्राप्त किया जा सकता है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 15
कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 15 उसी से ठंडा उसी से गर्म के प्रश्नों के उत्तर
कक्षा 5 ईवीएस पाठ 15 का परिचय उसी से ठंडा उसी से गर्म
प्रस्तुत पाठ में लकड़हारे द्वारा फूँक मार कर अपने कई काम किए जिन्हें देख कर मियाँ बालिश्तिये हैरान हुआ। यही बात बालिश्तिये को परेशान कर रही थी कि वह हर काम में फूँक का इस्तेमाल क्यों कर रहा है।
लकड़हारे की फूंक और बालिश्तिये की हैरानी
एक गरीब लकड़हारा रोज़ जंगल में लकड़ी काट कर शहर में जाकर बेचता था। एक दिन वह दूर जंगल के अंदर चला गया। कटकटी का जाड़ा पड़ रहा था। ठंड के मारे उसकी उंगलियाँ सुन्न हो जाती थी। वह थोड़ी-थोड़ी देर में कुल्हाड़ी नीचे रख कर अपने हाथों में मुँह से फूँक मारता और उन्हें थोड़ा गर्म करने की कोशिश करता था। पास के कोने में खड़े मियाँ बालिश्तिये यह सब देख रहा था।
यह देख कर बालिश्तये हैरान था, कि लकड़हारा ऐसा क्यों कर रहा था। उसके मन में यह जानने की इच्छा थी कि लकड़हारा ऐसा क्यों कर रहा है। इसलिए वह उसके पास जाकर पूछने लगा कि तुम थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुँह से हाथ पर फूँक क्यों मारते हो। पहले तो लकड़हारे छोटे से आदमी को देखकर ताज्जुब हुआ फिर अपनी हँसी को रोक कर बालिश्तिये को बताया कि ठंड से उसके हाथ सुन्न पड़ रहे थे, इसलिए उन्हीं को गर्म करने के लिए वह बार-बार मुँह से फूँक मारता था।
लकड़हारे की फूंक और बालिश्तिये का अनुमान
दोपहर का वक्त आया तो लकड़हारे को खाना पकाने की फ़िक्र हुई, इधर-उधर से दो पत्थर उठाकर उसने एक चूल्हा तैयार किया। आग सुलगा कर चूल्हे पर आलू रख दिए लकड़ी गीली होने के कारण आग बार-बार ठंडी होने लगती तब लकड़हारा मुँह से फूँक मार कर आग को तेज़ कर देता। बालिश्तिये दूर से यह सब देख रहा था, बालिश्तये ने अपने जी में कहा ज़रूर इसके मुँह से आग निकलती होगी। तभी हाथ सेंकने और चूल्हे की आग तेज़ करने में मुँह से फूँक मारता है।
उसी से ठंडा उसी से गर्म
थोड़ी देर के बाद ही लकड़हारे को भूख ज़्यादा लगने लगी थी। इसलिए लकड़हारे ने एक सिका हुआ आलू चूल्हे से उठाया। बालिश्तिये दूर से यह सब देख रहा था। लकड़हारा आलू खाना चाहता था, पर आलू आग की तरह गर्म था इसलिए लकड़हारे ने आलू को ठंडा करने के लिए फिर से मुँह से फूँक मारने लगा। थोड़ी ही देर में ‘फू-फू’ करते हुए लकड़हारे ने आलू मुँह में रखते हुए गपगप खाने लगा। अब तो बालिश्तिये की हैरानी का ठिकाना न रहा। उसने फिर लकड़हारे से पूछा “तुमने सुबह मुझसे कहा था, कि मुँह से फूँककर अपने हाथों को गर्माता हूँ, अब इस आलू को फूँक मार कर और गर्माने का क्या फ़ायदा है जो पहले से ही गर्म था। तब लकड़हारे ने बालिश्तिये को बताया कि मियाँ आलू बहुत गर्म था और मैं फूँक से उसे ठंडा कर रहा था।
बालिश्तिये का डर
मगर यह सुन कर बालिश्तिये का मुँह डर के मारे पीला पड़ गया। डर से काँपते हुए उसके पैर पीछे हटते चले गए और काफ़ी दूर हो जाने के बाद बालिश्तिये ने कहा “अरे यह न जाने क्या बला है, कोई भूत है या जिन्न उसी से ठंडा उसी से गर्म” यह बात उसकी अकल में नहीं आ रही थी। सच बात यह थी कि यह बात बालिश्तिये की नन्ही-सी खोपड़ी में आने वाली थी भी नहीं।