एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 9 भारतीय राजनीति: नए बदलाव

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9 भारतीय राजनीति: नए बदलाव भाग 2 पाठ 9 के अभ्यास में दिए गए प्रश्नों के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए मुफ्त यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। पाठ के प्रश्न उत्तरों के साथ साथ, अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी पीडीएफ प्रारूप में दिए गए हैं। तिवारी अकादमी पर उपलब्ध पठन सामग्री विद्यार्थियों के प्रयोग के लिए मुफ्त है।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 9 एनसीईआरटी समाधान

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उन्नी-मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप उन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें:

(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इंदिरा गाँधी की हत्या
(ड.) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम

उत्तर:

(घ) इंदिरा गाँधी की हत्या
(ख) जनता दल का गठन
(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(ड) राजग सरकार का गठन
(च) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
(छ) संप्रग सरकार का गठन

निम्नलिखित में मेल करें:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) सर्वानुमति की राजनीतिi शाहबानो मामला
(ख) जाति आधारित दलii अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्यायiii गठबंधन सरकार
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकतiv आर्थिक नीतियों पर सहमति

उत्तर:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) सर्वानुमति की राजनीतिiv आर्थिक नीतियों पर सहमति
(ख) जाति आधारित दलii अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्यायi शाहबानो मामला
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकतiii गठबंधन सरकार

1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?

1989 की बाद की अवधि को कभी-कभार के पतन और भाजपा के अभ्युदय की भी अवधि कहा जाता है। यदि आप इस दौर की राजनीति के जटिल चरित्र को समझना चाहते हैं, तो आपको कांग्रेस और भाजपा की चुनावी हार-जीत की तुलना करनी पड़ेगी। 1989 में हुए चुनावों में कांग्रेस की हार हुई। 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के कारण कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व बदल गया। राजीव गाँधी की हत्या लिट्टे से जुड़ी एक श्रीलंकाई तमिल द्वारा की गयी थी, जब वे तमिलनाडु में चुनाव प्रसार करने गए थे। 1990 में नई राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने मंडल आयोग की एक सिफारिश को लागू करने के बाद कहा कि केंद्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाना चाहिए। कई घटनाओं ने दिसंबर 1992 में आयोध्या में विवादित ढाँचे को ध्वस्त कर दिया। इस घटना के बाद धर्म निरपेक्षता पर बहस तेज हो गई।

“गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।’ इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन से तर्क देंगे?

पक्ष में तर्क:
वर्तमान राजनीति में गठबंधन का दौर चल रहा है। गठबंधन का कोई नैतिक आधार नहीं होता है, बल्कि इनका लक्ष्य सत्ता प्राप्ति होता है। इसकी शुरूआत 1989 के बाद देखी जा सकती है। 1989 के चुनाव में जनता दल ने मार्क्सवादी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया। 1977 में जब जनता दल बना था तो उनमें अधिकाश विपक्ष दल जिसमें भारतीय जनसंघ, तेलगू देशम, समाजवादी पार्टी अकाली दल भारतीय क्रांति दल आदि शामिल हो गए। अटल बिहार बाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार लगभग 6 वर्षों तक चली लेकिन उसे जहाँ एक ओर अकालियों ने तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस, जनता दल आदि ने समर्थन दिया। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें निर्दलीय तथा लघु क्षेत्रीय दलों से सहयोग लेती है। अतः यह कहना उचित होगा कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी शत्रु नहीं होता है।

आपातकाल के बाद के दौर में भजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास-क्रम का उल्लेख करें।

जनता पार्टी 1977 में पहली विपक्ष पार्टी बनी। बाद में 1980 में भारतीय जनसंघ को समाप्त किया गया तथा भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया तथा अटल बिहारी बाजपेयी इसके संस्थापक बने। 1986 के करीब दो घटनाक्रमों ने भाजपा की केंद्रीय राजनीति को बदला। पहला, शाहबानो मामला तथा दूसरा, फरवरी 1986 का फैजाबाद जिला अदालत का आदेश। अदालत ने आदेश दिया कि बाबरी मस्जिद परिसर को खोल दिया जाए ताकि हिंदू उस स्थान पर प्रार्थना कर सकें जिसे वे मंदिर के रूप में मानते हैं। 1991 एवं 1996 के चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति को मजबूत किया। 1996 के चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई। भाजपा एक गठबंधन के रूप में 1998 से जून 1999 तक सत्ता में रही। इसके बाद 1999 अक्टूबर में इस गठबंधन ने दोबारा सत्ता प्राप्त की। राजग की इन दोनों सरकारों में अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 1990 के दशक में गठबंधन को दो भागों में बाँटा: भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन। अतः यह सत्य है कि आपातकाल के बाद भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी।

कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

हम इस कथन से सहमत हैं। पक्ष में तर्क: कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है क्योंकि अभी भी कुछ राज्यों में कांग्रेस की सत्ता कायम है। 1975 से 1977 तक आपातकाल की स्थिति रही लेकिन कांग्रेस को सफलता मिली। 1989 से 1991 तक फिर कांग्रेस सबसे बड़ी विरोधी दल रही। 1991 के मध्यावधि चुनाव में फिर से कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। 1996 में वामपंथियों ने गैर- कांग्रेसी सरकार का समर्थन किया क्योंकि कांग्रेस और वाम दोनों ही भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहते थे। 2004 से यू.पी.ए. सरकार का नेतृत्व कांग्रेस ही कर रही थी। जुलाई 2007 तथा 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी कांगेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अतः यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस का प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है लेकिन अभी भी देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर कायम है।

अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोंकतंत्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले तीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।

भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। कई विचारक मानते हैं कि बहुदलीय व्यवस्था लोकतंत्र में बाधा उत्पन्न कर सकती है इसलिए भारत में दो दलीय व्यवस्था जरूरी है। लेकिन विगत वर्षों के अनुभव से यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय व्यवस्था भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति के लिए लाभदायक है। बहुदलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीति में सभी वर्गों को प्रतिधित्व करने का अवसर प्राप्त होता है। मतदाताओं को वोट देने के लिए अधिक स्वतंत्रता मिलती है। बहुदलीय होने के कारण राष्ट्र दो गुटों में सिमट कर नहीं रह जाता। बहुदलीय व्यवस्था के अंतर्गत प्रांतीय दल तथा राष्ट्रीय दल का भेद अब लगातार कम होता जा रहा है। अनेक राजनीतिक दल राजनीतिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के कार्य भी करते हैं।

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस–प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया, बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न लोगों के हितों की समाई करने की क्षमता पर भी सवाल उठे। राजव्यवस्था के सामने महत्वपूर्ण काम एक ऐसे दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न पक्षों के हितों को मुखर और एकजुट करें…..
-जोया हसन
(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न पक्षों के हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है?
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौति पेश की?

उत्तर:

(क) दलगत व्यवस्था की चुनौतियाँ:
• पिछड़े वर्गों की राजनीति को उभारना।
• गठबंधन की राजनीति
• अवसरवादिता
• क्षेत्रीय दलों का बढ़ता हुआ प्रभाव
• दल-बदल की प्रकृति
(ख) विभिन्न हितों में समाहार एवं एकजुटता होना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे राष्ट्र की अखंडता, राष्ट्रीय एकता बनी रहती है तथा राष्ट्र का विकास हो पाता है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 9
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