एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन भाग 1 पाठ 8 के प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त करें। पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर तथा पठन सामग्री भी विद्यार्थी यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं। विडियो की मदद से भी छात्र पूरे पाठ को आसानी से समझकर परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। पीडीएफ तथा विडियो दोनों की सरल भाषा में तैयार किए गए हैं।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 एनसीईआरटी समाधान

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एनसीईआरटी कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 प्रश्न उत्तर

Q1

पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है? निम्नलिखि में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।

[A]. विकसित देश प्रकृति की को लेकर चिंतित है।
[B]. पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।
[C]. मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।
[D]. इनमें से कोई नहीं
Q2

निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगायें। ये कथन पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बारे में हैं:

[A]. (क) इसमें 170 देशों, हजारों एनजीओ और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।
[B]. (ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वाधान में हुआ।
[C]. (ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया।
[D]. (घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।
Q3

‘विश्व की साझी विरासत’ के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

[A]. धरती का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।
[B]. विश्व की साझी विरासत’ किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
[C]. “विश्व की साझी विरासत’ के प्रबंधन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच मतभेद हैं।
[D]. उत्तरी गोलार्ध के देश और दक्षिण के देश ‘विश्व की साझी विरासत’ को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।

रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए?

वर्ष 1992 में रियो डी जेनिरियो (ब्राजील) में प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन के पश्चात् जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ जिस पर 150 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। रियो-सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए। इसमें ‘एजेंडा-21’ के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए। सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि पर्यावरण को हानि न पहुँचे। इसे ‘टिकाऊ विकास’ का तरीका कहा गया। रियो-शिखर सम्मेलन ने पर्यावरण की वैश्विक राजनीति में ‘विश्व की साझी विरासत’ जैसे विभिन्न विवादास्पद मुद्दों को विकसित किया।

‘विश्व की साझी विरासत’ का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?

‘विश्व की साझी विरासत’ का अर्थ होता है ऐसी संपदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो । अर्थात् जो किसी एक देश के क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आते बल्कि इसका प्रबंधन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा साझे तौर पर किया जाता है। जैसे पृथ्वी का वातावरण, अंटार्कटिक महासागर और बाहरी अंतरिक्ष। इसके लिए कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं जैसे मॉन्ट्रियाल प्राटोकॉल (1987) तथा अंटार्कटिका संधि (1959) आदि। वर्ष 1980 में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छिद्र देखा गया जो कि चिंतित करने वाला विषय है। वैश्विक संपदा की सुरक्षा के मामले पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बना पाना बहुत कठिन है।

‘साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते है?

पर्यावरण को लेकर उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के रवैये में अंतर है। उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मामले पर उसी रूप में विचार-विमर्ष करना चाहते हैं जिस परिस्थिति में आज पर्यावरण उपस्थित है। दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को हानि ज्यादातर विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंची है। वर्ष 1992 में रियो डी जेनिरियो (ब्राजील) में प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन के पश्चात् जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ जिस पर 150 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इस पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ का सिद्धांत कहा गया।

रियो घोषणापत्र का कहना है कि- “धरती के पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता और गुणवत्ता की बहाली, सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए विभिन्न देश विश्व-बंधुत्व की भावना से आपस में सहयोग करेंगे। पर्यावरण के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राज्यों की ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ होंगी। विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इन देशों के पास विपुल प्रौद्योगिक एवं वित्तीय संसाधन हैं। इसे देखते हुए टिकाऊ विकास के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास में विकसित देश अपनी खास जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।”

वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?

वर्ष 1990 के दशक से ही वैश्विक पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दे देशों की प्राथमिक चिंता का विषय निम्नलिखित कारणों से बन गए हैं जैव विविधता के क्षरण का मुख्य कारण वनों की कटाई है। इसी कारण प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन का खतरा पैदा हो गया है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या विश्वव्यापी समस्या बन गई है। जिसका मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसें हैं।
जैव विविधता के ह्रास के मुख्य कारण निम्न हैं:
1. आवासीय क्षति एवं विखंडन
2. अति दोहन
3. विक्षेभ एवं प्रदूषण
4. जलवायु परिवर्तन
5. स्थानांतरीय कृषि

प्राकृतिक आपदा वर्ष 1992 में रियो डी जेनिरो (ब्राजील) में प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन के पश्चात् जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ जिस पर 150 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल जापान के शहर क्योटो में UNFCCC का तीसरा सम्मेलन हुआ। इसमें ग्रीनहाउस उत्सर्जन के लिए लक्ष्य भी तय किए। उपरोक्त कारणों एवं शिखर सम्मेलनों ने विश्व स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों को विभिन्न तरीकों से उठाया। वर्तमान समय में ये सभी मुद्दे पूरे विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकर की नीति अपनाएं। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।

पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देशों को सुलह और सहकर की नीति अपनानी चाहिए। क्योंकि पर्यावरण संकट विश्वव्यापी समस्या हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रश्न पर उत्तरी गोलार्ध के देश अर्थात् विकसित देश, दक्षिणी गोलार्ध के देशों यानी विकासशील देशों का साथी बनाना चाहते हैं। वर्ष 1992 में केम्ब्रिज (लंदन) में बर्ड लाइफ इंटरनेशनल नामक संगठन की स्थापना हुई जो पक्षियों और उनके आवासों तथा वैश्विक जैव विविधता के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है। जून 2005 में जी- 8 देशों की बैठक हुई। अतः विश्व के विभिन्न देशों ने सुलह तथा सहकर की नीति अपनाई है।

विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौति वैश्विक पर्यावरण को आगे और कोई नुकसान पहुंचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हासिल हो सकता है? कुछ उदाहरणों के साथ समझायें।

वर्तमान समय में पूरे विश्व के समक्ष वैश्विक पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण चुनौति हैं। पर्यावरण हानि की चुनौतियों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रयास किए गए हैं वे बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व में पर्यावरण आंदोलन सबसे ज्यादा शक्तिशाली सामाजिक आंदोलनों में देखे गए हैं। इन आंदोलनों से नए विचार निकलते हैं। उदाहरण के लिए दक्षिणी देशों – इंडोनेशिया, चिली, मैक्सिको, ब्राजील, मलेशिया, अफ्रीका तथा भारत के वन आंदोलनों पर बहुत दबाव है। फिलीपिंस में कई समूहों और संगठनों ने एक साथ मिलकर एक ऑस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘वेस्टर्न माइनिंग कारपोरेशन’ के खिलाफ अभियान चलाया। इस कंपनी का विरोध खुद इसके स्वदेश यानी ऑस्ट्रेलिया में हुआ। ऑस्ट्रेलिया में इस कपंनी का विरोध ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बुनियादी अधिकारों की पैरोकारी के कारण भी किया जा रहा है। 1980 के दशक में शुरूआती और मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का पहला बाँध–विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चला।

• जून 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए आर्थिक विकास के उपायों पर विचार किया गया।
• जापान के शहर क्योटो में 1997 में UNFCCC का तीसरा सम्मेलन हुआ। संयुक्त क्रियान्वयन एवं स्वच्छ विकास तंत्र इसके उद्देश्य थे। इस प्रोटोकॉल ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए और उद्योगों के विकास के लिए औद्योगिक देशों से ग्रीनहाउस उत्सर्जन में कटौती की।
अतः ऐसे कई तरीके हैं जिनसे पर्यावरण को हानि पहुँचाए बिना भी आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

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