एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 1 शीतयुद्ध का दौर

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 1 शीतयुद्ध का दौर भाग 1 पाठ 1 अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त करें। सभी प्रश्न उत्तर हिंदी और अंग्रेजी माध्यम में दिए गए हैं। पश्नों के उत्तर सरल रूप में विस्तार से समझकर लिखे गए हैं ताकि विद्यार्थियों को इसे समझने में कोई दिक्कत न हो। कक्षा 12 राजनीति विज्ञान पाठ 1 को विडियो के माध्यम से भी समझाया गया है।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 1 एनसीईआरटी समाधान

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एनसीईआरटी कक्षा 12 राजनीतिक विज्ञान प्रश्न-उत्तर

Q1

शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है:

[A]. यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी?
[B]. यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
[C]. शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
[D]. अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
Q2

निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों को नहीं दर्शाता है:

[A]. उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीतियों को अपनाने में समर्थ बनाना।
[B]. किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने से इंकार करना।
[C]. वैश्विक मामलों में ‘तटस्थता’ की नीति का अपनाना।
[D]. वैश्विक आर्थिक विषमताओं की समाप्ति पर ध्यान केंद्रित करना।

नीचे महाशक्तियों के द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएं।

(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू–क्षेत्रों में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों ही स्तरों पर महाशक्तियों का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।

उत्तर:
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू–क्षेत्रों में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था। (सही)
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों ही स्तरों पर महाशक्तियों का समर्थन करना था। (सही)
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था। (सही)
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं। (गलत)

निम्नलिखित देशों की सूची में प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था? (क) पोलैंड (ख) फ्रांस (ग) जापान (घ) नाइजीरिया (ड.) उत्तरी कोरिया (च) श्रीलंका

(क) पोलैंड (साम्यवादी गुट, सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस (पूँजीवादी गुट, संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान (पूँजीवादी गुट, संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया (गुट निरपेक्ष)
(ड) उत्तरी कोरिया (साम्यवादी गुट)
(च) श्रीलंका (गुट निरपेक्ष)

शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण – ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?

शीतयुद्ध से हथियारों की दौड़ एवं हथियारों पर नियंत्रण दोनों ही प्रक्रियाओं ने जन्म लिया। शीतयुद्ध में हथियारों की दौड़ का मुख्य कारण अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वारा अपने आप को दूसरे से अधिक शक्तिशाली बनाना था। दोनों ही गुट अपने-अपने हथियारों के भंडार बढ़ाने लगे परिणामस्वरूप विश्व में हथियारों की दौड़ शुरू हो गई। हथियारों की होड़ के साथ ही हथियारों पर नियंत्रण की प्रक्रिया भी चल रही थी जिसका मुख्य कारण था एक महाशक्ति बनने और दोनों गुट यह सोचते थे कि यदि दोनों गुटों में युद्ध हुआ तो दोनों ही गुटों को अत्यधिक हानि का सामना करना होगा तथा दोनों ही गुटों में से कोई विजेता नहीं बनेगा। इसी कारण शीतयुद्ध के दौरान हथियारों पर नियंत्रण भी पैदा हुआ।

महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थी? तीन कारण बताइए।

 दोनों महाशक्तियाँ अमेरिका तथा सोवियत संघ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन करके अपना स्वार्थ साधना चाहती थीं।
 अमेरिका तथा सोवियत संघ छोटे देशों को अपने हथियार बेचती थी, उनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे स्थापित कर लेते थे तथा सैन्य गतिविधियों का संचालन करते थे।
 गुटों में शामिल देशों की विचारधारा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध भी जीत रहीं थीं।

कभी-कभी यह कहा जाता है कि शीत युद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए एक संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।

इस कथन से पूरी तरह सहमत नहीं हो सकते हैं क्योंकि स्पष्ट रूप से दोनों ही गुटों में विचारधारा का तीव्र प्रभाव था। विश्व के साम्यवादी विचारधारा वाले, सोवियत संघ के गुट में शामिल हुए और पश्चिमी देश जो कि पूँजीवादी विचारधारा के थे, वे अमेरिका के गुट में शामिल हो गए। सन् 1941 में सोवियत संघ के विघटन के बाद ही शीतयुद्ध की समाप्ति हो गई।

शीत युद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?

शीतयुद्ध ने अलग-अलग रूपों में विश्व राजनीति को प्रभावित किया। भारत दोनों महाशक्तियों का हिस्सा नहीं था। भारत ने नवस्वतंत्रता प्राप्त देशों का किसी भी गुट में जाने का विरोध किया। भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपनाई। भारत और अमेरिका में अधिक मैत्रीपूर्ण संबंध कभी नहीं रहे। भारत के सोवियत संघ के साथ आरंभ में संबंध तनावपूर्ण जरूर थे परंतु भारत की गुट निरपेक्षता की नीति स्पष्ट होते ही दोनों देश एक-दूसरे के समीप आते गए। 9 अगस्त 1971 को भारत और सोवियत संघ के बीच शांति, मैत्री और सहयोग की संधि हुई।

गुट-निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीत युद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?

जिस समय शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब गुट–निरपेक्ष आंदोलन के विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में काफी मदद की। शीतयुद्ध के कारण विश्व दो गुटों में बँट गया। नए स्वतंत्र देश अपने विकास तथा प्रगति पर वैचारिक नियंत्रण नहीं चाहते थे और न ही वे कोई आर्थिक नियंत्रण चाहते थे। इसलिए गुट-निरपेक्ष आंदोलन तीसरे विश्व के देशों के लिए लाभदायक
था।

गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।

“गुट निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है” यह कथन सत्य नहीं है क्योंकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन आज भी प्रासंगिक है। यह निम्नलिखित कारणों से आज भी प्रासंगिक है। आज की परिस्थितियों में गुटनिरपेक्षता के अनुयायी देश संगठित होकर एक ध्रुवीय वैश्विक चुनौतियों से सामना करने में सक्षम है। गुटनिरपेक्षता की नीति सदस्य देशों को सुरक्षा देने के साथ ही विश्व निःशस्त्रीकरण की जरूरत पर भी बल देती है। अतः वर्तमान में ही नहीं बल्कि भविष्य में भी इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।

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