एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ पुनर्स्थापना

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 5 कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना भाग 2 पाठ 5 के सभी प्रश्नों के उत्तर सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड दोनों के छात्र इनका लाभ उठा सकते हैं। इसे सरल भाषा में विशेषज्ञ अध्यापकों द्वारा तैयार किया गया है। पूरे पाठ को विडियो के माध्यम से भी समझाया गया है।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 5 एनसीईआरटी समाधान

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1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:

(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केंद्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।

उत्तर:

(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।

निम्नलिखित का मेल करें:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) सिंडिकेटi) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदलii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नाराiii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।

उत्तर:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) सिंडिकेटiv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदलi) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नाराii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

निम्नलिखित नारों से किन नेताओं का संबंध है:

(क) जय जवान जय किसान
(ख) इंदिरा हटाओ!
(ग) गरीबी हटओ!

उत्तर:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) जय जवान जय किसानलाल बहादुर शास्त्री
(ख) इंदिरा हटाओ!ग्रैंड अलायंस
(ग) गरीबी हटओ!इंदिरा गाँधी

1971 के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौन-सा कथन ठीक है?

(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर – कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।

उत्तर:

इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर – कांग्रेसी दलों ने किया था।

किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फ़ायदों और घाटों को लिखिए। (क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना। (ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना। (ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान करना। (घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुशंसा नेताओं से सलाह करना।

(क) पार्टी के अध्यक्ष की सलाह अथवा आदेश महत्वपूर्ण होता है क्योंकि पार्टी अध्यक्ष का पद बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। पार्टी में अनुशासन बना रहेगा। पार्टी अध्यक्ष का एक नुकसान यह भी है कि कभी-कभी पार्टी में अध्यक्ष या बड़े नेताओं की मनमर्जी बढ़ेगी। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कमजोर होगा।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल लाभदायक होता है। मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से लाभ यह होता है कि सभी सदस्यों की राय पता चलेगी लेकिन बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की सही बात की अवहेलना की संभावना बनी रहती है।

(ग) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया से हर सदस्य अपनी बात अच्छे से सामने रख सकेगा। गुप्त मतदान ही ज्यादा प्राकृतिक माना जाता है। गुप्त मतदान से हर सदस्य स्वतंत्रतापूर्वक अपना निर्णय ले सकता है।
(घ) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ तथा अनुभवी नेताओं की सलाह लेना लाभदायक होता है क्योंकि उनके पास अनुभव होता है।

निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए: (क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव। (ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट। (ग) क्षेत्रीय, जातीय और संप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना। (घ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद

(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता के अभाव को कांग्रेस की हार का कारण नहीं माना जा सकता है क्योंकि कांग्रेस में बहुत से ऐसे नेता भी थे जो वरिष्ठ तथा अनुभवी थे।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण था। कांग्रेस दो गुटों में विभाजित होती जा रही थी। एक गुट पूँजीवाद को महत्व देता था तो दूसरा गुट समाजवाद तथा राष्ट्रीयकरण तथा देशी राजाओं विरोधी नीतियों की खुले तौर पर आलोचना करता था।
(ग) 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी.एम.के. जैसे दलों के उदय से अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक लामबंदी को बढ़ावा मिलने के कारण कांग्रेस को भारी धक्का लगा।
(घ) कई लोगों का यह मानना है कि 1967 में हुए चुनाव कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद का कारण हो सकता है।

1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?

1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार निम्न कारणों से लोकप्रिय हुई
• 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार अत्यंत लोकप्रिय थी। इंदिरा गाँधी ने प्रिवी पर्स को 1971 के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया और इस मुद्दे पर उन्हें जन समर्थन मिला। 1971 में मिली भारी जीत के बाद संविधान में संशोधन हुआ और इस तरह प्रिवी पर्स की समाप्ति की राह में मौजूद कानूनी अड़चनें खत्म हो गई। 14 बैंकों को सरकारी सम्पत्ति बनाया। 1971 में भारत तथा पाकिस्तान का युद्ध बांगलादेश को लेकर हुआ जिसमें भारत की जीत हुई। इन घटनाओं से इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं ने भी उनके राज्य कौशल की प्रशंसा की।

• 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली।
1970 के दशक से पूर्व हरित क्रांति व श्वेत क्रांति जैसे कार्यक्रम कराए गए। 1967, 1971, 1980 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को अपने नेतृत्व में विजयी बनाया ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। 1971 के युद्ध में जीत का श्रेय और प्रिवी पर्स की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण आण्विक-परीक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण के कदम उठाये।

1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में ‘सिंडिकेट’ ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?

‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। ‘सिंडिकेट’ ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसी ने इंदिरा गाँधी का कांग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप में चुना जाना सुनिश्चित किया था। सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी। कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। सिंडिकेट के अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। लाल बहादुर शास्त्री और उसके बाद इंदिरा गाँधी के पहले मंत्रिपरिषद् में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही। इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस के विभाजित होने के बाद सिंडिकेट के नेताओं और उनके प्रति निष्ठावान कांग्रेसी (ओ) में ही रहे। सिंडीकेट में मद्रास के के. कामराज, मुंबई के एस. के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आंध्रप्रदेश के एन. संजीव रेड्डी, पं. बंगाल के अतुल्य घोष तथा बिहार के के. बी. सहाय जैसे दिग्गज नेता शामिल थे।

कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई?

1967 के चुनावों के बाद केंद्र में कांग्रेस की सत्ता कायम रही, लेकिन उससे पहले जितना बहुमत हासिल नहीं था। साथ ही अनेक राज्यों में इस पार्टी के हाथ से सत्ता जाती रही। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया था कि कांग्रेस को चुनावों में हराया जा सकता है। सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण उस साल राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद उस साल सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवाने में सफलता पाई। एन. संजीव रेड्डी से इंदिरा गाँधी की बहुत दिनों से राजनीतिक अनबन चली आ रही थी। ऐसे में इंदिरा गाँधी ने भी हार नहीं मानी। उन्होंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें। इंदिरा गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी ‘प्रिवी पर्स’ को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की। उस वक्त मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे।

गुजरे वक्त में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग ही था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में ताकत को आज़मा ही लिया जाए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने ‘व्हिप’ जारी किया कि सभी ‘कांग्रेसी सांसद और विधायक पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजीव रेड्डी को वोट डाले।’ इंदिरा गाँधी के समर्थक गफट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष बैठक आयोजित करने की याचना की, लेकिन उनकी यह याचना स्वीकार नहीं की गई। वी.वी. गिरि का छुपे तौर पर समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने खुलेआम अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने को कहा। अंततः राष्ट्रपति चुनाव में वी.वी. गिरि ही विजयी हुए। वे स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जबकि एन. संजीव रेड्डी कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार थे।
कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। ‘पुरानी कांग्रेस तथा ‘नयी कांग्रेस’ दो दल बन गए। इंदिरा गाँधी ने पार्टी की इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में पेश किया।

निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

हार का इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरूआती दशकों में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति में राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं – 1970 के दशक के शुरूआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
– सुदीप्त कविराज
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अंतर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?

उत्तर:

(क) इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरूआती दशकों में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी।
(ख) सत्तर के दशक में कांग्रेस पार्टी मर गई लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि इंदिरा गांधी के समय पार्टी संगठन को महत्व नहीं दिया जाता था। सत्तर के दशक में वोट, सत्ता का संघर्ष, गुटबाजी थी। सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आंदोलनों का जोश कम हो रहा था।
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों के लिए फायदेमंद ही रहा। कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। कांग्रेस पार्टी से अनेक सम्प्रदायों के समूह दूर होते गए और वे जनता पार्टी में शामिल हुए। उन्होंने गैर कांग्रेसी संगठन बनाए। जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति को समर्थन दिया गया। कांग्रेस में सिंडिकेट के नेताओं व इंदिरा गांधी के मध्य सत्ता संघर्ष प्रारंभ हो गया जिसका परिणाम 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में देखा गया। 1971 में कांग्रेस के विरोध में मुख्य विरोधी दलों ने एक बड़ा एंटी कांग्रेस अलाइंस बनाया।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 5 कांग्रेस प्रणाली
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