एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 4 भारत के विदेश संबंध

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 4 भारत के विदेश संबंध भाग 2 पाठ 4 के प्रश्न उत्तर और अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर सत्र 2023-24 के लिए यहाँ से मुफ्त प्राप्त किए जा सकते हैं। ये समाधान सीबीएसई तथा राजकीय दोनों बोर्ड के लिए महत्वपूर्ण हैं। सभी प्रश्न उत्तर नवीनतम एनसीईआरटी पुस्तक पर आधारित हैं और सरल शब्दों में इन्हें बनाया गया है। पाठ का विस्तृत विवरण विडियो के द्वारा भी दिया गया है।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 4 एनसीईआरटी समाधान

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इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ:

(क) गुटनिरपेक्षता को नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका, दोनों को सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक संबंधों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमरीका से भारत की निकटता का परिणाम थी।

उत्तर:

(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत

निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
(क) 1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।
(ख) पंचशील(ii) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ग) बांडुंग सम्मेलन(iii) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत
(घ) दलाई लामा(iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई।

उत्तर:

स्तम्भ 1स्तम्भ 2
1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य (ii) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ख) पंचशील(iii) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत
(ग) बांडुंग सम्मेलन(iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई।
(घ) दलाई लामा(i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।

नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में 1946 एवं 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। नेहरू जी की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे- कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे। नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक इसलिए मानते थे, क्योंकि विदेश नीति का संचालन वही देश कर सकता है, जो स्वतंत्र हो। जैसे 1947 से पहले भारत स्वयं अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं करता था, बल्कि ब्रिटिश सरकार करती थी।

“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।

विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है। यह कथन सत्य है क्योंकि प्रत्येक देश राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है। पहले भारत सोवियत संघ पर निर्भर था क्योंकि सोवियत संघ ने कश्मीर के मामले में भारत की सहायता की थी। 1962 में चीन के आक्रमण के समय भारत को अपनी सुरक्षा नीति, उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों के प्रति अपनी नीति, सैनिक ढांचे के आधुनिकरण आदि के बारे में फिर से विचार करना पड़ा और अपने रक्षा खर्च में वृद्धि करनी पड़ी। भारत ने 1960 के दशक में जो विदेश नीति अपनाई इस पर चीन और पाकिस्तान के युद्ध, राजनीतिक परिस्थितियाँ तथा शीतयुद्ध का प्रभाव स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

पिछले कुछ वर्षों से भारत की विदेश नीति परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। भारत की विदेश नीति में चीन और पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है, उसमें बदलाव की आवश्यकता है, क्योंकि उसमें उस तरह के परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं जैसे कि मिलने चाहिए। भारत की विदेश नीति के दो पहलुओं को बरकरार रखने की बात है, तो पहला – गुटनिरपेक्षता के अस्तित्व को बनाए रखना चाहिए। दूसरा – भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को प्रोत्साहन मिलता है।

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए: (क) भारत की परमाणु नीति (ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति

(क) भारत की परमाणु नीति:
भारत ने 1974 के मई में परमाणु परीक्षण किया। तेज गति से आधुनिक भारत के निर्माण के लिए नेहरू ने हमेशा विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर अपना विश्वास जताया था। नेहरू की औद्योगीकरण की नीति का एक महत्वपूर्ण घटक परमाणु कार्यक्रम था। इसकी शुरूआत 1940 के दशक के अंतिम सालों में होमी जहाँगीर भाभा के निर्देशन में हो चुकी थी। भारत शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल के लिए परमाणु ऊर्जा बनाना चाहता था। नेहरू परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। उन्होंने महाशक्तियों पर व्यापक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए जोर दिया। बहरहाल, परमाणु आयुधों में बढ़ोत्तरी होती रही। साम्यवादी शासन वाले चीन ने 1964 के अक्टूबर में परमाणु परीक्षण किया। अणुशक्ति-सम्पन्न बिरादरी यानी संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने, जो संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य भी थे, दुनिया के अन्य देशों पर 1968 की परमाणु अप्रसार संधि को थोपना चाहा। भारत हमेशा से इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता आया था। भारत ने इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो इसे उसने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का कहना था कि वह अणुशक्ति को सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल करने की अपनी नीति के प्रति दृढ़ संकल्प है।

(ख) विदेश नीति के मामलों में सर्व-सम्मति आवश्यक है क्योंकि यदि सर्व-सम्मति नहीं रहेगी तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष प्रभावशाली तरीके से नहीं रख पायेंगे। भारत की विदेश नीति की विशेषताएँ जैसे- गुट–निरपेक्षता, साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण संबंध बनाना तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बढ़ावा आदि पर हमेशा सर्व-सम्मति रही है।

भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ। लेकिन, 1962-1971 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे ? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।

1962- 1971 तक भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े जिसमें कुछ हद तक भारत की विदेश नीति की असफलता भी मानी जाती है तथा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम थीं। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी विदेश नीति के अंतर्गत सभी पड़ोसी देशों पर विश्वास जताया परंतु चीन एवं पाकिस्तान ने उस विश्वास को तोड़ा। इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों जैसे शीतयुद्ध ने पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।

क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर को महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।

भारत की विदेश नीति का संचालन इस प्रकार से किया गया है कि भारत विश्व में महाशक्ति बनकर उभरे। बांग्लादेश के निर्माण के लिए पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण नीतियाँ थी। भारत हमेशा से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीतियों में विश्वास करता आया है। भारत ने बांग्लादेश युद्ध के समय भी पाकिस्तान को हराया परंतु उनके सैनिकों को सम्मान के साथ रिहा कर दिया। पाकिस्तान की भेदभावपूर्ण नीतियाँ और उपेक्षित व्यवहार के कारण ही पूर्वी पाकिस्तान की जनता विद्रोह कर बैठी और इसने युद्ध का रूप ले लिया। भारत ने इसे अपना नैतिक समर्थन दिया।

किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है?

राजनीतिक नेतृत्व की विचारधारा के आधार पर ही देश की विदेश नीति का निर्माण होता है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति की संरचना को डाला। पं. जवाहरलाल नेहरू के विचारों से विदेशी नीति प्रभावित हुई। पं. जवाहरलाल नेहरू उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के विरोधी थे वे इन समस्याओं को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण मार्ग का ही समर्थन करते थे।

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है। अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना। इसका अर्थ होता है चीजों को यथासंभव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना। अगर कभी इसकी जरूरत पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतंत्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना।
– जवाहलाल नेहरू
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की संधि में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य-गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?

उत्तर:- (क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि सैन्य गुट में सम्मिलित होकर एक देश स्वतंत्र नीति का निर्माण नहीं कर सकता। (ख) भारत-सोवियत मैत्री की संधि में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ क्योंकि भारत, सोवियत संघ की तरफ झुक गया जिसका उल्लेख चीन, पाकिस्तान और भारत के विरोधी राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर करते हैं। (ग) 1990 के बाद ही गुटनिरपेक्षता के अस्तित्व के औचित्य को लेकर सवाल खड़े हुए, इससे पहले नहीं। सैन्य गुट ही गुट निरपेक्षता की नीति के जन्मदाता हैं।

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि सैन्य गुट में सम्मिलित होकर एक देश स्वतंत्र नीति का निर्माण नहीं कर सकता।
(ख) भारत-सोवियत मैत्री की संधि में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ क्योंकि भारत, सोवियत संघ की तरफ झुक गया जिसका उल्लेख चीन, पाकिस्तान और भारत के विरोधी राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर करते हैं।
(ग) 1990 के बाद ही गुटनिरपेक्षता के अस्तित्व के औचित्य को लेकर सवाल खड़े हुए, इससे पहले नहीं। सैन्य गुट ही गुट निरपेक्षता की नीति के जन्मदाता हैं।

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