एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन के सभी प्रश्नों के उत्तर हिंदी और अंग्रेजी मीडियम में सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के छात्र यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 11वीं जीव विज्ञान में पाठ 16 को परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए यहाँ दिए गए एमसीक्यू प्रश्न उत्तर का अभ्यास अवश्य करें।

मानव उत्सर्जन तंत्र

मनुष्यों में उत्सर्जी तंत्र एक जोड़ी वृक्क, एक जोड़ी मूत्र नलिका, एक मूत्रशय और एक मूत्र मार्ग का बना होता है। वृक्क सेम के बीज की आकृति के गहरे भूरे लाल रंग के होते हैं तथा ये अंतिम वक्षीय और तीसरी कटि कशेरुका के समीप उदर गुहा में आंतरिक पृष्ठ सतह पर स्थित होते हैं। उत्सर्जन तंत्र शरीर के तरल अपशिष्टों को एकत्र करता है और उन्हें बाहर निकालने में मदद करता है।

कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 के बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर

Q1

निम्नलिखित पदार्थ प्राणियों के उत्सर्जी उत्पाद हैं। इनमें से सबसे कम अविषालु पदार्थ चुनिए।

[A]. यूरिया
[B]. यूरिक अम्ल
[C]. अमोनिया
[D]. कार्बन डाई-ऑक्साइड
Q2

निम्नलिखित में से किसमें रुधिर का निस्यंदन होता है?

[A]. PCT
[B]. DCT
[C]. संग्राही वाहिनी
[D]. मैल्पीगी पिंड
Q3

निम्नलिखित में से किसी एक पदार्थ का निष्कासन हमारे शरीर में फेपफ़ड़ों द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में किया जाता है?

[A]. केवल CO₂
[B]. केवल H₂O
[C]. CO₂ और H₂O
[D]. अमोनिया
Q4

मानव मूत्र का pH लगभग कितना होता है?

[A]. 6-5
[B]. 7
[C]. 6
[D]. 7-5

मूत्र निर्माण

मूत्र निर्माण के प्रथम चरण में केशिकागुच्छ द्वारा रक्त का निस्यंदन होता है जिसे गुच्छ या गुच्छीय निस्यंदन कहते हैं। वृक्कों द्वारा प्रति मिनट औसतन 1100-1200 मिली रक्त का निस्यंदन किया जाता है जो कि हृदय द्वारा एक मिनट में निकाले गए रक्त के 1/5 वें भाग के बराबर होता है। गुच्छ की केशिकाओं का रक्त-दाब रुधिर का 3 परतों में से निस्यंदन करता है। ये तीन परते हैं गुच्छ की रक्त केशिका की आंतरिक उपकला, बोमेन संपुट की उपकला तथा इन दोनों पर्तों के बीच पाई जाने वाली आधार झिल्ली।

बोमेन संपुट की उपकला कोशिकाएं पदाणु (पोडोसाइट्स) कहलाती हैं, जो विशेष प्रकार से विन्यसित होती हैं, जिससे कुछ छोटे-छोटे अवकाश बीच में रह जाते हैं। इन्हें निस्यंदन खांच या खांच छिद्र (स्लिटपोर) कहते हैं। इन झिल्लियों से रुधिर इतनी अच्छी तरह छनता है कि जिससे रुधिर के प्लाज्मा की प्रोटीन को छोड़कर प्लाज्मा का शेषभाग छन कर संपुट की गुहा में इकट्ठा हो जाता है। इसलिए इसे परा-निस्यंदन (अल्ट्रा फिल्ट्रेशन) कहते हैं। वृक्कों द्वारा प्रति मिनट निस्यंदित की गई मात्रा गुच्छीय निस्यंदन दर कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 125 मिली प्रति मिनट अर्थात् 180 लीटर प्रति दिन है।

कक्षा 11 जीव विज्ञान पाठ 16 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

वसा-ग्रंथियों की क्या भूमिका होती है?

वसा ग्रंथियां कुछ पदार्थों जैसे स्टेरोल्स, हाइड्रोकार्बन और वैक्स को सीबम के माध्यम से खत्म कर देती हैं। यह स्राव त्वचा के लिए एक सुरक्षात्मक तैलीय आवरण प्रदान करता है।

यूरियोटेलिक जन्तुओं में इस उत्सर्जन के महत्व को समझाइए।

इस प्रकार के उत्सर्जन में जन्तु नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों को यूरिया के रूप में उत्सर्जित करते हैं। यूरिया प्रकृति में अन्य उत्सर्जी पदार्थों के अनुपात में कम हानिकारक होती है। इस प्रकार उत्सर्जन या तो जलीय जन्तुओं में या उन स्थानीय जन्तुओं में पाया जाता है, जिनको जल के संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती अर्थात् उन जन्तुओं में यह उत्सर्जन एक प्रकार से उपर्युक्त परिस्थितियों के लिए अनुकूलन है।

गुर्दे के कार्य के नियमन में रेनिन-एंजियोटेंसिन की क्या भूमिका है?

केशिकागुच्छीय रक्तचाप/प्रवाह में गिरावट के कारण सक्रियण पर जेजीए से रेनिन निकलता है। रेनिन रक्त में एंजियोटेंसिनोजेन को एंजियोटेंसिन- I और आगे एंजियोटेंसिन- II में परिवर्तित करता है। एंजियोटेंसिन-II एक शक्तिशाली वैसोकॉन्स्ट्रिक्टर होने के कारण, ग्लोमेर्युलर ब्लड प्रेशर और इस तरह जीएफआर बढ़ाता है। एंजियोटेंसिन-II भी एल्डोस्टेरोन रिलीज करने के लिए एड्रेनल कॉर्टेक्स को सक्रिय करता है। एल्डोस्टेरोन नलिका के दूरस्थ भागों से Na⁺ और पानी के पुन:अवशोषण का कारण बनता है। इससे रक्तचाप में भी वृद्धि होती है और इस प्रकार जीएफआर बढ़ जाता है। इसे आमतौर पर रेनिन-एंजियोटेंसिन तंत्र के रूप में जाना जाता है।

वृक्क क्रियाओं का नियमन

वृक्कों की क्रियाविधि का नियंत्रण और नियमन हाइपोथैलेमस के हार्मोन की पुनर्भरण क्रियाविधि, (सान्निध्य गुच्छ उपकरण), (जेजीए) और कुछ सीमा तक हृदय द्वारा होता है। शरीर में उपस्थित परासरण ग्राहियाँ रक्त आयतन/शरीर तरल आयतन और आयनी सांद्रण में बदलाव द्वारा सक्रिय होती हैं। शरीर से मूत्र द्वारा जल का अत्यधिक हृास (मूत्रलता/डाइयूरेसिस) इन ग्राहियों को सक्रिय करता है, जिससे हाइपोथैलेमस प्रतिमूत्रल हार्मोन (एंटीडाइयूरेटि हार्मोन) (एडीएच) और न्यूरोहाइपोफाइसिस को वैसोप्रेसिन के स्राव हेतु प्रेरित करता है। एडीएच नलिका के अंतिम भाग में जल के पुनरावशोषण को सुगम बनाता है और मूत्रलता को रोकता है। शरीर तरल के आयतन में वृद्धि परासण ग्रहियों को निष्क्रिय कर देती है और पुनर्भरण को पूरा करने के लिए एडीएच के स्रवण का निरोध करती है। एडीएच वृक्क के कार्यों को रक्त वाहिनियों पर सकुचनी प्रभावों द्वारा भी प्रभावित करता है। इससे रक्त दाब बढ़ जाता है। रक्तदाब बढ़ जाने से गुच्छ प्रवाह बढ़ जाता है और इससे जीएफआर बढ़ जाता है।

कक्षा 11 जीव विज्ञान पाठ 16 एमसीक्यू के उत्तर

Q5

निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?

[A]. पक्षी और स्थलीय घोंघे यूरिकअम्ल उत्सर्जी प्राणी हैं।
[B]. स्तनधारी और मेंढ़क यूरिया उत्सर्जी प्राणी हैं।
[C]. जलीय उभयचर प्राणी और जलीय कीट अमोनिया उत्सर्गी प्राणी हैं।
[D]. पक्षी और सरीसृप यूरिया उत्सर्जी प्राणी हैं।
Q6

रुधिर में यूरिया के एकत्रित हो जाने की स्थिति को कहते हैं:

[A]. रीनल कलकुलाई
[B]. युच्छशोथ
[C]. यूरेमिया
[D]. कीटोन्यूरिया
Q7

निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्रतिमूत्रक हॉर्मोन भी कहलाता है?

[A]. ऑक्सीटोसिन
[B]. वेसोप्रेसिन
[C]. ऐड्रेनलिन
[D]. कैल्सिटोनिन
Q8

अपोहन इकाई (कृत्रिम गुर्दा) में जो तरल भरा होता है वह लगभग प्लाज्मा जैसा ही होता है। इनमें अंतर केवल यह होता है कि इस तरल में:

[A]. ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है।
[B]. यूरिया की मात्रा अधिक होती है।
[C]. यूरिया नहीं होता है।
[D]. यूरिक अम्ल की मात्रा अधिक होती है।
मूत्रण

वृक्क द्वारा निर्मित मूत्र अंत में मूत्रशय में जाता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा ऐच्छिक संकेत दिए जाने तक संग्रहित रहता है। मूत्रशय में मूत्र भर जाने पर उसके फैलने के फलस्वरूप यह संकेत उत्पन्न होता है। मूत्रशय भित्ति से इन आवेगों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भेजा जाता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मूत्रशय की चिकनी पेशियों के संकुचन तथा मूत्रशयी-अवरोधिनी के शिथिलन हेतु एक प्रेरक संदेश जाता है, जिससे मूत्र का उत्सर्जन होता है। मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण कहलाती है और इसे संपन्न करने वाली तंत्रिका क्रियाविधि मूत्रण-प्रतिवर्त कहलाती है।

उत्सर्जन में अन्य अंगों की भूमिका

वृक्कों के अलावा फुप्फुस यकृत और त्वचा भी उत्सर्जी अपशिष्टों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
हमारे फेफड़े प्रतिदिन भारी मात्रा में CO₂ (लगभग 200 ml/मिनट) और जल की पर्याप्त मात्रा का निष्कासन करते हैं। हमारे शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत ‘पित्त’ का स्राव करती है जिसमें बिलिरूबिन, बिलीविरडिन, कॉलेस्ट्रॉल, निम्नीकृत स्टीरॉयड हार्मोन, विटामिन तथा औषध आदि होते हैं। इन अधिकांश पदार्थों को अंततः मल के साथ बाहर निकाल दिया जाता है।

त्वचा में उपस्थित स्वेद ग्रंथियाँ तथा तैल-ग्रंथियाँ भी स्राव द्वारा कुछ पदार्थों का निष्कासन करती हैं। स्वेद ग्रंथि द्वारा निकलने वाला पसीना एक जलीय द्रव है, जिसमें नमक, कुछ मात्रा में यूरिया, लैक्टिक अम्ल इत्यादि होते हैं। हालाकि पसीने का मुख्य कार्य वाष्पीकरण द्वारा शरीर सतह को ठंडा रखना है लेकिन यह ऊपर बताए गए कुछ पदार्थों के उत्सर्जन में भी सहायता करता है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16
कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन
कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 के हल
कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 के उत्तर हिंदी में
कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16