एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन के प्रश्नों के उत्तर हिंदी और अंग्रेजी में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 11 जीव विज्ञान में पाठ 7 के सवाल जवाब सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए संशोधित किए गए हैं।

प्राणियों में सरंचनात्मक सगंठन – प्राणि ऊतक

किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं, जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतकों का आकार एवं आकृति एक समान होती है। परन्तु कभी-कभी कुछ उतकों के आकार एवं आकृति में असमानता पाई जाती है, किन्तु उनकी उत्पत्ति एवं कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक में समान संरचना और कार्य होते हैं। इस प्रकार ऊतक भिन्न-भिन्न होते हैं और उन्हें मोटे तौर पर निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
1. उपकला ऊतक
2. संयोजी ऊतक
3. पेशी ऊतक
4. तंत्रिका ऊतक

कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 7 के बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर

Q1

बड़ी रक्त वाहिकाओं की भीतरी दीवारों के निर्माण में निम्नलिखित में से किस प्रकार की कोशिका शामिल होती है?

[A]. धनाकार उपकला
[B]. स्तंभाकार उपकला
[C]. शल्की उपकला
[D]. स्तरित उपकला
Q2

निम्नलिखित किस श्रेणी के साथ वसा ऊतक का संबंध है?

[A]. उपकलीय
[B]. संयोजी
[C]. पेशीय
[D]. तंत्रिक
Q3

निम्नलिखित में से कौन एक संयोजी ऊतक नहीं है?

[A]. अस्थि
[B]. उपास्थि
[C]. रक्त (रुधिर)
[D]. पेशी
Q4

केंचुए के शरीर में पर्याणिका एक अलग भाग होता है, यह पाया जाता है:

[A]. खंड 13-14-15
[B]. खंड 14-15-16
[C]. खंड 12-13-14
[D]. खंड 15-16-17

तंत्रिका ऊतक

तंत्रिका ऊतक मुख्य रूप से परिवर्तित अवस्थाओं के प्रति शरीर की अनुक्रियाशीला के नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होता है। तंत्रिका कोशिकाएं उत्तेजनशील कोशिकाएं हैं, जो तंत्रिका तंत्र की संचार इकाई है। तंत्रिबंध कोशिका बाकी तंत्रिका तंत्र को संरचना प्रदान करती है तथा तंत्रिका कोशिकाओं को सहारा तथा सुरक्षा देती है। हमारे शरीर में तंत्रिबध कोशिकाएं तंत्रिका ऊतक का आयतन के अनुसार आधा से ज्यादा हिस्सा बनाते हैं।

जब एक तंत्रिका कोशिका को उपयुक्त रूप से उद्दीपित किया जाता है या वह स्वयं होती है तो विभिन्न वैद्युत परिवर्तन उत्पन्न होता है, जो बहुत तेजी से कोशिका झिल्ली पर गमन करता है। तंत्रिका कोशिका जब उत्तेजित होती है तब विभव परिवर्तन तंत्रिका कोशिका के अंतिम छोर पर पहुँचता है तथा आस-पास की तंत्रिकोशिका (दमनतवद) एवं अन्य कोशिकाओं को या तो उद्दीपित करता है अथवा उन्हें उद्दीपित होने से रोकता है।

कक्षा 11 जीव विज्ञान पाठ 7 के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

त्वचीय और फुफ्फुसीय श्वसन में क्या अंतर है?

मेंढक दो अलग-अलग तरीकों से जमीन और पानी में सांस लेते हैं। पानी में, त्वचा जलीय श्वसन अंग (त्वचीय श्वसन) के रूप में कार्य करती है। पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का त्वचा के माध्यम से विसरण द्वारा आदान-प्रदान होता है। भूमि पर, मुख गुहा, त्वचा और फेफड़े श्वसन अंगों के रूप में कार्य करते हैं। फेफड़ों द्वारा श्वसन को फुफ्फुसीय श्वसन कहते हैं।

मेंढक मानव जाति के लिए लाभदायक हैं, इस कथन की पुष्टि कीजिए।

मेंढक मानव जाति के लिए लाभदायक हैं क्योंकि वे फसल के कुछ कीटों को खा जाते हैं और फसल की रक्षा कर सकते हैं। मेंढक पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं क्योंकि वे पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखला और खाद्य परिवेश का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। मेंढक कुछ देशों में खाद्य सामग्री के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

स्तरीकृत उपकला कोशिकाओं की स्राव में सीमित भूमिका होती है। हमारी त्वचा में उनकी भूमिका की पुष्टि कीजिए।

स्तरीकृत उपकला कोशिकाएं एक से अधिक परतों से बनी होती हैं और इस प्रकार स्राव और अवशोषण में इसकी सीमित भूमिका होती है। उनका मुख्य कार्य रासायनिक और यांत्रिक तनावों से सुरक्षा प्रदान करना है। वे त्वचा की सूखी सतह को कवर करते हैं।

अंग और अंगतंत्र

बहुकोशीय प्राणियों में उपर्युक्त वर्णित ऊतक संगठित होकर अंग और अंगतंत्र की रचना करते हैं। इस तरह का संगठन लाखों कोशिकाओं द्वारा निर्मित जीव की सभी क्रियाओं को अधिक दक्षतापूर्वक एवं समन्वित रूप से चलाने के लिए आवश्यक होता है। शरीर के प्रत्येक अंग एक या एक से अधिक प्रकार के ऊतकों से बना होता हैं। उदाहरणार्थ, हृदय में चारों तरह के ऊतक होते हैं, उपकला, संयोजी, पेशीय तथा तंत्रकीय ऊतक। ध्यान पूर्वक अध्ययन के बाद हम यह देखते हैं कि अंग और अंगतंत्र की जटिलता एक निश्चित इंद्रियगोचर प्रवृत्ति को प्रदर्शित करती है। यह इंद्रियगोचर प्रवृत्ति एक विकासीय प्रवृत्ति कहलाती है।

केंचुआ

केंचुए लाल भूरे रंग के स्थलीय अकशेरुकी प्राणी होते हैं, जो कि नम मिट्टी की ऊपरी सतह में निवास करते हैं। दिन के समय ये जमीन के अंदर स्थित बिलों में रहते हैं, जो कि ये मिट्टी को छेदकर और निगलकर बनाते हैं। बगीचों में ये अपने द्वारा एकत्रित उत्सर्जी मल पदार्थों के बीच ढूँढे़ जा सकते हैं। इन उत्सर्जी मल पदार्थ को कृमि क्षिप्ति कहते हैं। फेरेटिमा व लम्ब्रिकस सामान्य भारतीय केंचुए हैं।

कक्षा 11 जीव विज्ञान पाठ 7 एमसीक्यू के उत्तर

Q5

शूक केंचुए को चलने में सहायता करता है परंतु यह सभी खंडों में उपस्थित नहीं रहता, निम्नलिखित में से कौन से शूकधारी खंड है:

[A]. प्रथम खंड
[B]. अंतिम खंड
[C]. पर्याणिका खंड
[D]. 20-22 खंड
Q6

तिलचट्टे के लिए निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है?

[A]. प्रत्येक अंडाश्य में अंडाश्यक की संख्या दस होती है।
[B]. डिंभक अवस्था इल्ली कहलाती है।
[C]. मादा में गुद शूक अनुपस्थित रहते हैं।
[D]. यह यूरिया उत्सर्गी होते हैं।
Q7

केंचुए में खंडों की संख्या बताएं जो एक प्रमुख डार्क बैंड या क्लिटेलम द्वारा कवर किए गए हैं।

[A]. 4
[B]. 2
[C]. 1
[D]. इनमें से कोई नहीं
Q8

कॉकरोच में स्क्लेराइट कहाँ पाए जाते हैं?

[A]. अग्र भाग में
[B]. मध्य भाग में
[C]. पश्च भाग में
[D]. सभी भागों में
कॉकरोच (तिलचट्टा)

कॉकरोच चमकदार भूरे अथवा काले रंग के सपाट शरीर वाले प्राणी हैं जिन्हें कि संघ (फाइलम) आर्थोपोडा (संधिपाद) की वर्ग इन्सेक्टा (कीटवर्ग) में सम्मिलित किया गया है। उष्णकटिबंधीय भाग में चमकीले पीले, लाल तथा हरे रंग के कॉकरोच अक्सर दिखाई दे जाते हैं। इनका आकार ¼ – 3 इंच (0.6 – 7.6 सेमी) होता है। इनमें लंबी श्रृंगिका, पैर तथा ऊपरी शरीर भित्ति में चपटी वृद्धि होती है जो कि सिर को ढके रहती है। समस्त संसार में ये रात्रिचर, सर्वभक्षी प्राणी हैं तथा नम जगह पर मिलते हैं। ये मनुष्यों के घर में रहकर गंभीर पीड़क एवं अनेक प्रकार के रोगों के वाहक हैं।

मेंढक

मेंढक वह प्राणी है जो मीठे जल तथा धरती दोनों पर निवास करता है तथा कशेरुकी संघ के एंफीबिया वर्ग से संबंधित होता है। भारत में पाई जाने वाली मेंढक की सामान्य जाति राना टिग्रीना है। इसके शरीर का ताप स्थिर नहीं होता है। शरीर का ताप वातावरण के ताप के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। इस प्रकार के प्राणियों को असमतापी या अनियततापी कहते हैं।

मेंढक के रंग को परिवर्तित होते हुए आपने अवश्य देखा होगा, जिस समय ये घास तथा नम जमीन पर होते हैं। उनमें अपने शत्रुओं से छिपने के लिए रंग परिवर्तन की क्षमता होती है, जिसे छद्मावरण कहा जाता है। इस रक्षात्मक रंग परिवर्तन क्रिया को अनुहरण कहते हैं। आपने यह भी देखा होगा कि मेंढक शीत व ग्रीष्म ऋतु में नहीं दिखते। इस अंतराल में ये सर्दी तथा गर्मी से अपनी रक्षा करने के लिए गहरे गड्ढों में चले जाते हैं। इस प्रक्रिया को क्रमशः शीत निष्क्रियता व ग्रीष्म निष्क्रियता कहते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 7