एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 10 बोलती इमारतें
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 10 बोलती इमारतें पर्यावरण अध्ययन के सवाल जवाब अभ्यास में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सत्र 2024-25 के अनुसार तैयार किए गए हैं। कक्षा 5 पर्यावरण पाठ 10 के सभी प्रश्नों की गाइड यहाँ से प्राप्त करके अपना पाठ आसानी से पढ़ सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 10
कक्षा 5 ईवीएस अध्याय 10 बोलती इमारतें के प्रश्नों के उत्तर
गोलकोंडा की इमारतें
प्रस्तुत पाठ में इतिहास में बनाई गई गोलकोंडा की इमारतों के बारे में बताया गया है। सैजला और श्रीधर अपनी दीदी कल्याणी के साथ गोलकोंडा की इमारतें देखने गए थे। कल्याणी को इतिहास पढ़ने और श्रीधर को इमारतें देखने में बड़ा मज़ा आता हैं। गोलकोंडा किले को देखते सब खुश हो गए। किला बहुत बड़ा था और काफ़ी ऊँचाई पर था। दरवाज़ा भी काफ़ी लम्बा-चौड़ा था।
गेट पर नुकीले लोहे के भाले जैसे लगे हुए थे। इसे पहले उन्होंने कभी भी इतनी मोटी-मोटी दीवारें नहीं देखी थी। इस किले की बाहरी दिवार में 87 बुर्ज, मोटी दीवारें और इतने बड़े गेट को सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम को देखते हुए बनाया था। कल्याणी ने किले के बाहर पढ़ा कि यहाँ सन 1518 से 1687 ई० तक कुतुबशाही सुल्तानों ने एक के बाद एक ने राज किया था। 1200 ई० से पहले यह किला मिट्टी का बना हुआ था और यहाँ दूसरे राजाओं का राज था।
गोलकोंडा का किला
वहाँ पर बोर्ड पर गोलकोंडा किले का नक्शा बना हुआ था। इस नक़्शे में कितने सारे बाग, कारखाने, बावड़ी, हौज, रोड, दरवाज़े और महल दिखाएँ गए थे। नक़्शे को देख इस बात का पता चलता है कि यहाँ पर सुल्तान के आलावा किसान और कारखाने के भी बहुत से लोग रहते होंगे। नक़्शे को देख कर कल्याणी दीदी ने कहा कि यह एक पूरा शहर के सामान ही लगता है। सुल्तान का महल इतना ऊँचा था की श्रीधर ने कहा कि ये सीढियाँ तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। उस समय में भी दो मंज़िला इमारतें थी यह बात सैजला ने कही। महल की दीवारों पर बारीक़ और खुबसूरत नक्काशी की गई थी।
एक छत पर कल्याणी दीदी ने फ़व्वारे जैसी आकृति भी देखी थी। उन सब को लगा सोचने वाली बात यह है कि बिना लाइट के भी पानी दूसरी मंज़िल तक कैसे पहुचायाँ था। वहाँ पर रखी तोप को देख कर सैलजा ने कहा यह तोप तो कुतुबशाही की ही होगी। तब कल्याणी दीदी ने बताया कि तोप का इस्तेमाल औंरगजेब ने किया था, उसकी पूरी फौज तोपों के साथ यहाँ हमला करने आई थी। पर वह किले में घुस भी नहीं पाई उसकी पूरी सेना आठ महीनों तक बाहर ही बैठी रही थी।
किले की सुरक्षा व्यवस्था
दीदी ने बताया कि बादशाह हो या राजा सभी अपना राज फैलाने का खेल खेलते रहते थे। सभी छोटे-छोटे राजाओं और सुल्तानों से अपना रिश्ता जोड़ने में लगे रहते थे। इसके लिए कभी तो दोस्ती और कभी चापलूसी से काम चलाते थे, कभी परिवार में शादी कराकर या फिर हमला कर अपने राज्य में मिलाने की कोशिश करते थे। कल्याणी ने पूछा कि इतनी तोपों और बंदूकों के साथ भी बादशाह की सेना अंदर क्यों नहीं घुस पाई। इस बात पर सैलजा ने कहा इतनी सारी मोटी-मोटी दीवारें और दिवार के साथ लंबी गहरी खाई भी बनाई हुई थी सेना अंदर आती भी कैसे।
फिर श्रीधर ने कहा कि अगर सेना किसी दूसरी तरफ़ से आने की कोशिश करती तो भी यहाँ बुर्ज पर बैठे सिपाहियों को दूर-दूर तक सब कुछ सांफ नज़र आ जाता है, मुश्किल तो हमला करने वालों के लिए थी। तब कल्याणी दीदी ने बताया कि फ़ौज, घोड़ों और हाथियों पर सवार, हाथों में बंदूकें लिए आगे बढ़ रही थी और यहाँ सुल्तान के फ़ौजी बंदूकों से हमला करने के लिए तैनात खड़े हैं।
किले की आंतरिक बनावट
उन सब ने किले की दीवार में मिटटी के पाइप देखे इन्हीं के जरिये महल में जगह-जगह पानी पहुँचाया जाता था। दीदी ने उस समय के टेलिफ़ोन के बारे में भी बताया उन्होंने सब को राजा के महल में एक जगह खड़े रहने के लिए कह कर खुद फ़तेह दरवाजे पर चली गई कुछ देर बाद दीदी की आवाज़ आई होशियार- मैं अबुल हसन हूँ। मुझे गाना-बजाना और कुचिपुड़ी नृत्य बहुत पसंद है। यह सुन कर सब को हँसी आई और सब हैरान भी थे कि दीदी की आवाज़ इतनी दूर तक पहुँची कैसे।
दीदी ने बताया कि फ़तेह दरवाज़े पर खड़े होकर कुछ भी बोलें तो वह राजा के महल में सुनाई देता है। दीदी ने कहा यह उस समय से टेलिफ़ोन का काम कर रहा है। इसके बाद सब आवाजें निकालते और उनकी गूँज सुनते हुए मेहराब वाली सुरंगों से गुज़र रहे थे, इन सुरंगों में ठंडी हवा चल रही थी। वहाँ पर लिखा हुआ था कि यहाँ फ़ौजी रहते थे। कुछ दीवारों को लोगों ने अपने नाम लिख कर ख़राब भी कर दिया था।
हैदराबाद म्यूजियम
इसके बाद वे सब हैदराबाद के म्यूज़ियम पहुँच गए। इस म्यूज़ियम में गोलकोंडा किले के आसपास खुदाई के दौरान मिली चीजें भी रखी थी, जैसे- बर्तन, औज़ार, ज़ेवर और हथियार आदि। कल्याणी दीदी ने बताया कि इन सब चीज़ों से पता चलता है कि उस ज़माने में लोग कैसे रहते थे, और किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल करते थे और वे क्या-क्या बनाते थे। अगर यह सब चीजें सँभालकर नहीं रखी होती तो क्या हम सब उस ज़माने के बारे में इतना कुछ जान पाते।