एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 अर्थशास्त्र अध्याय 1

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान अर्थशास्त्र अध्याय 1 पालमपुर गाँव की कहानी के प्रश्न उत्तर विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते है जो कि शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए संशोधित किए गए हैं। 9वीं कक्षा के पाठ के प्रत्येक प्रश्न को विस्तार से समझाया गया है। इस अध्याय पर आधारित कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी अभ्यास के लिए दिए गए हैं जो परिक्षाओं में प्रायः पूंछे जाते हैं। एनसीईआरटी के अभ्यास के प्रश्नों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी सरल परिभाषाओं के साथ दिए गए हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 अर्थशास्त्र अध्याय 1

कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान अर्थशास्त्र अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर

खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यता होती है, जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?

हां, आधुनिक कृषि तरीकों को कारखाने में निर्मित अधिक संसाधन चहिए। एचवाईवी बीजों को अधिक पानी चाहिए और इसके साथ ही बेहतर नतीजों के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक भी चाहिए। किसान सिंचाई के लिए नलकूप लगाते हैं। ट्रैक्टर एवं भैसर जैसी मशीनें भी प्रयोग की गयी। एचवाईवी बीजों की सहायता से गेहूँ की पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बाजार में बेचने के लिए अधिक मात्रा में गेहूँ हैं।

पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की?

पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की विभिन्न तरह मदद की है:

    • (क) इसने पालमपुर के किसानों को अपने खेतों की सिंचाई बेहतर तरीके से करने में मदद की। इससे पहले वे रहट के द्वारा सिंचाई करते आए थे जो अधिक प्रभावशाली तरीका नहीं था। किंतु अब बिजली की सहायता से वे अधिक बड़े क्षेत्र को कम समय में अधिक प्रभावशाली तरीके से सींच सकते थे।
    • (ख) बिजली से सिंचाई प्रणाली में सुधार के कारण किसान पूरे वर्ष के दौरान विभिन्न फसलें उगा सकते थे।
    • (ग) उन्हें मानसून की बरसात पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं जो कि अनिश्चित एवं भ्रमणशील थी।
    • (घ) बिजली के प्रयोग के कारण पालमपुर के किसानों को बहुत से हाथ के कामों एवं चिंताओं से मुक्ति मिल गई।
क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है? क्यों?

सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में मानसून की वर्षा अनिश्चित व भ्रमणशील होती है। कृषि के अंतर्गत आने वाली भूमि किसानों के लिए पर्याप्त नहीं होती है। यदि किसानों को सिंचित भूमि खेती के लिए उपलब्ध हो जाती है तो वे कम जमीन पर ही अधिक उत्पादन क सकते हैं।

पालमपुर खेतिहर श्रमिकों की मज़दूरी न्यूनतम मज़दूरी से कम क्यों है?

पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों में काम के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा है। इसलिए लोग कम दरों पर मजदूरी के लिए तैयार हो जाते हैं।

अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों सें बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगें मज़दूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मज़दूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु-रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप सें काम मिलता है? क्या वे कर्ज में हैं?

हमारे क्षेत्र में राजू और गोपाल दो खेतिहर मजदूर हैं जो एक निर्माण स्थल पर काम करते हैं। उन्हें मजदूरी के रूप में 80-100 रूपए मिलते हैं। हाँ, उन्हेंमजदूरी नकद मिलती है। उनमें से अधिकतर को नियमित रूप से काम नहीं मिलता क्योंकि बहुत से लोग कम दरों पर काम करने के लिए राज़ी हो जाते हैं। उन्हें कम मजदूरी मिलने के कारण वे कर्ज में डूबे हुए हैं। कम मजदूरी के कारण वे बड़ी कठिनाई से परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं।

एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।

उत्पादन बढ़ाने के तरीके : बहुविध फसल प्रणाली : भूमि के एक ही टुकड़े पर एक ही वर्ष में कई फसलें उगाना बहुविध फसल प्रणाली कहलाता है। इस भू-भाग पर कृषि उत्पादन बढ़ाने का यह सबसे प्रचलित तरीका है। पालमपुर के सभी किसान कम से कम दो फसलें उगाते है; पिछले पंद्रह से बीस वर्षों से कई लोग तीसरी फसल के रूप में आलू उगाते है। आधुनिक कृषि तरीकों के प्रयोग : पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने वाले भारत के पहले किसान थे। इन क्षेत्रों के किसानों ने सिंचाई के लिए नलकूपों, एच.वाई.वी बीज, रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया। ट्रैक्टर एवं भ्रेशर का भी प्रयोग किया गया जिससे जुताई एवं फसल की कटाई आसान हो गई। उन्हें अपने प्रयासों में सफलता से पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हों गई और अब किसानों के पास बहुत सा अधिशेष गेहूँ बाजार में बेचने के लिए होता है।

एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।

भूमि को मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है। एक हेक्टेयर 100 मीटर की भुजा वाले वर्गाकार भूमि के टुकड़े के क्षेत्रफल के बराबर होता है।
एक किसान जो एक हेक्टेयर भूमि पर काम करता है उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक छोटा किसान जानता है कि वह इतने छोटे खेत पर काम करके अपने दोनों समय के खाने का प्रबंध नहीं कर सकता। इसलिए उसे अपने खेत पर काम करने के बाद 45-50 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से किसी बड़े किसान के खेतों में काम करना पड़ता है। यदि वह अपने ही खेत पर खेती शुरू करता है तो न उसके पास इसके लिए जरूरी साधन हैं, न बीज, खाद व कीटनाशक खरीदने के पैसे। एक बहुत छोटा किसान होने के कारण उसके पास कोई उपस्कर एवं कार्यशील पूंजी नहीं है। इन सब चीजों का प्रबंध करने के लिए उसे या तो किसी बड़े किसान से या फिर किसी व्यापारी अथवा साहूकार से ऊंची ब्याज दरों पर धन उधार लेना पड़ता था। इतनी मेहनत करने के बाद भी इस बात की संभावना रहती थी कि वो कर्ज में डूब जाए जो कि सदैव उसके लिए बहुत बड़ी चिंता का कारण रहता था।

मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूंजी प्राप्त करते है? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न है?

आधुनिक कृषि तरीकों में बहुत से धन की आवश्यकता होती है। मझोले एवं बड़े किसानों की कुछ अपनी बचत होती है। इस प्रकार वे जरूरी पूंजी का प्रबंध कर लेते हैं। दूसरी और अधिकतर छोटे किसानों को पूंजी का प्रबंध करने के लिए बड़े किसानों या व्यापारियों से पैसा उधार लेना पड़ता है। इस प्रकार के ऋणों की ब्याज दर भी प्रायः अधिक होती है। इस ऋण को वापस करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों को मझोले व बड़े किसानों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज़ की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?

तेजपाल सिंह ने सविता को 24 प्रतिशत की ब्याज दर पर 4 महीने के लिए ऋण देना स्वीकार किया। जो कि बहुत अधिक ब्याज दर है। सविता एक कृषि मजदूर के रूप में कटाई के समय 35 रूपए प्रतिदिन की दर पर उसके खेतों में काम करने को भी सहमत होती है। तेजपाल सिंह द्वारा सविता से लिया जाने वाला ब्याज बैंक की अपेक्षा बहुत अधिक था। यदि सविता इसकी अपेक्षा बैंक से उचित ब्याज दर पर ऋण ले पाती तो उसकी हालत निश्चय ही इससे अच्छी होती।

अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए (वैकल्पिक)।

पुराने निवासियों से बात करने पर पिछले 30 सालों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तन से मुझे पता चला कि 30 वर्ष पहले खेती के पुराने तरीके प्रयोग किए जाते थे। किसान अपने खेतों को बैलों की सहायता से जोतते थे। सिंचाई की बहुत अधिक सुविधाएँ नहीं थी। वे मॉनसून की बरसातों पर निर्भर रहते थे जो कि बहुत अनियमित होती थी। रहट को उस समय कुँओं से पानी निकालने के लिए प्रयोग किया जाता था। किंतु तकनीक में प्रगति के साथ किसानों ने सिंचाई के लिए नलकूप लगवा लिए हैं और एच.वाई.वी. बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों की सहायता से खेती करने लगे हैं। यहाँ तक कि खेतों में ट्रैक्टर एवं मशीनों का प्रयोग किया जाता है जिसने जुताई एवं फसल कटाई को तेज कर दिया है।

आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।

दुकानदारी, परिवहन, मछली पालन, डेयरी, विनिर्माण, दर्जी आदी गैर-कृषि उत्पादन कार्य हमारे क्षेत्र में किए जाते है।

गाँवों में और अधिक गैर-कृषि प्रारंभ करने के लिए क्या किया जा सकता है?

हमारे गाँव में लगभग 70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं जिनमें किसान और खेतिहर मजदूर दोनों शामिल हैं। किंतु उनकी आर्थिक दशा शोचनीय है। उनकी जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है जबकि भूमि स्थिर है। और कृषि क्रियाओं में और अधिक मजदूरों को काम मिल पाने की संभावना बहुत कम है। इसलिए गैर-कृषि कार्यों में वृद्धि करना बहुत जरूरी हो गया है ताकि कुछ खेतिहर मजदूरों को उनमें काम मिल सकें; जैसे कि डेयरी, विनिर्माण, दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी पालन, दर्जी, शैक्षिक कार्य आदि गैर-कृषि क्रियाएँ। यहाँ तक कि किसान भी इस प्रकार के कामों में शामिल हो सकते हैं जब उनके पास खेतों में कुछ अधिक काम नहीं होता हो और वे बेरोजगार हो। यह उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने में सहायता सिद्ध होगा।

कक्षा 9 अर्थशास्त्र अध्याय 1 के अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

पालमपुर की आर्थिक परिस्थिति का अवलोकन कीजिये?

पालमपुर में खेती मुख्य क्रिया है, जबकि अन्य कई क्रियाएँ जैसे, लघु-स्तरीय विनिर्माण, डेयरी, परिवहन आदि सीमित स्तर पर की जाती हैं। इन उत्पादन क्रियाओं के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है, यथाप्राकृतिक संसाधन, मानव निर्मित वस्तुएँ, मानव प्रयास, मुद्रा आदि। पालमपुर की कहानी से हमें विदित होगा कि गाँव में इच्छित वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादित करने के लिए
विभिन्न संसाधन किस प्रकार समायोजित होते हैं।

पालमपुर की सामजिक वर्गीकरण किस प्रकार का है?

इस गाँव में विभिन्न जातियों के लगभग 450 परिवार रहते हैं। गाँव में अधिकांश भूमि के स्वामी उच्च जाति के 80 परिवार हैं। उनके मकान, जिनमें से कुछ बहुत बड़े हैं, र्इंट और सीमेंट के बने हुए हैं। अनुसूचित जाति (दलित) के लोगों की संख्या गाँव की कुल जनसंख्या का एक तिहाई है और वे गाँव के एक कोने में काफी छोटे घरों में रहते हैं, जिनमें कुछ मिटी और फूस के बने हैं। अधिकांश के घरों में बिजली है। खेतों में सभी नलकूप बिजली से ही चलते हैं और इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के छोटे कार्यों के लिए भी किया जाता है। पालमपुर में दो प्राथमिक विद्यालय और एक हाई स्कूल है। गाँव में एक राजकीय प्राथमिक स्वास्थ केंद्र और एक निजी औषधालय भी है, जहाँ रोगियों का उपचार किया जाता है।

किसी वस्तु के उत्पादन के लिए किन घटकों की आवश्यकता है?

उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करना है, जिनकी हमें आवश्यकता है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीज़ें आवश्यक हैं। पहली आवश्यकता है भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन, जैसेजल, वन, खनिज। दूसरी आवश्यकता है श्रम अर्थात्‌ जो लोग काम करेंगे। कुछ उत्पादन क्रियाओं में ज़रूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की ज़रूरत होती है। दूसरी क्रियाओं के लिए शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है। प्रत्येक श्रमिक उत्पादन के लिए आवश्यक श्रम प्रदान करता है। तीसरी आवश्यकता भौतिक पूँजी है, अर्थात्‌ उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत।

पालमपुर में खेती की क्या स्थिति है?

पालमपुर में खेती उत्पादन की प्रमुख क्रिया है। काम करने वालों में 75 प्रतिशत लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। वे किसान अथवा कृषि श्रमिक हो सकते हैं। इन लोगों का हित खेतों में उत्पादन से जुड़ा हुआ है। पालमपुर में एक वर्ष में किसान तीन अलग-अलग फसलें इसलिए पैदा कर पाते हैं, क्योंकि वहाँ सिंचाई की सुविकसित व्यवस्था है।

कृषि भूमि का अधिक दोहन किस प्रकार का असंतुलन पैदा करता है?

भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है, अत: इसका सावधानीपूर्वक प्रयोग करने की ज़रूरत है। वैज्ञानिक रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि खेती की आधुनिक कृषि विधियों ने प्राकृतिक संसाधन आधार का अति उपयोग किया है। अनेक क्षेत्रों में, हरित क्रांति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है। इसके अतिरिक्त, नलकूपों से सिंचाई के कारण भूमि जल के सतत्‌ प्रयोग से भौम जल-स्तर कम हो गया है। मिट्टी की उर्वरता और भौम जल जैसे पर्यावरणीय संसाधन कई वर्षों में बनते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद उन्हें पुनर्जीवित करना बहुत कठिन है। कृषि का भावी विकास सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए।

कृषि कार्य के लिए श्रम की व्यवस्था कौन करेगा?

भूमि के पश्चात्‌, श्रम उत्पादन का दूसरा आवश्यक कारक है। खेती में बहुत ज़्यादा परिश्रम की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवारों के साथ अपने खेतों में स्वयं काम करते हैं। इस तरह, वे खेती के लिए आवश्यक श्रम की व्यवस्था स्वयं ही करते हैं। मझोले और बड़े किसान अपने खेतों में काम करने के लिए दूसरे श्रमिकों को किराये पर लगाते हैं।

पालमपुर में कृषि के आलावा अन्य आय के साधन क्या हैं?

हमने देखा की पालमपुर में खेती ही प्रमुख उत्पादन क्रिया है। अब हम कुछ गैर-कृषि उत्पादन क्रियाओं पर विचार करेंगे। पालमपुर में काम करने वाले केवल 25 प्रतिशत लोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य करते हैं।

    1. डेयरी : अन्य प्रचलित क्रिया
      पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैंसों को कई तरह की घास और बरसात के मौसम में उगने वाली ज्वार और बाजरा (चरी) खिलाते हैं। दूध को निकट के बड़े गाँव रायगंज में बेचा जाता है।
    2. पालमपुर में लघुस्तरीय विनिर्माण का एक उदाहरण
      इस समय पालमपुर में 50 से कम लोग विनिर्माण कार्यों में लगे हैं। शहरों और कस्बों में बड़ी फैक्ट्रियों में होने वाले विनिर्माण के विपरीत, पालमपुर में विनिर्माण में बहुत सरल उत्पादन विधियों का प्रयोग होता है और उसे छोटे पैमाने पर ही किया जाता है। विनिर्माण कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से अधिकतर घरों या खेतों में किया जाता है। श्रमिकों को कभी-कभार ही किराये पर लिया जाता है।
    3. पालमपुर के दुकानदार
      पालमपुर में ज़्यादा लोग व्यापार (वस्तु-विनिमय) नहीं करते। पालमपुर के व्यापारी वे दुकानदार हैं, जो शहरों के थोक बाज़ारों से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और उन्हें गाँव में लाकर बेचते हैं।
    4. परिवहन : तेज़ी से विकसित होता एक क्षेत्रक
      पालमपुर और रायगंज के बीच सड़क पर कई प्रकार के वाहन चलते हैं। रिक्शावाले, ताँगेवाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक ड्राइवर तथा परंपरागत बैलगाड़ी और दूसरी गाड़ियाँ चलाने वाले, वे लोग हैं, जो परिवहन सेवाओं में शामिल हैं।
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