एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 5 क्या निराश हुआ जाए
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 5 क्या निराश हुआ जाए के प्रश्नों के उत्तर तथा अतिरिक्त अभ्यास के लिए सवाल जवाब छात्र सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। आठवीं कक्षा के छात्र हिंदी में वसंत के पाठ 5 को यहाँ दिए गए हल की मदद से सरलता से पढ़ और समझ सकते हैं।
कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 5 क्या निराश हुआ जाए के प्रश्न उत्तर
लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
लेखक का यह स्वीकार करना कि लोगों ने उसे धोखा दिया है। यह उसकी पीड़ा को दर्शाता है। मगर फिर भी वह निराश नहीं है उसका मानना है कि समाज में अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईमानदार हैं। यदि वह अपने धोखे के बारे में समाज में बात करेगा तो वह उन लोगों का भी अपमान कर देगा जो ईमानदार हैं। उसे समाज में सुधार की उम्मीद है इसी कारण वह निराश नहीं है।
दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
किसी का उपहास उड़ाने के लिए और केवल उसकी बुराइयों को ही उजागर करने के लिए दोषों का पर्दाफाश किया जाना बुरा रूप ले सकता है हमें यदि किसी के दोषों को उजागर करना है तो उसकी अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए जिससे तुलनात्मक व्यवहार किया जा सके।
आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्र के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्रओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
पहली वाली बस यात्रा जिसका शीर्षक ‘बस की यात्रा’ के लेखक हरिशंकर परिसाई हैं तथा दूसरी बस यात्रा जिसका शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ के लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं। दोनों लेखक मिलने पर इस प्रकार की बातचीत करते:
हरिशंकर परसाई: द्विवेदी जी नमस्कार! आपके के क्या हालचाल हैं।
द्विवेदी जी: परसाई जी नमस्कार मैं बिलकुल ठीक हूँ, क्या आप कुशल हैं।
परसाई: आप अपनी बस यात्रा से सम्बंधित कुछ संस्मरण सुनाएँ।
द्विवेदीजी: मेरी बस यात्रा वैसे तो डरावनी थी क्योंकि मैं परिवार सहित इसमें सफ़र कर रहा था। रात्री के समय बस सुनसान जगह पर ख़राब होकर रुक गयी। सहयात्रियों का कथन था कि इधर डकैती की बहुत घटनाएं होती हैं शायद ड्राईवर और कंडक्टर की उनके साथ कोई मिलीभगत है और ये लोग जानबूझकर बस ख़राब होने का नाटक कर रहें हैं। ऊपर से मेरे बच्चे भूख और प्यास के मारे परेशान कर रहे थे। लेकिन यात्रा का अंत सुखद रहा क्योंकि कंडक्टर डिपो से दूसरी बस ले आया था।
परसाई: द्विवेदी जी! हमारी बस यात्रा तो हास्य, रोमांच और जोखिमपूर्ण थी। बस एकदम पुरानी और खटारा, जिसका कुछ भी सही सलामत नहीं था। बस कई जगह ख़राब हुई। ऐसा लगता था कि शायद ही गंतव्य तक पहुँचा पायेगी। लेकिन हमने भी हिम्मत नहीं हारी, अंत तक सफ़र जारे रखा।
आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए? लिखिए।
मेरे सपनों का भारत ऐसा होना चाहिए जहाँ समानता, सबके लिए समान शिक्षा, सबके लिए सुलभ एवं सस्ता स्वास्थ्य, हरएक मामले में आत्मनिर्भर और शक्तिशाली जिसको कोई भी दूसरा देश आँख न दिखा सके।
यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए।
“आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।“ क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाना है तो ? (प्रश्नवाचक चिह्न) प्रयोग करेंगे। क्योंकि इसमें समाज से प्रश्न किया जा रहा है।
“आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।“ मैं इस बात से सहमत हूँ क्योंकि आदर्शों पर चलना एक अत्यंत कठिन कार्य है जो हर किसी के वश की बात नहीं है।
आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
हमारे महान विद्वानों ने एक धर्म परायण, समृद्ध, उज्जवल और शक्तिशाली भारत का सपना देखा था।
लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
मेरे अनुसार इस लेख का शीर्षक ‘निराशा में आशा की किरण’ हो सकता है।
आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए?
आजकल के लगभग सभी समाचार पत्र और न्यूज चैनल किसी न किसी पार्टी से प्रभावित दिखाई देते हैं। वे केवल अपनी पार्टी की भक्ति करते हैं उनके अनुरूप खबरें दिखाते हैं। वे केवल भटकाने का प्रयास करते हैं। सही खबर कभी नहीं दिखाते हैं । इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता भी संदेहास्पद लगती है।