कक्षा 7 इतिहास अध्याय 8 एनसीईआरटी समाधान – अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 इतिहास अध्याय 8 अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन के अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई तथा स्टेट बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए मुफ़्त प्राप्त करें। सभी प्रश्नों के उत्तर सरल तथा आसान भाषा में दिए हैं ताकि विद्याथियों को समझने में कोई तकलीफ न हो। पूरे पाठ 8 का अध्ययन विडियो के माध्यम से भी दिया गया है ताकि विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकें। पीडीएफ तथा विडियो दोनों ही तिवारी अकादमी वेबसाइट और ऐप से मुफ़्त प्राप्त किए जा सकते हैं।

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अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन

सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में उसके सामने तरह-तरह के संकट किस प्रकार खड़े होने लगे थे। ऐसा अनेक कारणों से हुआ। बादशाह औरंगज़ेब ने दक्कन में (1679 से) लंबी लड़ाई लड़ते हुए साम्राज्य के सैन्य और वित्तीय संसाधनों को बहुत अधिक खर्च कर दिया था। औरंगज़ेब के उत्तराधिकारियों के शासनकाल में साम्राज्य के प्रशासन की कार्य-कुशलता समाप्त होने लगी और मनसबदारों के शक्तिशाली वर्गों को वश में रखना केंद्रीय सत्ता के लिए कठिन हो गया। सूबेदार के रूप में नियुक्त अभिजात अक्सर राजस्व और सैन्य प्रशासन (दीवानी एवं फौजदारी) दोनों कार्यालयों पर नियंत्रण रखते थे। इससे मुगल साम्राज्य के विशाल क्षेत्रों पर उन्हें विस्तृत राजनैतिक, आर्थिक और सैन्य शक्तियाँ मिल गर्इं। जैसे-जैसे सूबेदारों ने प्रांतों पर अपना नियंत्रण सुदृढ़ किया, राजधानी में पहुँचने वाले राजस्व की मात्रा में कमी आती गई। जिस तरह से धीरे-धीरे राजनैतिक व आर्थिक सत्ता, प्रांतीय सूबेदारों, स्थानीय सरदारों व अन्य समूहों के हाथों में आ रही थी, औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी इस बदलाव को रोक न सके।

नादिरशाह का दिल्ली पर आक्रमण

ईरान के शासक नादिरशाह ने 1739 में दिल्ली पर आक्रमण किया और संपूर्ण नगर को लूट कर वह बड़ी भारी मात्रा में धन-दौलत ले गया। नादिरशाह के आक्रमण के परिणामस्वरूप दिल्ली में जो विध्वंस हुआ, उसका वर्णन समकालीन प्रेक्षकों ने किया था। इनमें से एक ने मुगल कोष से जिस तरह धन लूटा गया था, उसका वर्णन इस तरह से किया है: साठ लाख रुपए और कई हज़ार सोने के सिक्के, लगभग एक करोड़ रुपए के सोने के बर्तन, लगभग पचास करोड़ रुपए के गहने, जवाहरात और अन्य चीज़ें ले गया, जिनमें से कुछ तो इतनी बेशकीमती थीं कि दुनिया में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता है, जैसे: तख्ते ताउस यानी मयूर सिंहासन। नया शहर (शाहजहाँनाबाद) अब मलबे का ढेर बन गया। (नादिरशाह ने) तब शहर के पुराने मोहल्लों पर हमला बोला और वहाँ की सारी की सारी दुनिया को तबाह कर डाला।

नए राज्यों का उदय

अठारहवीं शताब्दी के दौरान मुगल साम्राज्य धीरे-धीरे कई स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यों में बिखर गया। मोटे तौर पर अठारहवीं शताब्दी के राज्यों को तीन परस्परव्यापी समूहों में बाँटा जा सकता है:
(1) अवध, बंगाल व हैदराबाद जैसे वे राज्य जो पहले मुगल प्रांत थे।
(2) राजपूत राजा जो पहले मुगलों के जागीरदार थे, अपने को स्वतंत्र रजा के रूप में घोषित कर लिया।
(3) तीसरी श्रेणी में मराठों, सिक्खों तथा जाटों के राज्य आते हैं। ये विभिन्न आकार के थे और इन्होंने कड़े और लंबे सशस्त्र संघर्ष के बाद मुगलों से स्वतंत्रता छीनकर ली थी।

पुराने मुगल प्रांत

पुराने मुगल प्रांतों से जिन ‘उत्तराधिकारी’ राज्यों का उद्‌भव हुआ, उनमें से तीन राज्य प्रमुख थे: अवध, बंगाल और हैदराबाद। निज़ाम-उल-मुल्क आसफ जाह (1724-1748), जिसने हैदराबाद राज्य की स्थापना की थी; मुगल बादशाह फर्रूख़्सियर के दरबार का एक अत्यंत शक्तिशाली सदस्य था। उसे सर्वप्रथम अवध की सूबेदारी सौंपी गई थी, और बाद में उसे दक्कन का कार्यभार दे दिया गया था। दक्कन में होने वाले उपद्रवों और मुगल दरबार में चल रही प्रतिस्पर्द्धा का फायदा उठाकर उसने सत्ता हथियाई तथा उस क्षेत्र का वास्तविक शासक बन गया। बुरहान-उल-मुल्क सआदत खान को 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया गया था। मुगल साम्राज्य का विघटन होने पर जो राज्य बने, उनमें यह राज्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राज्यों में से एक था। मुर्शीद कुली खान के नेतृत्व में बंगाल धीर-धीरे मुगल नियंत्रण से अलग हो गया। मुर्शीद कुली खान बंगाल के नायब थे हैदराबाद और अवध के शासकों की तरह उसने भी राज्य के राजस्व प्रशासन पर अपना नियंत्रण जमाया।

राजपूतों की वतन जागीरी

बहुत-से राजपूत घराने विशेष रूप से अम्बर और जोधपुर के राजघराने मुगल व्यवस्था में विशिष्टता के साथ सेवारत रहे थे। बदले में उन्हें अपनी वतन जागीरों पर पर्याप्त स्वायत्तता का आनंद लेने की अनुमति मिली हुई थी। अब अठारहवीं शताब्दी में इन शासकों ने अपने आस-पास के इलाकों पर अपने नियंत्रण का विस्तार करने के लिए अपने हाथ-पाँव मारने शुरू किए।

खालसा पंथ की स्थापना कब हुई थी?

गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना से पूर्व और उसके पश्चात्‌ राजपूत व मुगल शासकों के खिलाप़्ा कई लड़ाइयाँ लड़ीं। 1708 में गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर के नेतृत्व में ‘खालसा’ ने मुग़्ाल सत्ता के खिलाफ विद्रोह किए। उन्होंने बाबा गुरु नानक और गुरु गोबिंद सिंह के नामों वाले सिक्के गढ़कर अपने शासन को सार्वभौम बताया। सतलुज और यमुना नदियों के बीच के क्षेत्र में उन्होंने अपने प्रशासन की स्थापना की। 1715 में बंदा बहादुर को बंदी बना लिया गया और उसे 1716 में मार दिया गया।

मराठा राज्य की स्थापना किसने और कब की?

शिवाजी (1627-1680) ने शक्तिशाली योद्धा परिवारों (देशमुखों) की सहायता से एक स्थायी राज्य की स्थापना की। अत्यंत गतिशील कृषक-पशुचारक (कुनबी) मराठों की सेना के मुख्य आधार बन गए। शिवाजी ने प्रायद्वीप में मुगलों को चुनौती देने के लिए इस सैन्य-बल का प्रयोग किया। शिवाजी की मृत्यु के पश्चात्‌, मराठा राज्य में प्रभावी शक्ति, चितपावन ब्राह्मणों के एक परिवार के हाथ में रही, जो शिवाजी के उत्तराधिकारियों के शासनकाल में ‘पेशवा’ (प्रधानमंत्री) के रूप में अपनी सेवाएँ देते रहे। पुणे मराठा राज्य की राजधानी बन गया।

जातों ने अपनी सता कहाँ कायम की थी?

जाटों की शक्ति सूरज मल के समय पराकाष्ठा पर पहुँची, जिन्होंने 1756-1763 के दौरान भरतपुर जाट राज्य को (आधुनिक राजस्थान में) संगठित किया। सूरज मल के राजनैतिक नियंत्रण में, जो क्षेत्र शामिल थे उसमें आधुनिक पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली शामिल थे। सूरज मल ने कई किले और महल बनवाए जिनमें भरतपुर का प्रसिद्ध लोहागढ़ का किला इस क्षेत्र में बने सबसे मजबूत किलों में से एक था।

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