कक्षा 7 इतिहास अध्याय 4 एनसीईआरटी समाधान – मुग़ल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 इतिहास अध्याय 4 मुग़ल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के प्रश्न उत्तर, रिक्त स्थानों की पूर्ति, तथा अन्य अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान में इतिहास के ये समाधान शैक्षणिक सत्र 2024-25 के अनुसार नवीनतम रूप से संशोधित किए गए हैं। पाठ के अध्ययन तथा अध्याय के प्रश्न उत्तर के लिए अलग अलग विडियो दी गई हैं। तिवारी अकादमी ऐप तथा वेबसाइट दोनों पर सभी पठन सामग्री उपयोग के लिए मुफ़्त है।

कक्षा 7 इतिहास अध्याय 4 के लिए एनसीईआरटी समाधान

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7

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मुग़ल शासन

मुग़ल दो महान शासक वंशों के वंशज थे। माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज़ खान जो चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज करता था, के उत्तराधिकारी थे। पिता की ओर से वे ईरान, इराक एवं वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर (जिसकी मृत्यु 1404 में हुई) के वंशज थे। परंतु मुगल अपने को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे। ऐसा इसलिए था, क्योंकि चंगेज़ खान से जुड़ी स्मृतियाँ सैंकड़ों व्यक्तियों के नरसंहार से संबंधित थीं। यही स्मृतियाँ मुगलों के प्रतियोगियों उज़बेगों से भी संबंधित थीं। दूसरी तरफ, मुगल, तैमूर के वंशज होने पर ज़्यादा गर्व का अनुभव करते थे, क्योंकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था। प्रथम मुगल शासक बाबर (1526-1530) ने जब 1494 में फरघाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया, तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष की थी। उसने 1526 में दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्ज़े में कर लिया। बाबर के बाद उसके पुत्र हुमायूं (1530 – 1540 और 1555 – 1556) ने राज किया। हुमायूँ के बाद अकबर (1556 – 1605), जहाँगीर (1605 – 1627), शाहजहाँ (1627 – 1658), औरंगजेब (1658 – 1707), इसके बाद गद्दी के उत्तराधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया था।

मुगलों के अन्य शासकों के साथ सम्बन्ध

मुगलों ने उन शासकों के विरुद्ध लगातार अभियान किए, जिन्होंने उनकी सत्ता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब मुगल शक्तिशाली हो गए तो अन्य कई शासकों ने स्वेच्छा से उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। राजपूत इसका एक अच्छा उदाहरण हैं। अनेकों ने मुगल घराने में अपनी पुत्रियों के विवाह करके उच्च पद प्राप्त किए। परंतु कइयों ने विरोध भी किया। मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत लंबे समय तक मुगलों की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार करते रहे, परंतु जब वे हारे तो मुगलों ने उनके साथ सम्माननीय व्यवहार किया और उन्हें उनकी जागीरें (वतन), वतन जागीर के रूप में वापिस कर दीं। पराजित करने परंतु अपमानित न करने के बीच सावधानी से बनाए गए संतुलन की वजह से मुगल भारत के अनेक शासकों और सरदारों पर अपना प्रभाव बढ़ा पाए। परंतु इस संतुलन को हमेशा बरकरार रखना कठिन था।

मनसबदार और जागीरदार

‘मनसबदार’ शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता था, जिन्हें कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था। यह मुगलों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी, जिसके ज़रिए: (1) पद, (2) वेतन एवं (3) सैन्य उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाते थे। पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था। जात की संख्या जितनी अधिक होती थी, दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और उसका वेतन भी उतना ही अधिक होता था। मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे, जिन्हें जागीर कहते थे और जो तकरीबन ‘इक्ताओं’ के समान थीं। इसलिए मनसबदारों को जागीरदार भी कहा जाता था।

अकबर की नीतियाँ

प्रशासन के मुख्य अभिलक्षण अकबर ने निर्धारित किए थे और इनका विस्तृत वर्णन अबुल फजल की अकबरनामा, विशेषकर आइने-अकबरी में मिलता है। अबुल फजल के अनुसार साम्राज्य कई प्रांतों में बँटा हुआ था, जिन्हें ‘सूबा’ कहा जाता था। सूबों के प्रशासक ‘सूबेदार’ कहलाते थे, जो राजनैतिक तथा सैनिक, दोनों प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते थे। प्रत्येक प्रांत में एक वित्तीय अधिकारी भी होता था जो ‘दीवान’ कहलाता था। कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सूबेदार को अन्य अफसरों का सहयोग प्राप्त था, जैसे कि बक्शी (सैनिक वेतनाधिकारी), सदर (धार्मिक और धर्मार्थ किए जाने वाले कार्यों का मंत्री), फौजदार (सेनानायक) और कोतवाल (नगर का पुलिस अधिकारी) का। 1570 में अकबर जब फतेहपुर सीकरी में था, तो उसने उलेमा, ब्राह्मणों, जेसुइट पादरियों (जो रोमन कैथोलिक थे) और ज़रदुश्त धर्म के अनुयायियों के साथ धर्म के मामलों पर चर्चा शुरू की।

भारत पर मुगलों ने सर्वप्रथम कब और किसने आक्रमण किया?

बाबर ने 1526 ई० में भारत पर आक्रमण कर दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत के मैदान में हराकर दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया था।

मुग़ल शासन में मनसबदारी व्यवस्था क्या थी?

अकबर के शासनकाल में अनेक राजपूत राजाओं ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी, इन राजाओं को उनके अपने राज्य के जागीरदार के रूप में मान्यता प्राप्त थी, इन्हें मनसबदार भी कहा जाता था। मनसबदारों के लिए (1) पद, (2) वेतन एवं (3) सैन्य उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाते थे।

अकबर को महान सम्राट की उपाधि क्यों दी जाती है?

अकबर ने अधिकतर पड़ोसी राजाओं से मित्रता के सम्बन्ध स्थापित कर लिए थे, तथा उनके दरबार में सभी धर्म के विद्धानों का सम्मान किया जाता था। अकबर ने अपने शासनकाल में प्रजा के कल्याण के लिए अनेक कार्य किये।

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कक्षा 7 इतिहास अध्याय 4 के प्रश्न उत्तर