कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 एनसीईआरटी समाधान – प्राणियों में पोषण
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 प्राणियों में पोषण एनसीईआरटी समाधान – सलूशन अभ्यास में दिए गए सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से तथा सरल भाषा में विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। सातवीं कक्षा के विज्ञान के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए संशोधित किए गए हैं ताकि इसका लाभ सभी यूपी, एमपी तथा अन्य राजकीय बोर्ड के विद्यार्थी उठा सकें। समाधान पीडीएफ़ तथा विडियो के रूप में सरल भाषा में समझाया गया है। ऑफलाइन पढ़ने के लिए कक्षा 7 विज्ञान ऐप मुफ्त डाउनलोड करें।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 के समाधान नीचे दिए गए हैं:
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
दीर्घरोम क्या हैं? वह कहाँ पाए जाते हैं एवं उनके कार्य क्या हैं?
दीर्घरोम, क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर अँगुली के समान उभरी हुई संरचनाएँ होती हैं, जिसे रसांकुर भी कहते हैं। दीर्घरोम पचे हुए भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम की सतह से पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है तथा यह रुधिर वाहिकाओं में चला जाता है।
पित्त कहाँ निर्मित होता है? यह भोजन के किस घटक के पाचन में सहायता करता है?
पित्त रस का स्राव यकृत (मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि) करता है जिसे पित्ताशय नामक थैली में संग्रहित किया जाता है। पित्त वसा के पाचन में मदद करता है।
उस कार्बोहाइड्रेट्स का नाम लिखिए जिनका पाचन रुमिनैन्ट द्वारा किया जाता है परंतु मानव द्वारा नहीं। इसका कारण बताइए।
सेल्युलोस (एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट) के पाचन के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। रुमिनैन्ट की आहार नाल, मनुष्यों की आहार नाल से बड़ी होती है। इसलिए सेल्युलोज रुमिनैन्ट द्वारा पचाया जा सकता है लेकिन मनुष्यों द्वारा नहीं।
क्या कारण है कि हमें ग्लूकोस से उर्जा तुरंत प्राप्त होती है?
हमें ग्लूकोस से उर्जा तुरंत प्राप्त होती है क्योंकि कोशिकाओं में, ग्लूकोज ऑक्सीजन की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में आसानी से टूट जाता है और ऊर्जा निकल जाती है।
मानव एवं अमीबा के पोषण में कोई एक समानता एवं एक अंतर लिखिए।
समानता: भोजन के पाचन तथा उससे प्राप्त ऊर्जा की बुनियादी प्रक्रिया अमीबा के साथ-साथ इंसानों में भी समान है। अमीबा में, भोजन में पाचन रस स्रावित होता है जो भोजन पर कार्य करते हैं और इसे सरल पदार्थों में तोड़ देते हैं। धीरे-धीरे पचा हुआ भोजन अवशोषित होता है। इसी तरह, मानव में विभिन्न पाचक रस (मुंह, पेट, आंत आदि) भोजन में मिलकर काम करते हैं और इसे सरल पदार्थों में तोड़ देते हैं।
अंतर: अमीबा में पाचन प्रक्रिया सरल है जबकि मनुष्य में यह एक जटिल प्रक्रिया है। अंतर्ग्रहण और उत्सर्जन की प्रक्रिया भी काफी भिन्न होती है। अमीबा अपने भोजन को पदाभ के माध्यम से पकड़ता है। अवशोषण के पश्चात् बिना पचा हुआ भोजन खाद्यधानी द्वारा बाहर निकल दिया जाता है। जबकि मनुष्यों में, भोजन (जो जटिल पदार्थ है) मुंह के अंदर ले जाया जाता है और पाचन और अवशोषण की एक जटिल प्रक्रिया से गुजरता है। अंत में बचा हुआ पदार्थ मल के रूप में निष्कासित कर देता है।
क्या हम केवल हरी सब्जियों/घास का भोजन कर जीवन निर्वाह कर सकते हैं? चर्चा कीजिए।
कच्चे पत्तेदार सब्जियां और घास सेल्यूलोज (एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट) से समृद्ध हैं। मनुष्यों सहित कई जानवर सेल्यूलोज को पचा नहीं सकते, क्योंकि उनके पास विशेष एंजाइम और कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया नहीं होते हैं जो सेल्यूलोज को पचा सकते हैं। इसलिए हम उन सब्जियों को उबालते या पकाते हैं जो सेल्यूलोज को सरल कार्बोहाइड्रेट में तोड़ देती हैं। हम केवल सब्जियों को उबले हुए या पके हुए रूप में लेकर खाकर उसको पचा सकते हैं।
प्राणियों में पोषण
जंतु विभिन्न प्रकार से भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के पाचन की क्रिया सामान्यत: समान होती है। जंतुओं में पोषण क्रिया दो महत्वपूर्ण घटकों – पाचन तथा अवशोषण से पूरी होती है। जंतु परपोषी होते हैं। अपने भोजन के लिए वे पौधों तथा अन्य जंतुओं पर निर्भर रहते हैं। इनमें अंतग्रहण पूर्णभोजी प्रकार का होता है। विभिन्न जीवधारी अपने भोजन को विभिन्न प्रकार से ग्रहण करते हैं। प्रत्येक जीवधारी में अपने भोजन प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की संरचनाएँ पाई जाती हैं जैसे – कूटपाद (पादाभ), पक्ष्म (सीलिया), स्पर्शक, चूषक, जीभ, आहारनली, हाथ इत्यादि।
जीवों में भोजन प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की संरचनाएँ
कूटपाद (कूट-झूठे, पाद-पैर) | अमीबा में अँगुलियों के समान उभरे हुए कूटपाद पाए जाते हैं। अमीबा कूटपाद का उपयोग भोजन को पकड़ने तथा फँसाने में करता है। ये कूटपाद भोजन को खाद्यधानी से जोड़ते हैं तथा खाद्यधानी में ही भोजन का पाचन करते हैं। |
पक्ष्म (पक्ष्म – बाल के समान रचना) | पैरामीशियम के शरीर तथा मुख पर सेमयुक्त रचना होती हैं, जिन्हें पक्ष्म कहते हैं। ये संरचनाएँ भोजन को सीधे मुख (साइटोस्टोम) की तरफ ले जाती हैं। पक्ष्म खाद्य-कणों को मुख (साइटोस्टोम) की ओर अपनी गति से ढकेलते हैं। अमीबा भी इसी तरह भोजन ग्रहण करने की विधि अपनाते हैं। |
स्पर्शक | ये धागे के समान लंबी संरचनाएँ हाइड्रा के चारों तरफ होती हैं। इनमें दंश कोशिकाएँ पाई जाती हैं। जो शिकार मारती हैं और इसके बाद स्पर्शक शिकार को मुख में पहुँचाते हैं। शिकार नीचे की तरह देहगुहा में गिर जाता है और एंजाइम (विकार) शिकार पर क्रिया करके पचाता है। पाचित भोजन देहगुहा की कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। |
जीभ | मेंढक की जीभी दरारयुक्त होती है। यह सिरे पर से अंदर की तरफ मुड़ी हुई होती है। यह चिपचिपी भी होती है। जैसे ही मेंढक किसी हलचल करते हुए कीट को देखता है, वैसे ही वह अपनी जीभ को सीधे करके उस पर प्रहार करता है तथा उसे पकड़कर वापस अपनी जीभ को मोड़ लेता है और उसे निगल जाता है। मेंढक की जीभ लचीली होती है, जो अंदर या बाहर करने के लिए स्वतंत्र होती है। |
आहार नलिका | तितली के द्वारा भी आहार-नलिका का उपयोग होता है, जो तरल पदार्थ ग्रहण करती है जैसे – फूलों का रस। द्रव पदार्थों को ग्रहण करने वाले जीवों को चाटने और चूसने की क्रिया के लिए अलग तरह के मुख भाग होते हैं। इसका एक उदाहरण है – घरेलू मक्खी। |
इस प्रकार, जीव-जंतु विभिन्न प्रकार के अंगों द्वारा भोजन ग्रहण करते हैं। मक्खी की संरचना प्लेट की तरह होती है, जो भेदने और चूसने का काम करती है। एक मकड़ी जाल बुनकर शिकार पकड़ती है। हम अपने हाथों का उपयोग भोजन को मुँह में ले जाने के लिए करते हैं। ऑक्टोपस और जोंक चूसने वाले (चूषक) जंतु हैं। ये पोषद से रस चूसते हैं।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 के प्रश्न उत्तर विस्तार से
प्राणियों में पोषण के विभिन्न चरण
जंतु पोषण में हम पूर्णभोजी पोषण के नाम से भी जानते हैं। जंतुओं तथा मनुष्यों को कोशिकाओं में पोषण, भोजन-ग्रहण से भोजन निष्कासन तक पाँच पदों द्वारा पहुँचता है।
- अंतर्ग्रहण: जिस प्रक्रिया द्वारा जीव अपना भोजन ग्रहण करते हैं, वह प्रक्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है। हम जानते हैं कि विभिन्न जीवधारी अपना भोजन प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाते हैं।
- पाचन: जिस प्रक्रिया द्वारा संयुक्त ठोस, अघुलनशील तथा भोजन के बड़े टुकड़ों को एंजाइमों की क्रिया द्वारा तरल घुलनशील तथा स्वांगीकरण के आवश्यक तत्वों में बदलते हैं, वह प्रक्रिया पाचन कहलाती है।
- अवशोषण: वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा कोशिकाएँ पचे हुए भोजन (पोषक तत्व) को अवशोषित करती हैं, अवशोषण कहलाती है। मनुष्य में, पोषक तत्वों का (पचे हुए भोजन का) अवशोषण छोटी आँत में अँगुलियों के समान रचना, विधि द्वारा होती है।
- स्वांगीकरण: वह प्रक्रिया, जिसमें सरल, घुलनशील, पचा हुआ भोजन शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्रहण किया जाता है और उसका उपयोग ऊर्जा की उत्पत्ति तथा वृद्धि में सहायक होता है ‘स्वांगीकरण’ कहलाती है।
- उत्सर्जन: जिस प्रक्रिया द्वारा अनुपयोगी तथा बिना अवशोषित भोजन को शरीर से हटाया जाता है, वह प्रक्रिया (मल त्याग) अथवा उत्सर्जन कहलाती है।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 2 में कौन सा भाग परीक्षा की दृष्टि से सबसे अधिक महावपूर्ण हैं?
कक्षा 7 विज्ञान के अध्याय 2 में मानव में पाचन से संबन्धित सभी अनुच्छेद महत्वपूर्ण हैं। मुख तथा मुख-गुहिका से लेकर गुदा तक के हर भाग की पहचान तथा पाचन में इन अंगों का योगदान ही इस पाठ का सारांश है।
अंत:कोशिकीय पाचन किसे कहते हैं?
एककोशिकीय जंतु जैसे अमीबा के भोजन का पाचन खाद्यधानी में होता है। खाद्यधानी के किनारे से विकार (एंजाइम) स्रावित होते हैं। रासायनिक क्रिया के कारण भोजन सरल अवस्था में पच जाता है। इस प्रकार के पाचन को अंत:कोशिकीय पाचन कहते हैं।
एंजाइम (विकार) क्या है?
एंजाइम एक जीव-उत्प्रेरक है जो प्रोटीन का बना होता है। एंजाइम जैव-रासायनिक क्रिया की गति को अंतिम उत्पाद में बिना किसी बदलाव के त्वरित करता है।
मनुष्य में कितने प्रकार के दाँत पाए जाते हैं?
मनुष्य में चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं।
1. कृंतक: सबसे आगे के दाँत भोजन को कुतरने व काटने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते हैं। एक और 2 दाँत होते हैं।
2. रदनक: भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते हैं। मांसाहारियों में अधिक विकसित होते हैं। प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते हैं।
3. चवर्णक: चबाने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते हैं।
4. अग्र चवर्णक: ये भी चबाने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 6-6 होते हैं।
अंतिम चवर्णक दाँत को अक्ल जाड़ कहते हैं।