एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर भाग 2 पाठ 2 के सभी उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए छात्र यहाँ से मुफ्त प्राप्त कर सकते हैं। 12वीं कक्षा राजनीति अध्ययन के पाठ 2 को यहाँ दिए गए विडियो विवरण के माध्यम से भी आसानी से समझा जा सकता है। विद्यार्थी यदि पीडीएफ समाधान के माध्यम से प्रश्नों के उत्तर न समझ पायें तो वे विडियो की मदद से इसे आसानी से समझ सकते हैं।
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 2 एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर
सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ _____ के लिए भी चुनाव कराए गए थे। ( भारत के राष्ट्रपति पद/राज्य विधानसभा/राज्यसभा/प्रधानमंत्री)
(ख) ______ लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रहीं। (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी/भारतीय जनता पार्टी)
(ग) _______ स्वतंत्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धांत था। (कामगार तबके का हित/रियासतों का बचाव/राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था/ संघ के भीतर राज्यों को स्वायत्तता)
उत्तर:
(क) राज्य विधानसभा
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था
यहाँ दो सूचियाँ दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल बैठाएँ :
स्तम्भ 1 | स्तम्भ 2 |
---|---|
(क) एस.ए. डांगे | (i) भारतीय जनसंघ |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (ii) स्वतंत्र पार्टी |
(ग) मीनू मसानी | (ii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
(घ) अशोक मेहता | (iv) भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी |
उत्तर:
स्तम्भ 1 | स्तम्भ 2 |
---|---|
(क) एस.ए. डांगे | (iv) भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (i) भारतीय जनसंघ |
(ग) मीनू मसानी | (ii) स्वतंत्र पार्टी |
(घ) अशोक मेहता | (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ:
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी-प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी प्रभुत्व का संबंध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी-प्रभुत्व से देश में लोकतांत्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती ? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतरों का उल्लेख करें।
भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतर निम्नलिखित है:
क्रमांक
1. भारतीय संध
2. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
3. यह पार्टी जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जे के पक्ष में थी।
4. यह पार्टी दोनों देशों को अलग-अलग राष्ट्र मानती थी।
5. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की समस्याओं का समाधान साम्यवाद द्वारा करना चाहती थी।
6. भारतीय जनसंघ
7. भारतीय जनसंघ पार्टी जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाने के पक्ष में था।
8. भारतीय जनसंघ ने भारत तथा पाकिस्तान को एक अखंड भारत बनाने का विचार रखा।
9. भारतीय जनसंघ पूरे भारत में एक देश, एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति के विचार का समर्थक था।
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबंधन थी ? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। उस वक्त यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित-समूह भर थी लेकिन 20वीं सदी में इसने जनआंदोलन का रूप ले लिया। आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी। और वर्ग, जाति, भाषा, धर्म आदि हितों पर आधारित इस सामाजिक गठबंधन से भारत की विविधता की नुमाइंदगी हो रही थी।
इनमें से अनेक समूहों ने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ एकमेव कर दिया। कई बार यह भी हुआ कि किसी समूह ने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ एकसार नहीं किया और अपने-अपने विश्वासों को मानते हुए बतौर एक व्यक्ति या समूह के कांग्रेस के भीतर बने रहे। इस अर्थ में कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबंधन भी थी। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, वामपंथी और हर धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। आजादी से पहले के वक्त में अनेक संगठन और पार्टियों को कांग्रेस में रहने की इजाजत थी। हालाँकि इन संगठनों और पार्टियों के अपने-अपने संविधान थे। इनका सांगठनिक ढाँचा भी अलग था। इनमें से कुछ (मसलन कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी) बाद में कांग्रेस से अलग हो गए। कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयों विभिन्न गुटों को मिलाकर बनी थीं। ये गुट अलग-अलग विचारधारात्मक रूख अपनाते थे और कांग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आत थी। अतः यह कहा जा सकता है कि विचारधारात्मक रूप से कांग्रेस एक व्यापक गठबंधन के रूप में उभरी।
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
यह कथन सत्य है क्योंकि एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणालि का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। एक लम्बी अवधि तक एक ही राजनीतिक दल था। इसी के कारण अन्य कोई भी विचारधारा, गठबंधन तथा पार्टी सामने नहीं आ पाई जिससे चुनाव में मतदाताओं के पास काँग्रेस को समर्थन देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच के तीन का उल्लेख करें।
समाजवादी दल तथा कम्युनिस्ट पार्टी के बीच तीन अंतर इस प्रकार हैं:
कम्युनिस्ट पार्टी | समाजवादी दल |
---|---|
कम्युनिस्ट पार्टी प्राथमिक रूप से धर्मनिरपेक्ष, आधुनिक तथा अधिकारवादी थी। | समाजवादी दल ने पूँजीवाद की आलोचना और समाजवादी राज्य की स्थापना का सहयोग किया। |
यह दल साम्यवादी आदर्शों पर आधारित था। | समाजवादी दल समाजवादी आदर्शों पर आधारित था। |
कम्युनिस्ट पार्टी सामाजिक क्रांति तथा आंदोलन, हिंसात्मक साधनों में विश्वास करती थी। | समाजवादी दल संवैधानिक तरीके से समाजवाद को लागू करना चाहती थीं। |
भारतीय जनसंघ तथा स्वतंत्र पार्टी के मध्य तीन अंतर इस प्रकार हैं:
भारतीय जनसंघ | स्वतंत्र पार्टी |
---|---|
भारतीय जनसंघ हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार का समर्थन करती है। | स्वतंत्र पार्टी धर्म-निरपेक्षता का समर्थन करती है। |
भारतीय जनसंघ गुट–निरपेक्षता की नीति का समर्थन करती थी। | स्वतंत्र पार्टी गुट-निरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से दोस्ताना रिश्ते कायम रखने को भी गलत मानती थी। |
भारतीय जनसंघ के संस्थापक – डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। | स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक – सी. राजगोपालाचारी थे। |
भारत और मैक्सिको दोनों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएँ कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
भारत और मैक्सिको दोनों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था। भारत में लोकतांत्रिक आधार पर एक दल का प्रभुत्व बना हुआ था जबकि मैक्सिको में एक दल की तानाशाही थी एवं लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था। भारत में कांग्रेस का प्रभुत्व एक साथ नहीं रहा जबकि मैक्सिको में पी. आर. आई. (इंस्ट्यूशनल रिवोल्यूशन पार्टी ) का शासन लगातार 60 वर्षों तक चला। भारत में हमेशा निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव होते रहे। मैक्सिको में चुनावों में हेरा-फेरी होती रही।
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूहों से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक संगठित पार्टी के रूप में उभरे। ‘यथार्थवादी’ होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर “आंदोलन को चलाते चले जाने” के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस सामान्यवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था।
– रजनी कोठरी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगम तथा अनुशासित पार्टी नहीं लेना चाहिए?
(ख) शुरूआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) रजनी कोठरी (लेखक) का विचार है कि कांगेस को एक सर्वांगम तथा अनशासित पार्टी होनी चाहिए क्योंकि सरदार पटेल के विचारों को संदर्भित करते हुए लिख रहे हैं कि वे चाहते थे कि कांग्रेस एक व्यापक समूह न बने बल्कि एक निश्चित विचारधारा वाला अनुशासित दल बने। वे कांग्रेस को एक राजनीतिक दल की अपेक्षा एक आंदोलन के रूप में देखना चाहते थे।
(ख) शुरूआती वर्षों में कांग्रेस ने कई विषयों पर समन्वयवादी भूमिका निभाई। उदाहरण- कांग्रेस समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चली जैसे- किसान, वकील, व्यपारी, मजदूर आदि। इन सभी वर्गों ने कांग्रेस को समर्थन दिया। अनुसूचित जाति व जनजाति, राजपूत, ब्राह्मण तथा पिछड़ा वर्ग इनका भी समर्थन मिला। वामपंथी तथा दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी कांग्रेस में सम्मिलित थे। इसलिए यह कहना उचित होगा कि शुरूआती वर्षों में कांग्रेस ने कई विषयों पर समन्वयवादी भूमिका निभाई।