एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 धर्मनिरपेक्षता

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 धर्मनिरपेक्षता के अभ्यास के सवाल जवाब तथा अतिरिक्त प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से मुफ्त में प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 11 के विद्यार्थी राजनीति शास्त्र में राजनीतिक सिद्धांत के पाठ 8 के सभी प्रश्नों के लिए यहाँ से मदद ले सकते हैं और अपनी परीक्षा की तैयारी आसानी से कर सकते हैं।

निम्न में से कौन-सी बातें धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत हैं? कारण सहित बताइये।

(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबंधन समितियों की नियुक्ति करना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।

उत्तर:
(क) किसी धार्मिक समहू पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों की पहचान की रक्षा करती है। संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास तथा सिद्धांत का प्रसार व प्रचार का अधिकार है।
(ड) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना। धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है। इससे अल्पसंख्यक समुदाय को प्रोत्साहन मिलेगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत सभी अल्पसंख्यकों को धर्म या भाषा के आधार पर अपनी पसंद के आधार पर अपनी शैक्षिक संस्था को स्थापित करने का अधिकार है।
(छ) किसी मंदिर मे दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप। यह धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है। संविधान के अनुसार सभी बराबर हैं, न कोई जाति और धर्म के आधार पर बड़ा है और न ही कोई छोटा। सभी को पूजा स्थलों में जाने का समान अधिकार है।

धर्म-निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती है?

धर्म-निरपेक्षता से आशय है कि राज्य राजनीति अथवा किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे और सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी भेदभाव न करे। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन में 1976 के बाद पंथ निरपेक्ष शब्द जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्षता को सर्वप्रथम और सर्वप्रमुख रूप से ऐसा समझा जाना चाहिए जो अंतर-धर्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। इसका दूसरा पहलू अंतःधार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अंदर छुपे वर्चस्व का विरोध करना है। इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती है। राष्ट्र के विकास, एकता, अखंडता तथा शान्ति के लिए धर्मनिरपेक्षता को अपनाना ही सही है।

धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।
पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता भारतीय धर्मनिरपेक्षता
धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति। राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति।
विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होता है। एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना।
अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना। समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना।
व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्त्व दिया जाना। व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण।
उत्तर:
पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता भारतीय धर्मनिरपेक्षता
धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधाारों की अनुमति
एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होता
समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना।
व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्त्व दिया जाना

क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।

(क) धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान रखने की अनुमति नहीं देती है।
(ख) धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अंदर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ़ है।
(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिम और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।

(क) धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है। हम इस कथन से सहमत नहीं हैं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता राज्य और धर्म को अलग-अलग मानता है। सभी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार धर्म अपना सकता है तथा धार्मिक पहचान भी रख सकता है। धर्मनिरपेक्षता धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति देता है।

(ख) धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अंदर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ़ है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता धार्मिक समुदाय में समानता को बनाए रखने की बात पर बल देता है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है। धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य है सभी धर्मों के बीच समानता तथा राज्य द्वारा किसी धर्म के प्रति पक्षपात नहीं किया जाएगा।

(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। हम इस कथन से सहमत हैं। धर्मनिरपेक्षता की उत्पत्ति विशेष तौर पर अमेरिका में हुई। भारतीय धर्मनिरपेक्षता बहुत हद तक पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता हमारे देश के विचारकों की ही देन है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्ही बातों पर है। इस कथन को समझाइये।

भारत की धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच संबंध विच्छेद पर बल नहीं देती है। भारत में पहले से ही अंतर-धार्मिक ‘सहिष्णुता की संस्कृति मौजूद थी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सहिष्णुता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है। हो सकता है कि सहिष्णुता में हर किसी को कुछ मौका मिल जाए, लेकिन ऐसी आजादी प्रायः सीमित होती है। धर्मनिरपेक्षता ने अंतःधार्मिक और अंतर-धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया। इसने हिंदुओं के अंदर दलितों और महिलाओं के शोषण और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अंदर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया। भारतीय धर्मनिरपेक्षता मे राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश है। फ़लस्वरूप भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया।

सैद्धांतिक दूरी क्या है ? उदाहरण सहित समझाइये।

धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत सैद्धांतिक दूरी का तात्पर्य
धर्मनिरपेक्षता को सबसे पहले ऐसा सिद्धांत समझा जाना चाहिए जो अंतर धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के महत्वपूर्ण पहलुओं में से केवल एक है। धर्मनिरपेक्षता का इतना ही महत्वपूर्ण दूसरा पहलू अन्तः धार्मिक वर्चस्व में है। यही सैद्धांतिक दूरी है। भारतीय संविधान घोषणा करता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को देश के किसी भी भाग में स्वतंत्रता तथा प्रतिष्ठा के साथ रहने का अधिकार है। परंतु वर्तमान समय में भेदभाव के कई रूप दिखाई देते हैं।

इसके उदाहरण हैं:
हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। वे दशकों के बाद भी अपने घर नहीं लौट पाए।
सन् 1984 के दंगों में देश के कई भागों में लगभग 4000 सिक्खों को मारा गया। पीड़ितों के परिजनों का कहना है कि दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली है।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि भेदभाव हुआ है। नागरिकों के एक समूह को बुनियादी स्वतंत्रता से वंचित किया गया है। सैद्धांतिक दूरी के अंतर्गत राज्य को किसी भी धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अतः भारतीय धर्मनिरपेक्षता में सैद्धांतिक दूरी बनाए रखने का अर्थ है कि आवश्यकता पड़ने पर ही धार्मिक विषयों में हस्तक्षेप करना चाहिए।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 8
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 सवाल जवाब
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