एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 5 विधायिका
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 5 विधायिका के सभी प्रश्नों के उत्तर चरण दर चरण समझकर लिखे गए हैं ताकि छात्र सत्र 2024-25 में अपनी परीक्षा की तैयारी आसानी से कर सकें। कक्षा 11 राजनीति शास्त्र एनसीईआरटी भारत का संविधान, सिद्धांत और व्यवहार के पाठ 5 के उत्तर हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही माध्यम में उपलब्ध हैं।
कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 5 विधायिका के प्रश्न उत्तर
लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में क्यों कारगर ढंग से नियंत्रण में रख सकती है?
लोकसभा, राज्यसभा की तुलना में कार्यपालिका पर अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रण रखती हैं क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित निकाय है मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है न कि राज्यसभा के।
लोकसभा के पास कानून बनाने, सवाल पूछने और संविधान में संशोधन करने की शक्ति है लोकसभा अविश्वास व्यक्त करके सरकार को हटा सकती है लेकिन राज्यसभा किसी भी सरकार को नहीं हटा सकती है।
लोकसभा के पास वित्त को नियंत्रित करने की महत्वपूर्ण शक्ति है क्योंकि वह धन विधेयक को अस्वीकार कर सकती है लेकिन राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है।
भारत में कायर्पालिका अपने कार्यों तथा शासन के कार्य के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी हैं, परंतु यह उत्तरदायित्व वास्तव में लोकसभा के प्रति है जो उस पर राज्यसभा की तुलना में अधिक प्रभावकारी नियंत्रण रखती है। लोकसभा भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है, और राज्यसभा भारतीय संघ की इकाइयों अर्थात् राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन इस संबंध मे यह स्मरणीय है कि राज्यसभा में भारतीय संघ के सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं किया गया है।
लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नही बल्कि जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण बताऍं।
लोकसभा जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं द्वारा लोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर और प्रत्यक्ष निर्वाचन के द्वारा से होता है लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा के दुगुने से भी अधिक होने के कारण संयुक्त बैठक में लोकसभा की ही इच्छानुसार कार्य होने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।
यह कथन काफी हद तक सही है कि लोकसभा जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है क्योंकि लोकसभा 543 चुने हुए प्रतिनिधियों का सदन है जो 1.3 अरब से अधिक भारतीय जनता की इच्छाओं, हितों, भावनाओं व अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं परंतु इस कार्य को करने के लिए लोकसभा के सदस्यों का सरकार पर नियंत्रण करना भी अत्यंत आवश्यक है। सरकार की मनमानी पर नियंत्रण करना, जनता के हितों इच्छाओं व आवश्यकताओं को सरकार तक पंहुचाना भी जनहित को पूरा करने के लिए आवश्यक है तथा संसद का कार्य जनता के हितों की रक्षा करना होना चाहिए।
संसद को ज़्यादा कारगर बनाने के नीचे कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताऍं कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे।
(क) संसद को अपेक्षाकृत ज़्यादा समय तक काम करना चाहिए।
(ख) संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।
(ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दण्डित कर सकें।
उत्तर:
(क) संसद को अधिक कार्यदायी बनाने के लिए, इस कथन से सहमत हैं कि संसद को अपेक्षाकृत ज़्यादा समय तक काम करना चाहिए, क्योंकि इससे कार्य समय पर होंगे तथा संसद के पास काम का बोझ नहीं रहेगा। इसी प्रकार जब भी सदन की बैठक 4 घंटे से कम चले तो सदस्यों को उस दिन का भत्ता न दिया जाए। संसद को बिना काम-काज के कोई भी भत्ता नहीं दिया जाना चाहिए। यदि संसद अपेक्षाकृत अधिक समय तक काम करेगी तो देश के विकास कार्य नियत समय पर पूरे हो पायेंगे।
(ख) संसद के लिए निर्वाचित होने के पश्चात् संसद सदस्य कतिपय सुख-सुविधा के हकदार हो जाते हैं। ये सुख सुविधाएं संसद सदस्यों को इस दृष्टि से प्रदान की जाती हैं जिससे सदस्यगण समय का सदुपयोग राष्ट्रीय हित के कार्यों में कर सकें। अधिकांश संसद सदस्य सदन में अनुपस्थिति रहते हैं। जिससे सदन में महत्वपूर्ण विषयों पर आवश्यक विचार विमर्श नही हो पाता। सभी सदस्यों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि जब सदन की बैठक हो तो प्रत्येक सदस्य सदन में उपस्थिति होना चाहिए।
(ग) लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष का पद एक महत्पूर्ण स्थान रखता है। अध्यक्ष के पद के बारे में कहा जाता है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह उस सदन की गारिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष उस सदस्य या उन सदस्यों को दण्डित कर सके जो सदन की कार्यवाही में अनाश्यक व्यवधान उत्पन्न करते हैं। इस कथन से पूर्ण सहमत हैं।
आरिफ यह जानता था कि मंत्री ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुमत वाले दल अक्सर सरकारी विधेयक को पारित कर देते हैं, तो फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका क्या है? आप आरिफ को क्या उत्तर देंगे?
आरिफ का मानना सही है कि संसदीय प्रणाली में अधिकांश बिल सरकारी बिल होते हैं। जिन्हें मंत्री ही तैयार करते हैं वे मंत्री ही उसे प्रस्तुत करते हैं इस स्थिति में व्यावाहरिक रूप से यह स्थिति दिखाई देती है कि संसद केवल उस बिल पर मुहर लगाने वाली संस्था बन गई है। विधायिका के सदस्यों का यह दायित्व होता है कि वे सदन में जनहित को दृष्टिगत रखकर सरकार के निर्णयों का समर्थन करें अथवा विरोध करें, भले ही वे किसी भी दल के हो। संसद केवल एक रबड़ स्टैम्प ही नही हैं। शासक दल के सदस्य सरकार की प्रत्येक सही व गलत बात का समर्थन करेंगे।
संसद कानून बनाने की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक है, भले ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक मंत्रियों द्वारा प्रस्तावित किए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रस्तावित कानून के प्रावधानों पर बहस की आवश्यकता है। विपक्ष भी विधेयक में आवश्यकतानुसार परिवर्तनों का सुझाव देकर कानून बनाने में भाग लेता है और इस प्रकार, संसद में विधायी प्रक्रिया का होना आवश्यक है।
आप निम्नलिखित में से किस कथन से सबसे ज़्यादा सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताइये।
(क) सासंदों/विधायकों को अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होने की छूट होनी चाहिए।
(ख) दल-बदल विरोधी कानून के कारण पार्टी के नेता का दबदबा पार्टी के संसदों/विधायकों पर बढ़ा है।
(ग) दल बदल हमेशा स्वार्थ के लिए होता है और इस कारण जो विधायक/सांसद दूसरे दल में शमिल होना चाहते हैं उसे आगामी दो वर्षों के लिए मंत्री पद के अयोग्य करार कर दिया जाना चाहिए।
उपरोक्त दिए गए कथनों में कथन (ग) से मैं पूर्ण सहमत हूँ। अन्य कथन भी कुछ संशोधन के साथ सही हो सकते हैं।
(क) विधायकों को अपनी पंसद की किसी भी पार्टी में शामिल होने के लिए स्वंतत्र नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा मिलेगा, विशेष परिस्थितियों में जैसे विश्वास प्रस्ताव के समय सैद्धांतिक रूप से, उन्हें उस पार्टी को छोड़ने के लिए स्वंतत्र होना चाहिए। जो राष्ट्रीय हित के खिलाफ हो।
(ख) एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है। कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शमिल हो जाता है। किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है। कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है। कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें दल-बदल पर भी अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकेगा। दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल मे या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है।
(ग) दल बदल विरोधी कानून यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है जिससे एक स्थिर सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सके। यह कानून एक विधायक या सांसद को उसके विवेक, निर्णय और अपने मतदाता के हितों के अनुरूप मतदान करने से भी रोकता है। राजनीतिक दल ससंदों या विधायकों को यह निदेश जारी करते हैं कि किसके पक्ष या विपक्ष में मतदान करना है। किसी भी सांसद या विधायक को दल-बदल का अधिकार केवल चुनाव के समय होना चाहिए। यदि कोई सदस्य कार्यकाल पूर्ण होने से पहले दल बदलता करता है तो शेष समय के लिए उसे योग्य घोषित कर देना चाहिए।
डॉली और सुधा में इस बात पर चर्चा चल रही है कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभावकारी है। डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज मे गिरावट आयी है यह गिरावट एक दम साफ दिखायी देती है क्योंकि अब बुनियादी मसलों पर बहस में समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वॉकआउट करने में ज़्यादा। सुधा का तर्क था कि लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुँह की खायी हैं, धराशायी हुई है। आप सुधा या डॉली के तर्क के पक्ष या विपक्ष में और कौन सा तर्क देंगे?
उत्तर:
डॉली का कहना एक दम सत्य हैं कि सदन का बहुमूल्य समय व्यर्थ की बहस व अन्य गतिविधियों में खत्म कर रहे हैं तथा उपयोगी काम धीरे-धीरे कम होता जा रहा है संसद का वातावरण व कार्यविधि में गिरावट आई है जिससे संसद की गरिमा को भी धक्का लगा है। सदन के अध्यक्ष प्रायः असहाय से दिख रहे हैं।
सुधा का कहना भी सत्य है कि बार बार सरकारें गिरती रहती है अर्थात् जिस सरकार का संसद में बहुमत समाप्त हो जाता है वह सरकार गिर जाती है परंतु यह ससंदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नही है।
लोकतंत्र के लिए संसद की गारिमा सर्वोच्च होनी चाहिए, लेकिन यह तभी संभव होगा जब राजनीतिक दलों का नैतिक चरित्र उच्च कोटि का हो तथा सदन के अध्यक्ष का अनुशाशन भी निष्पक्ष और कठोर होना चाहिए।
किसी विधेयक को कानून बनने के क्रम में जिन अवस्थाओं से गुज़रना पड़ता है उन्हें क्रमवार सजाऍं।
(क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है-बताएं कि वह अगर इस पर हस्ताक्षर नही करता/करती है, तो क्या होता है।
(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहां इसे पारित कर दिया जाता है।
(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में प्रस्तुत हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है।
(ङ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
(च) विधेयक उप समिति के पास भेजा जाता है समिति उसमें कुछ फेर-बदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।
(छ) सम्बद्ध मंत्री विधेयक की ज़रूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।
(ज) विधि मंत्रायल का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है।
उत्तर:
(छ) सम्बद्ध मंत्री विधेयक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव पारित करता है।
(ज) विधि मंत्रालय का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है।
(क) किसी विधेयकों पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
(च) विधेयक उप समिति के पास भेजा जाता है समिति उससे कुछ फेर-बदल करती है और चर्चा के लिए सदन में
भेज देती हैं
(ड़) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिसे सदन में प्रस्तुत हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है।
(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहां इसे पारित कर दिया जाता है।
(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है-अगर राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर कर देता है तो यह क़ानून बन जाता है। राष्ट्रपति इस प्रकार के बिल को पुनः विचार विमर्श के लिए भेज सकता है, परन्तु पुनः विचार विमर्श के बाद राष्ट्रपति को इस पर मंजूरी देनी पड़ती है।
ससंदीय प्रणाली में समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देख-रेख पर क्या प्रभाव पड़ता है?
कानून निर्माण संसद का काम है और प्रत्येक सदन अपनी समितियों की सहायता से उसे निभाता है। प्राय: बिलों को विस्तृत विचार के लिए किसी समिति को सौंपा जाता है और सदन उस समिति का सिफारिशों के आधार पर उस पर विचार विमर्श करके उसे स्वीकृत या अस्वीकृत करता है अधिकतर मामलों में सदन समिति की सिफारिशों के आधार पर ही उसका निर्णय करता है और इसी आधार पर लोगों का मत है कि इससे संसद का कानून बनाने की शक्ति कुप्रभावित हुई है।
सदन में समिति की रिपोर्ट पर विचार करते समय यदि सदन अनुभव करे कि बिल के प्रभाव पर भली-भांति विचार नहीं हुआ है या इसपर पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट दी गई है तो वह उसे पुनः उसी समिति या किसी नई समिति को भेज सकता है, अथवा समिति की रिपोर्ट को स्वीकार न करे। सदन अपना स्वतंत्र निर्णय भी ले सकता है। संसद के पास इतना समय नही होता है कि वह प्रत्येक बिल पर या उसकी प्रत्येक धारा पर विचार कर सके और उसका प्रत्येक दृष्टिकोण से विश्लेषण कर सके।