एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 न्यायपालिका
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 न्यायपालिका के सवाल जवाब हिंदी और अंग्रेजी में सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। ग्यारहवीं कक्षा में राजनीति शास्त्र भारत का संविधान, सिद्धांत और व्यवहार के पाठ 6 के अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में विस्तार से दिए गए हैं।
कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 न्यायपालिका के प्रश्न उत्तर
क्या न्यायपालिका की स्वंतत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि न्यायपलिका किसी के प्रति जवाबदेही न हो। न्यायपालिका भी संविधान का ही भाग है न कि संविधान से ऊपर है। न्यायपालिका भी संविधान के अनुसार ही कार्य करती है। न्यायपालिका का उदेश्य भी संविधान व प्रजांतत्र के उदेश्य को पूरा करना है। अत:, न्यायपलिका की स्वतंत्रता के निर्णयों को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाए। न्यायपालिका अपनी नियुक्ति के लिए, सेवाकाल के लिए व सेवा शर्तों से सेवा सुविधाओं के लिए कार्यपालिका व विधानपालिका पर निर्भर ना हो। न्यायाधीश को हटाने का तरीका भी पक्षपातरहित हो। भारत में न्यायपालिका की स्वंतत्रता है तथा सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है।
न्यायपलिका की स्वंतत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?
न्यायपालिका की स्वंतत्रता को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में निम्न प्रावधान हैं:
(क) न्यायधीशों की नियुक्ति में सासंद की कोई भूमिका नहीं होती है।
(ख) न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए निश्चित योग्यताए नहीं होती है।
(ग) न्यायधीशों के अपने वेतन भत्तों व अन्य आर्थिक सुविधाओं के लिए कार्यपालिका अथवा ससंद पर निर्भर नहीं है। उनके खर्चो से सबंधित बिल पर बहस व मतदान नहीं होता।
(घ) न्यायधीशों का सेवा काल लम्बा व सुरक्षित होता है यद्धपि कुछ परिस्थितियों में इनको हटाया भी जा सकता है परंतु महाभियोग की प्रक्रिया काफी लम्बी व मुशिकल होती है।
(ङ) न्यायधीशों के कार्यों पर व निर्णयों के आधार पर उनकी व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती।
(च) जो न्यायालय का व उनके निर्णयों का अपमान करते हैं न्यायालय उनको दण्डित कर सकती है।
(छ) न्यायालय के निर्णयों बाध्यकारी होते हैं।
नीचे की समाचार-रिपोर्ट पढें और, चिन्हित करें कि रिपोर्ट में किस-किस स्तर की सरकार सक्रिय दिखाई देती है।
(क) सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की निशानदेही करें।
(ख) कार्यपालिका और न्यायालय के कामकाज की कौन-कौन सी बातें आप इसमें पहचान सकते हैं?
(ग) इस प्रकरण से सबंधित नीतिगत मुद्दें, कानून बनाने से संबंधित बातें, क्रियान्वयन तथा कानून की व्याख्या से जुड़ी बातों की पहचान करें।
(घ) सीएनजी- मुद्दे पर केन्द्र और दिल्ली सरकार एक साथ – स्टाफ रिपोर्ट, द हिन्दू, सितंबर 23, 2001.
राजधानी के सभी गैर-सीएनजी व्यावसायिक वाहनों को यातायात से बाहर करने के लिए केंद्र और दिल्ली
सरकार ________ यातायात प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाएगी।
उत्तर:
(क) इस केस में केन्द्रीय सरकार व दिल्ली सरकार शामिल हैं।
(ख) यातायात के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निश्चित मापदंड के आधार पर इस वाद की सही व्याख्या करने में सर्वोच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
(ग) कार्यपालिका प्रदूषण नियंत्रण की नीति का सही ढंग से क्रियान्वयन करेगी तथा न्यायपलिका यह तय करेगी कि कार्यपालिका की बनाई नीति का कितनी कारगर है तथा कहीं उसका उल्लंघन तो नहीं हो रहा है।
(घ) इस प्रकरण में नीतिगत निर्णय दिल्ली सरकार का यह है कि दिल्ली में सी.एन.जी. के प्रयोग वाली बसें ही चलेंगी। इस स्थिति के अनुसार दिल्ली सरकार कानून बनाएगी। नीति व कानून की व्यख्या के सबंध में यह निणर्य लिया गया कि ऐसा करते समय प्रदूषण से सुरक्षा को मुख्य रूप से ध्यान में रखा जाए।
निम्नलिखित कथन इक्वाडोर के बारे में है। इस उदाहरण और भारत की न्यायपालिका के बीच आप क्या समानता अथवा असमानता पाते हैं? सामान्य कानूनों की कोई संहिता अथवा पहले सुनाया गया कोई न्यायिक फैसला मौजूद होता तो पत्रकार के अधिकारों को स्पष्ट करने में मदद मिलती। दुर्भाग्य से इक्वाडोर की अदालत इस रीति से काम नहीं करती है पिछले मामलों में उच्चतर अदालत के न्यायाधीशों ने जो फैसले दिए हैं उन्हें कोई न्यायाधीश उदाहरण के रूप में मानने के लिए बाध्य नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत इक्वाडोर (अथवा दक्षिण अमेरिका में किसी और देश) में जिस न्यायाधीश के सामाने अपील की गई हैं उसे अपना फैसला और इसका कानूनी आधार लिखित रूप में नहीं देना होता। कोई न्यायाधीश आज एक मामलें में कोई फैसला सुनाकर कल उसी मामलें में दूसरा फैसला दे सकता है और इसमें उसे यह बताने की ज़रूरत नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है?
उत्तर:
भारतीय न्याय प्रणाली में किसी विषय पर उच्च न्यायालायों के द्वारा दिए गए निर्णय आगे आने वाले निर्णयों के लिए मार्गदर्शक होते हैं जो बाध्यकारी भी होते हैं। यह स्थिति इक्वाडोर के उदाहरण से भिन्न है क्योंकि वहां पर न्यायाधीश उसी विषय पर दिए गए निर्णय को मानने के लिए बाध्यकारी नहीं होता है भारतीय न्याय व्यवस्था व इक्वाडोर की न्याय व्यवस्था में एक समानता है यह है कि न्यायाधीश नई परिस्थिति में अपना पहला निर्णय किसी विषय पर बदल सकते हैं।
निम्नलिखित कथनों को पाढि़ए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमल में लाए जाने वाले विभिन्न क्षेत्राधिकार मसलन- मूल, अपीली और सलाहकारी – से इनका मिलान कीजिए।
(क) सरकार जानना चाहती थी कि क्या वह पकिस्तान-अधिग्रहीत जम्मू–कश्मीर के निवासियों की नागरिकता के सबंध में कानून पारित कर सकती है।
(ख) कावेरी नदी के जल विवाद के समाधान के लिए तमिलनाडु सरकार अदालत की शरण लेना चाहती है।
(ग) बांध स्थल से हटाए जाने के विरूद्ध लोगों द्वारा की गई अपील को अदालत ने ठुकरा दिया ।
उत्तर:
(क) परामर्श, संबधित अधिकार।
(ख) प्रारंम्भिक क्षेत्राधिकार।
(ग) अपीलीय क्षेत्राधिकार।
जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है?
न्याय वितरण की प्रक्रिया में जनहित याचिका की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण कदम है। इन याचिकाओं के माध्यम से उन व्यक्तियों को न्याय दिलाया जा सकता है। जो स्वयं अपने हित की रक्षा अज्ञानता के कारण या आर्थिक स्त्रोतों के अभाव के कारण करने में असमर्थ हैं। ऐसे व्यक्तियों के हितों के लिए कुछ दयालु व्यक्ति या संस्थाएं याचिका दायर करती हैं तथा आवश्यक प्रमाण व तथ्य प्रदान करती हैं तथा जनहित को प्राप्त करने का प्रयास करती हैं। सबसे पहले इस दिशा में न्यायधीश पी.एन. भगवती ने इस प्रकार की याचिका स्वीकार करके पहल की जिससे गरीब व असहाय लोगों को न्याय दिलाने में जनहित याचिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। न्यायाधीश पी.एन. भगवती ने सबसे पहलें 1984 में बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाया। भारत सरकार ने केस में जनहित याचिका स्वीकार की जिससे अनेक मज़दूरों को न्याय मिला।
क्या आप मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिक और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों?
भारतीय न्यायपालिका को न्याय पुन: निरीक्षण की शक्ति प्राप्त है जिसके आधार पर न्यायपालिका, विधानपालिका के द्वारा पारित कानूनों तथा कार्यपालिका के द्वारा जारी आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच कर सकता है, अगर ये संविधान के विपरीत पाए जाते हैं, तो न्यायपालिका उनको अवैध घोषित कर सकती है। परंतु न्यायपालिका की यह शक्ति सीमित है।
न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से किस रूप में जुड़ी है? क्या इससे मौलिक अधिकारों के विषय-क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिलती है?
न्याय सक्रियता भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में चर्चा का विषय है जिसको भारतीय आम जनता ने स्वीकार भी किया है तथा सराहा भी है क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी हुई है, एवं कार्यपालिका, विधानपालिका व नौकरशाही पर नियंत्रण करने में भी सहायता मिली है। भारतीय न्यायपालिका विभिन्न ऐसे राजनीतिक सामजिक व आर्थिक नीतिगत विषयों पर टिप्पणी करती है, जिनकों वह गलत मानती है।