एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 भूगोल अध्याय 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 भूगोल अध्याय 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास के हल सभी सवाल जवाब हिंदी और अंग्रेजी में यहाँ से सत्र 2024-25 के लिए डाउनलोड किए जा सकते हैं। कक्षा 11 भूगोल पाठ 7 पुस्तक भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत के इकाई III भू-आकृतियाँ के प्रश्नों के उत्तर यहाँ सरल भाषा में समझाए गए हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 भूगोल अध्याय 7

चटृानों में अध:कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्‍य विसर्प क्‍या बताते हैं?

नदी विकास की प्रारंभिक अवस्‍था में मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चटृानों में गहराई तक होते हैं जो प्राय: नदी अपरदन या भूतल के धीमें व लगातार उत्‍थान के कारण बनते हैं। कालांतर में ये गहरे तथा विस्‍तृत हो जाते हैं और कठोर चटृानी भागों में गहरे गॉर्ज व कैनियन के रूप में पाए जाते हैं। ये उन प्राचीन धरातलों के परिचायक हैं जिन पर नदियॉं विकसित हुई हैं। बाढ़ व डेल्‍टाई मैदानों पर लूप जैसे चैनल प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्‍हें विसर्प कहा जाता है। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है, जिससे जल का दबाव नदी पाश्रवों की तरफ बढ़ता है। प्राय: बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं और अवतल किनारों पर अधोमुखी कटाव होते हैं।

कक्षा 11 भूगोल अध्याय 7 बहुविकल्पीय प्रश्न

Q1

स्‍थलरूप विकास की किस अवस्‍था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?

[A]. तरुणावस्था
[B]. प्रथम प्रौढ़ावस्था
[C]. अंतिम प्रौढ़ावस्था
[D]. वृद्धावस्था
Q2

एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है?

[A]. U आकार घाटी
[B]. अंधी घाटी
[C]. गॉर्ज
[D]. कैनियन
Q3

निम्‍न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है?

[A]. आद्र प्रदेश
[B]. शुष्क प्रदेश
[C]. चूना–पत्थर प्रदेश
[D]. हिमनद प्रदेश
Q4

निम्‍न में से कौन सा वक्‍तव्‍य लेपीज शब्‍द को परिभाषित करता है?

[A]. छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त।
[B]. ऐसे स्थलरुप जिनके उपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं।
[C]. ऐसे स्थलरुप जो धरातल से जल से टपकने पर बनते हैं।
[D]. अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों।

घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?

सामान्‍यत: धरातलीय प्रवाहित जल घोल रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुज़रता हुआ अन्‍तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्‍चात् किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर निकल आता है। जब घोल रंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत के गिरने से या पदा‍र्थो के स्‍खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं तो लंबी तथा विस्‍तृत खाइयॉं बनती हैं, जिन्‍हें घाटी रंध्र या युवाला कहते हैं।

चूनायुक्‍त चटृानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्‍यों?

भौम जल का कार्य सभी प्रकार की चटृानों में नहीं देखा जा सकता है। ऐसी चटृानें जैसे चूना-पत्‍थर या डोलोमाइट, जिसमें कैल्सियम कार्बेनेट की प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी मात्रा अधिक देखने को मिलती है क्‍योंकि रासायनिक प्रक्रिया द्वारा चूना-पत्‍थर घुल जाते हैं। उस स्‍थान पर भौम जल जमा हो जाता है इसलिए चूना युक्‍त चटृानी प्रदेशों में धरातल जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल पाया जाता है।

हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्‍थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताऍं।

हिमनदियों के जमाव व निक्षेपण से अनेक स्‍थलाकृतियों का निर्माण होता है:

    • हिमोढ़: हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्‍मी मृतिका के जमाव की लंबी कटकें हैं। हिमनद द्वारा कई तरह के हिमोढ़ों का निर्माण होता है। जैसे: (क) अंतस्‍थ‍ हिमोढ़, (ख) पार्श्विक हिमोढ, (ग) मध्‍यस्‍थ हिमोढ़।
    • एस्‍कर: हिमनद के पिघलने के कारण बनी नदियॉं नदी घाटी के ऊपर बर्फ के किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्‍म, चटृानी टुकडे और छोटे चटृनी मलवे को बहाकर लाती है। जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक के रूप में मिलते हैं, जिन्‍हें एस्‍कर कहते हैं।
    • डुमालिन: डुमालिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चटृानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है।
मरूस्‍थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती हैं। क्‍या मरूस्‍थलों में यही एक कारक अपरदित स्‍थलरूपों का निर्माण करता हैं?

उष्‍ण मरूस्‍थलीय क्षेत्रों में पवन के कारण उडकर अपने आस-पास की चटृानों का कटाव करतें हैं, जिससे कई स्‍थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरूस्‍थलीय धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते हैं। ठंडी और गर्मी से चटृानों में दरारें पड़ जाती हैं। जो बाद में खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवन अपवाहन, घर्षण आदि द्वारा अपरदन करते हैं। मरूस्‍थलों में अपक्षय जनित मलबा होकर केवल पवन द्वारा ही नहीं, बल्कि वर्षा धोवन से भी प्रभावित होता है। पवन केवल महीन मलबे का ही अपवाहन कर सकते हैं और बृहत अपरदन मुख्‍यत: परत बाढ़ या वृष्टि धोवन से ही संपन्‍न होता है। मरूस्‍थलों में नदियॉं चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्‍प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

आर्द्र व शुष्‍क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्‍वपूर्ण भू-आकृतिक कारक हैं। विस्‍तार से वर्णन करें।

आर्द्र प्रदेशों में जहाँ अत्‍यधिक वर्षा होती है, प्रवाहित जल सबसे महत्‍वपूर्ण भू-आकृतिक कारक हैं जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी हैं। प्रवाहित जल के दो तत्‍व हैं। एक धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह है, और दूसरा रैखिक प्रवाह है जो घाटियों में नादियों, सरिताओं के रूप में बहता है। प्रवाहित जल निर्मित अधिकतर अपरदित स्‍थलरूप, प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रमण युवावस्‍था से सबंधित हैं।

कालांतर में तेज़ ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और परिणामस्‍वरूप नदियों का वेग कम हो जाता है, जिससें निक्षेपण आंरभ होता है। तेज़ ढाल से बहती हूई सरिताऍं भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियों बनाती है, लेकिन ये नादियों के मध्‍यम तथा धीमें ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम हैं। प्रवाहित जल की ढाल जितना मंद होगा, उतना ही अधिक निक्षेपण होगा। जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों पर पार्श्‍व अपरदन बढ़ जाता है।

इसके फलस्‍वरूप प‍हाडियॉं और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं। शुष्‍क क्षेत्रों में अधिकतर स्‍थालाकृतियों का निर्माण बृहत् क्षरण और प्रवाहित जल की चादर बाढ़ से होता है। यद्यपि मरूस्‍थलों में वर्षा बहुत कम होती है, लेकिन यह अल्‍प समय में मूलसाधर वर्षा के रूप में होती है। मरूस्‍थलीय चटृानें अत्‍यधिक वन‍स्‍पति विहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती है।

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