एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास अध्याय 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास अध्याय 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना के प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ दिए गए हैं। आठवीं कक्षा के छात्र इतिहास के पाठ 4 के प्रश्नों को यहाँ दिए गए विडियो के माध्यम से भी आसानी से समझ सकते हैं।
कक्षा 8 इतिहास अध्याय 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना के प्रश्न उत्तर
बिरसा मुंडा कौन थे? लोग उन्हें भगवान् क्यों मानते थे?
बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्व में मुंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वर्षों में मुंडाओं के महान आन्दोलन उलगुलान को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं। लोग कहते थे कि उसके पास चमत्कारी शक्तियां हैं – वह सारी बीमारियाँ दूर कर सकता था और अनाज की छोटी‑सी ढेरी को कई गुना बढ़ा देता था।
भारत में रहने वाले किसी भी आदि वासी समूह को चुनें। उनके रीति-रिवाज़ और जीवन पद्धति का पता लगाएँ और देखें कि पिछले 50 साल के दौरान उनके जीवन में क्या बदलाव आएँ हैं?
संथाल विद्रोह: वे झारखंड में बसने के लिए बीरभूमि, हज़ारीबाग़, बांकुरा और रोहतास से स्थानांतरित हुए थे। वे खुद को उस जमीन का मालिक मानते थे, जिस पर वे रह रहे हैं। कुछ साहूकारों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। 30 जून, 1855 को, संथालों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और सिंधु मुर्मू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में ब्रिटिश शासकों और उनके एजेंटों के खिलाफ आखिरी दम तक लड़ने की शपथ ली।
झूम खेती किस प्रकार की खेती है?
झूम खेती घुमंतू खेती को कहा जाता है। इस तरह की खेती अधिकांशतः जंगलों में छोटे-छोटे भूखंडों पर की जाती थी। ये लोग ज़मीन तक धूप लाने के लिए पेड़ों के ऊपरी हिस्से काट देते थे और ज़मीन पर उगी घास-फूस जलाकर साफ़ कर देते थे। इसके बाद वे घास-फूस के जलने पर पैदा हुई राख को खाली ज़मीन पर छिड़क देते थे। इस राख में पोटाश होती थी जिससे मिट्टी उपजाऊ हो जाती थी। वे कुल्हाड़ों से पेड़ों को काटते थे और कुदालों से ज़मीन की ऊपरी सतह को खुरच देते थे। वे खेतों को जोतने और बीज रोपने के बजाय उन्हें बस खेत में बिखेर देते थे। जब एक बार फ़सल तैयार हो जाती थी तो उसे काटकर वे दूसरी जगह के लिए चल पड़ते थे। जहाँ से उन्होंने अभी फ़सल काटी थी वह जगह कई साल तक परती पड़ी रहती थी।
बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
आदिवासी सरदार स्वर्ण युग की बात करते थे। यह वह युग था जब मुंडा लोग दीकुओं (शत्रुओं) के उत्पीड़न से मुक्त हो जायेंगे। उन्होंने एक ऐसे समय की कल्पना की जब समुदाय का पैतृक अधिकार बहाल हो जाएगा।
हर कोई ज़ुल्म से आज़ादी चाहता है और ज़्यादातर लोग अपने समुदाय का गौरव चाहते हैं। स्वर्ण युग की कल्पना आदिवासियों के लिए एक सपने के समान थी। इसलिए, यह दृष्टिकोण क्षेत्र के लोगों को पसंद आया।
आदिवासी मुखियाओं का क्या हुआ?
अंग्रेजों के आने से पहले बहुत सारे इलाकों में आदिवासियों के मुखियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। उनके पास औरों से ज़्यादा आर्थिक ताकत होती थी और वे अपने इलाके पर नियंत्रण रखते थे। कई जगह उनकी अपनी पुलिस होती थी और वे ज़मीन एवं वन प्रबंधन के स्थानीय नियम खुद बनाते थे। ब्रिटिश शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं के कामकाज़ और अधिकार काफ़ी बदल गए थे। उन्हें कई-कई गाँवों पर ज़मीन का मालिकाना हक़ तो मिला रहा लेकिन उनकी शासकीय शक्तियाँ छिन गई और उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों को मानने के लिए बाध्य कर दिया। उन्हें अंग्रेज़ों को नज़राना देना पड़ता था और अंग्रेज़ों के प्रतिनिधि की हैसियत से अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था। पहले उनके पास जो ताकत थी अब वह नहीं रही। वे परंपरागत कामों को करने से लाचार हो गए।
रिक्त स्थान भरें
(क) अंग्रेज़ों ने आदिवासियों को …………… के रूप में वर्णित किया।
(ख) झूम खेती में बीज बोने के तरीके को………….. कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदि वासी मुख्यिओं को …………. स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के …………. और बिहार की …………… में काम करने के लिए आदि वासी जाने लगे।
उत्तर:
(क) अंग्रेजों ने आदिवासी लोगों को असभ्य बताया।
(ख) झूम खेती में बीज बोने की विधि को स्थानांतरित खेती के रूप में जाना जाता है।
(ग) ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के तहत मध्य भारत में आदिवासी प्रमुखों को सरदार की उपाधियाँ मिलीं।
(घ) आदिवासी असम के चाय बागानों और बिहार में नील के बागानों में काम करने जाते थे।
औपनिवेशिक शासन के तहत आदि वासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आए?
ब्रिटिश शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं के कार्यों और शक्तियों में काफी बदलाव आया। उन्होंने अपनी अधिकांश प्रशासनिक शक्ति खो दी। उन्हें अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें अंग्रेज़ों को कर देना पड़ता था। उनसे ब्रिटिश सरकार की ओर से अपने लोगों को अनुशासित करने की अपेक्षा की गई थी। हालाँकि, उन्हें गाँवों के एक समूह पर अपनी भूमि का स्वामित्व रखने की अनुमति थी और वे भूमि किराए पर दे सकते थे। इस प्रकार, औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं का अधिकार काफी कम हो गया।
ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों के सामने कौन‑सी समस्याएँ थीं?
स्थानांतरित कृषकों को स्थायी खेती करने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन भूमि के प्रकार और पानी की कमी के कारण वे पर्याप्त उत्पादन नहीं कर सके। जब जंगल तक पहुंच प्रतिबंधित थी तो उनमें से कई को काम की तलाश में दूसरे क्षेत्रों में जाना पड़ा।
दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
व्यापारियों और साहूकारों के साथ बातचीत का मतलब आमतौर पर आदिवासियों के लिए कर्ज और गरीबी होता है। इसलिए, साहूकारों और व्यापारियों को दुष्ट बाहरी लोगों के रूप में देखा जाता था। उन्हें आदिवासी लोगों के दुख का कारण माना जाता था। साहूकारों और किसी भी बाहरी व्यक्ति को दीकु कहा जाता था।
सही या गलत बताएँ
(क) झूम काश्तकार ज़मीन की जुताई करते हैं और बीज रोपते हैं।
(ख) व्यापारी संथालों से कृमि कोष खरीदकर उसे पाँच गनुा ज़्यादा कीमत पर बेचते थे।
(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करें, शराब पीना छोड़ दें और डायन व जादू-टोने जैसी प्रथाओं में यकीन न करें।
(घ) अंग्रेज़ आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
उत्तर:
(क) झूम किसान भूमि की जुताई करते हैं और बीज बोते हैं। असत्य
(ख) कोकून संथालों से खरीदे जाते थे और व्यापारियों द्वारा खरीद मूल्य से पांच गुना अधिक कीमत पर बेचे जाते थे। सत्य
(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों से खुद को शुद्ध करने, शराब पीने का त्याग करने और जादू-टोने में विश्वास करना बंद करने का आग्रह किया। सत्य
(घ) अंग्रेज आदिवासी जीवन शैली को संरक्षित करना चाहते थे। असत्य