एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 8 क्षेत्राीय आकांक्षाएँ
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 8 क्षेत्राीय आकांक्षाएँ भाग 2 पाठ 8 के सभी प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए छात्र यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। पाठ का विवरण तथा विस्तार पूर्वक वर्णन पीडीएफ तथा विडियो के माध्यम से समझाया गया है। अभ्यास में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं। विद्यार्थी प्रत्येक उत्तर को आसानी से समझकर परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं।
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 8 एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 8 क्षेत्राीय आकांक्षाएँ
निम्नलिखित में मेल करें:
क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति | राज्य |
---|---|
(क) सामाजिक धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण | (i) नागालैंड/मिजोरम |
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव | (ii) झारखंड/छत्तीसगढ़ |
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण | (iii) पंजाब |
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग | (iv) तमिलनाडु |
क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति | राज्य |
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(क) सामाजिक धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण | (iii) पंजाब |
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव | (iv) तमिलनाडु |
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण | (i) नागालैंड/मिजोरम |
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग | (ii) झारखंड/छत्तीसगढ़ |
पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन, ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आंदोलन और अलग देश बनाने की माँग करना, ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिए अलग-अलग रंग भरिए और दिखाइए कि किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है।
उत्तर:
आन्दोलन का स्वरुप | राज्य |
---|---|
बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन | असम |
ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आंदोलन | मणिपुर व त्रिपुरा |
अलग देश की माँग | नागालैंड व मिजोरम |
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
पंजाब सूबे के पुनर्गठन के बाद अकाली दल ने यहाँ 1967 और इसके बाद 1977 में सरकार बनायी। राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अकाली दल के नरमपंथी नेताओं से बातचीत शुरू की और सिक्ख समुदाय को शांत करने का प्रयास किया। फलस्वरूप 1985 में अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल और राजीव गाँधी के बीच समझौता हुआ। समझौता पंजाब में अमन कायम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित थी:
1. चंडीगढ़ पर पंजाब का हक माना गया और यह आश्वासन दिया गया कि यह शीध्र ही
पंजाब को दे दिया जाएगा।
2. पंजाब और हरियाणा के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक अलग आयोग स्थापित किया जाएगा।
3. रावी और व्यास के पास का पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच बँटवारे करने के लिए एक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) बैठाया जाएगा।
4. सरकार ने वचन दिया कि वह भविष्य में सिक्खों के साथ बेहतर व्यवहार करेगी और उन्हें राष्ट्रीय धारा में किए गए उनके योगदान के आधार पर सम्मानपूर्वक रखा जाएगा।
1991 के लोकसभा चुनावों के समय स्थिति सामान्य बनाने के लिए सरकार ने फरवरी 1992 में विधानसभा के चुनाव भी करवाए लेकिन अकाली दल समेत अन्य दलों ने इन चुनावों का बहिष्कार किया। आतंकवादियों ने भी इन लोगों को मतदान न करने की धमकी दी। पंजाब में 1990 के दशक के मध्य के बाद ही स्थिति सामान्य होने लगी। सुरक्षा बलों ने उग्रवाद को दबाया तथा जिसके कारण 1997 के चुनाव कुछ सामान्य स्थिति में हुए। 2002 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल सत्ताहीन हुआ तथा 2007 के चुनाव में फिर से सत्ता में आया। इसी प्रकार पंजाब में हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। पंजाब की जनता को इन उग्रवादी गुटों की हिंसा का शिकार होना पड़ा। उग्रवादियों ने लोंगोवाल की ह्त्या कर दी तथा मुख्यमंत्री बेअंतसिंह की भी सचिवालय में हत्या कर दी गई थी। मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हुआ। उग्रवादी दलों ने पंजाब की आर्थिक स्थिति तथा विकास गतिविधियों पर बुरा प्रभाव डाला। वर्तमान में पंजाब में स्थिति सामान्य कही जा सकती है।
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था कि प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग थी। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिख जन-समुदाय पर बड़ा कम असर पड़ा। कुछ साल बाद जब 1980 में अकाली दल की सरकार बर्खास्त हो गई तो अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया। धार्मिक नेताओं के एक तबके ने स्वायत्त सिख पहचान की बात उठायी। कुछ चरमपंथी तबकों ने भारत से अलग होकर ‘खालिस्तान’ बनाने की वकालत की।
जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है।
जम्मू-कश्मीर के अंदर विभिन्न आधारों पर क्षेत्रीय विभिन्नताएँ हैं। जम्मू-कश्मीर तीन सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से बना हुआ है। आंतरिक रूप से भारतीय संघ में कश्मीर के दर्जे के बारे में विवाद है। कश्मीरी भाषी लोगों में अल्पसंख्यक हिन्दू भी शामिल हैं। जम्मू क्षेत्र पहाड़ी तलहटी तथा मैदानी इलाके का मिश्रण है जहाँ हिन्दू, मुस्लिम तथा सिख अर्थात् कई धर्म तथा भाषाओं के लोग रहते हैं। लद्दाख में बौद्ध आबादी है परंतु यह आबादी बहुत कम है। 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिंदू शासक हरिसिंह भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे। उन्होंने स्वतंत्र राज्य के लिए भारत तथा पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें परंतु पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराजा भारतीय सेना से मदद मांगने को मजबूर हुए। इससे पहले भारत सरकार ने महाराजा से भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। मार्च 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दिया गया।
कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
जम्मू-कश्मीर राज्य ने प्रारंभ में स्वतंत्र राज्य बनने की माँग की थी लेकिन जब 1948 में कबालियों ने आक्रमण किया तो इसके एक भाग पर कब्जा कर लिया। ऐसे में महाराजा भारतीय सेना से मदद मांगने को मजबूर हुए। महाराजा ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर दिया परंतु कुछ विशेष प्रावधानों के साथ। संविधान में अनुच्छेद 370 तथा 371 के तहत इस राज्य को विशेष दर्जा प्रदान किया गया। जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने के लिए अनुच्छेद 370 के लिए अलग-अलग विचार हैं। जैसे कि इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए। दोनों पक्षों को देखने पर यह बात कही जा सकती है कि जम्मू-कश्मीर का आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास हो। सभी नागरिकों को रोजगार प्राप्त हो तथा पूरे राज्य मे नियोजित विकास हो। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
असम आंदोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन बाहरी लोगों के खिलाफ चले आंदोलनों का सबसे अच्छा उदाहरण है। असम के लोगों की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर व पहचान है।
असम पूर्वोत्तर के सात राज्यों (जिन्हें सात बहनें भी कहा जात है) में सबसे बड़ा व प्रमुख राज्य है। असमी भाषा बोलने वालों का इन राज्यों में बहुलता है जिसके प्रभुत्व का अन्य राज्यों में बोली जाने वाली भाषा के लोगों ने इसका विरोध किया है।
असमी लोगों को संदेह था कि बहुत -सी बंगलादेशी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई है। लोगों के मन में यह भावना कर घर कर गई कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर इन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जाति अल्पसंख्यक हो जाएगी। कुछ आर्थिक मामले भी थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। आंदोलन की माँग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए। आंदोलन के दौरान त्रासद व हिंसक घटनाएँ भी हुई।
हर क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता। इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।
स्वायत्तता की माँग करने वाले गुटों के साथ सरकार ने समय-समय पर समझौते किए हैं। भारत में अनेकता में एकता है। स्वायत्तता की माँग के लिए हिंसक आंदोलन भी हुए। सरकार ने इन विविधताओं पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया। भारत में स्वतंत्रता के बाद हुए क्षेत्रीय आंदोलन जैसे- उत्तर-पूर्वी राज्यों में हुए आंदोलन अलगाववादी नहीं थे। असम का क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी नहीं हुआ। पंजाब में अलगाववादी माँग नहीं है। आंदोलन क्षेत्रीय स्वायत्तता, एक राज्य का दूसरे राज्य में विलय, नदी जल बँटवारा, क्षेत्रीय भाषा तथा संस्कृति को लेकर हुए हैं। परंतु ये सभी क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी नहीं होते।
भारत के विभिन्न भागों में उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धांत की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।
भारत में अनेकता में एकता एक महत्वपूर्ण विशेषता है। पूरे विश्व में भारत एक अलग पहचान रखता है। संस्कृति, धर्म , भाषा, रहन-सहन, कला से अलग होने के बाद भी लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या, जलवायु, विशाल भू–भाग, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विविधता में विभिन्नता के कारण कई प्रकर के विरोध उत्पन्न हुए हैं। परंतु इन विविधताओं के बाद भी राष्ट्रीय एकता बनी हुई है। विश्वबंधुत्व भारत की प्रमुख विशेषता है। जब 1962 में चीन ने नेफा (वर्तमान अरूणाचल प्रदेश) पर आक्रमण किया तो मद्रासी भी समझता था कि आक्रमण हुआ है, गुजराती भी, उत्तर भारत में रहने वाला इंसान भी समझता था। अतः स्पष्ट है कि माँगों से भारत के विभाजन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता बल्कि इसके विपरीत विविधता में एकता प्रदर्शित होती है।
नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
हजारिका का एक गीत ….एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है…..मेघालय अपने रास्ते गई….अरूणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है….इस गीत का अंत असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है…करबी और मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं।
-संजीब बरूआ
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कह रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के कुछ राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है?
उत्तर:
(क) लेखक यहाँ की क्षेत्रीय सांस्कृतिक एकता, परस्पर भाईचारे, पूर्वोत्तर की सात पुत्रियों की एकता के माध्यम से विविधता में एकता की बात कर रहा है।
(ख) जनजातीय समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे क्योंकि गैर- असमी लोगों पर असमी भाषा थोपी जा रही थी। सभी समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान कायम रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए असम से अलग होकर पूर्वोत्तर के कुछ राज्य बन गए।