एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
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कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 6 एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
बताएं कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत:
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। (ड.) सी.पी.आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।
उत्तर:
(क) सही
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ड.) सही
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकाल की घोषणा के संदर्भ से मेल नहीं खाता है:
(क) ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान
(ख) 1974 की रेल-हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
(घ) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
(ड) शाह आयोग की रिपोर्ट
उत्तर:
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ:
स्तम्भ 1 | स्तम्भ 2 |
---|---|
(क) संपूर्ण क्रांति | (i) इंदिरा गाँधी |
(ख) गरीबी हटाओ | (ii) जयप्रकाश नारायण |
(ग) छात्र आंदोलन | (iii) बिहार आंदोलन |
(घ) रेल हड़ताल | (iv) जॉर्ज फर्नाडिस |
उत्तर:
स्तम्भ 1 | स्तम्भ 2 |
---|---|
(क) संपूर्ण क्रांति | (ii) जयप्रकाश नारायण |
(ख) गरीबी हटाओ | (i) इंदिरा गाँधी |
(ग) छात्र आंदोलन | (iii) बिहार आंदोलन |
(घ) रेल हड़ताल | (iv) जॉर्ज फर्नाडिस |
किन कारणों से 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
जनता पार्टी ने 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को चुनाव में हराया था लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में प्रधानमंत्री के पद को लेकर मतभेद हुए। पहले मोरारजी देसाई और फिर बाद में कुछ समय के लिए चरण सिंह प्रधानमंत्री रहे। 18 महीने में ही मोरारजी देसाई ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया जिसकी वजह से मोरारजी देसाई को प्रधनमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। मोरारजी देसाई के बाद चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। चरण सिंह मात्र चार महीने ही प्रधनमंत्री के पद पर रह पाए। इसके बाद 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े।
जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी और इसके क्या निष्कर्ष थे?
शाह जाँच आयोग:
1977 में जनता पार्टी की सरकार ने सार्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन “25 जून 1975″ के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्रवाई तथा सत्ता के दुरूपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं” की जाँच के लिए किया गया था। आयोग ने बहुत से सदस्यों की जाँच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। भारत सरकार ने आयोग के द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अंतिम रिपोर्ट की सिफारिशों तथा निष्कर्षों को स्वीकार किया। यह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में भी विचार के लिए रखी गई।
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके निम्न कारण बताए:
• 25 जून 1975 में सरकार द्वारा आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई।
• समाजवादी नेता राजनारायण ने 1971 में चुनाव हारने के बाद इंदिरा गाँधी के विरूद्ध याचिका दायर की और यह बताया कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव प्रचार में सरकारी मशीनरी का प्रयोग किया है। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने याचिका को स्वीकार करते हुए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को रद्द किया।
• 1974 के जनवरी माह में बढ़ी हुई कीमत तथा शासन में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ गुजरात में छात्र आंदोलन हुआ। इस आंदोलन का राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। जब इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया तो केंद्र सरकार ने वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
• 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा खाद्यान्न के अभाव के विरूद्ध छात्रों ने आंदोलन किया। जय प्रकाश नारायण चाहते थे कि यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में भी फैले। जय प्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दायरे में ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया ताकि उन्हीं के शब्दों में ‘सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सके’।
• 1974 की रेल हड़ताल: 1974 में रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से संबधित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक उद्यम के कर्मचारी मई 1974 में हड़ताल पर चले गये।
• सरकार और न्यायपालिका के बीच संघर्ष संविधान के लागू होने के बाद से ही न्यायपालिका तथा संसद के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केंद्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से संभव हुआ?
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केंद्र में विपक्षी दल की सरकार बनने के निम्न्लिखित कारण थे:
• काँग्रेस पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने एक नई पार्टी बनाई। जगजीवन राम के नेतृत्व में बनाई गई इस पार्टी का नाम ‘काँग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ था इसके बाद यह पार्टी भी जनता पार्टी में शामिल हो गई।
• आपात की घोषणा के कारण 1977 में काँग्रेस हार गई। आपातकाल लागू होने के कारण पहले ही बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक-दूसरे के नजदीक आ रही थी।
• 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों पर जोर दिया।
• हजारों लोगों की गिरफ्तारी और प्रेस की सेंसरशिप की पृष्ठभूमि में जनमत कांग्रेस के विरोध में था।
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
• नगरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर
• कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध
• जनसंचार माध्यमों के कामकाज पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ
उत्तर:
नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर:
आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए थे। लोगों को बिना बताए गिरफ्तार किया गया। सरकार ने आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी अधिनियमों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था वे बंदी प्रत्यक्षीकरण का सहारा लेकर गिरफ्तारी को चुनौति नहीं दे सकते थे।
कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध:
इंदिरा गाँधी ने कार्यपालिका की सर्वोच्चता का हवाला देकर कई संविधान संशोधन करने की योजना बनाई परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी योजना को निष्फल कर दिया। उच्च न्यायालयों को अनेक संघीय विषय पर मुकदमें सुनने का अधिकार नहीं रहा तथा सर्वोच्च न्यायालय से भी प्रांतीय विषयों से संबंधित मुकदमें सुनने का अधिकार ले लिया गया।
जनसंचार माध्यमों के कामकाज:
‘इंडियन एक्सप्रेस’ तथा ‘स्टेट्समैन’ जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छपने से रोका जाता था उनकी जगह ये अखबार खाली छोड़ देते थे। ‘सेमिनार’ और ‘मेनस्ट्रीम’ जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने की जगह बंद होना ही सही समझा। इसके विरोध में अनेक लोगों ने अपने पदक वापस लौटा दिए।
पुलिस व नौकरशाही की कार्रवाहियाँ:
आपातकाल के समय पुलिस व नौकरशाही की कार्रवाहियाँ आलोचनापूर्ण थी। इन अधिकारियों ने अपनी शक्तियों का दुरूपयोग किया।
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
भारत की दलीय प्रणालि पर आपातकाल के कई प्रभाव देखने को मिले। आपातकाल के बाद सभी विपक्षी दलों ने यह निश्चय किया कि आने वाले चुनाव में गैर-कांग्रेसी वोट बिखरने नहीं चाहिए। यदि गैर-कांग्रेसी वोट बिखर गए तो कांग्रेस को सत्ता से हटाना कठिन होगा। आपातकाल के बाद देश में जनता पार्टी का गठन हुआ। इसमें सभी प्रमुख दलों ने सम्मिलित होना स्वीकार किया। 1977 में भारतीय दलीय प्रणाली में दो दलीय व्यवस्था को विकसित होते देखा गया। परंतु यह बात बहुत हद तक सही नहीं थी। आपातकाल के बाद कई राज्यों में भी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर कांग्रेस का मुकाबला किया और कई राज्यों में विधान सभा चुनावों में उन्होंने मिलकर चुनाव लड़कर कांग्रेस को हराया। चुनावों में जनता पार्टी को भारी सफलता मिली। परंतु यह सरकार 18 महीने में विभाजन के कारण गिर गई तथा भारत में पुनः बहुदलीय प्रणाली का दौर आ गया।
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो-दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई….. जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची …..डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रवण रॉय।
-पार्था चटर्जी
(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?
उत्तर:
(क) 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी क्योंकि सभी जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति में शामिल हो गए थे।
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो दलीय प्रणाली के नजदीक बताते हैं क्योंकि बहुत से विपक्षी दल जैसे- जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी ने मिल कर जनता पार्टी के नाम से एक पार्टी बना ली थी। इसी वजह से 1977 में केवल कांग्रेस और जनता पार्टी दोनों पार्टियों के मध्य ही चुनाव हुआ था।