एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 3 नियोजित विकास की राजनीति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 3 नियोजित विकास की राजनीति भाग 2 पाठ 3 अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। पाठ 2 पर आधारित पठन सामग्री जो परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, यहाँ से डाउनलोड की जा सकते हैं। पाठ का विवरण विडियो के माध्यम से भी दिया गया है ताकि विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकें।
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 पाठ 3 एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 3 नियोजित विकास की राजनीति
एनसीईआरटी कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भाग 2 अध्याय 3 प्रश्न उत्तर
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में कौन सा बयान सही नहीं है?
भारत ने शुरूआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था?
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार-ग्रहण किया गया थाः (क) बॉम्बे प्लान से (ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से (ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से (घ) किसान संगठनों की माँगों से
निम्नलिखित का मेल करें:
नाम | कार्य क्षेत्र |
---|---|
(क) चरण सिंह | i) औद्योगिकरण |
(ख) पी. सी. महालनोबिस | ii) जोनिंग |
(ग) बिहार का अकाल | iii) किसान |
(घ) वर्गीज कुरियन | iv) सहकारी डेयरी |
नाम | कार्य क्षेत्र |
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(क) चरण सिंह | iii) किसान |
(ख) पी. सी. महालनोबिस | i) औद्योगिकरण |
(ग) बिहार का अकाल | ii) जोनिंग |
(घ) वर्गीज कुरियन | iv) सहकारी डेयरी |
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद – आजादी के समय भारत के सामने विकास के दो मॉडल थे- पहला पूँजीवादी तथा दूसरा समाजवादी मॉडल। विकास के संबंध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए? पूँजीवादी मॉडल के समर्थक देश औद्योगिकरण पर अधिक बल दे रहे थे जबकि साम्यवादी के समर्थक कृषि के विकास तथा ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी को दूर करने को आवश्यक समझते थे।
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा ज़ोर था ? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956) की कोशिश देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालने की थी। योजनाकारों का बुनियादी लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा करने का था। योजना को तैयार करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के. एन राज थे। इस युवा अर्थशास्त्री की दलील थी कि अगले दो दशक तक भारत को अपनी चाल धीमी रखनी चाहिए। पहली पंचवर्षीय योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर था। इसी योजना के अंतर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी इस क्षेत्र पर तुरंत ध्यान देना जरूरी था।
i) हरित क्रांति से देश के कुछ क्षेत्र पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि में सम्पन्न हुए थे। परंतु भारत के बाकी क्षेत्रों में पिछड़ापन देखा गया था।
ii) ऐसा माना जाता था कि ग्रामीण क्षेत्र में अमीर व गरीब के बीच की खाई को और बड़ा दिया था।
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे?
शुरूआती दौर में विकास की जो रणनीतियाँ अपनाई गई उन पर बड़े सवाल उठे। यहाँ हम ऐसे दो सवालों की चर्चा करेंगे जो आज भी प्रासंगिक हैं।
कृषि बनाम उद्योग:
हम एक बड़े सवाल से पहले ही परिचित हो चुके हैं। यह सवाल है कि भारत जैसी पिछड़ी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए। कई लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची। जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केंद्र में रखने की बात बड़े सुविचारित और दमदार ढंग से उठायी थी। चौधरी चरण सिंह कांग्रेस पार्टी में थे और बाद में उससे अलग होकर इन्होंने भारतीय लोकदल नामक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि नियोजन से शहरी और औद्योगिक तबके समृद्ध हो रहे हैं और इसकी कीमत किसानों और ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही है। कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता। इन लोगों का तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अवश्य ही अपनायी गई थी। राज्य ने भूमि सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए। इसके अतिरिक्त ऐसे लोगों की एक दलील यह थी कि यदि सरकार कृषि पर ज्यादा धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीबी की विकराल समस्या का समाधान न कर पाती।
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरूआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।” इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।
भारत को शुरूआत में ही निजी क्षेत्र को खुली छूट देनी चाहिए। परंतु इस कथन से पूर्णतः सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि आजादी के समय देश की आर्थिक, सामाजिक परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थी कि सरकार निजी क्षेत्र को खुली छूट दे देती। आजादी के समय अर्थव्यवस्थ पर राज्य की भूमिका पर अधिक जोर दिया गया था, अर्थात् आर्थिक गतिविधियों को राज्य नियंत्रित करता था। उस समय कृषि क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम सर्वप्रथम था तथा कृषि क्षेत्र का विकास राज्य के नियंत्रणाधीन ही अधिक ठीक ढंग से हो सकता है।
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपीं। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धांत अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया।
– किन फ्रैंकले
(क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?
उत्तर
(क) इस लेख में लेखक द्वारा कांग्रेस में दो समूहों की चर्चा की गई है जो क्रमशः वामपंथी विचारधारा से और दूसरा पक्ष दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित था। इस प्रकार अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम देश में टकराव, वामपंथी संगठन तथा उनके द्वारा हिंसात्मक आंदोलनों को बढ़ावा मिलना जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते यह निश्चित है।
(ख) कांग्रेस एक तरफ पूँजीवादी विरोधी दलों की नीति अपनाकर निजी क्षेत्र को दूसरी तरफ वामपंथी विरोधी दलों की साम्यवादी या समाजवादी नीतियों के अंतर्गत नियोजन, सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा देना।
(ग) काँग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व एवं प्रांतीय नेताओं में कुछ हद तक अन्तर्विरोध पाया जाता था। जहाँ केंद्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व देते थे।