एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9 वैश्वीकरण

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9 वैश्वीकरण के पाठ के अंत में दिए गए अभ्यास के सभी प्रश्नों के सरलतम रूप में उत्तर यहाँ दिए गए हैं। ये समाधान सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए तैयार किए गए हैं ताकि सभी विद्यार्थी संशोधित पाठ्यक्रम का अध्ययन कर सकें। पाठ का विवरण पीडीएफ तथा विडियो दोनों ही प्रारूपों में उपलब्ध है, जो विद्यार्थी बिना किसी लॉग इन के प्राप्त कर सकते हैं।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9 एनसीईआरटी समाधान

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एनसीईआरटी कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9 प्रश्न उत्तर

Q1

वैश्वीकरण के बारे में कौन से कथन सही हैं?

[A]. वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
[B]. वैश्वीकरण की शुरूआत 1991 में हुई।
[C]. वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान है।
[D]. वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
Q2

वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है?

[A]. विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
[B]. सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा।
[C]. वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
[D]. वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।
Q3

वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?

[A]. वैश्वीकरण का एक महत्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
[B]. जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
[C]. वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
[D]. वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
Q4

वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?

[A]. वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवा-जाही से है।
[B]. वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
[C]. वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्व गौण है।
[D]. वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
Q5

वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन गलत है?

[A]. वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
[B]. वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
[C]. वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
[D]. वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ क्या है ? इसके कौन-कौन से घटक है?

विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव- विश्वप्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है विश्व के विभिन्न देश का एक-दूसरे के घनिष्ठ रूप से जुड़े हों। ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव’ वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषता है। इसमें विश्व के सभी नागरिक एक-दूसरे से मिलजुलकर रहते हैं तथा पारस्परिक सहयोग की भावना के साथ अपनी गतिविधियों का क्रियान्वयन करते हैं।

इसके प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:
विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का मुख्य घटक सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक भाग है। सूचना प्रसारण संसाधन जैसे इंटरनेट, कम्प्यूटर, टी.वी. आदि जिनसे संसार का प्रत्येक इंसान जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपस में जुड़े रहते हैं। परिवहन और संचार के साधन जिसे व्यक्ति, वस्तु, सेवा तथा पूंजी के प्रभाव में गति आ रही है और पारस्परिक जुड़ाव हुआ है। विश्व स्तर पर हो रहे अनुसंधान कार्य भी पारस्परिक जुड़ाव का भाव पैदा करते हैं। विचारों का आदान-प्रदान भी विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव है।

वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?

वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान:
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान अपरिहार्य है। टेलीग्राफ, माइक्रोचिप, टेलीफोन आदि के नवीनतम आविष्कारों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में संचार के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया हैं। प्रारंभ में जब छपाई (मुद्रण) की तकनीक आयी थी तो उसने राष्ट्रवाद की आधरशिला रखी। इसी तरह आज हम यह अपेक्षा कर सकते हैं कि प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारे सोचने के तरीके पर पड़ेगा। पूँजी, विचार, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण संभव हुई है। आज राज्यों के पास अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके आधार पर वे अपने नागरिकों के बारे में सूचनाओं को एकत्रित कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप राज्य अब पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बन गए हैं।

वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें?

वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका के प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन:
सम्पूर्ण विश्व में वैश्वीकरण की आलोचना हुई है तथा इसके दो पक्ष हैं- वामपंथी तथा दक्षिणपंथी। वैश्वीकरण राज्य क्षमता को कम करता है अर्थात् सरकारों की क्षमता जो वे करते हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों पर प्रभाव डालती है क्योंकि उनकी स्वयं की रूचि की पूर्ति सरकारी नीतियों पर भी निर्भर करती है। वामपंथियों का कहना है कि वैश्वीकरण की वजह से गरीबों की हालत और खराब हो गई है। सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रही है। दक्षिणपंथियों का कहना है कि वैश्वीकरण विकास में तेजी तथा पूरे विश्व में समान विकास की स्थिति को लाने के लिए आवश्यक है।

वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है?

वैश्वीकरण के आर्थिक निहितार्थ अर्थात् व्यापार, पूँजी प्रवाह, विदेशी प्रत्यक्ष पूँजी, प्रवास तथा प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण से है। रोजगार की तलाश में लोग एक देश से दूसरे देश में जाकर बसने लगे। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने देश से बाहर निकलकर अन्य देशों में निवेश करना आरंभ कर दिया है।
वैश्वीकरण का आर्थिक प्रभाव भारत पर भी हुआ है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाए सामानों का आयातक देश था। 1991 में वित्तीय संकट से निकलने और आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर प्राप्त करने की इच्छा से भारत में आर्थिक-सुधारों की योजना शुरू हुई। इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर बाधाएँ हटायी गईं। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी सम्मिलित थे। भारत पर वैश्वीकरण के कई अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष प्रभाव हैं। 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई। भारत ने इस पर हस्ताक्षर किए तथा इसका सदस्य बन गया।

क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है?

हम इस तर्क ये सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है। विश्व की संस्कृति के नाम पर विश्व पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है। कुछ लोगों का यह तर्क है कि बर्गर अथवा नीली जींस की लोकप्रियता का नजदीकी संबंध अमेरिकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम शक्तिशाली समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है तथा संसार वैसा ही दिखता है जैसा शक्तिशाली संस्कृति इसे बनाना चाहती है। इन सभी चीजों के प्रभाव से पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं वरन् समूची मानव जाति के लिए भी खतरनाक है। सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का एक पहलू है तो वैश्वीकरण से इसका उल्टा प्रभाव भी पैदा हुआ है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं।

वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है?

भारत जैसे विकासशील देश को वैश्वीकरण ने बहुत प्रभावित किया है। भारतीयों ने वैश्वीकरण के चलते अजीविका के लिए विदेशों में बसना शुरू कर दिया है। अमेरिका तथा यूरोप की पश्चिमी संस्कृति बड़ी तेजी से भारत में फैल रही है। भारत में पिज्जा, जींस आदि वैश्वीकरण का ही प्रभाव है। भारत से बहुत लोग विदेश जाकर अपनी संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। भारतीय समाज में आधुनिकतम तकनीकों का आगमन हुआ है। लेपटॉप, एयर कंडीशनर आदि आम बात हो गई है। वैश्वीकरण ने समाज को कई सकारात्मक आयामों से भी सुसज्जित करने में मदद की है परंतु इसकी कुछ सीमाएँ भी रही हैं। अर्थात् वैश्वीकरण का भारत पर सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही प्रभाव देखने को मिले हैं। भारत ने कंप्यूटर तथा तकनीकी के क्षेत्र में बड़ी तेजी से विकास करके विश्व में अपना प्रभुत्व जमाया है। भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व के देशों को इस ओर आकर्षित किया है। अर्थात् भारत ने भी वैश्वीकरण को प्रभावित किया है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 9
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