कक्षा 7 इतिहास अध्याय 3 एनसीईआरटी समाधान – दिल्ली बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी
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कक्षा 7 इतिहास अध्याय 3 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 इतिहास अध्याय 3 दिल्ली बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी
दिल्ली सल्तनत
तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फैला था। दिल्ली को सर्वप्रथम तोमर वंश (बारहवीं शताब्दी के आरम्भ से ११६५ तक) के राजाओं ने अपनी राजधानी के लिए चयन किया इस वंश के अनंगपाल (1130 – 1145) ने अपनी राजधानी के रूप में विकसित किया उसके बाद चौहान वंश (1165 – 1192) का शासन स्थापित हुआ। इस वंश के प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान हुए। पृथ्वीराज चौहान मोहमद गौरी के हाथों पराजित हुए इसके बाद तुर्कों का शासन (1206 – 1290) स्थापित हो गया। तुर्कों के बाद खिलजी वंश (1290 – 1320), तुगलक वंश (1320 -1414), सैयद वंश (1414 – 1451), लोदी वंश (1451 – 1526).
दिल्ली सल्तनत का विस्तार
तेरहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली के सुलतानों का शासन गैरिसनों (रक्षक सैनिकों की टुकड़ियों) के निवास के लिए बने मज़बूत किलेबंद शहरों से परे शायद ही कभी फैला हो। शहरों से संबद्ध, लेकिन उनसे दूर भीतरी प्रदेशों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था और इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री, रसद आदि के लिए व्यापार, कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था। दिल्ली से सुदूर बंगाल और सिंध के गैरिसन शहरों का नियंत्रण बहुत ही कठिन था। बगावत, युद्ध, यहाँ तक कि खराब मौसम से भी उनसे संपर्क के नाज़ुक सूत्र छिन्न-भिन्न हो जाते थे। शासन को अफगानिस्तान से आनेवाले हमलावरों और उन सूबेदारों से बराबर चुनौती मिलती रहती थी, जो ज़रा-सी कमज़ोरी का आभास मिलते ही विद्रोह का झंडा खड़ा कर देते थे। इन चुनौतियों के चलते सल्तनत बड़ी मुश्किल से किसी तरह अपने आपको बचाए हुए थी। इसका संस्थापन ग़्यासुद्दीन बलबन के शासन काल में हुआ और इसका विस्तार अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में हुआ। दिल्ली सल्तनत की सेनाओं की शुरुआत अपेक्षाकृत कमज़ोर थी, मगर डेढ़ सौ वर्ष बाद, मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल के अंत तक इस उपमहाद्वीप का एक विशाल क्षेत्र इसके युद्ध-अभियान के अंतर्गत आ चुका था।
खिलजी और तुग़लक वंश के अंतर्गत प्रशासन और समेकन
दिल्ली सल्तनत जैसे विशाल साम्राज्य के समेकन के लिए विश्वसनीय सूबेदारों तथा प्रशासकों की ज़रूरत थी। दिल्ली के आरंभिक सुलतान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामंतों और ज़मींदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे। ऐसे लोगों को सेनापति और सूबेदार जैसे पद दिए जाते थे। लेकिन इससे राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा होने लगी। पहले वाले सुलतानों की ही तरह खिलजी और तुगलक शासकों ने भी सेनानायकों को भिन्न-भिन्न आकार के इलाकों के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया। ये इलाके इक्ता कहलाते थे और इन्हें सँभालने वाले अधिकारी इक्तादार या मुक़्ती कहे जाते थे। मुक़्ती का फर्ज था सैनिक अभियानों का नेतृत्व करना और अपने इक़्तां में कानून और व्यवस्था बनाए रखना। अपनी सैनिक सेवाओं के बदले वेतन के रूप में मुक़्ती अपने इलावों से राजस्व की वसूली किया करते थे।
दिल्ली में सर्वप्रथम किसने राजधानी स्थापित की?
दिल्ली को सर्वप्रथम तोमर वंश (बारहवीं शताब्दी के आरम्भ से ११६५ तक) के राजाओं ने अपनी राजधानी के लिए चयन किया इस वंश के अनंगपाल (1130 – 1145) ने अपनी राजधानी के रूप में विकसित किया।
दिल्ली सल्तनत सबसे अधिक विस्तार तुगलक वंश के शासनकाल में हुआ।
दिल्ली सल्तनत पर मंगोल आक्रमणकारियों का क्या प्रभाव पड़ा?
मंगोल आक्रमणों से राज्य की सुरक्षा के लिए दिल्ली की सल्तनत को एक विशाल सेना रखनी पड़ी। विशाल सेना के कारण सैनिकों को वेतन के रूप में भारी धनराशि देनी पड़ती थी। इससे राजकोष पर बोझ बढ़ गया। सुलतानों को अपनी सीमावर्ती चौकियों को मजबूत बनाना पड़ा।