एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 8 संसारसागरस्य नायका:
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 8 अष्टम: पाठ: संसारसागरस्य नायका: के प्रश्न उत्तर, अभ्यास के सभी प्रश्नों के हल शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए पुनः संशोधित किए गए हैं। इस पाठ में विलुप्त हो रही कार्य कुशलताओं के बारे में बताया गया है। विद्यार्थियों के लिए संपूर्ण पाठ का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद भी दिया गया है, पाठ के इस हिंदी अनुवाद की मदद से छात्र अध्याय को पंक्ति दर पंक्ति आसानी से समझ सकेंगे और प्रत्येक प्रश्न का उत्तर स्वयं लिख सकेंगे।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अष्टम: पाठ: संसारसागरस्य नायका: के उत्तर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 8 संसारसागरस्य नायका:
कक्षा 8 संस्कृत अध्याय 8 संसारसागरस्य नायका: का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
के आसन् ते अज्ञातनामान:? | वे अज्ञात नाम वाले कौन थे? |
शतश: सहस्रश: तडागा: सहसैव शून्यात् न प्रकटीभूता:। | सैकड़ों व हजारों तालाब अचानक ही शून्य से प्रकट नहीं हुए हैं। |
इमे एव तडागा: अत्र संसारसागरा: इति। | ये तालाब ही यहाँ संसार सागर हैं। |
एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये निर्मापयितस्रणाम् एककम्, निर्मातस्रणां च दशकम् आसीत्। | इनके आयोजन का पर्दे के पीछे बनाने वालों की इकाई और बनने वालों की दहाई थी। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
एतत् एककं दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयत: स्म। | यह इकाई व दहाई गुणित होकर सौ तथा हजार की रचना करते थे। |
परं विगतेषु द्विशतवर्षेषु नूतनपद्धत्या समाजेन यत्किञ्चित् पठितम्। | परन्तु बीते हुए दो सौ वर्षों में नई पद्धति के द्वारा समाज ने जो कुछ पढ़ा है। |
पठितेन तेन समाजेन एककं दशकं सहस्रकञ्च इत्येतानि शून्ये एव परिवर्तितानि। | उस पठित समाज ने इकाई, दहाई और हजार को शून्य में ही बदल दिया है। |
अस्य नूतनसमाजस्य मनसि इयमपि जिज्ञासा नैव उद्भूता यद् अस्मात्पूर्वम् एतावत: तडागान् के रचयन्ति स्म। | इस नये समाज के मन में यह जानने की इच्छा भी नहीं उत्पन्न हुई कि इससे पहले इन तालाबों को किसने बनाया था। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
एतादृशानि कार्याणि कर्तुं ज्ञानस्य यो नूतन: प्रविधि: विकसित:, तेन प्रविधिनाऽपि पूर्वं सम्पादितम् एतत्कार्यं मापयितुं न केनापि प्रयतितम्। | ऐसे कार्यों को करने के लिए ज्ञान की जो नई विधि विकसित हुई उस विधि के द्वारा भी पहले बनाए गए इस कार्य को मापने के लिए किसी ने भी प्रयास नहीं किया। |
अद्य ये अज्ञातनामान: वर्तन्ते, पुरा ते बहुप्रथिता: आसन्। | आज जो अज्ञात नाम हैं, पहले वे बहुत प्रसिद्ध थे। |
अशेषे हि देशे तडागा: निर्मीयन्ते स्म, निर्मातारोऽपि अशेषे देशे निवसन्ति स्म। | सम्पूर्ण देश में तालाब बनाए जाते थे। उन्हें बनाने वाले भी सम्पूर्ण देश में निवास करते थे। |
गजधर: इति सन् दर: शब्द: तडागनिमार्तण्स्राां सादरं स्मरणाथर्म। | ‘गजधर’ यह सुन्दर शब्द तालाबों को बनाने वालों के सादर स्मरण के लिए है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
राजस्थानस्य के षिु चद् भागेषु शब्दोऽयम् अद्यापि प्रचलति। | राजस्थान के कुछ भागों में यह शब्द आज भी चलता है। |
क: गजधर:? य: गजपरिमाणं धारयति स गजधर:। | यह गजधर कौन है? जो हाथी (गज = 3 फुट) के माप को धारण करता है, वह गजधर है। |
गजपरिमाणम् एव मापनकार्ये उपयुज्यते। | मापन कार्य में गज का माप ही उपयोग किया जाता है। |
समाजे त्रिहस्त- परिमाणात्मिकीं लौहयष्टिं हस्ते गृहीत्वा चलन्त: गजधरा: इदानीं शिल्पिरूपेण नैव समादृता: सन्ति। | समाज में तीन हाथ के माप वाली लोहे की छड़ी को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर अब शिल्पी के रूप में आदर नहीं पाते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
गजधर:, य: समाजस्य गाम्भीर्यं मापयेत् इत्यस्मिन् रूपे परिचित:। | जो समाज की गहराई (गंभीरता) को मापे-इसी रूप में जाने जाते हैं। |
गजधरा: वास्तुकारा: आसन्। | गजधर भवननिर्माण करने वाले होते थे। |
कामं ग्रामीणसमाजो भवतु नागरसमाजो वा तस्य नव-निर्माणस्य सुरक्षाप्रबन्धनस्य च दायित्वं गजधरा: निभालयन्ति स्म। | भले ही, ग्रामीण समाज हो अथवा नगरीय समाज हो, उसके नवनिर्माण का और सुरक्षाप्रबन्धन का दायित्व गजधर निभाते थे। |
नगरनियोजनात् लघुनिर्माणपर्यन्तं सर्वाणि कार्याणि एतेष्वेव आधृतानि आसन्। | नगर नियोजन से लेकर छोटे निर्माणकार्य तक सभी कार्य इन पर ही आधारित थे। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
ते योजनां प्रस्तुवन्ति स्म, भाविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् सङगहृण्न्ति स्म। | योजना को प्रस्तुत करते थे, भावी व्यय का अनुमान करते थे तथा साधन सामग्री का संग्रह करते थे। |
प्रतिदाने ते न तद् याचन्ते स्म यद् दातुं तेषां स्वामिन: असमर्था: भवेयु:। | दले में वे वह नहीं माँगते थे, जो उनके स्वामी न दे सकें। |
कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्य: सम्मानमपि प्रदीयते स्म। | कार्य की समाप्ति पर वेतन से अतिरिक्त गजधरों को सम्मान भी प्रदान किया जाता था। |
नम: एतादृशेभ्य: शिल्पिभ्य:। | ऐसे शिल्पियों को नमस्कार। |