कक्षा 9 इतिहास एनसीईआरटी समाधान अध्याय 4

कक्षा 9 के सामाजिक विज्ञान इतिहास के लिए एनसीईआरटी समाधान अध्याय 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद के प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। अध्याय में दिए गए प्रश्नों के उत्तर के अलावा, एनसीईआरटी की पुस्तक पीडीएफ के रूप में और अतिरिक्त प्रश्न उत्तर, जो परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, दिए गए हैं। विद्यार्थी बिना किसी पंजीकरण अथवा लॉगिन के इन सभी समाधानों का लाभ उठा सकते हैं।

कक्षा 9 इतिहास के लिए एनसीईआरटी समाधान अध्याय 4

कक्षा 9 इतिहास अध्याय 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद के प्रश्न उत्तर

औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया: झूम खेती करने वालों को, घुमंतू और चरवाहा समुदायों को, लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को, बागान मालिकों को, शिकार खेलने वाले राजाओं और अफसरों को?
    • झूम खेती करने वालों को नए वन कानूनों ने खेती में बदलाव पर रोक लगा दी। खेती करने वालों को स्थानांतरित करने के लिए, यह विनाशकारी था क्योंकि उनके अस्तित्व के लिए एक समस्या थी। उनमें से कई को कुछ अन्य व्यवसायों को लेने के लिए पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था। कई अन्य लोगों को चाय बागानों में काम करने के लिए मजबूर किया गया था।
    • नए वन कानूनों के तहत पशुओं के चरने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसने देहाती समुदायों के जीवन को कठिन बना दिया। जानवरों के झुंड उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत थे। घुमंतू समुदायों को आपराधिक समुदाय घोषित किया गया था। इससे उनका जीवन दुखी हो गया क्योंकि वे अब स्वतंत्र रूप से आगे नहीं बढ़ सकते थे।
    • लकड़ी की भारी मांग के कारण, यह लकड़ी व्यापारियों के लिए वरदान था। उन्होंने अपनी आय में अच्छी वृद्धि देखी होगी।
    • बागान मालिकों को सस्ती दरों पर जमीन दी गई। बहुत कम मजदूरी पर उन्हें श्रम भी उपलब्ध कराया जाता था। इसके अलावा, नई नीतियां बनाई गईं, जो श्रमिकों को उनके घर गांवों में वापस जाने से रोकती हैं। यह बागान मालिक के लिए एक जीत की स्थिति थी।
    • क्रूर जानवरों की हत्या; बाघ या भेड़ियों की तरह, पुरस्कृत किया गया था। इसके अलावा, शिकार को बहादुरी और वीरता के संकेत के रूप में देखा गया था। राजाओं और ब्रिटिश अधिकारियों ने समाज में नए सम्मान को पाया होगा। 80,000 बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िए 1875 से 1925 की अवधि के दौरान इनाम के लिए मार डाले गए।
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंध में क्या समानताएँ हैं?

बस्तर और जावा में वनों के औपनिवेशिक प्रबंधन में कुछ समानताएँ थीं। दोनों ही मामलों में, वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को छीन लिया गया और उन्हें अपने औपनिवेशिक आकाओं के लिए काम करने के लिए मजबूर किया गया। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई और गिर गए पेड़ों को मोनोकल्चर वृक्षारोपण के साथ बदल दिया गया।

सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ: रेलवे, जहाज निर्माण, कृषि-विस्तार, व्यावसायिक खेती, चाय-कॉफी के बागान, आदिवासी और किसान?
    • रेलवे
      1850 में रेलवे के विस्तार ने एक नई मांग को जन्म दिया। औपनिवेशिक व्यापार एवं शाही सैनिक टुकड़ियों के आवागमन के लिए रेलवे आवश्यक था। रेलवे लाइन बिछाने के लिए स्लीपरों की भारी मांग थी। उन दिनों लकड़ी सेस्ली पर बनाए जाते थे। रेलवे नेटवर्क के विस्तार से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई।
    • जहाज निर्माण
      जहाज निर्माण एक महत्वपूर्ण उद्योग था क्योंकि जहाज अंग्रेजों की सैन्य शक्ति का अभिन्न अंग थे। जब ब्रिटेन में ओक के पेड़ों की संख्या तेजी से कम हो गई, तो भारतीय जंगलों ने आपूर्ति का अच्छा स्रोत प्रदान किया। इस प्रकार, जहाज निर्माण ने भारत में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की दिशा में भी योगदान दिया।
    • कृषि-विस्तार
      बढ़ती यूरोपीय आबादी का मतलब खाद्यान्न जैसे जूट, चीनी, गेहूं एवं कपास की बढ़ती मांग थी। इसके परिणामस्वरूप भारत में खेती योग्य भूमि का विस्तार हुआ। खेती के लिए रास्ता बनाने के लिए अधिक भूमि को जंगलों से साफ किया गया।
    • व्यावसायिक खेती
      विभिन्न कच्चे माल की मांग में वृद्धि हुई थी; कपास की तरह, ब्रिटेन में विस्तार उद्योगों के लिए नील। इसके परिणामस्वरूप भारत में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक खेती हुई। वनों को साफ करके भी यह संभव हो सकता है।
    • चाय-कॉफी के बागान
      ब्रिटेन में चाय और कॉफी की मांग भी बढ़ी। पूर्वोत्तर भारत और पूर्वी तट की जलवायु वृक्षारोपण के लिए एकदम सही थी। वृक्षारोपण का रास्ता बनाने के लिए जंगलों के बड़े क्षेत्रों को साफ कर दिया गया। ब्रिटिश बागान मालिकों को बहुत सस्ती दरों पर जमीन दी गई थी।
    • आदिवासी और किसान
      आदिवासी हमेशा से जंगलों के रक्षक रहे हैं और इसलिए वनों की कटाई में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। हालाँकि, कुछ किसानों ने खेती योग्य भूमि के विस्तार के अवसर का उपयोग किया होगा; जैसा कि जावा में हुआ था। इसके अलावा, खेती योग्य भूमि में महत्वपूर्ण वृद्धि भी खेती के लिए जंगलों को साफ करने की ओर इशारा करती है।
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?

दो युद्धों का जंगलों पर बड़ा प्रभाव था। ब्रिटेन की युद्धकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पेड़ काटे गए। जावा में, इस क्षेत्र के जापानी कब्जे से ठीक पहले डच ने, पृथ्वी की झुलसी ’नीति का पालन किया। उन्होंने आरी को नष्ट कर दिया और विशालकाय टीक लकड़ी के लट्ठों के विशाल ढेर को जला दिया। जापानियों ने वनों का दोहन जारी रखा। उन्होंने वन ग्रामीणों को वनों को काटने के लिए मजबूर किया। कई ग्रामीणों के लिए, यह खेती के क्षेत्र का विस्तार करने का एक अवसर था।

कक्षा 9 इतिहास अध्याय 4 अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

जैव विविधता में कमी होने के पीछे मुख्य कारण क्या हैं?

जैव विविधता तेज़ी से लुप्त होती जा रही है। औद्योगीकरण के दौर में सन्‌ 1700 से 1995 के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल यानी दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक इस्तेमाल, खेती-बाड़ी, चरागाहों व र्इंधन की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया। सन्‌ 1600 में हिंदुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी। आज यह आँकड़ा बढ़ कर आधे तक पहुँच गया है। इन सदिया के दौरान जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गयी और खाद्य पदार्थों की माँग में भी वृद्धि हुई, वैसे-वैसे किसान भी जंगलों को साफ करके खेती की सीमाओं को विस्तार देते गए। औपनिवेशिक काल में खेती में तेज़ी से फैलाव आया।

औपनिवेशिक सरकार ने कैसे जंगलों को नुकसान पहुंचाया?

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अनुत्पादक समझा। उनके हिसाब से इस व्यर्थ के बियाबान पर खेती करके उससे राजस्व और कृषि उत्पादों को पैदा किया जा सकता था और इस तरह राज्य की आय में बढ़ोतरी की जा सकती थी। यही वजह थी कि 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य ज़मीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई। खेती के विस्तार को हम विकास का सूचक मानते हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ज़मीन को जोतने के पहले जंगलों की कटाई करनी पड़ती है।

व्यावसायिक वानिकी की शुरुआत कैसे हुई?

यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अपने कब्ज़े में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत सस्ती दरों पर यूरोपीय बागान मालिकों को सौंप दिया। इन इलाकों की बाड़ाबंदी करके जंगलों को साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी।

प्रथम भारतीय वन अधिनियम कब पारित हुआ? और इसके क्या नियम थे?

पहली बार 1865 में भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध किया गया। इम्पीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्‌यूट की
स्थापना 1906 में देहरादून में हुई। यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे ‘वैज्ञानिक वानिकी’ कहा गया। लेकिन आज पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज़्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति कतई वैज्ञानिक नहीं है। 1865 में वन अधिनियम के लागू होने के बाद इसमें दो बार संशोधन किए गए – पहले 1878 में और फिर 1927 में।

1878 वाले अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया: आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण। सबसे अच्छे जंगलों को ‘आरक्षित वन’ कहा गया। गाँव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर बनाने या ईंधन के लिए केवल सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

वन अधिनियम के चलते देश भर में गाँव वालों की मुश्किलें किस प्रकार बढ़ गई थी?

वन अधिनियम के चलते देश भर में गाँव वालों की मुश्किलें बढ़ गई। इस कानून के बाद घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कंद-मूल-फल इकट्‌ठा करना आदि रोज़मर्रा की गतिविधियाँ गैरकानूनी बन गई। अब उनके पास जंगलों से लकड़ी चुराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और पकड़े जाने की स्थिति में वे वन-रक्षकों की दया पर होते जो उनसे घूस ऐंठते थे। जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं। मुफ़्त खाने-पीने की मांग करके लोगों को तंग करना पुलिस और जंगल के चौकीदारों के लिए सामान्य बात थी।

वनों के नियमन से खेती कैसे प्रभावित हुई?

यूरोपीय उपनिवेशवाद का सबसे गहरा प्रभाव झूम या घुमंतू खेती की प्रथा पर दिखायी पड़ता है। एशिया, अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के अनेक भागों में यह खेती का एक परंपरागत तरीका है। घुमंतू कृषि के लिए जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा और जलाया जाता है। मॉनसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्तूबर-नवंबर में फसल काटी जाती है। यूरोपीय वन रक्षकों की नज़र में यह तरीका जंगलों के लिए नुकसानदेह था।

उन्होंने महसूस किया कि जहाँ कुछेक सालों के अंतर पर खेती की जा रही हो ऐसी ज़मीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। साथ ही, जंगल जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों के भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता है। घुमंतू खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना भी मुश्किल था। इसलिए सरकार ने घुमंतू खेती पर रोक लगाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया। कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ ने छोटे-बड़े विद्रोहों के ज़रिए प्रतिरोध किया।

वन समुदायों ने अपने ऊपर थोपे गए कानूनों का किस प्रकार विरोध किया?

हिंदुस्तान और दुनिया भर में वन्य समुदायों ने अपने ऊपर थोपे गए बदलावों के खिलाफ बगावत की। संथाल परगना में सीधू और कानू, छोटा नागपुर में बिरसा मुंडा और आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू को लोकगीतों और कथाओं में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ उभरे आंदोलनों के नायक के रूप में आज भी याद किया जाता है।

कक्षा 9 के सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 4
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