एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 कबीर के दोहे

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 कबीर के दोहे में संत कबीर के दोहों के माध्यम से जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दी गई हैं। इसमें सत्य की महिमा, गुरु का महत्व, संतुलित जीवन जीने की कला और मधुर वाणी का प्रभाव समझाया गया है। कबीर बताते हैं कि निंदक भी हमारे सुधारक होते हैं और साधु वही है जो अच्छे को अपनाए और बुरे को त्याग दे। इस अध्याय से नैतिक मूल्यों और सही आचरण की प्रेरणा मिलती है।
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कबीर के दोहे कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 के प्रश्न उत्तर

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मेरी समझ से

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।” इस दोहे में किसके विषय में बताया गया है?
• श्रम का महत्व
• गुरु का महत्व
• ज्ञान का महत्व
• भक्ति का महत्व
उत्तर देखें★ गुरु का महत्व
★ ज्ञान का महत्व
क्योंकि इस दोहे में कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताया है क्योंकि गुरु से प्राप्त ज्ञान ही हमें ईश्वर (गोविंद) की पहचान कराता है। इसलिए इसमें गुरु के महत्व और ज्ञान की महत्ता को दर्शाया गया है।

(2) “अति का भला न बोलना अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना अति की भली न धूप ।।” इस दोहे का मूल संदेश क्या है?
• हमेशा चुप रहने में ही हमारी भलाई है
• बारिश और धूप से बचना चाहिए
• हर परिस्थिति में संतुलन होना आवश्यक है
• हमेशा मधुर वाणी बोलनी चाहिए
उत्तर देखें★ हर परिस्थिति में संतुलन होना आवश्यक है
क्योंकि इस दोहे में ‘अति’ यानी किसी भी चीज़ की अधिकता को नुकसानदायक बताया गया है, चाहे वह बोलना हो, चुप रहना हो या वर्षा और धूप। अतः संतुलन और संयम जीवन में आवश्यक हैं।

(3) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।” यह दोहा किस जीवन कौशल को विकसित करने पर बल देता है?
• समय का सदुपयोग करना
• दूसरों के काम आना
• परिश्रम और लगन से काम करना
• सभी के प्रति उदार रहना
उत्तर देखें★ दूसरों के काम आना
क्योंकि कबीर कहते हैं कि यदि कोई केवल ऊँचाई या पद में बड़ा हो लेकिन दूसरों को लाभ न पहुँचा सके, तो उसका बड़ा होना व्यर्थ है। जैसे खजूर पेड़ ऊँचा होता है पर छाया नहीं देता और फल पाना कठिन होता है। अतः दूसरों के काम आना श्रेष्ठ है।

(4) “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करे आपहुँ सीतल होय।।” इस दोहे के अनुसार मधुर वाणी बोलने का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
• लोग हमारी प्रशंसा और सम्मान करने लगते हैं।
• दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है
• किसी से विवाद होने पर उसमें जीत हासिल होती है
• सुनने वालों का मन इधर-उधर भटकने लगता है
उत्तर देखें★ दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है
क्योंकि कबीर कहते हैं कि मधुर वाणी बोलने से स्वयं का भी क्रोध और अहंकार शांत होता है और दूसरों को भी सुकून मिलता है। इसलिए शांति और सौहार्द का वातावरण बनता है।

(5) “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।” इस दोहे से क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
• सत्य और झूठ में कोई अंतर नहीं होता है
• सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है
• बाहरी परिस्थितियाँ ही जीवन में सफलता तय करती हैं।
• सत्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है जिससे हृदय प्रकाशित होता है
उत्तर देखें★ सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है
★ सत्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है जिससे हृदय प्रकाशित होता है
क्योंकि इस दोहे में सत्य को सबसे बड़ा तप कहा गया है और झूठ को सबसे बड़ा पाप। जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य होता है, वह अपने आप ही ईश्वर-तुल्य हो जाता है। यह हमें सत्य के पालन का मूल्य सिखाता है।

(6) “निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय । बिन पानी साबुन बिना निर्मल करै सुभाय।।” यहाँ जीवन में किस दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी गई है?
• आलोचना से बचना चाहिए
• आलोचकों को दूर रखना चाहिए
• आलोचकों को पास रखना चाहिए
• आलोचकों की निंदा करनी चाहिए
उत्तर देखें★ आलोचकों को पास रखना चाहिए
क्योंकि कबीर का कहना है कि जो व्यक्ति हमारी गलतियों की आलोचना करता है, वह हमारे स्वभाव को बिना किसी बाहरी साधन के सुधारता है। इसलिए उसे नजदीक रखना चाहिए।

(7) “साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देइ उड़ाया।।” इस दोहे में ‘सूप’ किसका प्रतीक है?
• मन की कल्पनाओं का
• सुख-सुविधाओं का
• विवेक और सूझबूझ का
• कठोर और क्रोधी स्वभाव का
उत्तर देखें★ विवेक और सूझबूझ का
क्योंकि ‘सूप’ वह वस्तु है जो अन्न से भूसी को अलग करता है। इसी तरह एक सच्चा साधु या ज्ञानी व्यक्ति भी सार्थक और निरर्थक बातों को समझकर विवेकपूर्ण निर्णय लेता है। इसलिए सूप विवेक का प्रतीक है।

(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुनें हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए की आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर देखेंरश्मि – दोस्तों, चलो कबीर के दोहों पर बात करते हैं। पहले प्रश्न का मेरा उत्तर है ‘गुरु का महत्व’। दोहे में कहा गया है कि गुरु ने ही हमें गोविंद (ईश्वर) तक पहुँचने का रास्ता दिखाया।
अमन – दूसरे दोहे में ‘अति’ की बात की गई है। ‘अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप’, इसका मतलब है कि हर परिस्थिति में संतुलन होना बहुत जरूरी है।
पूजा – तीसरे दोहे में खजूर के पेड़ का उदाहरण दिया गया है जो बड़ा होकर भी किसी काम नहीं आता। मेरा उत्तर ‘दूसरों के काम आना’ है, क्योंकि सिर्फ़ बड़ा होना काफी नहीं है, हमें दूसरों के लिए उपयोगी भी होना चाहिए।
रोहन – चौथे दोहे में ‘ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।’ की बात है। मेरा जवाब है कि मधुर वाणी बोलने से ‘दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है’।
रश्मि – पाँचवें दोहे के अनुसार, ‘साँच बराबर तप नहीं’। इसका मतलब है कि सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है।
अमन – छठे दोहे में कबीर कहते हैं कि ‘निंदक नियरे राखिए’ क्योंकि वह हमें बिना साबुन-पानी के निर्मल करता है। तो हमें आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए।
पूजा – और आखिरी दोहे में, ‘सूप’ विवेक का प्रतीक है, क्योंकि यह अच्छी चीज़ों को रखता है और बेकार चीज़ों को उड़ा देता है।

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मिलकर करें मिलान

(क) पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे स्तंभ में दी गई हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें स्तंभ 2 में दिए गए इनके सही अर्थ या संदर्भ से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।

क्रम/स्तंभ 1स्तंभ 2
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।1. सत्य का पालन कठिन है और झूठ पाप के समान है।
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।2. बड़ा होने के साथ व्यक्ति को उदार भी होना चाहिए।
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।3. गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और शिष्य गुरु का आदर करते हैं।
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।4. मन को नियंत्रित करना और सही दिशा में ले जाना महत्वपूर्ण है।
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।5. जीवन में संतुलन महत्वपूर्ण है।
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।6. हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन को शांति प्राप्त हो सके।
7. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।7. विवेकशील व्यक्ति को अच्छे और बुरे की पहचान होती है।
8. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।8. आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारी गलतियाँ बताते हैं।

उत्तर:

क्रम/स्तंभ 1स्तंभ 2
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।3. गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और शिष्य गुरु का आदर करते हैं।
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।5. जीवन में संतुलन महत्वपूर्ण है।
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।6. हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन को शांति प्राप्त हो सके।
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।8. आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारी गलतियाँ बताते हैं।
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।7. विवेकशील व्यक्ति को अच्छे और बुरे की पहचान होती है।
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।4. मन को नियंत्रित करना और सही दिशा में ले जाना महत्वपूर्ण है।
7. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।1. सत्य का पालन कठिन है और झूठ पाप के समान है।
8. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।2. बड़ा होने के साथ व्यक्ति को उदार भी होना चाहिए।

(ख) नीचे स्तंभ 1 में दी गई दोहों की पंक्तियों को स्तंभ 2 में दी गई उपयुक्त पंक्तियों से जोड़िए-

क्रम/स्तंभ 1स्तंभ 2
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।1. बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।2. औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।3. जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप।।
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।4. सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।5. पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर।।
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।6. अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
7. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।7. जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
8. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।8. बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

उत्तर:

क्रम/स्तंभ 1स्तंभ 2
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।8. बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।6. अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।2. औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।1. बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।4. सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।7. जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
7. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।5. पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर।।
8. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।3. जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप।।

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पंक्तियों पर चर्चा

पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-
(क) “कबिरा मन पंछी भया भावै तहवाँ जाय।
जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय”
उत्तर देखेंकबीरदास कहते हैं कि मन एक चंचल पक्षी के समान है, जो जहाँ चाहे उड़कर पहुँच जाता है। इसका नियंत्रण कठिन है। मन जिस संगति या साथ में रहेगा, वैसा ही प्रभाव भी लेगा। जैसे अगर मन बुरी संगति में रहेगा तो बुरे परिणाम देगा, और अगर अच्छी संगति में रहेगा तो अच्छे फल देगा। संगति का असर हमारे विचारों और कर्मों पर पड़ता है।

(ख) “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।”
उत्तर देखेंकबीरदास सच्चाई को सबसे बड़ा तप मानते हैं। उनके अनुसार झूठ सबसे बड़ा पाप है। जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य होता है, उस व्यक्ति के भीतर ही गुरु की उपस्थिति होती है। अर्थात, सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति आत्मज्ञान और ईश्वर से स्वयं जुड़ जाता है। उसे बाहरी दिखावे की आवश्यकता नहीं होती।

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सोच-विचार के लिए

पाठ को पुनः ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-
(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।” इस दोहे में गुरु को गोविंद (ईश्वर) से भी ऊपर स्थान दिया गया है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर देखेंइस दोहे में गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाता है। मैं इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ। एक सच्चा गुरु न केवल ज्ञान देता है, बल्कि आत्मविकास की दिशा में हमारा मार्गदर्शन करता है। जैसे माँ हमें जीवन देती है, वैसे ही गुरु हमें जीवन जीने की दिशा और उद्देश्य देता है।

(ख) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।” इस दोहे में कहा गया है कि सिर्फ बड़ा या संपन्न होना ही पर्याप्त नहीं है। बड़े या संपन्न होने के साथ-साथ मनुष्य में और कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए? अपने विचार साझा कीजिए।
उत्तर देखेंइस दोहे से यह संदेश मिलता है कि केवल ऊँचा पद, धन या प्रतिष्ठा होना पर्याप्त नहीं है। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा होता है लेकिन उसकी छाया नहीं मिलती और फल भी कठिनाई से मिलते हैं, वैसे ही केवल ऊँचाई व्यर्थ है यदि उससे दूसरों को कोई लाभ न हो। एक सच्चे बड़े इंसान में विनम्रता, सेवा भाव, करुणा और दूसरों को सहारा देने की भावना होनी चाहिए।

(ग) “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।” क्या आप मानते हैं कि शब्दों का प्रभाव केवल दूसरों पर ही नहीं स्वयं पर भी पड़ता है?
उत्तर देखेंहाँ, मैं मानता हूँ कि शब्दों का प्रभाव केवल दूसरों पर ही नहीं, स्वयं पर भी पड़ता है। जब हम नम्रता, प्रेम और समझदारी से बात करते हैं, तो सामने वाले के साथ-साथ हम स्वयं भी मानसिक शांति और संतुलन अनुभव करते हैं। कठोर या कटु शब्द जहाँ दूसरों को आहत करते हैं, वहीं हमारे मन को भी अशांत कर देते हैं।

(घ) आपके बोले गए शब्दों ने आपके या किसी अन्य के स्वभाव या मनोदशा को कैसे परिवर्तित किया? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर देखेंएक बार मेरे किसी मित्र ने गलती की थी और मैं बहुत नाराज़ था। पहले तो मैंने उसे कुछ कठोर शब्द कहे जिससे वह दुखी हो गया। बाद में मैंने शांति से उससे बात की, उसे समझाया और अपनी भावनाएँ शांत स्वर में प्रकट कीं। इस बार वह मेरी बातों को समझ सका और हम दोनों के बीच संबंध फिर से सुधर गए। इससे मैंने सीखा कि कैसे शब्दों का प्रयोग मनोदशा को बदल सकता है।

(ड) “जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय।।” हमारे विचारों और कार्यों पर संगति का क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर देखेंहम जिन लोगों के साथ समय बिताते हैं, उनका प्रभाव हमारे विचारों और कार्यों पर पड़ता है। यदि हम अच्छे, सकारात्मक और मेहनती लोगों की संगति में रहेंगे तो हमारे भीतर भी अच्छे गुण विकसित होंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र पढ़ाई में रुचि रखने वाले दोस्तों के साथ रहता है, तो वह भी अध्ययन की ओर आकर्षित होता है। वहीं गलत संगति बुरी आदतों की ओर ले जाती है। संगति ही जीवन की दिशा तय करती है।

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दोहे की रचना

“अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।”
इन दोनों पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। इन दोनों पंक्तियों के दो-दो भाग दिखाई दे रहे हैं। इन चारों भागों का पहला शब्द है ‘अति’। इस कारण इस दोहे में एक विशेष प्रभाव उत्पन्न हो गया है। आप ध्यान देंगे तो इस कविता में आपको ऐसी कई विशेषताएँ दिखाई देंगी, जैसे- दोहों की प्रत्येक पंक्ति को बोलने में समय लगता है।
अपने-अपने समूह में मिलकर पाठ में दिए गए दोहों की विशेषताओं की सूची बनाइए।
(क) दोहों की उन पंक्तियों को चुनकर लिखिए जिनमें:
(1) एक ही अक्षर से प्रारंभ होने वाले (जैसे- राजा, रस्सी, रात) दो या दो से अधिक शब्द एक साथ आए हैं।
(2) एक शब्द एक साथ दो बार आया है। (जैसे – बार-बार)।
(3) लगभग एक जैसे शब्द, जिनमें केवल एक मात्रा भर का अंतर है (जैसे- जल, जाल) एक ही पंक्ति में आए हैं।
(4) एक ही पंक्ति में विपरीतार्थक शब्दों (जैसे- अच्छा-बुरा) का प्रयोग किया गया है।
(5) किसी की तुलना किसी अन्य से की गई है। (जैसे- दूध जैसा सफेद)।
(6) किसी को कोई अन्य नाम दे दिया गया है। (जैसे- मुख चंद्र है)।
(7) किसी शब्द की वर्तनी थोड़ी अलग है। (जैसे- ‘चुप’ के स्थान पर ‘चूप’)।
(8) उदाहरण द्वारा कही गई बात को समझाया गया है।
उत्तर देखें1. एक ही अक्षर से शुरू होने वाले दो या दो से अधिक शब्द एक साथ आए हैं:
• “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय” में ‘गुरु गोविंद’।
• “बिन पानी साबुन बिना” में ‘बिन पानी बिना’।
• “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप” में ‘साँच’ और ‘तप’।
2. एक शब्द एक साथ दो बार आया है:
• “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय” में ‘दोऊ’।
• “सार सार को गहि रहै” में ‘सार सार’।
3. एक जैसे शब्द, जिनमें केवल एक मात्रा भर का अंतर है, एक ही पंक्ति में आए हैं:
• “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप” में ‘साँच’ और ‘पाप’।
•”कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय” में ‘मन’ और ‘पंछी’।
4. एक ही पंक्ति में विपरीतार्थक शब्दों का प्रयोग किया गया है:
• “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप” में ‘साँच’ और ‘झूठ’।
• “सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय” में ‘सार’ और ‘थोथा’।
5. किसी की तुलना किसी अन्य से की गई है:
• “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर” में व्यक्ति की तुलना खजूर के पेड़ से की गई है।
• “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय” में साधू की तुलना सूप से की गई है।
6. किसी को कोई अन्य नाम दे दिया गया है:
• “कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय” में मन को ‘पंछी’ कहा गया है।
7. किसी शब्द की वर्तनी थोड़ी अलग है:
• “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप” में ‘चुप’ के स्थान पर ‘चूप’ का प्रयोग किया गया है।
8. उदाहरण द्वारा कही गई बात को समझाया गया है:
• “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर” में खजूर के पेड़ का उदाहरण देकर समझाया गया है कि बड़ा होने का क्या महत्व है।
• “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय” में सूप का उदाहरण देकर एक साधु के गुणों के बारे में बताया गया है।

(ख) अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
उत्तर देखेंमेरे समूह ने “दोहे की रचना” के भाग (क) में जो सूची बनाई है, उसे मैंने कक्षा में सबके साथ साझा किया है अर्थात मैंने उन पंक्तियों को बताया है जिनमें एक ही अक्षर से शुरू होने वाले शब्द आए हैं या एक शब्द दो बार आया है या तुलना की गई है और बाकी सभी विशेषताएँ जो हमने ढूँढी हैं।

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अनुमान और कल्पना से

अपने समूह में मिलकर चर्चा कीजिए-
(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।”
• यदि आपके सामने यह स्थिति होती तो आप क्या निर्णय लेते और क्यों?
• यदि संसार में कोई गुरु या शिक्षक न होता तो क्या होता?
उत्तर देखें• अगर मेरे सामने गुरु और गोविंद दोनों खड़े होते, तो मैं पहले अपने गुरु के चरण छूता। मैं ऐसा इसलिए करता क्योंकि गुरु ने ही मुझे ज्ञान दिया और ईश्वर (गोविंद) तक पहुँचने का रास्ता बताया है।
• अगर संसार में कोई गुरु या शिक्षक नहीं होता, तो हम सभी अज्ञानी रह जाते। हम सही-गलत का अंतर नहीं समझ पाते। हमारा समाज और देश आगे नहीं बढ़ पाता।

(ख) “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।”
• यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है या बहुत चुप रहता है तो उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
• यदि वर्षा आवश्यकता से अधिक या कम हो तो क्या परिणाम हो सकते हैं?
• आवश्यकता से अधिक मोबाइल या मल्टीमीडिया का प्रयोग करने से क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर देखें• जो बहुत ज़्यादा बोलता है, लोग उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते और उससे परेशान भी हो सकते हैं। जो बहुत ज़्यादा चुप रहता है, वह अपनी बात किसी से कह नहीं पाता, जिससे उसके मन में बहुत सारी बातें दब जाती हैं और वह अकेला महसूस कर सकता है।
• अगर बहुत ज़्यादा बारिश होती है, तो बाढ़ आ सकती है, जिससे खेत और घर खराब हो जाते हैं। अगर बहुत कम बारिश होती है, तो सूखा पड़ जाता है और खेती नहीं हो पाती।
• ज़्यादा मोबाइल चलाने से हमारी आँखों को नुकसान हो सकता है और हम बाहरी दुनिया से दूर हो सकते हैं। हम पढ़ाई या खेलने जैसी ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान नहीं दे पाते।

(ग) “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।”
• झूठ बोलने पर आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
• कल्पना कीजिए कि आपके शिक्षक ने आपके किसी गलत उत्तर के लिए अंक दे दिए हैं, ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे?
उत्तर देखें• अगर हम झूठ बोलते हैं, तो लोग हम पर विश्वास करना बंद कर देते हैं। एक झूठ को छुपाने के लिए हमें और भी झूठ बोलने पड़ते हैं।
• ऐसी परिस्थिति में मैं अपने शिक्षक को यह बताऊँगा कि मेरा उत्तर गलत है। मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि सच बोलना बहुत ज़रूरी है और इससे मुझे सही ज्ञान मिलेगा।

(घ) “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।”
• यदि सभी मनुष्य अपनी वाणी को मधुर और शांति देने वाली बना लें तो लोगों में क्या परिवर्तन आ सकते हैं?
• क्या कोई ऐसी परिस्थिति हो सकती है जहाँ कटु वचन बोलना आवश्यक हो? अनुमान लगाइए।
उत्तर देखें• अगर सब लोग मीठा बोलते हैं, तो समाज में लड़ाई-झगड़े कम हो जाएँगे। सभी लोग एक-दूसरे के साथ प्यार से रहेंगे और एक-दूसरे का सम्मान करेंगे।
• हाँ, ऐसी परिस्थिति हो सकती है। जैसे, जब कोई बहुत गलत काम कर रहा हो और उसे तुरंत रोकने की ज़रूरत हो। या जब किसी को सही रास्ता दिखाने के लिए सख्ती से बोलना पड़े।

(ङ) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।”
• यदि कोई व्यक्ति अपने बड़े होने का अहंकार रखता हो तो आप इस दोहे का उपयोग करते हुए उसे ‘बड़े होने या संपन्न होने’ का क्या अर्थ बताएँगे या समझाएँगे?
• खजूर, नारियल आदि ऊँचे वृक्ष अनुपयोगी नहीं होते हैं। वे किस प्रकार से उपयोगी हो सकते हैं? बताइए।
• आप अपनी कक्षा का कक्षा नायक या नायिका (मॉनीटर) चुनने के लिए किसी विद्यार्थी की किन-किन विशेषताओं पर ध्यान देंगे?
उत्तर देखें• मैं उसे इस दोहे का उदाहरण देकर समझाऊँगा कि सिर्फ़ बड़ा या अमीर होना ही काफ़ी नहीं है। एक बड़े इंसान को दूसरों के काम भी आना चाहिए, जैसे खजूर का पेड़ इतना बड़ा होकर भी किसी को छाया नहीं देता।
• खजूर और नारियल के पेड़ से हमें फल मिलते हैं। नारियल के पेड़ के पत्ते और लकड़ी कई कामों में इस्तेमाल होती है।
• मैं ऐसे विद्यार्थी को चुनूँगा जो सभी के साथ अच्छा व्यवहार करता हो। जो ज़िम्मेदारी से अपना काम करता हो और दूसरों की मदद भी करता हो।

(च) “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।”
• यदि कोई आपकी गलतियों को बताता रहे तो आपको उससे क्या लाभ होगा?
• यदि समाज में कोई भी एक-दूसरे की गलतियाँ न बताए तो क्या होगा?
उत्तर देखें• अगर कोई हमारी गलतियाँ बताता है, तो हमें अपने आप को सुधारने का मौक़ा मिलता है। इससे हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।
• अगर कोई एक-दूसरे की गलतियाँ नहीं बताएगा, तो हम कभी अपनी कमियों को पहचान नहीं पाएँगे। समाज में सब कुछ जैसा है वैसा ही रह जाएगा और कोई सुधार नहीं होगा।

(छ) “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।”
• कल्पना कीजिए कि आपके पास ‘सूप’ जैसी विशेषता है तो आपके जीवन में कौन-कौन से परिवर्तन आएँगे?
• यदि हम बिना सोचे-समझे हर बात को स्वीकार कर लें तो उसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर देखें• अगर मेरे पास ‘सूप’ जैसी विशेषता होती, तो मैं अच्छी बातों को अपनाता और बुरी बातों को छोड़ देता। इससे मेरा मन साफ़ और अच्छा रहता और मैं सही निर्णय ले पाता।
• बिना सोचे-समझे हर बात मानने से हम ग़लत रास्ते पर जा सकते हैं। इससे हमें बाद में पछताना पड़ सकता है।

(ज) कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।”
• यदि मन एक पंछी की तरह उड़ सकता तो आप उसे कहाँ ले जाना चाहते और क्यों?
• संगति का हमारे जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर देखें• मैं अपने मन को अच्छी जगहों पर ले जाता, जैसे पहाड़ों और नदियों के पास। ताकि मेरा मन शांत और खुश रहे।
• जैसी हमारी संगति होती है, वैसा ही हम बन जाते हैं। अच्छे दोस्तों के साथ रहने से हम अच्छी आदतें सीखते हैं और बुरी संगति में रहने से हम भी बुरे बन सकते हैं।

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वाद-विवाद

“अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।।”
(क) इस दोहे का आज के समय में क्या महत्व है? इसके बारे में कक्षा में एक वाद-विवाद गतिविधि का आयोजन कीजिए। एक समूह के साथी इसके पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करेंगे और दूसरे समूह के साथी इसके विपक्ष में बोलेंगे। एक तीसरा समूह निर्णायक बन सकता है।
उत्तर देखेंयह दोहा आज के समय में भी बहुत महत्वपूर्ण है। आज के डिजिटल युग में, जहाँ सोशल मीडिया पर लोग बिना सोचे-समझे बहुत कुछ बोलते हैं, यह दोहा हमें वाणी पर संयम रखने की सलाह देता है। यह दोहा हमें यह भी सिखाता है कि जिस तरह बहुत ज़्यादा बारिश या धूप अच्छी नहीं होती, उसी तरह बहुत ज़्यादा बोलना या पूरी तरह चुप रहना भी ठीक नहीं होता। यह हमें जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है।

(ख) पक्ष और विपक्ष के समूह अपने-अपने मत के लिए तर्क प्रस्तुत करेंगे, जैसे-
• पक्ष – वाणी पर संयम रखना आवश्यक है।
• विपक्ष – अत्यधिक चुप रहना भी उचित नहीं है।
उत्तर देखेंपक्ष:
• वाणी पर संयम रखना आवश्यक है।
• ज़्यादा बोलने से हम कई बार ऐसी बातें कह जाते हैं जिनसे दूसरों को दुख पहुँचता है या विवाद पैदा होते हैं।
• संयम से बोलने पर हमारी बात का महत्व बढ़ जाता है।
• आजकल की ‘साइबर-धमकी’ और ‘ट्रोलिंग’ जैसी समस्याओं से बचने के लिए भी वाणी पर संयम ज़रूरी है।
विपक्ष:
• अत्यधिक चुप रहना भी उचित नहीं है।
• अगर कोई गलत काम हो रहा हो तो उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना ज़रूरी है, उस समय चुप रहना ठीक नहीं है।
• चुप रहने से हम अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे मन में तनाव बढ़ सकता है।
• ज़रूरत पड़ने पर, जैसे किसी को सही रास्ता दिखाने के लिए, बोलना ज़रूरी हो जाता है।

(ग) पक्ष और विपक्ष में प्रस्तुत तर्कों की सूची अपनी लेखन-पुस्तिका में लिख लीजिए।
उत्तर देखेंकम बोलने के पक्ष:
• बात का महत्व बढता है
• वाणी में मिठास बनी रहती है
• सभी आपको सुनना चाहते है
• गलती होने पर कम बोलना और चुप रहना भी लाभदायक होता है
ज्यादा बोलने के विपक्ष:
• लोग बातों पर ध्यान नहीं देते
• अहित और लड़ाई होने कि संभावना
• कई बार दुसरे के हृदय दुखा देती है
• शुभ कार्य भी अशुभ हो जाते है

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शब्द से जुड़े शब्द

नीचे दिए गए स्थानों में कबीर से जुड़े शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और मित्रों के साथ चर्चा कीजिए-

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 चित्र 1

उत्तर:

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 चित्र 2

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दोहे और कहावतें

“कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।
जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।”
इस दोहे को पढ़कर ऐसा लगता है कि यह बात तो हमने पहले भी अनेक बार सुनी है । यह दोहा इतना अधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय है कि इसकी दूसरी पंक्ति लोगों के बीच कहावत – ‘जैसा संग वैसा रंग’ की तरह प्रयुक्त होती है । कहावतें ऐसे वाक्य होते हैं जिन्हें लोग अपनी बात को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयोग करते हैं । इसमें सामान्यतः जीवन के गहरे अनुभव को सरल और संक्षेप में बता दिया जाता है ।
• अब आप ऐसी अन्य कहावतों का प्रयोग करते हुए अपने मन से कुछ वाक्य बनाकर लिखिए ।
उत्तर देखेंकहावतें, जो जीवन के गहरे अनुभवों को सरल और संक्षेप में बताती हैं, का प्रयोग करके कुछ वाक्य इस प्रकार हैं:
1. कहावत: जैसा देश वैसा भेष।
वाक्य: रमेश ने विदेश जाकर वहाँ के लोगों के अनुसार कपड़े पहने और खाना-पीना शुरू कर दिया, क्योंकि उसने सोचा जैसा देश वैसा भेष।
2. कहावत: बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
वाक्य: मैंने अपनी पॉकेट मनी से हर दिन थोड़े-थोड़े पैसे बचाए, और कुछ महीनों बाद मेरे पास एक साइकिल खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे थे, क्योंकि बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
3. कहावत: जिसकी लाठी उसकी भैंस।
वाक्य: गाँव के सबसे ताकतवर ज़मींदार ने नदी के किनारे की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया, और सब लोग जानते थे कि जिसकी लाठी उसकी भैंस।
4. कहावत: लालच बुरी बला है।
वाक्य: सोहन ने ज़्यादा पैसों के लालच में गलत काम किया, और अंत में उसे जेल जाना पड़ा। तब उसे समझ आया कि लालच बुरी बला है।
5. कहावत: एक पंथ दो काज।
वाक्य: मैं बाज़ार सब्ज़ी खरीदने गया और वापसी में अपनी दादी के लिए दवाइयाँ भी ले आया, इसे कहते हैं एक पंथ दो काज।

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सबकी प्रस्तुति

पाठ के किसी एक दोहे को चुनकर अपने समूह के साथ मिलकर भिन्न-भिन्न प्रकार से कक्षा के सामने प्रस्तुत कीजिए। उदाहरण के लिए-
• गायन करना, जैसे लोकगीत शैली में।
• भाव-नृत्य प्रस्तुति।
• कविता पाठ करना।
• संगीत के साथ प्रस्तुत करना।
• अभिनय करना, जैसे एक दोस्त गुस्से में आकर कुछ गलत कह देता है लेकिन दूसरा दोस्त उसे समझाता है कि मधुर भाषा का कितना प्रभाव पड़ता है। (ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोल।)
उत्तर देखेंहम सभी ने “सबकी प्रस्तुति” अनुभाग में एक गतिविधि करने का फैसला किया है। इस गतिविधि में, हमने अपने समूह के साथ मिलकर पाठ से कोई एक दोहा चुना और उसे कक्षा के सामने अलग-अलग तरीकों से प्रस्तुत किया।
प्रस्तुत करने के कुछ तरीके जो हमने चुने:
• लोकगीत की तरह गाना ।
• उस पर भाव-नृत्य करना ।
• कविता पाठ करना ।
• संगीत के साथ प्रस्तुत करना ।
• अभिनय करना ।
हमारे समूह ने “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय” दोहे को चुना है। हम इस पर एक छोटा नाटक (अभिनय) प्रस्तुत किया। हमारे नाटक में एक दोस्त गुस्से में कुछ गलत बोल देता है और दूसरा दोस्त उसे समझाता है कि मधुर भाषा का कितना अच्छा प्रभाव पड़ता है।

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आपकी बात

(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।” क्या आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने आपको सही दिशा दिखाने में सहायता की हो? उस व्यक्ति के बारे में बताइए।
उत्तर देखेंमेरे जीवन में मेरे पिताजी ने मुझे सही दिशा दिखाने में बहुत मदद की है। जब मैं कभी किसी दुविधा में होता हूँ, तो वे मुझे सही-गलत का फर्क समझाते हैं और सही रास्ता दिखाते हैं।

(ख) “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।” क्या कभी किसी ने आपकी कमियों या गलतियों के विषय में बताया है जिनमें आपको सुधार करने का अवसर मिला हो? उस अनुभव को साझा कीजिए।
उत्तर देखेंएक बार मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि मैं बोलते समय बहुत जल्दी-जल्दी बोलता हूँ, जिससे मेरी बात ठीक से समझ नहीं आती। मैंने इस पर ध्यान दिया और अब मैं धीरे और स्पष्ट बोलने की कोशिश करता हूँ। इससे मुझे अपनी बातचीत सुधारने का मौका मिला।

(ग) कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।” क्या आपने कभी अनुभव किया है कि आपकी संगति (जैसे – मित्र) आपके विचारों और आदतों या व्यवहारों को प्रभावित करती है? अपने अनुभव साझा कीजिए।
उत्तर देखेंहाँ, मैंने यह अनुभव किया है। जब मैं अपने उन दोस्तों के साथ समय बिताता था जो पढ़ाई में अच्छे थे, तो मुझे भी ज़्यादा मेहनत करने की प्रेरणा मिलती थी। उनकी अच्छी आदतें मुझ पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती थीं।

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सृजन

(क) “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।”
इस दोहे पर आधारित एक कहानी लिखिए जिसमें किसी व्यक्ति ने कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
उत्तर देखेंकहानी साँच बराबर तप नहीं…
हमारी स्कूल की फुटबॉल टीम फाइनल मैच खेल रही थी। मैच के आखिरी मिनटों में हमारी टीम ने एक गोल किया। सभी बहुत खुश थे, लेकिन मैंने देखा कि गोल करते समय हमारे खिलाड़ी ने गेंद को हाथ से छुआ था, जो कि नियमों के खिलाफ था। जब रेफरी ने गोल को सही मान लिया, तो मैंने अपने कप्तान से कहा कि हमें सच बताना चाहिए। कप्तान और मेरी टीम के साथी गुस्सा हो गए, लेकिन मैंने जोर देकर कहा कि हमें सच का साथ देना चाहिए, चाहे हम हार जाएँ। मैंने रेफरी को सच्चाई बता दी और गोल अमान्य हो गया। हमारी टीम मैच हार गई, लेकिन हमारे कोच और दर्शक मेरी ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि खेल भावना और सच की जीत सबसे बड़ी होती है।

(ख) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।”
इस दोहे को ध्यान में रखते हुए अपने किसी प्रेरणादायक शिक्षक से साक्षात्कार कीजिए और उनके योगदान पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर देखेंनिबंध: गुरु गोविंद दोऊ खड़े…
मैंने अपनी विज्ञान की शिक्षिका से साक्षात्कार लिया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। उन्होंने यह भी बताया कि वे बच्चों को सिर्फ़ विज्ञान नहीं, बल्कि जीवन की सही राह पर चलना भी सिखाती हैं। उन्होंने मुझे समझाया कि एक शिक्षक सिर्फ़ किताबें नहीं पढ़ाता, बल्कि वह एक मार्गदर्शक होता है जो हमारे अंदर के ज्ञान को जगाता है। उनके योगदान को देखकर मुझे कबीर का यह दोहा याद आ गया कि गुरु का स्थान गोविंद से भी ऊँचा है, क्योंकि गुरु ही हमें गोविंद तक पहुँचने का रास्ता दिखाते हैं।

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कबीर हमारे समय में

(क) कल्पना कीजिए कि कबीर आज के समय में आ गए हैं। वे आज किन-किन विषयों पर कविता लिख सकते हैं? उन विषयों की सूची बनाइए।
उत्तर देखें आज के समय में कबीर निम्नलिखित विषयों पर कविता लिख सकते हैं:
• सोशल मीडिया और इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग
• पर्यावरण प्रदूषण
• भ्रष्टाचार
• साइबर सुरक्षा
• नैतिक मूल्यों में कमी
• डिजिटल दुनिया में अकेलापन
• महंगाई और गरीबी

(ख) इन विषयों पर आप भी दो-दो पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर देखेंनिम्नलिखित विषयों पर दो-दो पंक्तियाँ लिख सकते हैं:
सोशल मीडिया और इंटरनेट:
• मोबाइल में जग बसै, लोग हुए हैं दूर।
• मुख से बोलें मीठा सब, मन में भरा गुरुर।।
भ्रष्टाचार:
• साँच-झूठ का भेद ना रहा, पाप-पुण्य का योग।
• कबीर कहैं, इस जग में, रिश्वत का है भोग।।
पर्यावरण प्रदूषण:
• सूखे पेड़ और ज़हरीली हवा, प्रकृति का अब हो रहा है नाश।
• मानव लालच में अंधा हुआ, कौन करे अब इसका इलाज।।
साइबर सुरक्षा:
• अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
• इंटरनेट के जग में, कहीं खो न जाए तेरा रूप।।
नैतिक मूल्यों में कमी:
• गुरु गोविंद दोऊ खड़े, मान-सम्मान गया भूल।
• अब जग में धन ही बड़ा, बाकी सब है धूल।।

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साइबर सुरक्षा और दोहे

नीचे दिए गए प्रश्‍नों पर कक्षा में विचार – विमर्श कीजिए और साझा कीजिए—
(क) “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।” इंटरनेट पर अनावश्यक बोलने से क्या-क्या संकट हो सकते हैं?
उत्तर देखेंइंटरनेट पर अनावश्यक बोलने से कई तरह के संकट हो सकते हैं। अगर हम ज़्यादा और बिना सोचे-समझे बोलते हैं तो हम ऑनलाइन विवादों में फंस सकते हैं। इससे हमारी व्यक्तिगत जानकारी भी खतरे में पड़ सकती है और हमारी ऑनलाइन प्रतिष्ठा को भी नुकसान हो सकता है।

(ख) “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।” किसी भी वेबसाइट, ईमेल या मीडिया पर उपलब्ध जानकारी को ‘सूप’ की तरह छानने की आवश्यकता क्यों है? कैसे तय करें कि कौन-सी सूचना उपयोगी है और कौन-सी हानिकारक?
उत्तर देखेंवेबसाइट, ईमेल या मीडिया पर उपलब्ध जानकारी को ‘सूप’ की तरह छानने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि इंटरनेट पर हर जानकारी सही नहीं होती। ‘सूप’ की तरह हमें सही बातों को चुनना चाहिए और बेकार बातों को छोड़ देना चाहिए।
यह तय करने के लिए कि कौन-सी सूचना उपयोगी है और कौन-सी हानिकारक, हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
• स्रोत की जाँच करें: हमें यह देखना चाहिए कि जानकारी किस वेबसाइट या स्रोत से आई है। सरकारी या विश्वसनीय समाचार साइटें आमतौर पर ज़्यादा भरोसेमंद होती हैं।
• तुलना करें: एक ही जानकारी को दो-तीन अलग-अलग स्रोतों से मिलाकर देखना चाहिए।
• आलोचनात्मक सोचें: हमें हर जानकारी पर तुरंत विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए कि क्या यह सच हो सकती है।

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आज के समय में

नीचे कुछ घटनाएँ दी गई हैं। इन्हें पढ़कर आपको कबीर के कौन-से दोहे याद आते हैं? घटनाओं के नीचे दिए गए रिक्त स्थान पर उन दोहों को लिखिए-
• अमित का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था और वह गलत संगति में चल गया। कुछ समय बाद जब उसके अंक कम आए तो उसे समझ में आया— “संगति का असर जीवन पर पड़ता है।”
उत्तर देखेंदोहा: “कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।”

• एक विद्यार्थी इंटरनेट पर लगातार सूचनाएँ खोज रहा था। उसके पिता ने कहा— “हर जानकारी सही नहीं होती, सही बातों को चुनो और बेकार छोड़ दो।”
उत्तर देखेंदोहा: “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।”

• आपका एक मित्र आपकी किसी गलत बात पर आपकी आलोचना करता है। आप पहले परेशान होते हैं, लेकिन फिर आपने सोचा – आलोचना मुझे सुधरने का मौका देती है, मुझे इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। इसे सकारात्मक रूप से लेना चाहिए।”
उत्तर देखेंदोहा: “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।”

• रीमा ने अपने गुस्से में सहकर्मी को बुरा-भला कह दिया, जिससे वातावरण बिगड़ गया। बाद में उसने समझा कि अगर वह शांति से बात करती तो समस्या हल हो जाती।
उत्तर देखेंदोहा: “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।”

• कक्षा में मोहन ने बहुत अधिक बोलकर सबको परेशान कर दिया, जबकि रमेश बिलकुल चुप रहा गुरूजी ने कहा- “बोलचाल में संतुलन आवश्यक है, न अधिक बोलो, न अधिक छप रहो।”
उत्तर देखेंदोहा: “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।”

• सुरेश को जब ‘ प्रतिभा सम्मान’ मिला तो उसने कहा- “इसमें मेरे परिश्रम के साथ मेरे गुरुजनों का मार्गदर्शन भी सम्मिलित है।”
उत्तर देखेंदोहा: “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।”

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खोजबीन के लिए

अपने परिजनों, मित्रों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता से कबीर के भजन, गीत, लोकगीत खोजिए और सुनिए। किसी एक गीत को अपनी लेखन-पुस्तिका में लिखिए। कक्षा के सभी समूहों द्वारा एकत्रित गीतों को जोड़कर एक पुस्तिका बनाइए और कक्षा के पुस्तकालय में उसे सम्मिलित कीजिए।
उत्तर देखेंमैंने अपने परिजनों और इंटरनेट की सहायता से कबीर के कई भजन व लोकगीत खोजे। इनमें से एक प्रसिद्ध भजन “साँच कहै तो मारन धावै, झूठ कहै सब पोषै” मुझे बहुत पसंद आया। इस गीत में कबीर ने सत्य बोलने की कठिनाई और झूठ की लोकप्रियता को स्पष्ट किया है। मैंने इसे अपनी लेखन-पुस्तिका में लिखा। हमारी कक्षा के सभी साथियों ने भी अलग-अलग भजन और गीत एकत्र किए। फिर उन सबको जोड़कर एक सुंदर पुस्तिका बनाई गई। यह पुस्तिका कक्षा पुस्तकालय में रखी गई, ताकि सभी छात्र इसे पढ़ सकें और कबीर की शिक्षाओं से प्रेरणा ले सकें।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 “कबीर के दोहे” के प्रत्येक दोहे का सरल भावार्थ

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 के भावार्थ

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप।।
भावार्थसत्य सबसे बड़ा धर्म है और झूठ सबसे बड़ा पाप। जिसके हृदय में सत्य है, उसके हृदय में स्वयं गुरु और भगवान का वास होता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर।।
भावार्थकेवल ऊँचा होने से कोई महान नहीं बनता। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा होता है, लेकिन राहगीर को छाया नहीं देता और फल भी बहुत ऊँचाई पर लगते हैं। महान वही है जो दूसरों के काम आए।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
भावार्थयदि गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हों तो पहले किसे प्रणाम करें? कबीर कहते हैं कि पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ही भगवान से मिलवाने का मार्ग बताते हैं।

अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
भावार्थहर चीज़ की अति बुरी होती है। न अधिक बोलना अच्छा है और न ही पूरी तरह चुप रहना। न बहुत बारिश अच्छी है और न ही बहुत तेज़ धूप। जीवन में संतुलन सबसे अच्छा है।

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
भावार्थहमें ऐसे मधुर वचन बोलने चाहिए जिनसे अहंकार मिट जाए। हमारे शब्द दूसरों को शांति दें और स्वयं को भी शांति मिले।

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
भावार्थजो हमारी बुराइयाँ बताता है, उसे अपने पास रखना चाहिए। क्योंकि वह बिना पानी और साबुन के ही हमारे दोष दूर कर देता है और हमें सुधारने में मदद करता है।

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
भावार्थसाधु वही है जो अच्छाई और सच्चाई को अपने पास रखे और बुराई को छोड़ दे। जैसे सूप अनाज से भूसी अलग कर देता है।

कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।
जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
भावार्थमन पक्षी की तरह है जो जहाँ चाहे उड़ जाता है। जिस संगति में इंसान रहता है, वैसा ही उसका स्वभाव और जीवन बन जाता है।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 “कबीर के दोहे” का सारांश

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 5 का सारांश

इस अध्याय में संत कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन के गहरे सत्य और सीख दी है। वे बताते हैं कि सत्य से बड़ा कोई तप नहीं और झूठ सबसे बड़ा पाप है। केवल ऊँचा होना महानता नहीं, बल्कि वही महान है जो दूसरों के काम आए। कबीर गुरु की महत्ता बताते हैं कि गुरु ही हमें भगवान से मिलाते हैं।
वे समझाते हैं कि हर चीज़ की अति बुरी होती है, इसलिए जीवन में संतुलन जरूरी है। हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे दूसरों को शांति मिले और स्वयं को भी सुख मिले। कबीर यह भी कहते हैं कि निंदक (बुराई बताने वाला) हमारे लिए उपयोगी होता है क्योंकि वह हमारी कमियों को दूर करने में मदद करता है।
एक सच्चा साधु वही है जो अच्छे को अपनाए और बुरे को त्याग दे, जैसे सूप दाने को रखकर भूसी अलग कर देता है। अंत में, कबीर बताते हैं कि मन पक्षी जैसा है, यह जैसी संगति करता है वैसा ही फल पाता है।