एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 4 सामाजिक न्याय
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 4 सामाजिक न्याय के सभी प्रश्न उत्तर अभ्यास के प्रमुख सवालों के जवाब शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा ग्यारह राजनीति शास्त्र में राजनीतिक सिद्धांत के पाठ 4 के सवाल जवाब सरल भाषा में छात्रों की मदद के लिए यहाँ दिए गए है, जो छात्रों को परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 4 सामाजिक न्याय के प्रश्न उत्तर
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला?
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ है- न्याय में प्रत्येक व्यक्ति को उसका उचित भाग प्रदान करना। जर्मन दार्शनिक काण्ट के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक को प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए मौका मिले। न्याय के लिए आवश्यक है कि हम सभी व्यक्तियों को समुचित और समान महत्व दें।
प्लेटो के अनुसार-“न्याय के अंतर्गत प्रत्यके वर्ग को अपने क्षेत्र में कार्यों की उपलब्धि और दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करना ही न्याय है।“
अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतो की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइए।
अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांत निम्नलिखित है:
समान लोगों के प्रति समान व्यवहार: आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में कुछ महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार जैसे नागरिक अधिकार शामिल हैं। इसमें समाज के अन्य सदस्यों के साथ समान अवसरों के उपभोग करने का सामाजिक अधिकार तथा मताधिकार जैसे राजनीतिक अधिकार भी ‘शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्तियों को राज प्रक्रियाओं में भागीदार बनाते हैं। समान अधिकारों के अलावा समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत के लिए ज़रूरी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल के आधार पर भेदभाव न किया जाए।
समानुपातिक न्याय: सबके लिए समान अधिकार की दौड़ में एक ही शुरूआती रेखा निर्धारित करने के बावजूद, ऐसे मसलों में न्याय का मतलब होगा, लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना। उदाहरण के तौर पर खनिकों, कुशल कारीगरों अथवा पुलिस कर्मियों जैसे कभी-कभी खतरनाक, लेकिन सामाजिक रूप से उपयोगी पेशों मे लगे लोगों को सदैव वह पारिश्रमिक नहीं मिलता, जो समाज में कुछ अन्य लोगों को होने वाली कमाई की तुलना में न्यायोचित हो। समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धांत का समानुपातिकता के सिद्धांत के साथ संतुलन बिठाने की ज़रूरत है।
विशेष आवश्यकताओं का विशेष ध्यान: न्याय के जिस तीसरे सिद्धांत को हम समाज के लिए मान्य करते हैं, वह कर्त्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष ज़रूरतों का ध्यान रखने का सिद्धांत है। इसे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है। लोगों की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखने का सिद्धांत समान व्यवहार के सिद्धांत को अनिवार्यतया खंडित नहीं, बल्कि उसका विस्तार ही करता है।
क्या ज़रूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरूद्ध है?
समाज के सदस्यों के रूप में लोगों की बुनियादी हैसियत तथा अधिकारों के लिहाज़ से न्याय के लिए यह ज़रूरी हो सकता है कि लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाए। लेकिन, लोगों के बीच भेदभाव न करना और समाज में अपने जीवन के अन्य संदर्भों में भी लोग समानता का उपभोग करें जिससे समाज समग्र रूप से सबके प्रति न्यायपूर्ण हो जाए। लोगों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखने का सिद्धांत समान व्यवहार के सिद्धांत को अनिवार्यतया खंडित नहीं, बल्कि उसका विस्तार ही करता है। ‘शारीरिक विकलांगता, उम्र या अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच न होना कुछ ऐसे कारक हैं, जिसे अनेक देशों में विशेष व्यवहार का आधार समझा जाता है।
निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में ʻअज्ञानता के आवरणʼ के विचार का उपयोग किस प्रकार किया।
जॉन रॉल्स तर्क करते हैं कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम खुद को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाए। अर्थात् हम नहीं जानते कि किस किस्म के परिवार मे हम जन्म लेंगे, हम ‘उच्च’ जाति के परिवार मे पैदा होंगे या ‘निम्न’ जाति में, धनी होंगे या गरीब, सुविधा-संपन्न होंगे या सुविधाहीन। रॉल्स तर्क देते हैं कि अगर हमें यह नहीं मालूम हो, इस मायने में कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा। रॉल्स ने इसे ʻअज्ञानता के आवरणʼ में सोचना कहा है। वे आशा करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी, आमतौर पर जैसे सब करते हैं, अपने खुद के हितों को ध्यान में रखकर फ़ैसला करेगा। ʻअज्ञानता के आवरणʼ वाली स्थिति की विशेषता यह है कि उसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बनाती है।
आम तौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें क्या मानी गई हैं? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है?
विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अन्तराष्ट्रीय संगठनों ने लोगों की बुनियादी जरूरतों की गणना के लिए विभिन्न तरीके दिये हैं। लेकिन इस पर सहमति है कि स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्त्वपूर्ण हिस्से होंगे। लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी समझी जाती है। सभी नागरिकों के लिए इन बुनियादी शर्तों की पूर्ति, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ गरीबों की बड़ी संख्या है, सरकार पर भारी बोझ बन सकती है।
सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाई को निम्न में से कौन-से तर्क को वाजिब ठहराया जा सकता है?
(क) गरीब और जरूरतमंदों को निःशुल्क सेवाएँ देना एक धार्मिक कार्य के रूप में न्यायोचित है।
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
(घ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
उत्तर 6:
(घ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।